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बिहार आज भी देश के आखिरी पंक्ति में खड़ा है

आज बिहार दिवस है और आज ही के दिन 22 मार्च 1912 को बिहार बंगाल से अलग हुआ था कहने को तो आज का दिन बिहार के लिए हर्ष का दिन है लेकिन सवाल यह भी है कि 1912 में बिहार जहां खड़ा था आज बिहार कहां खड़ा है ।

बिहार जब बंगाल से अलग हुआ तो 1917 ई. में पटना विश्वविद्यालय की स्थापना हुई यह भारतीय उपमहाद्वीप का सातवाँ सबसे पुराना स्वतंत्र विश्वविद्यालय के रूप में स्थापित किया गया था और स्थापना के 25 वर्ष में यह विश्वविद्यालय ‘ऑक्सफोर्ड ऑफ द ईस्ट कहलाने लगा था।

पटना में 1925 में पीएमसीएच की स्थापना हुई और स्थापना के साथ ही इसकी पहचान देश और दुनिया के सबसे अच्छे मेडिकल कॉलेज में होने लगा था।

1947 में बिहार जीडीपी में देश में नम्बर वन पर था आजादी के तुरंत बाद बिहार की अभिशाप माने जाने वाली कोसी नदी के बाढ़ को नियंत्रित करने के लिए 1958 में बराज बनाया है वही सिंचाई के लिए भीम नगर में बराज बनाया गया और उससे गंडक नहर निकाला गया उसी तरीके से कोसी से कोसी नहर निकाला गया ।

कृषि के क्षेत्र में अनुसंधान के लिए 1903 में पूसा में कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना की गयी थी आजादी के बाद बरौनी का विकास औधोगिक नगरी के रूप से हुआ लेकिन आज बिहार कहां खड़ा है बिहार का दस में दो व्यक्ति देहारी मजदूरी और छोटे छोटे रोजगार के लिए बिहार से बाहर है ।

बिहार का 90 फीसदी छात्र जो बेहतर कर रहा है वो बिहार से बाहर पढ़ रहा है बिहार की स्कूली शिक्षा और कॉलेज का हाल झारखंड से भी बूरा है ।

बिहार बोर्ड के पिछले 10 वर्षो के टांपर का हाल यह है कि कहीं किसी गांव में परचून का दुकान खोल कर रोजी रोटी कमा रहा है ।

आजादी के समय जो गिना चुना शहर था पटना को छोड़ दे तो किसी भी शहर में बेसिक सुविधा भी नहीं है ।शहरीकरण के क्षेत्र में बिहार देश का सबसे पिछड़ा हुआ राज्य है यही स्थिति रोजगार सृजन और शिक्षा ,स्वास्थ्य का है छोटी सी भी बीमारी हुआ तो दिल्ली जाना ही है। पटना में कुछ बेहतर स्वास्थ्य और शिक्षा की व्यवस्था जरुर है लेकिन वो भी राष्ट्रीय स्तर के मानक पर खड़ा नहीं उतर रहा है ।

मतलब 1947 में बिहार जहां खड़ा था वहां भी आज बिहार खड़ा नहीं है पिछले 15 वर्षो में बिहार में बहुत कुछ हुआ है गांव गांव में बिजली और सड़क पहुंच गयी है लेकिन शिक्षा और स्वास्थ्य उतना ही दूर हो गया है ।नवीन पटनायक 2000 में ओडिशा के मुख्यमंत्री बने थे उस समय ओडिशा की स्थिति बिहार से भी बूरी थी नीतीश 2005 में बिहार के मुख्यमंत्री बने आपदा के मामले में बिहार और ओडिशा लगभग एक जैसा ही राज्य है लेकिन ओडिशा कहां पहुंच गया और बिहार कहां है ।

देश स्तर पर आज भी बिहार वहीं खड़ा है जहां 15 वर्ष पहले खड़ा था, बिहार दिवस के मौके पर हर बिहारी को सोचना चाहिए कि बिहार के आने वाले पीढ़ी के लिए हम लोग क्या छोड़ कर जा रहे हैं वही बिहारी शब्द जिसे गाली के रुप में इस्तेमाल किया जाता है या फिर एक ऐसा बिहार जहां का होना गर्व कहलाये ।

