बिहार में पहले वोट लूटा जाता था अब मेधावी छात्रों का प्रतिभा लूटा जाता है ।वोट लूटने वाले भी संगठित गिरोह चलाते थे और आज प्रतिभा लूटने वाले भी गिरोह चला रहे हैं बिहार के पूर्व डीजीपी अभयानंद का मानना है कि आज आवाज इसलिए उठ रही है कि काले धन का वितरण “स्वाभाविक” तौर पर नहीं हो रहा है।
नौकरी के शुरुआती दौर में जब SP के रूप में, चुनाव संपन्न कराने का दायित्व मिलता था तो रिगिंग की शिकायतें आती थीं। कोई भी संवेदनशील पदाधिकारी इन शिकायतों को सुनकर परेशान हो जाता। मैंने पाया कि अगर तुरंत कार्यवाही नहीं की जाती तो चुनाव संपन्न होने से पहले बैलेट बॉक्स में स्याही डाल दी जाती थी जिससे कि उस बूथ का चुनाव रद्द कर दिया जाए और पुनः उस बूथ पर पूरी तैयारी के साथ चुनाव हो। स्याही डालने वाला पक्ष स्वाभाविक रूप से वह होता था जो उस बूथ पर कब्ज़ा नहीं कर पाया हो।
समय के साथ इस प्रकार की एक और बीमारी ने समाज में जन्म लिया। सार्वजनिक परीक्षाओं में प्रश्न-पत्र लीक। साधारण तौर पर प्रश्न-पत्र लीक की शिकायतें यदा-कदा सुनने को मिलती थीं। हमलोग जिले के स्तर पर अनुसंधान कर, गिरोह को पकड़ कर आरोप पत्र दाखिल कर देते थे। समस्या कभी राज्य व्यापी और विकराल नहीं बन पाती थी।
अचानक स्कौलर गैंग, सॉल्वर गैंग जैसे शब्दों का प्रचलन हुआ। अलग-अलग अपराधियों के नाम से गैंग बनने लगे। चुनाव में जैसे प्रतिस्पर्धा होती है, वैसा ही दंगल परीक्षाओं की सेटिंग-गेटिंग में भी हो गया। अगर सेटिंग-गेटिंग के पैसे का वितरण न्यायपूर्ण हो गया तो हल्ला-हंगामा नहीं होगा, अन्यथा “बैलेट बॉक्स में स्याही” का विकल्प अर्थात पेपर के व्यापक लीक का रास्ता तो हमेशा है।
परीक्षा रद्द कर दी जाएगी। अगली परीक्षा में जो गिरोह सर्वाधिक ताकतवर होगा, उसके नियंत्रण में पेपर लीक होगा और पैसे में केवल एक ही गिरोह का भाग होगा।
मैंने जो पुलिस की 37 वर्षों की जिंदगी में समझा, वह यह कि पैसे का वितरण जब तक स्वाभाविक तौर पर समाज में होता रहता है, तब तक “हाय-तौबा” नहीं मचती। छोटे-मोटे अपराध होते हैं। लेकिन अगर “बवाल” मच जाए तो समझना चाहिए कि काले धन का वितरण “स्वाभाविक” तौर पर नहीं हुआ है। कई बार इस आधार पर अनुसंधान करने से सफलता मिली है।
लेखक –बिहार के पूर्व डीजीपी अभयानंद