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नीट परीक्षा को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला ऐतिहासिक-सुशील मोदी

नीट-पीजी एवं यूजी में आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला गरीबों की ऐतिहासिक जीत – सुशील कुमार मोदी

  1. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने नीट-पीजी एवं यूजी के ऑल इंडिया कोटा में पहली बार ओबीसी को 27 फीसद और सामान्य वर्ग के गरीब छात्रों को 10 फीसद आरक्षण देने का फैसला किया था।
    अत्यंत प्रसन्नता की बात है कि सुप्रीम कोर्ट ने दोनों वर्गों के छात्र-छात्राओं को दाखिले में आरक्षण देने के सरकार के फैसले को बहाल रखा।
    इससे मेडिकल के स्नातक और परास्नातक ( यूजी-पीजी) पाठ्यक्रम में नामांकन चाहने वाले 4 हजार से ज्यादा छात्रों को लाभ होगा।
  2. नीट-पीजी एवं यूजी में नामांकन के 15 प्रतिशत केंद्रीय कोटा में आरक्षण देने के फैसले को जब सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई, तब सरकार ने मजबूती से अपना पक्ष रखा।
    इस मुद्दे पर अदालत का ताजा निर्णय सभी वर्ग के गरीबों के हित में एक ऐतिहासिक विजय है।
  3. सुप्रीम कोर्ट ने सामान्य वर्ग को आरक्षण देने के लिए पारिवारिक वार्षिक आय की 8 लाख की सीमा को भी स्वीकार किया है।
    इससे नीट-पीजी काउंसलिंग में गतिरोध खत्म होगा।

प्रथम इंटर लेवल परीक्षा के परिणाम को लेकर फिर फंसा पेंच हाईकोर्ट ने आयोग को कहां हलफनामा दायर करने

पटना हाई कोर्ट ने प्रथम इंटर लेवल संयुक्त प्रतियोगिता परीक्षा 2014 के काउंसिलिंग पर याचिका के निष्पादन तक रोक लगाने को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए स्टाफ सेलेक्शन कमीशन से हलफनामा दायर करने को कहा है। जस्टिस आशुतोष कुमार ने विनोद कुमार व अन्य की याचिका पर सुनवाई की।

कोर्ट ने स्टाफ सेलेक्शन कमीशन से वर्ष 2014 या वर्ष 2016 में जारी जाति प्रमाण पत्र को ही मांगने से मना किया है। कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा है कि इस मामले में प्रतिवादियों द्वारा लिए जाने वाला कोई भी अंतिम निर्णय इस याचिका के परिणाम पर निर्भर करेगा।

याचिका के जरिये बिहार स्टाफ सेलेक्शन कमीशन द्वारा कॉउंसलिंग के लिए चयनित अनुसूचित जाति – जनजाति, पिछड़े व अत्यंत पिछड़े वर्गों के अभ्यर्थियों से 31 अक्टूबर, 2014 व 13 मार्च, 2016 तक जारी किए गए नॉन क्रीमी लेयर जाति प्रमाण पत्र की मांग को लेकर कमीशन के सचिव के हस्ताक्षर से जारी अधिसूचना को रद्द करने को लेकर आदेश देने का आग्रह भी कोर्ट से किया गया था।

याचिककर्ता के अधिवक्ता अलका वर्मा का कहना था कि इस तरह की जानकारी विज्ञापन में नहीं दी गई थी, इसलिए जारी किया गया आदेश पूरी तरह से मनमाना है। 1 सितंबर, 2014 को विभिन्न पदों पर नियुक्ति हेतु बिहार स्टाफ सेलेक्शन कमीशन द्वारा विज्ञापन निकाला गया था।

इस मामले पर अगली सुनवाई फिर 11 जनवरी को की जाएगी।

दरोगा बहाली की प्रक्रिया पर उठा सवाल हाईकोर्ट ने बोर्ड से माँगी रिपोर्ट

पटना हाईकोर्ट ने राज्य में हो रहे दारोगा भर्ती परीक्षाओं में शारीरिक दक्षता जांच में हुई गड़बड़ी के आरोपों के मामलें पर बिहार पुलिस अधीनस्थ सेवा भर्ती आयोग को दारोगा भर्ती से जुड़े मूल कागजात व रिकॉर्ड कोर्ट में प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है । अखिलेश कुमार व अन्य की ओर से दायर रिट याचिका जस्टिस पी बी बजनथ्री ने सुनवाई की।

याचिकाकर्ता की ओर से वरीय अधिवक्ता पी के शाही ने कोर्ट को बताया कि दारोगा भर्ती हेतु पीटी व मेंस परीक्षाओं में ये सभी याचिकाकर्ता सफल हुए । उन्हें बोर्ड ने शारीरिक दक्षता जांच के लिए बुलाया था , जो विगत 22 मार्च से 12 अप्रैल 2021 के बीच अलग जगह अलग समय पर होनी थी ।

चूंकि उस वक्त कोरोना की दूसरी लहर फैलने का खतरा मंडरा रहा था , इसलिए कई अभ्यर्थियों ने (जिनमे याचिकाकर्ता भी थे ) शारीरिक दक्षता जांच की तारीख आगे बढ़ाने के लिए अनुरोध किया।इसे आयोग ने स्वीकार करते हुए नया एडमिट कार्ड भी जारी किया।

शारीरिक दक्षता जांच की नई तारीख और नए एडमिट कार्ड जारी होने के बाद अचानक आयोग ने नया जारी हुआ एडमिट कार्ड को रद्द कर दिया । परिणामस्वरुप सभी याचिकाकर्ता शारीरिक दक्षता जांच के मौके से वंचित कर दिए गए । हाई कोर्ट ने इसे मनमानापन मानते हुए आयोग से भर्ती प्रक्रिया के मूल अभिलेखों को प्रस्तुत करने का आदेश आयोग को दिया।इस मामले की अगली सुनवाई 4 हफ्ते बाद होनी है।

सुपर 30 गरीबों के बीच स्वाभिमानों की रोजगार देने वाली फौज-अभयानंद

जेईई-एडवांस के रिज़ल्ट आ चुके हैं। हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी बेसब्र बैठा इस दिन का इंतज़ार कर रहा था।

एक बार पुनः बच्चों ने प्रमाण दिया है कि प्रतिभा को कोई भी परिस्थिति बाँध नहीं सकती। बीते वर्ष की विषमता को पराजित कर, सफलता प्राप्त करने वाले हर बच्चे पर मुझे गर्व है।

मेरे मन में संतोष इस बात से है कि यह मात्र उन छात्र-छात्राओं की किसी परीक्षा में सफलता नहीं, अपितु उनके परिवार की प्रगति का पहला कदम है। अभी तो लम्बा सफ़र तय करना है।

मेरे सारे सुपर 30 संस्थानों में कुल 394 बच्चे जेईई-एडवांस में उत्तीर्ण हुए हैं। रहमानी 30 से 50, विभिन्न CSRL सुपर 30 से 328, मगध सुपर 30 से 8 और संगम सुपर 15 भीलवाड़ा से 8 सफल छात्र-छात्राओं की सूची मेरे हाथों में है। सबों को मेरी हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ।

इन परिणाम से साबित होता है कि बेरोज़गारी उन्मूलन का माध्यम शिक्षा से ज्यादा सशक्त और कोई नहीं है। मैंने 2002 में एक सपना देखा था कि गरीब मेधावी बच्चों की एक बड़ी फ़ौज बनेगी जो आने वाले समय में रोज़गार देने की स्थिति में होगी न कि सरकार के सामने याचक बन कर खड़ी, अपने स्वाभिमान को दरकिनार कर गिड़गिड़ाती रहेगी। उस स्वप्न की आकृति दिखने लगी है।

आरा का छोरा अर्णव आदित्य सिंह JEE एडवांस्ड में पूरे देश में 9वां रैंक हासिल किया।

#JEEAdvanced2021: आरा का छोरा अर्णव आदित्य सिंह JEE एडवांस्ड में पूरे देश में 9वां रैंक हासिल किया है। वह भोजपुर जिले के शाहपुर थाना क्षेत्र के ईश्वरपुरा गांव के रहने वाले हैं। शुक्रवार को IIT खड़गपुर ने JEE एडवांस्ड 2021 की प्रवेश परीक्षा का रिजल्ट घोषित किया।राजस्थान मृदुल अग्रवाल ने परीक्षा में 360 में से 348 मार्क्स हासिल टॉप किया है।वही अर्णव आदित्य सिंह 360 में 324 मार्क्स हासिल कर 9 वां स्थान प्राप्त किया है ।

