बिहार प्रदेश भाजपा अध्यक्ष संजय जायसवाल ने आज फेसबुक पेज के माध्यम से जो संदेश दिया है उससे साफ लग रहा है कि इस बार बीजेपी किसी भी तरह के समझौते के मूड में नहीं है अब गेंद जदयू के पाले में है वो सरकार साथ साथ चलाये या फिर राह जुदा जुदा कर ले ।
हालांकि 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव के परिणाम के दिन से ही यह चर्चा आम है कि यूपी चुनाव के बाद बिहार में बदलाव तय है अगर योगी की वापसी हुई तो नीतीश का जाना तय है .अगर योगी की वापसी नहीं हुई तो नीतीश बिहार में बड़े भाई की भूमिका में पूरी मजबूती के साथ बने रहेंगे ।
लेकिन चुनाव शुरू होने से पहले ही जिस तरीके से बीजेपी और जदयू आमने सामने हो गयी है उससे तो साफ लग रहा है कि खेला शुरु हो गया है लेकिन बड़ा सवाल यह भी है कि अभी बिहार की सरकार अस्थिर करके बीजेपी किसको लाभ पहुंचाना चाह रही है यह सवाल भी जायसवाल के तेवर से उठने लगा है इस पर आगे फिर कभी चर्चा होगी क्यों कि कुछ चीजे अभी स्पष्ट नहीं हो पाई है । वैसे आज जो कुछ भी हो रहा है वो नीतीश समझ चुके थे इसलिए 2020 के चुनाव परिणाम आने के साथ ही पार्टी को मजबूत करने के लिए नीतीश कुमार पहले दिन से ही लग गये, कह सकते हैं कि नीतीश इस एक वर्ष के कार्यकाल के दौरान सरकार कब पार्टी को मजबूत करने में ज्यादा समय दिये नीतीश कुमार के पहल पर जो साथी पार्टी छोड़ कर चले गये थे उनको पार्टी में फिर से वापस लौटे उपेन्द्र कुशवाहा ,पूर्व विधायक मंजीत सिंह ,पूर्व विधान पार्षद विनोद सिंह पूर्व सांसद रंजन यादव सहित कई पुराने साथी इसी अभियान के दौरान पार्टी में वापस आये वही संगठन में बड़ा बदलाव करते हुए ललन सिंह को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया ।
नीतीश कुमार के घर वापसी वाली राजनीति पर गौर करे तो नीतीश कुमार भाजपा विरोधी लोगों को ज्यादा से ज्यादा साथ लाये और पार्टी में जिनकी छवि भाजपा को लेकर सोफ्ट रहा उससे दूरी बनाने लगे मतलब नीतीश कुमार यूपी चुनाव के बाद की स्थिति पर चुनाव परिणाम आने के साथ ही काम शुरु कर दिया था
लेकिन बड़ा सवाल यह है कि विधानसभा में नीतीश की जो हैसियत है उसके आधार पर वो अपनी राजनीति को कहां तक खीच कर ले जा सकते हैं।
1—यूपी में सीट की दावेदारी का मतलब क्या है
झारखंड में जदयू का विधायक भी रहा है पार्टी का संगठन भी रहा है तब भी बीजेपी 2019 के झारखंड विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी को एक भी सीट नहीं दिया ऐसा स्थिति में यूपी में बीजेपी के साथ गठबंधन करने कि बात इतनी मजबूती के साथ जदयू क्यों कर रही थी ,
यूपी में 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले नीतीश कुमार शराबबंदी के सहारे यूपी में काफी सभा किये और पार्टी संगठन को खड़ा करने कि कोशिश भी किये लेकिन पिछले पांच वर्षो के दौरान यूपी में पार्टी की कोई गतिविधि नहीं रही संगठन भी नहीं के बराबर है ऐसी स्थिति में जदयू यूपी में बीजेपी के साथ गठबंधन को लेकर आश्वस्त क्यों दिख रहा था कुछ दिन पहले जदयू ने तो एलान भी कर दिया था कि यूपी में बीजेपी के साथ गठबंधन हो गया जबकि इस विषय में जदयू को बीजेपी के किसी भी नेता से बात तक नहीं हुई थी जानकार बता रहे हैं कि इसकी दो वजह है एक आरसीपी सिंह जो यूपी में बीजेपी के साथ गठबंधन को लेकर बड़ी बड़ी बातें कर रहे थे गठबंधन नहीं होने से वो जगह पकड़ लिया वही नीतीश कुमार यूपी को लेकर इसलिए तोड़ जोड़ कर रहे थे ताकि यूपी में पांच दस सीट में मिल गया तो फिर उसी के दम पर बिहार में बीजेपी को गठबंधन में बनाये रखने पर मजबूर कर सकते हैं लेकिन बीजेपी नीतीश कुमार के किसी भी प्रस्ताव पर बात करने को तैयार नहीं था ।