1–बिहार के शिक्षा व्यवस्था में बड़े बदलाव की जरूरत है
सोचिए आज बिहार और बिहारी कहां खड़ा है हमारे हाथ से एक साजिश के तहत शिक्षा छीनी जा रही है एक आसरा था दिल्ली वो भी हाथ से निकल चुका है जेएनयू जहां बिहार का गांव बसता था जहां से बिहारी बच्चे नई उड़ान,भरते थे उस घोंसला को ही उजाड़ दिया गया।

दिल्ली विश्वविद्यालय में सीट कम हो गया आईआईटी और जेई की परीक्षा का स्तर इतना हाई हो गया है वहां बिहार की शिक्षा व्यवस्था दूर दूर तक खड़े नहीं उतर रहा है ।इसलिए शिक्षा के क्षेत्र में बड़े बदलाव की जरूरत है और बिहार से बाहर जो बिहारी हैं इस विषय पर सोचे ।

हालात यह है कि बिहार के पास अब अच्छे शिक्षक भी नहीं है आज पूरे देश में दरभंगा जैसे छोटे से कस्बे से निकल कर फिजिक्स के छात्रों को ‘धर्मग्रंथ’ देने वाला एचसी वर्मा जैसे विद्वान से बात करने कि जरूरत है कि यह कैसे सम्भव है शिक्षा ही एक ऐसा क्षेत्र हैं जहां आज भी बिहारी का जोड़ नहीं है ये बिहारियों के डीएनए में है इसलिए इसे बेहतर करने पर सोचने कि जरुरत है ।

2–कृषि के क्षेत्र में काम करने की जरूरत है

आज बिहारी अपने दम पर अंडा और मछली के क्षेत्र में बड़े बड़े खिलाड़ी को चुनौती दे रहा है ,पांच वर्ष पहले तक जहां गांव गांव के हाट पर आंध्र की मछली मिलती थी, लेकिन आज स्थिति बदल गयी है बिहार की मछली एक बार फिर बिहार से बाहर जाने लगी है।

इसी तरह अंडा जहां आंध्र और पंजाब का एक छत्र राज्य था आज बिहार उसे चुनौती दे रहा है ।दूध के क्षेत्र में तो देश स्तर पर बिहार अमूल को चुनौती देने लगा है।

इसी तरह का काम सब्जी के क्षेत्र में करने की जरूरत है आज उपज का 90 प्रतिशत हिस्सा औने पौने दाम में बेचने को किसान मजबूर है । मक्का ,आलू और लीची के क्षेत्र में देश के सबसे बड़े उत्पादक राज्यों में बिहार एक है लेकिन पॉपकॉर्न बनाने के लिए बिहार का मक्का मुंबई जाता है जहां 20 रुपये किलों का मक्का किस भाव में लेते हैं आपसे बेहतर कौन जानता है।

ऐसा ही हाल आलू का है जिसके उत्पादक किसान हर दूसरे वर्ष आलू सड़क पर फेंकने को मजबूर होता है । गेहूं और चावल के क्षेत्र में भी एक खास तरह का ब्रांड बिहार पैदा करता है लेकिन उसका लाभ दूसरा राज्य उठाता है ।

कृषि ही एक ऐसा क्षेत्र हां जहां रोजगार और किसान के समृद्धि का एक नया दौर लाया जा सकता है जबसे बिहार का किसान कमजोर हुआ है बिहारी डीएनए जो पहचान रही है वो गांव से बाहर निकल ही नहीं पा रहा है जो निकल रहा है वो कही रेरी लगा रहा है या फिर नाइट गार्ड का काम कर रहा है ।

3—पर्यटन और कला संस्कृति के क्षेत्र में काम करने की जरूरत है
कृषि योग्य भूमि की तरह ऊपर वालों ने बिहार को पर्यटन और कला संस्कृति के क्षेत्र में बहुत कुछ दिया है जिसकी बेहतर मार्केटिंग करके बिहार के जीडीपी को ऊंचाई तक पहुंचाया जा सकता है ।

क्या नहीं है बिहार में सभी धर्म का आस्था का केन्द्र बिहार है कला और संस्कृति की ही बात करे तो बहुत कुछ है जिसको अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मार्केटिंग की जा सकती है ।

लेकिन इन सब के लिए हम सभी बिहारियोंं को जाति और धर्म के नाम पर जारी सियासत से बाहर हम सब बिहारी है इस नारे के साथ आगे बढ़ना पड़ेगा ।तभी बदलाव सम्भव है लेकिन बिहारी आगे ना बढ़ जाये इसका खतरा पूरे देश के नेता को है इसलिए हमे उलझा कर रखता है इसे भी समझने की जरूरत है ।

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