अर्णव के पिता सियाराम सिंह कंप्यूटर इंजीनियर हैं और अर्णव वही रह कर पढ़ाई कर रहा था बिहार न्यूज पोस्ट से बात करते हुए सियाराम सिंह ने कहा कि मैं ‘बेंगलुरु में जॉब करते थे, लेकिन बेटे की फिजिक्स व केमिस्ट्री की पढ़ाई के लिए सपरिवार कोटा शिफ्ट हो गए। उसने वहीं से एक निजी कोचिंग संस्थान से परीक्षा की तैयारी की।

अर्णव के दादा राजनाथ सिंह आरा में वकील हैं। उन्होने कहा कि अर्णव बचपन से ही बहुत पढ़ने में तेज है। वह वैज्ञानिक बनना चाहता है। इसके लिए वह बहुत मेहनत करता है। दादा ने बताया- ‘अर्णव की पूरी पढ़ाई बेंगलुरु से ही हुई है। उसका जन्म चेन्नई में हुआ था। उस समय उनके पिता वहीं रहते थे।

55 देशों के 322 छात्रों में अर्णव को मिला था गोल्ड
अर्णव बचपन से ही मेधावी था ‘कतर के दोहा में 2019 में आयोजित 16वें इंटरनेशनल साइंस ओलंपियाड में अर्णव ने गोल्ड मेडल जीता था। उस दौरान 55 देशों के 322 छात्रों ने उस ओलिंपियाड में भाग लिया था, जिसमें अर्णव को गोल्ड मिला था। इंटरनेशनल जूनियर साइंस ओलिंपियाड के 16 साल के इतिहास में पहली बार भारत के सभी 6 छात्रों को गोल्ड मेडल हासिल हुआ था।

अर्णव ने विलियम जोंस के रिसर्च को ठहराया था गलत
इंडियन सोसाइटी ऑफ फिजिक्स टीचर्स के अध्यक्ष प्रो. विजय सिंह और उनके छात्र अर्णव आदित्य सिंह ने सर विलियम जोंस के 236 साल पहले किए गए दावों को गलत ठहराया था। अर्णव और प्रो सिंह का कहना था- ‘करीब 236 साल पहले प्रसिद्ध ओरिएंटलिस्ट और एशियाटिक सोसाइटी के संस्थापक सर विलियम जोंस ने भागलपुर से भूटान के माउंट जोमोल्हरी चोटी को नहीं बल्कि कंचनजंघा को देखा होगा।

उनका कहना था- “लॉकडाउन के दौरान वायुमंडल में हानिकारक कणों के घनत्व में गिरावट और हवा साफ होने से भारत के उत्तरी मैदानी भाग से हिमालय के कई चोटियां देखी गई थीं। यह दावा किया कि माउंट जोमोल्हरी 7326 मीटर ऊंचा है। इसके शिखर से अधिकतम दूरी 216 KM तक देखी जा सकती है। जबकि, माउंट जोमोल्हरी शिखर और भागलपुर के बीच की दूरी 366 किलोमीटर है।

पूर्णिया से भी 1790 में माउंट जोमोल्हरी और हिमालय की कुछ चोटियों के दृश्य देखने की बात विलियम जोंस के उत्तराधिकारी रहे हेनरी कॉल ब्रिज ने कही थी। कोलब्रुक के पूर्णिया आधारित टिप्पणियों का विश्लेषण कर प्रो सिंह और अर्णव ने पाया था कि विलियम जोंस द्वारा देखी गई चोटी कंचनजंघा रही होगी।

हाईकोर्ट ने टीईटी एसटीईटी उतीर्ण नियोजित शिक्षकों को प्रधान शिक्षक की परीक्षा में शामिल होने कि दी अनुमति

टीईटी /एसटीईटी उत्तीर्ण नियोजित शिक्षको को अंतरिम राहत देते हुए पटना हाईकोर्ट ने उन्हें शर्तो के साथ प्रधान शिक्षक की परीक्षा देने की अनुमति दे दी है | टीईटी /एसटीईटी उत्तीर्ण नियोजित शिक्षक संघ की याचिका पर चीफ जस्टिस संजय कुमार की खंडपीठ ने सुनवाई करते हुए यह निर्देश दिया |

याचिकाकर्ता संघ द्वारा प्रधान शिक्षक नियुक्ति नियमावली को भ्रामक बता कर हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है। साथ ही इस नियमावली में सुधार की मांग की है |

याचिकाकर्ता संघ ने प्रधान शिक्षक की नियुक्ति के लिए टीईटी को अनिवार्य करने की मांग करते हुए कहा है कि जब शिक्षक बनने के लिए भी टीईटी अनिवार्य है, तो देश के अन्य राज्यों की भांति प्रधान शिक्षक बनने के लिए भी टीईटी लागू करना चाहिए ।

मामले पर सुनवाई करते हुए पटना हाईकोर्ट की खंडपीठ ने टीईटी एसटीईटी उतीर्ण नियोजित शिक्षकों संघ को अंतरिम राहत देते हुए याचिकाकर्ताओं को प्रधान शिक्षक की परीक्षा देने की इस शर्त के साथ अनुमति दे दी है कि परीक्षा का परिणाम इस याचिका पर कोर्ट के अंतिम फैसले पर लागू होगा। याचिकाकर्ता कोर्ट के फैसले से पहले किसी भी अधिकार का दावा नहीं कर सकेंगे।

कोर्ट ने राज्य सरकार को।तीन सप्ताह मे हलफनामा दायर कर जवाब देने का निर्देश दिया है। इस मामले।पर 2 नवंबर,2021 को फिर सुनवाई की जाएगी।

गरीबों के लिए अब समाज में कही भी जगह नहीं बचेगी क्या ?

2021 के NEET और JEE Mains के परीक्षाफल अभी प्रकाशित हुए। साथ में यह खबर भी कि दोनों परीक्षाओं में भ्रष्टाचार हुआ। पैसों पर सीट खरीदे और बेचे गए।

मैं करीब 20 वर्षों से गरीब मेधावी बच्चों को इन प्रतियोगिताओं में सफल होने के लिए पढ़ाता आया हूँ। मेरे लिए यह मात्र “स्वान्तः सुखाय” के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। ऐसे बच्चों की संख्या कई हज़ारों में है जिनके जीवन में आर्थिक बदलाव भी आया।

इस त्रासदी को देखकर मन मलीन एवं दुःखी हो गया। इच्छा हुई कि अब अपने प्रयास को विराम दे दूँ। मन को समझाया कि ऐसे भी उम्र बढ़ रही है। गरीबों के लिए इस तरह का प्रयास अगर व्यवस्था को मान्य नहीं है तो किस हद तक लड़ाई लड़ी जा सकती है? गरीबों के लिए प्रतियोगिता परीक्षाओं में सफलता पाकर आगे बढ़ना ही एकमात्र विकल्प बच गया था। वहाँ भी अमीरों के द्वारा उस रास्ते को घेरने की कोशिश की जा रही है।

अंदर से आवाज़ आई – “हथियार मत डालो”। अर्थ इतना ही निकला कि भ्रष्टाचार से इन प्रतियोगिताओं में गरीबों के लिए सीट की संख्या कम ज़रूर हो जाएगी, फ़िर भी कुछ गरीबों को तो लाभ मिलेगा।

प्रयास जारी रहेगा जबतक अमीर लोग गरीबों के सभी रास्ते बंद नहीं कर देते।

बिहार के स्कूलों में शुरु होगा विशेष स्वच्छता अभियान यूनिसेफ से हुआ करार।

“हम सब जानते हैं कि स्वस्थ तन में ही स्वस्थ मन का वास होता है। इसके लिए स्कूलों में एक स्वस्थ वातावरण बनाने और उचित स्वास्थ्य और स्वच्छता व्यवहार विकसित करने की नितांत आवश्यक है ताकि हमारे बच्चे स्वस्थ रहकर पढ़ाई-लिखाई कर सकें। लड़कियों की ड्राप आउट रेट कम करने हेतु यह अत्यंत आवश्यक है। विद्यालयों में जल, सफ़ाई एवं स्वच्छता (WASH) मानकों को बेहतर करने में विद्यालय स्वच्छता पुरस्कार मील का पत्थर साबित होगा। ग्रामीण क्षेत्रों और दुर्गम स्थानों में स्थित स्कूलों की भागीदारी सुनिश्चित करने पर हमें विशेष ध्यान देना होगा। इसके ज़रिए कोविड महामारी के संदर्भ में स्कूलों में स्वच्छता मानकों को सुनिश्चित करने में भी मदद मिलेगी। सरकार इसके सफल क्रियान्वयन हेतु हर संभव मदद देने के लिए प्रतिबद्ध है.” ये बातें शिक्षा मंत्री विजय कुमार चौधरी ने नया सचिवालय परिसर में आयोजित राज्य स्तरीय बिहार स्वच्छ विद्यालय पुरस्कार एवं स्कूलों में राज्य विशिष्ट WASH (Wins) बेंचमार्किंग सिस्टम के लॉन्चिंग समारोह के दौरान कहीं।

