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आनंद मोहन की रिहाई को लेकर जारी सियासत के बीच अभयानंद ने डीएम कृष्णैय्या के ईमानदारी की चर्चा कर एक नये डिवेट की शुरुआत कर दी

  • घर में खाना नहीं मिलता था *
    श्री जी. कृष्णैय्या पश्चिम चम्पारण के जिला पदाधिकारी थे और मैं पुलिस अधीक्षक। एक दिन हम दोनों बगहा क्षेत्र में नहर की कच्ची सड़क पर चले जा रहे थे। बातों-बातों में अचानक उन्होंने मुझे अपनी ज़िन्दगी के कुछ किस्से सुनाए।
    उनके पिता रेलवे के क्लास 4 कर्मचारी थे। उनकी माँ और पिता के पास बासगित के पर्चे पर बनी एक झोंपड़ी थी। दोनों शिक्षित नहीं थे। वे स्वयं पढ़ने में अच्छे थे तो उनको हरिजन छात्रवृति मिली और वे चौथी कक्षा में हरिजन क्षत्रावास चले गए। उनके गाँव में भी एक नहर था। जब हॉस्टल से मन ऊब जाता तब वे नहर में तैरते हुए घर आ जाते परन्तु किसी दिन भी घर के हड़िया में खाना नहीं मिलता। वे फिर भाग कर हॉस्टल चले जाते। कम से कम वहाँ उन्हें खाना तो मिल जाता था।
    यह एक छोटा सा परिचय है उस IAS DM का जिसने कभी जाति के आधार पर भेद-भाव नहीं किया। अगर वो अंतर करते भी थे, तो गरीब-अमीर पर, जाति पर कभी नहीं।
    जिले का कोई व्यक्ति चाहे कितना भी धनाढ्य क्यों न हो, यह नहीं कह पाया कि कृष्णैय्या जी को उसने छोटा या बड़ा कुछ भी दिया हो। दूसरी ओर ऐसा भी कोई व्यक्ति नहीं था जो यह कह सके कि वह उनसे मिलने उनके घर गया हो और उसे एक प्याला चाय नहीं मिला हो।
    जिले में कई अमीर घराने हैं जिनके घर महलों की भांति हैं। एक आम सभा आयोजित की गई थी जिसका स्थान एक महल के बगल में था। लंच का समय हुआ तो उन जमींदार साहब ने DM और SP साहब को अपने महल में स्वागत का प्रस्ताव दिया। मैंने तुरंत जवाब दिया कि घर से टिफ़िन लाया हूँ। DM साहब ने भी यही जवाब दिया। मुझे अत्यंत खुशी हुई। हम दोनों ने अपनी गाड़ी में साथ में बैठ कर घर से लाया टिफ़िन खाया।
    आम लोगों के बीच यह चर्चा थी कि इससे पहले DM और SP की ऐसी कोई जोड़ी नहीं आई जिसने ज़मींदारों के स्वागत के प्रस्ताव को ठुकरा दिया हो।
    जिले का आम आदमी उनसे बेहद प्यार करता था, उनकी इज़्ज़त करता था। वे उस जिले में किसी भी भीड़ में घुस जाते तो लोग सम्मान से उनके लिए रास्ता बना देते थे। दुर्भाग्य था कि जिस घटना में उनकी हत्या हुई, वह मुजफ्फरपुर जिले में घटित हुई थी। पश्चिम चम्पारण में यह घटना हो ही नहीं सकती थी।
  • लेखक–अभयानंद पूर्व डीजीपी बिहार
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