बचपन संघ के साथ ,कॉलेज ABVP के साथ और पत्रकारिता का एक बड़ा हिस्सा भाजपा के नेता और कार्यकर्ता के बीच गुजरा है ।
स्वभाविक है मेरा परिवार बिहार में संघ के स्थापक सदस्यो में एक थे ,काँलेज में ABVP की तरह व्यवस्थित दूसरा कोई छत्र संगठन नहीं था ,पत्रकार बने तो उस समय बीजेपी विपंक्ष में थी,सत्ता और सरकार के खिलाफ कार्यक्रम और आंदोलन करने के मामले में इनका जोड़ा नहीं है ।आंदोलन में लोग जुटे या ना जुटे मीडिया में बेहतर कभर कैसे हो इसके गुर में ये माहिर होते थे ।
इस वजह से बीजेपी का गाँव का कार्यकर्ता हो या फिर राष्ट्रीय नेता हो आप इसके आलोचक ही क्यों ना हो व्यक्तिगत रिश्ता हमेशा बना कर रखते थे ।
हालांकि बीजेपी जब से सत्ता में आयी इनकी मीडिया से पहले जैसी जरुरत नहीं रही फिर मोदी के बाद तो मीडिया से तो ये दुश्मनी साधने लगे ।
लेकिन 40 से उपर वाले इनके नेता और कार्यकर्ता में अभी भी वो भाव बची हुई है ,इन सबों में विपंक्ष में होने का एहसास अभी भी मिटा नहीं है वैसे सोशल मीडिया वाली आक्रमकता फिल्ड में देखने को नहीं मिलता है आंख में पानी है लेकिन पहले जैसा घार अब कार्यकताओं में नहीं है ,चाल चरित्र और चेहरा की बात अब बस कहने के लिए रह गया ।