यूनिसेफ के तकनीकी सहयोग से शुरू किए जा रहे इस अनूठी पहल को संजय कुमार, अतिरिक्त मुख्य सचिव, शिक्षा विभाग, श्रीकांत शास्त्री, बिहार शिक्षा परियोजना परिषद के राज्य परियोजना निदेशक, यासुमासा किमुरा, यूनिसेफ इंडिया के उप प्रतिनिधि, नफ़ीसा बिंते शफ़ीक़, यूनिसेफ बिहार प्रमुख, यूनिसेफ बिहार के WASH विशेषज्ञ डॉ. प्रभाकर सिन्हा, शिक्षा विभाग एवं यूनिसेफ़ के अन्य अधिकारीगण और मीडियाकर्मियों की उपस्थिति में लॉन्च किया गया।

शिक्षा विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव संजय कुमार ने कहा कि बिहार में पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु मुख्य रूप से निमोनिया और डायरिया के कारण होती है जो सीधे तौर पर WASH के प्रावधान की कमी से संबंधित है। हमारे बच्चों के लिए सुरक्षित पेयजल सुनिश्चित करके इन बीमारियों, विशेष रूप से डायरिया को रोका जा सकता है. इसी तरह, स्कूलों में स्वच्छ पेयजल की सतत उपलब्धता और रखरखाव बहुत ज़रूरी है। इस संदर्भ में राज्य सरकार के प्रमुख कार्यक्रम “हर घर, नल का जल” योजना की विशेष भूमिका है. स्कूलों में शौचालयों का रखरखाव और नियमित सफाई भी हमारी प्राथमिकता है। इस पुरस्कार के माध्यम से प्रत्येक स्कूल में इन सभी मुद्दों का निदान किया जाएगा. इसी वर्ष से हम पुरस्कार के लिए स्कूलों की शत-प्रतिशत भागीदारी सुनिश्चित करने जा रहे हैं।

पुरस्कार की रूपरेखा पर प्रकाश डालते हुए बिहार शिक्षा परियोजना परिषद् के स्टेट प्रोजेक्ट डायरेक्टर श्रीकांत शास्त्री ने कहा कि बिहार की विशेष परिस्थितियों को ध्यान में रखकर 2016 में केंद्र सरकार द्वारा शुरू किए गए स्वच्छ विद्यालय पुरस्कार के अनुरूप इस पुरस्कार से संबंधित दिशानिर्देश विकसित किए गए हैं. इस संदर्भ में, स्कूलों में WASH के लिए राज्य विशिष्ट बेंचमार्किंग प्रणाली सभी संबंधित हितधारकों को स्कूल में WASH को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। इसके अलावा, इससे स्कूल प्रशासन को WASH के बुनियादी ढांचे में सुधार करने और इसे बनाए रखने में मदद मिलेगी। इसके लिए एक परामर्शी प्रक्रिया के ज़रिए सात थीम और पचास संकेतकों की पहचान की गई है. राज्य सरकार की देखरेख मे स्कूलों के चयन से लेकर पुरस्कार वितरण प्रक्रिया संपन्न होगी. स्कूलों द्वारा स्व-नामांकन के लिए एक मोबाइल आधारित एप्लिकेशन विकसित किया जा रहा है। एक स्वतंत्र एजेंसी द्वारा सभी नामांकनों के सत्यापन की भी व्यवस्था है। 5 स्टार रेटिंग के तहत स्कूलों की रैंकिंग की जाएगी। इसके अलावा, सरकार राष्ट्रीय एसवीपी के विपरीत आवधिक मूल्यांकन प्रक्रिया को संस्थागत रूप दे सकती है।

लड़कियों की विशेष ज़रूरतों को रेखांकित करते हुए यूनिसेफ़ बिहार की राज्य प्रमुख नफ़ीसा बिन्ते शफ़ीक़ ने कहा कि लड़कियों के लिए पृथक शौचालयों के अलावा मासिक धर्म प्रबंधन हेतु स्कूलों में पर्याप्त और सुचारू स्वच्छता सुविधाओं का प्रावधान काफी अहम है. संवेदनशील स्वास्थ्य प्रोत्साहन लड़कियों को स्कूल में रहने और अपनी शिक्षा पूरी करने के लिए एक ज़रूरी शर्त है. आरटीई अधिनियम 2009 के तहत सभी बच्चों को स्कूलों में सुरक्षित जल, शौचालय और स्वच्छता की सुविधा का सामान लाभ लेने का अधिकार है।

एक प्रभावी WASH कार्यक्रम के तहत बाल-अनुकूल सुविधाओं से लैस समावेशी डिजाइन के माध्यम से बाधाओं को दूर किया जा सकता है, जो किशोरियों, छोटे बच्चों और बीमार या दिव्यांग बच्चों के लिए लाभकारी है. इसके ज़रिए बच्चे अपने परिवार और समुदाय में WASH प्रथाओं में सुधार के लिए चेंज एजेंट के तौर पर विकसित हो सकते हैं. बिहार सरकार ने इस दिशा में यह महत्वपूर्ण क़दम उठायाहै और इसकी सफलता हेतु यूनिसेफ़ अपना हर संभव सहयोग देने के लिए तत्पर है।

विषयगत प्रावधानों की व्याख्या करते हुए, यूनिसेफ बिहार के WASH विशेषज्ञ डॉ. प्रभाकर सिन्हा ने कहा कि ‘स्कूलों में जल, सफ़ाई और स्वच्छता’ के संदर्भ में तकनीकी और मानव विकास घटक दोनों का महत्व है. जहां तकनीकी घटकों में पीने योग्य पानी, साबुन से हाथ धोना, लड़के-लड़कियों और शिक्षकों के लिए पृथक शौचालयों की सुविधा शामिल हैं, वहीं मानव विकास घटक के तहत स्कूल के भीतर अनुकूल स्थितियों और बच्चों के अंदर व्यवहार परिवर्तन को बढ़ावा देने वाली गतिविधियाँ आती हैं जो कई बीमारियों से बचाव में मदद करती हैं. उपरोक्त बिन्दुओं के अलावा स्कूलों में स्थायी WASH संरचना व मानकों के रखरखाव व संचालन, क्षमता निर्माण और सुदृढ़ करने हेतु समर्थन तंत्र विकसित करना एवं सामुदायिक स्वामित्व सुनिश्चित करना निर्धारित ‘सात थीम’ का हिस्सा हैं।

बिहार के स्कूलों में WASH सुविधाओं की स्थिति
यू-डाइस 2019-20 के मुताबिक़ बिहार के 72,517 स्कूलों में से 99.8 फ़ीसदी में पेयजल की सुविधा उपलब्ध है. इसी प्रकार, लगभग 98 प्रतिशत स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग शौचालय की व्यवस्था है. अगर सभी WASH सुविधाओं (पृथक चलायमान शौचालय, पेयजल, हैण्ड वाशिंग) की बात करें, तो राज्य के कुल 17,329 प्राथमिक, 13,174 मिडिल, 2,055 हायर सेकण्ड्री और 1,210 सेकण्ड्री स्कूलों में ये उपलब्ध हैं।

प्रमुख मुद्दे/चुनौतियाँ
हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में स्कूलों में पेयजल और शौचालय की सुविधा का प्रावधान लगातार बढ़ा है, लेकिन बुनियादी गुणवत्ता और पर्याप्तता संबंधी मानदंडों, संचालन और रखरखाव को पूरा करने और समान पहुंच में सुधार के लिए काफ़ी कुछ किए जाने की आवश्यकता है. सबसे बढ़कर, पानी और स्वच्छता सुविधाओं का हर दिन उपयोग किया जाना चाहिए और ऐसा होने के लिए ये सुविधाएं सुचारू होनी चाहिए. इसमें साबुन से हाथ धोने का प्रावधान और रखरखाव भी शामिल हैं. कई स्कूलों में WASH से जुड़ी बुनियादी ढांचागत कमियों के चलते स्वच्छता प्रथाओं का यथोचित प्रबंधन नहीं हो पाता है, जिससे कई ऐसी बीमारियां फैलती हैं जो बच्चों के स्वास्थ्य और शिक्षा को गंभीर रूप से प्रभावित करती हैं। प्राथमिकता के आधार पर कोविड-19 महामारी के प्रसार को प्रभावी ढंग से रोकने के लिए स्कूल परिसर में स्वच्छता प्रथाओं का समुचित पालन एक बड़ी चुनौती है।

