बिहार की राजनीति में इस समय जो भी दल सक्रिय है उनके प्रमुख की बात करे तो उनमें जीतन राम मांझी राजनीति के बेहद मंजे हुए खिलाड़ी हैं उनके हर बयान में कुछ ना कुछ संदेश रहता ही रहता है, वही वो बेहद चतुर भी हैं चालाक भी हैं लेकिन जाति वोट पर पकड़ नहीं होने के कारण दलित नेता की तरह सौदेबाजी नहीं कर पा रहे हैं यह जो छटपटाहट है वो उसी की निशानी है ।
हाल के दिनों में ये लगातार बयानों को लेकर सुर्खियों में हैं नीतीश कुमार मगध के विकास के लिए पैसे मुहैया कराये नहीं तो साथ छोड़ देगे ,बिहार का हर बड़ा व्यक्ति रात में शराब पीता है शराबबंदी कानून की वजह से गरीब लोग जेल जा रहे हैं गुजरात की तरह यहां भी शराबबंदी लागू होनी चाहिए और कल इन्होंने मुसहर समाज में हिंदुत्व को लेकर पैदा हुए आकर्षण पर बोलते बोलते अपने समाज के साथ साथ ब्राह्मण को भी अपशब्द कह दिया ।ब्राह्मण वाले बयान पर बवाल मचा हुआ है भाजपा और जदयू दोनों मांझी के बयान को लेकर असहज है हालांकि कल उन्होंने अपने बयान पर सफाई भी दे दिया है और कहा है कि मेरे बयान को अन्यथा ना ले मैंने ब्राह्मण समाज को गाली नहीं दिया है लेकिन दूसरे बयान के दौरान भी एक बार फिर वो बाते कह गये जो वो अपने समाज को कहना चाहते हैं।
उनका बयान बड़बोलापन नहीं है याद करिए जब वो मुख्यमंत्री थे उस समय उनका एक बयान पूरे देश में हंगामा खड़ा कर दिया था मांझी ने आरोप लगाया था कि मधुबनी के जिस मंदिर में उपचुनाव के दौरान उन्होंने पूजा-अर्चना की, उस मंदिर को बाद में न सिर्फ मंदिर बल्कि मूर्ति को भी धोया गया ।
मांझी के इस बयान के बाद मुकदमा भी दर्ज हुआ था और बाद जब बवाल मचा तो उन्होंने कहा कि उनको एक नेता ने कहा था लेकिन सवाल यह है कि मांझी इस तरह का बयान देते क्यों है मांझी जिस जाति से आते हैं वो आज भी बिहार का सबसे पिछड़ा ,अशिक्षित और भूमिहीन जाति है इस जाति से गरीब बिहार में दूसरी कोई जाति नहीं है परम्परागत रूप से ये जो काम करते आ रहे थे अब वो काम जेसीबी और ट्रैक्टर से होने लगा है जिस वजह से पीढ़ी दर पीढ़ी से जो मिट्टी काटने का काम करते आ रहे थे वो उससे छिन गया ।
बाद के दिनों में देशी शराब बनाने के काम में पूरा का पूरा मांझी जाति लग गया वो भी शराबबंदी के बाद प्रभावित है ऐसे में मांझी जाति के सामने जीवन मरण का सवाल है इसलिए जीतन राम मांझी शराबबंदी को लेकर लगातार सवाल खड़े कर करे है ताकि वो अपनी जाति के लोगों के बीच पैठ बना सके ।
वही हिन्दू देवी देवता और ब्राह्मण पर हमला भी उसी राजनीति का हिस्सा है क्यों कि अभी भी जीतन राम मांझी रामविलास पासवान या फिर जगजीवन राम जैसे दलित नेता की तरह अपनी जाति के नेता नहीं बन पाये हैं और यही वजह है कि जीतन राम मांझी इस तरह का बयान दे रहे हैं ताकि उनका समाज उनके करीब आये क्यों कि मगध और मिथिलांचल में बीस से अधिक विधानसभा क्षेत्र है ऐसा है जहां मांझी का वोट काफी मायने रखता है ।
लेकिन आज भी उसका वोट बिकाऊ वोट के रूप में जाना जाता है मांझी इसी को तोड़ना चाह रहे हैं और इस तरह के बयान के सहारे अपनी जाति में पैठ बनाना चाह रहे हैं उनकी यह कवायत मुख्यमंत्री बनने के समय से ही चल रहा है अभी भी इनकी कोशिश यही है कि पैसा जिससे भी ले लेकिन अन्य दलित वोटर की तरह मांझी वोटर मेरे साथ खड़े रहे ।
ये सारी कवायत उसी को ध्यान में रख कर मांझी आये दिन नैरेटिव बनाते रहते हैं क्यों कि आज भी मांझी को बिहार की राजनीति में जो हिस्सा मिल रहा है वो दलित की राजनीति में जो दलित के पहचान की जो राजनीति चल रही है उसके तहत मिल रहा है लेकिन मांझी रामविलास पासवान की तरह ही सत्ता में भागीदारी चाह रहे हैं और ये जो छटपटाहट उसी को लेकर हैं ।