पटना हाइकोर्ट ने राज्य में बड़ी संख्या में अनुसूचित जनजाति के छात्रों द्वारा स्कूल की पढ़ाई बीच में छोड़ दिए जाने के मामले पर सुनवाई की। एसीजे जस्टिस सी एस सिंह की खंडपीठ ने इस जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए बिहार लीगल सर्विसेज़ अथॉरिटी (बालसा) से रिपोर्ट तलब किया।
कोर्ट ने बालसा को ये बताने को कहा कि कितने बच्चों ने स्कूलों की पढ़ाई छोड़ दी है और कितने बच्चों ने दोबारा इन स्कूलों में जाना शुरू किया है ? बिहार आदिवासी अधिकार फोरम की लोकहित याचिका दायर की थी।
कोर्ट ने इस मामलें पर सुनवाई करते हुए चिंता जताई कि इन बच्चों की पढ़ाई के लिए राज्य सरकार द्वारा क्या कार्रवाई की गई है।इसके साथ साथ खंडपीठ ने बालसा के एक सदस्य को लिए पश्चिम चम्पारण के हारनाटांड में स्थित स्कूल एवं कस्तूरबा गांधी विद्यालयों के विकास से संबंधित रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया। गौरतलब है कि हाईकोर्ट इस मामले में लगातार मॉनिटरिंग कर रहा है ।
इस मामले में पहले भी हाईकोर्ट ने वकीलों की एक टीम गठित कर निरीक्षण करने का निर्देश दिया था । इस टीम में अधिवक्ता सूर्या नीलांबरी, अधिवक्ता आकांक्षा मालवीय , अधिवक्ता आयुष अभिषेक एवं अन्य अधिवक्ता शामिल थे ।
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया था कि बिहार में अनुसूचित जनजाति के बालिकाओं के लिए पश्चिम चम्पारण के हारनाटांड एकमात्र स्कूल है।पहले यहाँ पर कक्षा एक से लेकर कक्षा दस तक की पढ़ाई होती थी।
लेकिन जबसे इस स्कूल का प्रबंधन राज्य सरकार के हाथ में आया तबसे इस स्कूल की स्थिति बदतर होती गई।कक्षा सात और आठ में छात्राओं का एडमिशन बन्द कर दिया गया।
साथ ही कक्षा नौ और दस में छात्राओं का एडमिशन पचास फीसदी ही रह गया।यहाँ पर सौ बिस्तर वाला हॉस्टल छात्राओं के लिए था,जिसे बंद कर दिया गया।
इस स्कूल में पर्याप्त संख्या में शिक्षक भी नहीं है।इस कारण छात्राओं की पढ़ाई बुरी तरह प्रभावित हुई है। हाईकोर्ट ने अनुसूचित जनजाति के छात्रों द्वारा इतनी बड़ी संख्या में स्कूल बीच में छोड़ने को गंभीर स्थिति का दर्जा दिया ।
इस मामले की अगली सुनवाई 11अप्रैल,2023 को होगी।