अपर मुख्य सचिव के विशेष कार्य पदाधिकारी, शिक्षा विभाग विनोदानंद झा द्वारा धन्यवाद ज्ञापन किया गया. कार्यक्रम के दौरान माध्यमिक शिक्षा निदेशक मनोज कुमार और प्राथमिक शिक्षा निदेशक अमरेंद्र सिंह, यूनिसेफ बिहार के कार्यक्रम प्रबंधक शिवेंद्र पांडेय और WASH अधिकारी सुधाकर रेड्डी मौजूद रहे।

परीक्षा में केवल कड़ाई ही या सरकारी स्कूल-कॉलेजों में पढ़ाई भी अभयानंद

परीक्षा में केवल कड़ाई ही या सरकारी स्कूल-कॉलेजों में पढ़ाई भी —अभयानंद
वर्ष 1989 की बात है। मैं नालंदा का पुलिस अधीक्षक हुआ करता था। बोर्ड की परीक्षा होने वाली थी। जिले के जिला पदाधिकारी बहुत ही गंभीर और संजीदा व्यक्ति हुआ करते थे। उन्होंने मेरे समक्ष प्रस्ताव रखा कि इस वर्ष परीक्षा में नकल नहीं होने देना है। चूंकि नीयत नेक थी इसलिए मैंने पुलिस विभाग की पूरी शक्ति को इस दिशा में लगा देने का आश्वासन दे डाला।
उस वर्ष परीक्षाओं में नकल बिलकुल नहीं हुई। चारों ओर प्रशंसा हुई।

कॉलेजों में नामांकरण हुआ। एक दिन, हम दोनों पदाधिकारी कार्यालय में एक साथ बैठ कर मंथन कर रहे थे। अचानक विद्यार्थियों का एक बड़ा समूह सामने आ गया। शांत भाव से उन्होंने प्रश्न किया, “केवल कड़ाई ही या पढ़ाई भी?” प्रश्न वाजिब था। हम दोनों ने कार्यवाई करने का आश्वासन दिया और बच्चे चले गए।

हमने निर्णय लिया कि हम स्वयं कॉलेज में जा कर देखेंगे। अगले ही दिन हम जिला मुख्यालय के एक प्रतिष्ठित कॉलेज में पहुँचे, बिना किसी पूर्व सूचना के। फ़िज़िक्स के प्रैक्टिकल का क्लास था। हम सीधे प्रयोगशाला में पहुँचे। सभी विद्यार्थी आए हुए थे। वर्नियर कैलिपर से लम्बाई निकालने की क्लास थी। सब उपलब्ध थे केवल शिक्षक नहीं थे।

सूचना मिलते ही, प्रधानाचार्य आ गए। उन्होंने बताया कि शिक्षक बिना सूचना के अनुपस्थित हैं। तब तक पुलिस इंस्पेक्टर साहब को भी सूचना मिल गई थी। वे भी थाने की जीप पर सवार होकर कॉलेज आ गए थे। इंस्पेक्टर साहब से मैंने अनुरोध किया कि वे शिक्षक मोहदय के आवास पर जा कर उनको स्मरण कराएँ कि बच्चे आ गए हैं और उनका इंतज़ार कर रहे हैं।

उतनी देर में, हम दोनों पदाधिकारियों ने बच्चों की वर्नियर कैलिपर की क्लास लेनी शुरू कर दी। मनोरम दृश्य था। पूरा कॉलेज इस दृश्य को रुचि से देख रहा था। आधे घंटे के बाद पुलिस जीप पर शिक्षक महोदय पधारे। हम दोनों ने उनका दायित्व उनको सौंपा और अपना दायित्व निभाने निकल पड़े।

चलते समय शिक्षक महोदय ने धीरे से मेरे बगल में आ कर कहा कि आपको पुलिस की गाड़ी घर पर नहीं भेजनी चाहिए थी, बेइज़्ज़ती हुई है। मैंने मात्र मुस्करा कर प्रणाम करते हुए अलविदा कहा।
पढ़ाई की स्थिति में गिरावट उसके 30 वर्षों के बाद आज कहाँ तक पहुँच चुकी है, इसका अंदाजा अब मैं लगाने में सक्षम नहीं हूँ।

1960 में पहला बिहारी यूपीएससी में टाप किया था

UPSC में टाप करने के बाद जिस तरीके से सूबे के मुख्यमंत्री से लेकर मंत्री और संतरी तक बधाई दे रहे हैं ऐसे में गालिब का एक शायरी याद आ गया ——– हम को मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन दिल के खुश रखने को गालिब ये खयाल अच्छा है ।

एक दौर था जब पटना विश्वविधालय को ‘ऑक्सफोर्ड ऑफ द ईस्ट’ कहा जाता था स्थापना के शुरुआती दिनों में वकालत और मेडिकल की पढ़ाई के क्षेत्र में देश और दुनिया में पटना विश्वविधालय ने अलग पहचान स्थापित किया बाद के दिनों में रामशरण शर्मा जैसे इतिहासकार की वजह से पटना विश्वविधालय की पहचान इतिहास लेखन के क्षेत्र में अंतराष्ट्रीय स्तर पर स्थापित हुआ ।60 के दशक में इस विश्वविधालय की पहचान यूपीएससी के फैक्ट्री के रुप में स्थापित हुआ ।

1960 में जगन्नाथन मुरली बिहार से UPSC के पहले टापर बने। उन्होंने पटना में रहकर ही पढ़ाई की थी और उनके पिता भी आइसीएस (ब्रिटिश काल) थे और तब पटना में पदस्थापित थे।बिहार के दूसरे टांपर छह साल बाद 1966 में पूर्णिया के आभास चटर्जी UPSC टापर बने 1970 में पटना विश्वविधालय के तीन छात्र UPSC में पहला स्थान श्याम शरण दूसरा स्थान अनुराधा मजूमदार और तीसरा स्थान लक्ष्णी चक्रवर्ती प्राप्त की थी बाद में श्याम शरण विदेश सचिव बने थे ।

पटना विश्वविधालय से पढ़े आमिर सुबहानी 1987 में टाप किये थे आमिर सुबहानी पटना विश्वविद्यालय के सांख्यिकी विभाग से स्नातकोत्तर में गोल्ड मेडलिस्ट थे।आमिर सुबहानी के बाद अभी तक कोई दूसरा पटना विश्वविधालय से पढ़कर UPSC में टाप नहीं किया है।

1988में UPSC में प्रशांत कुमार टापर रहे इनकी प्रारंभिक पढ़ाई पटना में हुई थी। उच्च शिक्षा सेंट स्टीफेंस कालेज, दिल्ली से हुई।1997 में सुनील कुमार बर्णवाल टापर रहे सुनील बर्णवाल की प्रारंभिक शिक्षा भागलपुर में हुई। आइएसएम धनबाद से बीटेक के बाद उन्होंने गेल में भी सेवा दी।

2001 के टापर आलोक रंजन झा ने हिंदू कालेज से स्नातक करने के बाद जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से एमफिल किया। इनके बाद फिर टापर के लिए लंबा इंतजार करना पड़ा और 20 साल बाद कटिहार के शुभम कुमार यूपीएससी में टाप किया है । शुभम ने बोकारो से 12वीं की। फिर बॉम्बे आईआईटी से सिविल इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन किया है।

1961 बैच के सेवानिवृत्त आइएएस अधिकारी आइसी कुमार का कहना है कि 1960 से पहले बिहार से करीब 26 आइसीएस थे। इसके बाद 1960 में प्रथम स्थान पर पटना के जगन्नाथन मुरली, पांचवें स्थान पर रामास्वामी और 12वें स्थान पर पूर्व केंद्रीय वित्तमंत्री यशवंत सिन्हा थे।

1977 बैच के आईपीएस अधिकारी बिहार के पूर्व डीजीपी अभयानंद का कहना है कि पटना विश्वविधालय उस समय पढ़ाई के हर क्षेत्र में देश और दुनिया में पहचान स्थापित कर लिया था यूपीएससी को तो मक्का कहा जाता था।हर बैच में 25 से 30 छात्र यूपीएससी करता था ।1980 बैच के आईपीएस अधिकारी रहे राजवर्धन शर्मा जो 1967 में पटना सांइस कांलेज के छात्र थे उनका कहना था कि फिजिक्स ,अर्थशास्त्र और इतिहास विभाग का टांपर का यूपीएससी तय माना जाता था।

लेकिन आज बिहार के स्कूल कांलेज से पढ़े बच्चों के पास कर्मचारी बनने लाइक भी योग्यता नहीं है पिछले 10 वर्षो का बिहार बोर्ड का टापर का लिस्ट निकाल लीजिए देखिए वो क्या कर रहा है ।
पटना विश्वविधालय में पढ़ने वाले पूर्ववर्ती छात्रों का कहना है कि एक रणनीति के तहत बिहार के नेताओं ने पटना विश्वविधालय को बर्वाद किया है और इस बर्वादी में ताबूत में आखिरी कील इंटरमीडियट की पढ़ाई खत्म करने का निर्णय रहा आज बिहार के बजट की बात करे तो सबसे अधिक राशी 17 प्रतिशत 38035.93 करोड़ रुपये खर्च शिक्षा पर ही हो रहा है परिणाम आपके सामने हैं ।

बिहार में जहां कही से भी उम्मीद की छोटी सी किरणें दिखायी दे रही है उसके निर्माण में बिहार के किसी भी संस्थान को कोई योगदान नहीं है। छात्र,मजदूर ,किसान और व्यापारी जो बिहार का नाम रोशन कर रहा है वो सभी व्यक्तिगत प्रयास से सफलता हासिल किया है ।
चलते चलते–मुद्दतें बीत गयी आज पर
यार-ए-ज़िद्द ना गयी
बंद कर दिए गए दरवाजे
मगर उम्मीद ना गयी !!

