2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश के खिलाफ आक्रोश की एक बड़ी वजह सूबे में व्याप्त अफसरशाही और भ्रष्टाचार था और इसका असर चुनाव परिणाम पर भी देखने को मिला 2005 से लगातार बिहार की सबसे बड़ी पार्टी रही जदयू तीसरे नम्बर पर चली गयी।हालांकि इस बार मुख्यमंत्री बनने के बाद नीतीश कुमार अपने आपको को 2005 वाली छवि की और लौटने कि कोशिश करते दिख रहे हैं और इसी का असर है कि पिछले पांच छह वर्षो से सुस्त पड़ी भ्रष्टाचार पर कार्यवाही करने वाली ऐंजसी सक्रिय हो गयी है।1–भ्रष्ट्राचार रोकने को लेकर सरकार गंभीर नहीं है
नोटबंदी के फैसले को लेकर पीएम मोदी ने देश की जनता को जो भरोसा दिलाया था उस भरोसे पर सिस्टम खड़ा उतर नहीं पाया, बिहार में पिछले एक माह के दौरान जिन अधिकारियों के यहां छापेमारी हुई है ऐसा कोई अधिकारी नहीं मिला जिसके घर से बरामद नोट को गिनने के लिए मशीन नहीं लाना पड़ा हो ।
इतना ही नहीं हर अधिकारी के लॉकर से जेवर,जमीन और रियल स्टेट में निवेश का कागजात बरामद हो रहा है ऐसा भी नहीं है कि जिन अधिकारियों के यहां छापामारी हुई है वो राज्य के सबसे भ्रष्ट अधिकारी हैं हालात यह है कि थोड़ी ईमानदारी से कार्यवाही शुरु हो तो बिहार के अधिकारियों के पास से इतनी अवैध संपत्ति बरामद हो सकती है जिससे राज्य का काया कप्ल हो सकता है लेकिन सत्ता भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए तैयार नहीं है यह भी साफ दिख रहा है ।
2–भ्रष्टाचार लगाम लगाया जा सकता है ये कहना कि भ्रष्टाचार पर रोका नहीं लगाया जा सकता है ऐसा नहीं है सरकार की इच्छाशक्ति हो तो चंद घंटों में भ्रष्टाचार पर लगाम लगाया जा सकता है भ्रष्टाचार से अर्जित पैसे का कहां कहां निवेश हो रहा है बस उसको चेक कर देना है।फिर जिस तरीके से पुलिस विभाग ने भ्रष्ट अधिकारियों पर स्पीडी विभागीय कार्यवाही करके अधिकारियों की सेवा समाप्त किया है उसी तरीके से सिविल सेवा से जुड़े भ्रष्ट अधिकारियों का भी स्पीडी विभागीय कार्यवाही करके सेवा समाप्त करनी शुरु हो जाये देखिए 50 प्रतिशत भ्रष्टाचार पर नियंत्रण हो जायेगा ।हुआ क्या पुलिस वाले तो विभागीय कार्यवाही करके घूस लेने वाले अधिकारी को बर्खास्त कर दिया लेकिन सिविल विभाग से जुड़े कर्मचारी से लेकर अधिकारी तक जो भी घूस लेते हुए अभी तक पकड़े गये हैं एक पर भी विभागीय कार्यवाही पूरी नहीं हुई है उलटे इस बीच निलंबन मुक्त होकर फिल्ड में पोस्टिंग करवा लिया है और सरकार के पैसे से ही केस लड़ रहा है और इस मामले में नीतीश कुमार कुछ नहीं कर पाये जब भी यह सवाल उठा विभाग को कार्यवाही करने का आदेश हुआ दो तीन माह सुनवाई तेज हुई फिर ठंडे बस्ते में डाल दिया गया ये नेकसस जिस दिन टूट जाएगा प्रखंड से लेकर जिला स्तर तक जो भ्रष्टाचार का गठजोड़ बना है वो टूट जाएगा। अभी क्या है पकड़े भी जायेंगे तो क्या होगा डीएम साहब बचा लेंगे जिस दिन यह संरक्षण समाप्त हो जाएगा उसी दिन से लेन देन में कमी आनी शुरू हो जाएंगी ।
3–बिहार के अधिकारी कहां कहां निवेश कर रहे हैं
बिहार के अधिकारियों का आजकल निवेश का एक नया ठिकाना छत्तीसगढ़ बना है जहां के अधिकांश बिल्डर के कम्पनी में बिहार के सीनियर आईएएस अधिकारियों के पैसा का निवेश हो रहा है , दूसरा ठिकाना बिहार में मुजफ्फरपुर से सकरी और दरभंगा से जयनगर के बीच फोरलेन और एनएच के किनारे की जमीन पर बिहार कैडर के अधिकारियों का बड़ा निवेश हो रहा है। तीसरा जो बड़ा निवेश हो रहा है वह है बिहार की एक रिटेल कंपनी है जिसका आज कल अनुमंडल स्तर पर दुकानें खुल रही है वहां भी बड़ा निवेश हो रहा है और यह काम बड़ा आसान है बिहार में जमीन और अपार्टमेंट्स की जो भी रजिस्ट्री हो रही है उसके खरीददार का डाटा बेस मौजूद है उस पर काम करना शुरू कर दीजिए बहुत कुछ सामने आ जायेगा ।
हालांकि नीतीश कुमार भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्यवाही करने के मामले में सरकार का जो अनुभव रहा है उससे सीख लेते नहीं दिख रहे हैं ऐसे में इस तरह की कार्यवाही से भ्रष्टाचार पर अंकुश लग जायेगा ऐसा संभव होता नहीं दिख रहा है क्यों कि अभी भी बड़ी मछलियों पर हाथ डालने से नीतीश कुमार परहेज कर रहे हैं पूरे बिहार में चौकीदार से लेकर डीजीपी तक भ्रष्ट तरीके से वर्ष में जितना कमा रहा है वैसी कमाई बिहार के दो तीन जिलों के डीएम और सिविल सेवा से जुड़े कर्मी अधिकारी और इंजीनियर कमा रहा है लेकिन 2005 से अभी तक किसी बड़े आईएएस अधिकारी पर कार्यवाही नहीं किया है जबकि पुलिस विभाग में डीजीपी से लेकर जिले में तैनात एसपी तक पर कार्यवाही हो चुकी है ऐसे में यह सब जो कार्यवाही हो रही है वह महज आईवास है और इससे ज्यादा कुछ भी नहीं है।