मुजफ्फरपुर बालिकागृह से सरकार ने नहीं ली सीख
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर चिहिंत दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई की गयी होती तो आज गायघाट मामले में कोर्ट को संज्ञान नहीं लेना पड़ता है ।
गायघाट रिमांड होम मामले में हाईकोर्ट द्वारा स्वतः संज्ञान लेने के बाद सरकार की साख एक बार फिर दांव पर है हाईकोर्ट ने समाज कल्याण विभाग के एडिशनल चीफ सेक्रेटरी को प्रतिवादी बनाते हुए फौरन अपने स्तर से जांच करने का आदेश दिया है। और यह सब पटना हाई कोर्ट के जुवेनाइल जस्टिस मॉनिटरिंग कमेटी की अनुशंसा पर किया गया है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि बालिका गृह में यह सब चल रहा था इसकी जानकारी बालिका गृह पर नजर रखने वाली संस्था को नहीं हुई ,क्यों कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर हाईकोर्ट से जिला कोर्ट तक और राजधानी से लेकर पंचायत स्तर तक बच्चे और बच्चियों के राइट के लिए कमिटी गठित है जिन्हें बच्चों और बच्चियों के अधिकार को संरक्षित करने का कानूनी अधिकार प्राप्त है फिर भी यह धंधा रुक क्यों नहीं रहा है यह एक बड़ा सवाल है ।
सुप्रीम कोर्ट मानती है कि इस तरह के जो भी लड़के लड़कियां है उसके अभिभावक कोर्ट है और इसके लिए विधिवत कमेटी गठित है।हाईकोर्ट में जुवेनाइल जस्टिस मॉनिटरिंग सेल है जिसका खुद का एक अलग से दफ्तर है कर्मचारियों की बड़ी फौज है,जस्टिस आशुतोष कुमार चेयरमैन हैं,जस्टिस अंजनी कुमार शरण और जस्टिस नवनीत कुमार पांडेय इसके सदस्य हैं।
इसी तरह की कमेटी जिला स्तर पर न्यायालय में भी है इसके अलावे डीएम की अध्यक्षता में हर जिले में बाल संरक्षण समिति,जे0जे0 बोर्ड गठिक है जिसके अधीन बाल गृह और बालिका गृह काम करता है इतना ही नहीं जिले के सीनियर पदाधिकारी इस सारे कमिटी के नोडल पदाधिकारी होते है जिन्हें चाइल्ड प्रोटेक्शन ऑफिसर कहा जाता है।जिनकी जिम्मेवारी है रिमांड होम में रहे रही बच्ची और बच्चों को किसी भी तरह का शारीरिक और मानसिक कष्ठ ना हो इस पर चौकसी बरतना। इतना ही नहीं जिला जज साहब का माह में एक दो बार इस तरह के होम में जाकर बच्चे और बच्चियों का हाल जानना है।
इसके अलावा भारत सरकार की और से एक हेल्पलाइन नम्बर जारी है 1098 किसी भी बच्चे या बच्चों के साथ शारीरिक या मानसिक प्रताड़ना होता है तो वो तुरंत इस नम्बर पर काॅल कर सकता है और इस कॉल पर त्वरित कार्रवाई हो इसके लिए देश के हर जिले में दो से तीन चाइल्ड लाइन काम कर रहा है।
जिसके पास उस बच्चे के कांल के सम्बन्ध में जानकारी दी जाती है और उस पर त्वरित कार्रवाई में कोई परेशानी ना हो इसके लिए जिले का पुलिस कप्तान जबावदेह होता है।इतना ही नहीं बच्चे और बच्चियों के संरक्षण के लिए पंचायत के वार्ड में वार्ड आयुक्त बाल संरक्षण कमिटी का अध्यक्ष होता है ,पंचायत में मुखिया अध्यक्ष होते हैं प्रखंड में प्रमुख अध्यक्ष होते हैं सीडीपीओ और आंगनबाड़ी सेविका नोडल पदाधिकारी होती है इस स्तर तक कमिटी गठित है ।
लोकतंत्र के सभी स्तम्भ विधियका,कार्यपालिका और न्यायपालिका सभी सीधे तौर जिम्मेवार है फिर भी लड़कियों और लड़कों का ट्रैफिकिंग जारी है ।
इसकी वजह है सरकार इसको लेकर आज भी गंभीर नहीं है यू कहे तो सरकार के प्राथमिकता में यह विषय है ही नहीं या फिर इस तरह के खेल में सरकार खुद शामिल है इसलिए यह खेल चल रहा है।
याद करिए मुजफ्फरपुर बालिका गृह मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश बावजूद अभी तक उन आईएएस अधिकारियों पर कार्रवाई नहीं हुई है जिन पर बालिका गृह में हो रहे कृत्य को नजरअंदाज करने और ब्रजेश ठाकुर को संरक्षण देने का आरोप था ।इस स्थिति में बालिकागृह में रहने वाली लड़कियां कैसे सुरक्षित रह पायेंगी क्यों कि अधिकारियों को पता है सरकार मेरे साथ खड़ी है या फिर सरकार इस मामले में इतनी लाचार है कि कुछ नहीं कर पायेंगी ऐसे में यह धंधा संस्थागत रुप लेगा ही इसलिए ना गायघाट रिमांड होम मामले में 24 घंटे के अंदर समाज कल्याण विभाग और पटना जिला प्रशासन क्लीनचीट दे दिया ।