आज के युवा पीढ़ी के लिए सिटिजन जर्नलिज्म एक सुनहरा मौका है।

अनिता गौतम
सिटिज़न जर्नलिज़्म, यह सिर्फ शब्द भर नहीं बल्कि व्यक्ति समाज, देश और दुनिया की जरूरत है। इस अंग्रेजी शब्द का मूल अनुवाद संभवतः नागरिक पत्रकारिता हो परंतु अलग अलग आयाम में फिट बैठता यह शब्द आम अवाम की मजबूत आवाज बन चुका है। देश दुनिया की राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक और भौगोलिक बदलाव को तकनीक के सहारे अति शीघ्र बहुत बड़े समूह तक पहुचाने का सशक्त माध्यम है यह सिटिज़न जर्नलिज्म।

समय के साथ इस वर्चुअल वर्ल्ड इन्फॉर्मेशन तकनीक में अभी और बदलाव आएंगे परंतु वर्तमान में इस माध्यम की सार्थक भूमिका को हम अपने आस पड़ोस में अनुभव कर सकते हैं।

मीडिया का शुरुआती दौर, जब प्रिंट मीडिया के माध्यम से ख़बरें लोगों तक घटना के अगले दिन या कई दिनों बाद पहुंच पाती थीं। फिर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया आयी और खबरें संकलित और संपादित होकर तस्वीरों और ट्रेंड एंकरों द्वारा कुछ लोगों तक पहुंचने लगीं।

दूरदर्शन से अपना सफर शुरू कर क्रमशः इस खबरों की दुनिया के निरंतर बदलाव का गवाह आज भी एक बहुत बड़ा वर्ग है। टेलीविजन केबल से डेटा केबल तक घूमते हुए आज इस नागरिक पत्रकारिता ने “कर लो दुनिया मुट्ठी में” के तर्ज पर हर किसी को अपने हुनर दिखाने का मंच दे दिया है।

कल तक खबरों के लिए टेलीविजन और अखबार की मोहताज आम आवाम आज खुद खबर बना और परोस रहा है। हर क्षेत्र, राजनीति, अपराध, सिने वर्ल्ड , टेलीविजन की दुनिया या समाज से जुड़ी छोटी बड़ी घटना की जानकारी पलक झपकते लोगों तक पहुँच रही है।

बात चाहे सरकार बनाने की हो, गिराने की हो , चुनावी समीकरण की हो या मत ध्रुवीकरण की, एक क्लिक और खबर पूरी दुनियां में संचारित। जाहिर सी बात है आगे जैसे-जैसे नागरिक पत्रकारिता का दायरा बढ़ेगा इसकी विश्वसनीयता दाव पर लगेगी। सीधे शब्दों में समझे तो बिना किसी तकनीकी पढ़ाई किये स्मार्ट फोन के साथ स्मार्ट बनने की प्रक्रिया में जितनी तेजी से सच फैलेगा उस से कई गुना रफ्तार से झूठ दौड़ेगा। वैसे भी एक पुरानी कहावत है जब तक सत्य बाहर निकलने के लिए अपने जूते तलाशता है, झूठ पूरी दुनिया घूम आता है।

मतलब बिल्कुल सीधा और साफ है कि हर चीज जिसमें अच्छाई होती है उसी में बुराई भी होती है, तो हमें तय करना होगा कि इसके निगेटिव पॉजिटिव प्रभाव को समझने की समझ कैसे विकसित करें?
वर्चुअल मीडिया, सोशल मीडिया के इस वर्ल्ड वाइड वेव ने सिटीजन जर्नलिज्म को एक मंच तो दे दिया है पर इसकी उपयोगिता की जिम्मेवारी हमें तय करनी होगी। इसके बेहतर प्रयोग से समाज और देश सुधार की न सिर्फ दिशा तय करनी होगी बल्कि उसके सकारात्मक प्रभाव पर भी गंभीरता से मंथन करना होगा।

निश्चित रूप से नागरिक पत्रकारिता , किसी भी मीडिया संस्थान से न जुड़कर भी खबरें संचालित करने का अद्भुत मंच है, शर्त यह है कि पत्रकारिता के लिए बने पंच लाइन ‘पत्रकारिता प्रोफेशन नहीं मिशन है।’ को इसमें अपने स्तर से बहाल रखा जाए।
सिक्के के दो पहलू की तरह सिटीजन जर्नलिज्म की भी अपनी ताकत के दो रूप है अच्छाई और बुराई। अगर कभी खबरों की सत्यता तय करने में मुश्किल आये तो हम न सिर्फ निष्पक्ष भाव से समाचार का सृजन करें बल्कि पत्रकारिता के मूल उद्देश्य, जनहित को प्राथमिकता देने का प्रयास करें।

ज्ञातव्य है कि समय के साथ मुख्य धारा की मीडिया में चंद लोगों की मोनोपोली कायम हो रही थी। दिशा निर्देश सत्तारूढ़ पार्टी या खास व्यक्ति के द्वारा प्राप्त होने लगे थे। ऐसी विषम परिस्थितियों में नागरिक पत्रकारिता ने मीडिया के कुछ मुट्ठी भर लोगों के गुरुर को न सिर्फ तोड़ा है बल्कि उनके पूरे किले को ही ध्वस्त कर दिया है। आज इस नागरिक पत्रकारिता की ताकत को ऐसे भी समझा जा सकता है कि कई सारी खबरें सोशल मीडिया पर पहले आती हैं और बाद में सत्यापित और संपादित होकर मुख्य धारा की मीडिया में आती है।

इसके साथ ही अगर बेहतर तरीके से इसके पूरे दिशा निर्देशों का पालन किया जाए और किसी तरह की विवादास्पद सामग्री न परोसी जाए तो इसमें मुद्रीकरण की प्रक्रिया भी है। अर्थात पूरी शर्त के साथ इस मंच को संचालित करने पर पैसे कमाने का साधन भी यहां उपलब्ध है।

इस तरह से देखा जाए तो सही मायने में यह सिटिज़न जर्नलिज्म हर आम और खास को एक बराबर अभिव्यक्ति की आजादी प्रदान करता है। खास लोगों की जिंदगी से प्रेरणा देने एवं उनकी कहानियों के लिए कई प्लेटफॉर्म हैं पर आम अवाम के पास जो अनुभव का खजाना है, उसे साझा करने में मददगार साबित हो रहा है यह मंच।
खाना खजाना, महिला जगत से लेकर बाल विकास तक के पन्नों को अपने में समेटे हुए, यह मंच न सिर्फ किताब बल्कि पूरी लाइब्रेरी है।

नाली गली से लेकर व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार को उजागर करने का सबसे प्रभावी जरिया है यह। तस्वीरों, वीडियो और ग्राफिक्स जैसे साक्ष्यों के साथ खबरों की अनोखी दुनिया। अपने पसंद की चीजों को यथा समय खोजने से लेकर फुरसत में खबरों से रूबरू होना, सब संभव हुआ है इस साधन से।

इसकी सबसे बड़ी खामियों में नागरिक पत्रकारिता के नाम पर पीत पत्रकारिता की संभावना बन जाती है। किसी के निजी जीवन की बातें, व्यक्तिगत पहलू या असंसदीय शब्दों का प्रयोग या फिर किसी की मर्यादा भंग करने वाली कहानियों को प्रकाशित करना। साथ ही इस माध्यम का दुरुपयोग सामूहिक रूप से पैसे उगाहने में भी लोग कर रहे हैं। क्राउड फंडिंग के नाम पर तकरीबन भीख मांगने की परंपरा को बढ़ावा मिल रहा है।

इसका सबसे डरावना और वीभत्स प्रयोग है पोर्नोग्राफी। स्त्री से लेकर बच्चों तक के शोषण के रास्ते तैयार करता है। वैसे कुछ कड़े कानून से इस पर रोक लग सकती है। पहले से भी देश में इस तरह के आपत्तिजनक सामग्री को रोकने के लिए कई कानून हैं। धार्मिक उन्माद , धर्मान्ध सामग्री और एक पक्षीय विश्लेषण से भी बचने की आवश्यकता है।