2–जदयू सम्राट अशोक के मामले को क्यों तूल दे रहा है दया प्रकाश सिन्हा सम्राट अशोक को लेकर जो कुछ भी लिखा है वो कोई आज नहीं लिखा है बहुत पहले लिखा गया है लेकिन इस विषय को लेकर जदयू अचानक बीजेपी पर हमलावर हो यहां भी वजह यूपी चुनाव ही है जदयू को लगता है कि सम्राट अशोक का मुद्दा उठा कर यूपी का जो मौर्य समाज है उसको उद्वेलित करे जो बीजेपी के साथ है मतलब बिहार के सहारे नीतीश कुमार बीजेपी को यूपी में नुकसान पहुंचाना चाह रहे हैं मतलब यहां भी जदयू की राजनीति यूपी को नजर में रख कर ही बनायी गयी है ।
3–बीजेपी समझौते के मूड में नहीं है इस बार बीजेपी किसी भी तरह के समझौते के मूड में नहीं है जातीय जनगणना को लेकर पहले ही बिहार बीजेपी अपनी राय स्पष्ट कर चुका है शराबबंदी को लेकर बीजेपी हमलावर है और सम्राट अशोक मामले में बीजेपी सुनने को तैयार नहीं है ऐसे में यह सरकार कब तक चलेगी कहना मुश्किल है ।
संजय जायसवाल क्या लिखा है अपने फेसबुक पेज पर जरा आप भी पढ़ लीजिए
चलिए माननीय जी को यह समझ आ गया कि एनडीए गठबंधन का निर्णय केंद्र द्वारा है और बिल्कुल मजबूत है इसलिए हम सभी को साथ चलना है।फिर बार-बार महोदय मुझे और केंद्रीय नेतृत्व को टैग कर न जाने क्यों प्रश्न करते हैं। एनडीए गठबंधन को मजबूत रखने के लिए हम सभी को मर्यादाओं का ख्याल रखना चाहिए। यह एकतरफा अब नहीं चलेगा।
इस मर्यादा की पहली शर्त है कि देश के प्रधानमंत्री से ट्विटर ट्विटर ना खेलें ।प्रधानमंत्री जी प्रत्येक भाजपा कार्यकर्ता के गौरव भी हैं और अभिमान भी। उनसे अगर कोई बात कहनी हो तो जैसा माननीय ने लिखा है कि बिल्कुल सीधी बातचीत होनी चाहिए। टि्वटर टि्वटर खेलकर अगर उनपर सवाल करेंगे तो बिहार के 76 लाख भाजपा कार्यकर्ता इसका जवाब देना अच्छे से जानते हैं। मुझे पूरा विश्वास है कि भविष्य में हम सब इसका ध्यान रखेंगे ।
आप सब बड़े नेता है । एक बिहार मे एवं दूसरे केंद्र में मंत्री रह चुके हैं। फिर इस तरह की बात कहना कि राष्ट्रपति जी द्वारा दिए गए पुरस्कार को प्रधानमंत्री वापस लें ,से ज्यादा बकवास हो ही नहीं सकता। दया प्रकाश सिन्हा के हम आप से सौ गुना ज्यादा बड़े विरोधी हैं क्योंकि आपके लिए यह मुद्दा बिहार में शैक्षिक सुधार जैसा मुद्दा है जबकि जनसंघ और भाजपा का जन्म ही सांस्कृतिक राष्ट्रवाद पर हुआ है। हम अपनी संस्कृति और भारतीय राजाओं के स्वर्णिम इतिहास में कोई छेड़छाड़ बर्दाश्त नहीं कर सकते। पर हम यह भी चाहते हैं कि बख्तियार खिलजी से लेकर औरंगजेब तक के अत्याचारों की सही गाथा आने वाली पीढ़ियों को बताई जाए ।
74 वर्ष में एक घटना नहीं हुई जब किसी पद्मश्री पुरस्कार की वापसी हुई हो। पहलवान सुशील कुमार पर हत्या के आरोप सिद्ध हो चुके हैं उसके बावजूद भी राष्ट्रपति ने उनका पदक वापस नहीं लिया क्योंकि पुरस्कार वापसी मसले पर कोई निश्चित मापदंड नहीं है। जबकि चाहे वह हरिद्वार में घटित धर्म संसद हो या सैकड़ों हेट स्पीच ,सरकार न केवल इन पर संज्ञान लेती है बल्कि बड़े से बड़े व्यक्ति को भी जेल में डालने से नहीं हिचकती ।
इसलिए सबसे पहले बिहार सरकार दया प्रकाश सिन्हा जी को मेरे f.i.r. के आलोक में गिरफ्तार करे और फास्ट ट्रैक कोर्ट से तुरंत सजा दिलवाये । उसके बाद बिहार सरकार का एक प्रतिनिधिमंडल राष्ट्रपति के पास जाकर हम सबों की बात रक्खे कि एक सजायाफ्ता मुजरिम का पद्मश्री पुरस्कार वापस लिया जाए ।
बिहार सरकार अच्छे वातावरण में शांति से चले यह सिर्फ हमारी जिम्मेवारी नहीं बल्कि आप की भी है। अगर कोई समस्या है तो हम सब मिल बैठकर उसका समाधान निकालें। हमारे केंद्रीय नेताओं से कुछ चाहते हैं तो उनसे भी सीधे बात होनी चाहिए।
हम हरगिज नहीं चाहते हैं कि पुनः मुख्यमंत्री आवास 2005 से पहले की तरह हत्या कराने और अपहरण की राशि वसूलने का अड्डा हो जाए। अभी भेड़िया स्वर्ण मृग की भांति नकली हिरण की खाल पहनकर अठखेलियां कर जनता को आकृष्ट कर रहा है। एक पूरी पीढ़ी जो 2005 के बाद मतदाता बनी है वह उन स्थितियों को नहीं जानती और बिना समझे कि यह रावण का षड्यंत्र है स्वर्ण मृग पर आकर्षित हो रही है ।यथार्थ बताना हम सभी का दायित्व भी है और कर्तव्य भी।