बिरजू महाराज मेरे लिए सिर्फ़ कथक गुरु नहीं, मेरी दिलरुबा सहेली अनिता महाराज के पिता भी थे । मेरी पहली मुलाक़ात ही कथक केंद्र में अनिता के साथ हुई थी, तब मैं अमर उजाला अख़बार के लिए उनका लंबा चौड़ा इंटरव्यू करने गई थी । अनिता पहले से मेरी मित्र थी । ये 90 के दशक की बात है । 1993 -94 के आसपास. कटिंग ढूँढ रही हूँ । अमर उजाला में फ़ुल पेज छपा था ।
उस समय मैं नवभारत टाइम्स और अमर उजाला के लिए कलाकारों, चित्रकारों के फ़ुल पेज इंटरव्यू किया करती थी. वो दौर था जब अख़बार कला और कलाकारों को बहुत महत्व देते थे ।
मुझे उनके पास अनिता लेकर गई थी और अनिता की तरह ही मैं भी उन्हें “बाबू “ कहने लगी थी ।
उसके बाद कई बार मिलना हुआ. तीन साल पहले अचानक पंकज नारायण ने बताया कि गुरु जी जोरबाग में रहते हैं, मिलने चलते हैं. जोरबाग में रहने वाली मेरी चित्रकार मित्र अनुराधा ( सोनिया) भी अनिता की अभिन्न मित्र . हम सब पूरा दल बनाकर मिलने धमक गए ।
मुझे एक आमंत्रण भी देना था. हमारे क्लब का सालाना जलसा था और मुझे उसमें बतौर मुख्य अतिथि “बाबू” ( बिरजू महाराज) को बुलाना था ।
जब हम पहुँच गए तो धूम धड़ाम शुरु. हमने उन्हें मना ही लिया. तब सोचे कि नहीं मानेंगे तब अनिता का सहारा लेंगे. लेकिन थोड़ा ना नुकुर के बाद मान गए ।
ये उसी अवसर की तस्वीरें हैं जब हम उन्हें आमंत्रित करने गए थे. मैं तो मुँह लगी उनकी. हमने ख़ूब दिलजोई की. शाश्वती सेन जी का साथ बना रहा ।
आज सुबह अनिता के बात करते हुए रोना आ गया. मैं उसके पास जा भी नहीं सकती – मैं पिछले छह दिन से कोरोंटीन हूँ. दुबारा से तीसरी लहर में ओमीक्रोन ने दबोच लिया. सावधान रहते, बचते बचाते भी बीमारियाँ घर चल कर आ जाती हैं.
अनिता … मैं हमेशा तेरे साथ हूँ… बाबू कहीं नहीं गए. वे अपनी कला में ज़िंदा हैं. वे अमर हैं. हमारी पीढ़ी गर्व से कह सकेगी कि हमने बिरजू महाराज को मंच पर देखा है. बिजली कौंधते देखी है. सारी दिशाओं को अपनी बाँहों में भरने का आवाहन करते देखा है ।
आउटलुक के लिए जब इंटरव्यू करने गई थी तब एक कॉलम था – दूसरा पहलू. आप कथक के देवता हैं… ये न करते तो क्या करते?
जवाब – “मोटर मैकेनिक होता. मुझे गाड़ियाँ बनाने का शौक़ है. ठीक कर लेता हूँ. बहुत रोचक काम है. यह भी कला है.”
हम लोग हैरान थे कि कहाँ नृत्य की दुनिया और उसके बेताज बादशाह और कहाँ गाड़ियों के कल पुर्ज़े ठीक करना पसंद था ।
लेखक —गीता श्री