ब्लॉग, वेब पेज, गूगल, यूट्यूब, इंस्टाग्राम, ट्विटर, फेसबुक, व्हाट्सएप, वी चैट, टिकटाक, सोशल साइट्स और भी न जाने कितने तरीके से अब संचार संभव हो गया है। बहुत हद तक सूचना के अधिकार का विस्तार भी है नागरिक पत्रकारिता, बस जरूरत है भाषा की शुद्धता, तस्वीरों, वीडियो या ग्राफिक्स की प्रामाणिकता और उकसाने वाली खबरों से बचाव के तरीके तलाशने की।
बहरहाल इन सब चुनौतियों के बावजूद सिटिज़न जर्नलिज्म में असीम संभावनाएं है।

सुपर तकनीक के माध्यम से होने वाली इस पत्रकारिता में जरूरत है, थोड़े प्रशिक्षण और कुछ कानूनी दायरे बनाने की। सही मायने में लोकतांत्रिक तरीके से आम आदमी की अभिव्यक्ति का माध्यम बना नागरिक पत्रकारिता का यह मंच अपने आप में अनूठा है।

मुख्य धारा की मीडिया को चुनौती देते इस सिटिज़न जर्नलिज्म यानी नागरिक पत्रकारिता का भविष्य आगे अभी और उज्ज्वल है।

-लेखिका का नाम अनिता गौतम पत्रकार है

20 वर्ष बाद बिहार का कोई लाल यूपीएसपी में टांप किया है।

20 वर्ष बाद बिहार का कोई बेटा यूपीएससी में टांप किया हलाकि शुभम की पढ़ाई लिखाई बिहार में नहीं हुआ है लेकिन परिवार बिहार में ही रहता बिहार के कटिहार के रहने वाले शुभम कुमार कुम्हरी निवासी उत्तर बिहार ग्रामीण बैंक के ब्रांच मैनेजर देवानंद सिंह व पूनम सिंह के पुत्र हैं। उनकी प्रारंभिक से लेकर 10वीं तक की शिक्षा विद्या विहार रेजिडेंशियल स्कूल से हुई। 12वीं की पढ़ाई चिन्मया विद्यालय बोकारो से हुई। उसके बाद उन्होंने IIT बॉम्बे से सिविल इंजीनियरिग किया और फिर उन्होंने UPSC की तैयारी शुरू कर दी। दूसरे प्रयास में 2019 में 209वां रैंक हासिल किया था। इसके बाद उन्होंने इस साल फिर एग्जाम दिया और टॉप किया है।

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मां पूनम सिंह ने कहा- ‘शुभम पुणे में ट्रेनिंग में हैं। मैं बहुत खुश हूं। मुझे बहुत अच्छा लगा। सभी बच्चे शुभम की तरह तैयारी करें। वन से लेकर 10 तक टॉपर रहा। अभी भी टॉपर है। बचपन से पूछती थीं कि तुम क्या बनोगे तो वह कहता था मैं IAS बनूंगा। मैं उसको कहती थी तुम अच्छा तो पढ़ोगे तो मैं तुम्हें पढ़ाती रहूंगी। वह मुझे हौसला देता रहा’।

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टांपर का पूरा परिवार

शुभम के पिता देवानंद सिंह ने बताया कि उनकी बेटी अंकिता कुमार न्यूक्लियर साइंटिस्ट हैं। वह अभी आरआर कैट में पोस्टेड हैं। संयुक्त परिवार है। देवानंद सिंह के छोटे भाई डॉ. मणि कुमार सिंह पूर्णिमा में एक्वाप्रेशर के डॉक्टर हैं।

वहीं, ऑल इंडिया 7वां रैंक जमुई के प्रवीण कुमार को मिला है। चकाई बाजार निवासी प्रवीण कुमार बरनवाल ने ऑल इंडिया में 7 वां रैंक लाकर चकाई का नाम पूरे देश में रोशन किया है। प्रवीण की सफलता से पूरे चकाई बाजार में जश्न का माहौल है। उसके घर पर बधाई देने वालों की भीड़ उमड़ रही है। प्रवीण के पिता सीताराम वर्णवाल ने बताया- “वह बचपन से ही मेधावी था। उसकी प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा जसीडीह स्थित रामकृष्ण विद्यालय से हुई थी। बाद में उसने पटना से CBSE से मैट्रिक एवं इंटर की परीक्षा पास की। उसके बाद कानपुर IIT से पढ़ाई कर दिल्ली में 2 साल से UPSC की तैयारी कर रहा था। उसने दूसरे प्रयास में यह सफलता हासिल की है।

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प्रवीण की सफलता से उसकी मां वीणा देवी, बड़े भाई धनंजय वर्णवाल, बहन दीक्षा वर्णवाल एवं चाचा रामेश्वर लाल वर्णावाल खुशी से झूम रहे हैं। सीताराम वर्णावाल ने काफी गरीबी में अपने पुत्र प्रवीण को पढ़ाया- लिखाया और आज प्रवीण ने पूरे चकाई का नाम देश स्तर पर ऊंचा किया है।

समस्तीपुर के दिघड़ा निवासी सत्यम गांधी (Satyam Gandhi) ने यूपीएससी में 10वां रैक हासिल किया है । सत्यम गांधी ने राजनीतिक शास्त्र विषय से ग्रेजुएशन किया है ।

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परिणाम के बारे में खबर सुनते ही उनके पैतृक गांव दिघड़ा में जश्न का माहौल है. बता दें कि यूपीएससी ने आज सिविल सेवा का परिणाम जारी किया है, जिसमें 761 अभ्यर्थियों का सेलेक्शन हुआ है ।

UPSC टॉपर को दी बधाई।

बिहार के उपमुख्यमंत्री श्री तारकिशोर प्रसाद ने सिविल सर्विसेज प्रतियोगिता परीक्षा 2020 के आई.ए.एस. टॉपर श्री शुभम् कुमार को उनकी बेमिसाल उपलब्धि के लिए उन्हें हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं दी हैं।

उन्होंने कहा कि श्री शुभम् कुमार बिहार के कटिहार जिलान्तर्गत कदवा प्रखंड के कुम्हरी गांव के रहने वाले हैं। उन्होंने सिविल सर्विसेज परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त कर बिहार का नाम रौशन किया है। उन्होंने कहा कि बिहार प्रतिभाओं की धरती रही है। आज फिर एक बार बिहार और कटिहार गौरवान्वित हुआ है।

उपमुख्यमंत्री ने श्री शुभम् कुमार के उज्जवल भविष्य की कामना देते हुए कहा कि बिहार एवं देश की तरक्की में उनकी उत्कृष्ट सेवा का लाभ मिलेगा।

आईआईटी पटना को गूगल से मिला आंफर 54.50 लाख सालाना का दिया पैकेज

IIT, Patna के बीटेक के 34 छात्र-छात्राओं को इंटर्नशिप के आधार पर कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने प्री-प्लेसमेंट आफर (Pre Placement Offer) दिया है। ये सभी 2022 में पासआउट होंगे। गूगल (Google) ने सबसे अधिक 54.50 लाख सालाना का पैकेज छह छात्रों को दिया है। इसके अतिरिक्त एडोब, गोजेक, मीडिया.नेट और मोरगन ने एक-एक छात्र, क्लाउड आधारित अमेरिकी साफ्टवेयर कंपनी ने दो छात्रों, निवेश बैंकिंग फर्म गोल्डमैन सैक्स ने तीन, बीमा और स्वास्थ्य सेवा फर्म ऑप्टम ने सात, सैमसंग रिसर्च बेंगलुरु ने तीन, पब्लिसिस सैपिएंट ने तीन छात्रों को पीपीओ की पेशकश की है। इन कंपनियों ने 25 से 53 लाख सालाना तक के आफर पीपीओ के अंतर्गत दिए हैं।

2020 में 19 छात्रों को मिला था पीपीओ
अब तक मिले पीपीओ का औसत 24 लाख सालाना का है। प्लेसमेंट का पहला फेज सितंबर से दिसंबर तक चलेगा। जबकि, दूसरा फेज जनवरी से मार्च तक चलेगा। वर्ष 2020 में 19 छात्रों को प्री-प्लेसमेंट आफर मिला था। इस वर्ष 78 फीसद वृद्धि दर्ज की गई है। इन छात्र-छात्राओंने मई से जुलाई के बीच इन कंपनियों में इंटर्नशिप की है। इसके आधार पर कंपनियों ने ये आफर दिए हैं। सभी छात्रों काे आनलाइन साक्षात्कार के बाद ये आफर मिले हैं।

बिहार की बेटी ने परचम लहराया कोविड महामारी के दौरान बेहतर कार्य करने के लिए गोल्ड मेडल से हुई सम्मानित

भारत तिब्बत सीमा पुलिस अकादमी,मसूरी के 44वें स्थापना दिवस पर डॉक्टर प्रिया भारती , असिस्टेंट कमांडेंट, (मेडिकल ऑफिसर), आई टी वी पी ( भारत तिबबत सीमा पुलिस) को कोविड – 19 के खतरनाक दूसरी लहर में अधिक ऊंचाई (मसूरी) पर प्रशिक्षण के बीच आपातकालीन स्थिति में रातो रात दिल्ली आकर कोरोना रोगियों की इलाज और उत्कृष्ट सेवा के लिए लगातार ( सेवा के दूसरे वर्ष में) महानिदेशक (डी जी) के द्वारा स्वर्ण पदक (गोल्ड मैडल) और प्रशस्ति पत्र को अकादमी के निर्देशक/महा निरीक्षक (आई जी) ने प्रदान किया है।

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ज्ञात हो कि अपनी सेवा के पहले वर्ष में ही डॉक्टर प्रिया को कोविड रोगियों के इलाज और अपनी उत्कृष्ट सेवा के लिए रजत पदक प्राप्त हो चुका है।

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बिहार की बेटी के द्वारा लगातार इस उपलब्धि से परिवार के सदस्यों एवं रोसड़ा वासी गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं तथा उज्जवल भविष्य एवं राष्ट्र सेवा के लिए शुभकामना दिया। ज्ञात हो कि डॉक्टर प्रिया भारती , सहायक सेनानी ( चिकित्सा पदाधिकारी) रोसरा के प्रसिद्ध शिक्षाविद एवं स्थापित समाजसेवी स्वर्गीय देवनन्दन सिंह की परपोती और डॉक्टर अमरेन्द्र कुमार सिंह की सुपुत्री है।

बिहार कांलेज आंफ फिजियोथेरेपी कोर्स की पढ़ाई को लेकर हुई सुनवाई

पटना हाई कोर्ट ने बिहार कॉलेज ऑफ फिजियोथेरेपी एंड ऑक्यूपेशनल थेरेपी में फिजियोथेरेपी व ऑक्यूपेशनल थेरेपी में पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स शुरू करने हेतु अनापत्ति प्रमाण पत्र देने के मामलें पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार से जवाब तलब किया। चीफ जस्टिस संजय करोल की खंडपीठ ने अधिवक्ता भावना सिंह की जनहित याचिका पर सुनवाई की।

याचिकाकर्ता ने उचित समय सीमा में डॉक्टर, शैक्षणिक और गैर शैक्षणिक स्टाफ तथा टेक्नीशियन और फिजियोथैरेपिस्ट के कॉलेज में खाली पड़े पदों भरे जाने का अनुरोध किया।

उन्होंने बताया कि बिहार कॉलेज ऑफ फिजियोथेरेपी एंड ऑक्यूपेशनल थेरेपी राज्य में एकमात्र सरकारी अस्पताल है । यहाँ ऑक्यूपेशनल थेरेपी का कोर्स व इलाज समेत पुनर्वास और फिजियोथेरेपी की सुविधाएं मुहैया कराई जाती है।खासतौर से वैसे गरीब लोगों को जो इसका इलाज दूसरे स्थानों पर करवाने में समर्थ नहीं हैं। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि अप्रशिक्षित व्यक्तियों द्वारा प्रशिक्षित व्यक्तियों के कामों को अस्पताल में किया जा रहा है। इतना ही नहीं, प्रशिक्षित व्यक्तियों द्वारा इस अस्पताल में गार्ड का काम किया जा रहा है।

इसलिए कोर्ट से कॉलेज में समुचित काम काज को लेकर निर्देश देने की भी मांग किया गया है।मामले पर सुनवाई तीन सप्ताह बाद की जाएगी।

सीएम हैरान 2016 में मैट्रिक पास किये छात्रों को अभी तक नहीं मिला है प्रोत्साहन राशी

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आज जनता के दरबार में मुख्यमंत्री’ कार्यक्रम के दौरान उस वक्त हैरान रह गये जब उनकी खुद की महत्वाकांक्षी योजना मुख्यमंत्री प्रोत्साहन योजना के तहत 2016 से छात्रों को राशी नहीं मिल रही है।

भागलपुर से आई एक बच्‍ची ने बताया कि उसने 2016 में मैट्रिक परीक्षा पास की थी, बावजूद उसे मुख्‍यमंत्री प्रोत्‍साहन योजना की राशि अब तक नहीं मिली है। इसे सुनकर सीएम चौंक गए। इसके बाद भी इस तरह के एक दर्जन से अधिक मामले आए।

क युवक ने 2017 में परीक्षा पास करने पर भी अब तक प्रोत्‍साहन राशि नहीं मिलने की बात कही। सीएम आश्‍चर्यचकित थे कि इतने वर्षों बाद भी योजना की राशि क्‍यों नहीं दी गई फिर वो अधिकारियों से इस संदर्भ में बात किया ।

इसी तरह जनता के दरबार में मुख्यमंत्री’ कार्यक्रम के दौरान पिछले दिनों सीएम को पता चला कि 2015 से ही आंगनबाड़ी केंद्र की सहायिका को मानदेय नहीं मिल रहा जनता के दरबार कार्यक्रम के दौरान भोजपुर जिला के सहार प्रखंड के आंगनबाड़ी केंद्र की सहायिका, समस्तीपुर जिला के विभूतिपुर प्रखंड समेत अन्य कई स्थानों से आयी सेविकाओं ने सीएम के समाने मानदेय नहीं मिलने को लेकर अपनी बात रखी। सेविका की बात सुन कर सीएम इसी तरह हैरान रह गये थे ।

पॉलिटेक्निक के छात्रों ने दायर किया याचिका

पटना हाई कोर्ट ने पॉलीटेक्निक के छात्रों को प्रोन्नत करने के मामले पर सुनवाई करते हुए याचिकाकर्ता को संबंधित अधिकारी के समक्ष अभ्यावेदन दाखिल देने को कहा है।चीफ जस्टिस संजय करोल की खंडपीठ ने मनोरंजन कुमार द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई की।

याचिकाकर्ता ने पॉलिटेक्निक के पहले, तीसरे, चौथे और पांचवे सेमेस्टर के लेटरल एंट्री के छात्रों को यू जी सी द्वारा जुलाई, 2021 में जारी किये गए आदेश के सन्दर्भ में अगले सेमेस्टर में प्रोन्नत करने हेतु याचिक दायर किया था।
कोर्ट से झारखंड, यू पी, राजस्थान, हरियाणा और बिहार के अन्य यूनिवर्सिटी की तरह ही बगैर किसी परीक्षा लिए संशोधित एकेडेमिक कैलेंडर 2021- 22 और ए आई सी टी ई के अनुसार अगले सेमेस्टर में प्रमोट करने हेतु आदेश देने का अनुरोध किया है।

याचिकाकर्ता ने अपने याचिका में छठे सेमेस्टर के लिए होम सेन्टर से फिजिकल परीक्षा लेने व् यू जी सी के गाइडलाइंस के अनुसार इसी तरह से बैक लॉग छात्रों के मामले में कार्रवाई करने हेतु निर्देश देने के लिए आग्रह किया है। याचिकाकर्ता को कोर्ट के आदेश की तिथि से चार सप्ताह के भीतर संबंधित अधिकारी के समक्ष अपने शिकायतों के निवारण के लिए अभ्यावेदन दाखिल करने को कहा गया है। संबंधित अधिकारी को आदेश की प्रति के साथ अभ्यावेदन मिलने पर प्राथमिकता देते हुए, दो महीने के भीतर अभ्यावेदन पर विचार करते हुए इसे शीघ्रता से निष्पादित करने का निर्देश दिया गया। इसके साथ ही कोर्ट ने याचिका को निष्पादित कर दिया।

असंगठित क्षेत्र से जुड़े मजदूरों के लिए राज्य सरकार ने खोला द्वार

श्रम कल्याण दिवस” से महाभियान चलाकर राज्य के सभी असंगठित क्षेत्र के कामगारों का राष्ट्रीय ई-श्रम पोर्टल पर कराया जायेगा निबंधन:

  • 31 दिसंम्बर 2021 तक राज्य के 3 करोड़ 49 लाख कामगारों के निबंधन का पूरा किया जायेगा लक्ष्य:
    श्री जिवेश कुमार, मंत्री श्रम संसाधन विभाग|

बिहार के सभी असंगठित क्षेत्र के कामगारों को राष्ट्रीय ई-श्रम पोर्टल पर पंजीकरण कराये जाने हेतु राज्य में महाभियान चलाकर लक्ष्य को पुरा किया जायेगा| इस अभियान को “श्रम कल्याण दिवस” (दिनांक 17/09/2021) से शुरू किया जाएगा| दिनांक 31 दिसंम्बर 2021 तक 3 करोड़ 49 लाख कामगारों के निबंधित कर लिया जायेगा, जो राज्य के लिए भारत सरकार से निर्धारित लक्ष्य है| विभागीय मंत्री, श्री जिवेश कुमार ने उक्त बातें निर्धारित लक्ष्य के प्रप्ति हेतु विभाग के पदाधिकारियों के साथ समीक्षात्मक बैठक के दौरान कही|

  1. उन्होंने यह बताया कि केंद्र सरकार ने असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए एक बेहतर पहल की है, श्रम एवं रोजगार मंत्रालय (Ministry of Labour and Employment) ने इसकी शुरुआत दिनांक 26 अगस्त को किया है| जिसके तहत देश भर के लगभग 43.7 करोड़ असंगठित श्रमिकों को ई-श्रम पोर्टल (e-SHRAM Portal) से जोड़ा जायेगा| जिसका उदेश्य देश के सभी असंगठित क्षेत्र के कामगार तक सभी सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का लाभ पहुंचना है|
  2. देश भर के असंगठित श्रमिक जो विभिन्न क्षेत्रों में कार्य करते है उनका पहचान पत्र और आधार कार्ड की तर्ज पर इनके कार्य के अनुसार रिकॉर्ड तैयार किया जा रहा है| जिससे इनके आर्थिक और सामाजिक उत्थान के लिए योजनाएं बनाकर क्रियान्वित की जा सके| साथ ही निबंधित श्रमिकों को 2 लाख रुपये का बीमा का लाभ भी दिया जा रहा है, जिससे श्रमिक की असामयिक मृत्यु होने पर उनके आश्रितों को तात्कालिक आर्थिक सहायता दी जा सके|
    ई – श्रम पोर्टल की विशेषताओं को बताते हुए माननीय मंत्री ने कहा:-
    1) पोर्टल पर श्रमिक अपना रजिस्ट्रेशन खुद से या CSC पर जा करा सकते हैं।
    2) श्रमिक का जन्म तिथि, होम टाउन, मोबाइल नंबर और सामाजिक श्रेणी जैसे अन्य आवश्यक डिटेल भरने के अलावा, आधार कार्ड नंबर और बैंक खाते का डिटेल का उपयोग करके रजिस्ट्रेशन किया जाता है|
    3) श्रमिकों को एक ई-श्रम कार्ड जारी किया जाता है जो 12 अंकों का विशिष्ट नंबर है।
    4) इसका उद्देश्य सरकार की सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का एकीकरण करना है।
    5) ई-श्रम पोर्टल के माध्यम से बिहार सरकार का लक्ष्य 3.49 करोड़ असंगठित श्रमिकों, जैसे: निर्माण मजदूरों, प्रवासी श्रमिकों, रेहड़ी-पटरी वालों और घरेलू कामगारों का रजिस्ट्रेशन करवाना है।
  3. बिहार राज्य में अद्यतन स्थिति के अनुसार बिहार भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड में निबंधित लगभग 17 लाख कामगारों का पूर्ण विवरण को राष्ट्रीय ई पोर्टल में जोड़े जाने हेतु भेजा जा चुका है| साथ ही राज्य के अन्य योजनाओं से जुड़े लगभग 11 लाख कामगारों के डाटा को भी जोड़ा जा चुका है| इस ई पोर्टल से बिहार राज्य से 3 करोड़ 49 लाख कामगारों को जोड़े जाने का लक्ष्य निर्धारित किया है, जो राज्य के आबादी का 30 प्रतिशत है, जिससे लगभग राज्य के सभी कामगार आच्छादित हो जायेंगे|
  4. श्रम संसाधन विभाग विभिन्न विभागों (आपदा / कृषि / पथ निर्माण/ भवन निर्माण आदि) से समन्वय स्थापित कर उनके यहां कार्यरत आधार आधारित पंजीकृत कामगारों का भी समायोजन इस ई पोर्टल पर करा रहा है, जिसमें विशेष रूप से मनरेगा के श्रमिक, जीविका दीदियों को जोड़ा जायेगा| साथ ही दिए गए लक्ष्य को जिलावार (जनसंख्या के अनुरूप) विभाजित कर इसे पूरा किया जायेगा| इससे संबधित पत्र सभी जिलों के जिलाधिकारी को अपर मुख्य सचिव स्तर से प्रेषित किया जा रहा है|
  5. सभी कार्य को (CSC) कॉमन सर्विस सेंटर के द्वारा कराया जायेगा जो प्रत्येक पंचायत में कार्यरत है, इसको पूरा करने हेतु भावी रूप रेखा तैयार की गयी है, जिसको लेकर अग्रेतर कारवाई की जा रही है| राज्य में स्टेट एडमिन बना दिया गया, जो जिलावार डाटा मूल्यांकन और अनुश्रवण करेंगे| साथ ही प्रगति हेतु जिला स्तर के पदाधिकारियों से प्रत्येक स्तर पर इसकी समीक्षा कर त्वरित गति से इसे 31 दिसम्बर 2021 तक पुरा किया जायेगा|

समीक्षा बैठक के दौरान, अपर मुख्य सचिव, श्रीमती वन्दना किनी, विशेष सचिव, श्री अलोक कुमार, श्रमायुक्त, सुश्री रंजिता, संयुक्त श्रमायुक्त, श्री अरविंद कुमार और श्री वीरेंद्र कुमार के साथ वरीय पदाधिकारी उपस्थित थे|

क्या पढ़ना है छात्रों को तय करने दीजिए

किस तरह की शिक्षा और समाज चाहते हैं हम?
अभी हाल फिलहाल में 10वीं व 12वीं बोर्ड का रिजल्ट आया है। विद्यार्थी तय कर रहे होंगे कि आगे कौन सा स्ट्रीम लेना है। मैंने महसूस किया है कि दबाव कुछ ऐसा होता है कि निम्न क्रम में स्ट्रीम लेना होता है: विज्ञान> वाणिज्य> मानविकी। मतलब विज्ञान सबसे अच्छा और मानविकी सबसे कम अच्छा। अगर किसी को विज्ञान में कम नंबर भी है तो भी खींच-तान के उसी विषय को लेने का ही प्रेशर होता है। भले ही उसको मानविकी विषय में अच्छे नंबर आए हों और झुकाव भी कहीं ना कहीं उसकी तरफ हो, फिर भी अगर उसने वो स्ट्रीम ले लिया तो उसे गया गुजरा समझा जाता है। इसके पीछे परिवार, समाज और पीयर (peer) प्रेशर बड़े कारण हैं। आजकल शिक्षा ज्ञान कम, कमाने का जरिया अधिक बन गया है जो कि दुर्भाग्यपूर्ण है। मूल्यों के क्षरण के पीछे मैं इसे एक महत्वपूर्ण फैक्टर मानती हूं।

जबरदस्ती इंजीनियर बनने का इतना दबाव है कि इतने सारे इंजीनियर कॉलेजों से निकल रहे हैं लेकिन उनमें बेरोजगारी बड़ी समस्या है। फिर भी लोग व्यापक तौर पर अपनी सोच नहीं बदल पा रहे हैं। स्किल पर लोगों का ध्यान कम है।

हर विषय का अपना महत्व होता है। जिस विषय में रुचि और पैशन है, उस फील्ड में बढ़िया कैरियर बनाया जा सकता है। जिसमें रुचि नहीं है, उसको लेकर जीवन भर झेला सकते हैं। अच्छा, हमारे यहां ये चीज भी है कि कोई परेशान हैं या दूसरी दिशा में जाना चाहते हैं तो जीवन के किसी प्वाइंट पर स्ट्रीम/प्रोफेशन बदलने की सोचना भी बड़ी हिमाकत की बात है। बैंक लोन, बच्चे आदि के चलते ऐसा निर्णय लेना आसान नहीं है। नतीजा फ्रस्ट्रेशन के साथ काम करते रहना पड़ता है।

एक जिंदगी मिली है, अपने अनुसार निर्णय लीजिए (क्योंकि जिंदगी भर निभाना आप ही को है), जरुरत पड़े तो गैर परंपरागत निर्णय लेने का माद्दा रखिए, स्ट्रीम/प्रोफेशन भी बदल सकते हैं और संतुष्ट जीवन जिएं। हो सकता है एकाध बार आप फेल हो जाएं लेकिन फिर से खड़े होने की हिम्मत रखिए। अंततः सार यहीं है कि अगर आप खुश रहेंगे तो दुनिया खुश रहेगी।

– लेखिका प्रो० लक्ष्मी कुमारी वीर कुंवर सिंह विश्वविधलय के राजनीतिशास्त्र विभाग से जुड़ी है ।