यह कार्यशाला भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण पटना मंडल, बिहार पुराविद परिषद्, फेसेस पटना और बिहार म्यूजियम के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित किया गया। कार्यशाला में पटना विमेंस कॉलेज, नोट्रे डेम अकैडमी, इंटरनेशनल स्कूल, रेडियंट इंटरनेशनल स्कूल, केंद्रीय विद्यालय नंबर-2, आर्मी पब्लिक स्कूल दानापुर और उपेन्द्र महारथी शिल्प अनुसन्धान संस्थान से कुल 70 छात्रों ने मधुबनी पेंटिंग, मृण्मूर्ति कला, पटना कलम, मञ्जूषा कला और टिकुली कला का प्रशिक्षण प्राप्त किया। युवा कलाकार एवं प्रशिक्षकों ने छात्रों को उनके पसंद की कलाओं का प्रशिक्षण दिया। सभी प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र भी प्रदान किया गया।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद बिहार संग्रहालय के महानिदेशक एवं मुख्यमंत्री के सलाहकार अंजनीकुमार सिंह ने अपने उद्घाटन भाषण में आयोजकों को बधाई देते हुए कहा कि बिहार की पारंपरिक कला को सीखने और समझने के लिए इतनी संख्या में छात्रों के उत्साहपूर्ण भागीदारी से मैं अभिभूत हूँ। यह इस बात का प्रमाण है कि दुनिया चाहे जितनी बदल गई हो, बिहार के युवाओं की कला-प्रियता कम नहीं हुई है। हमारे युवाओं के हाथों में हमारी कलात्मक विरासत सुरक्षित है। उन्होंने कहा कि बिहार की पारंपरिक कलाएं केवल शौकिया ही नहीं बल्कि रोजगार का भी बहुत बड़ा साधन है। हमने सरकार की ओर से एक प्रशिक्षण संस्थान भी खोला है, जिसमें प्रशिक्षण देने के लिए प्रोफेसर की नियुक्त डिग्री के आधार पर नहीं बल्कि काम के आधार पर किया गया है।
विशिष्ट अतिथि के तौर पर बिहार के मूर्धन्य कलाकार और रेलवे स्टेशनों को मधुबनी कला से सजाने वाले भारत के प्रथम कलाकार राजेन्द्र प्रसाद मंजुल ने कहा कि बिहार की धरती परंपरागत कलाओं की विविध रंगों से सजी एक बड़े कैनवास की तरह है, जिसे समय का धूल कभी धूमिल नहीं कर सकता। युवा पीढ़ी में इन कलाओं के प्रति अनुराग पैदा करने के इस पावन कार्य की मैं भूरि-भूरि प्रशंसा करता हूँ।
कार्यशाला को संबोधित करते हुए बिहार पुराविद परिषद् के महासचिव डॉ. उमेश चन्द्र द्विवेदी ने कहा कि कि बिहार की भूमि कला-प्रसूता है। मानव सभ्यता के विकास की उषा काल में ही यहाँ कलाओं का उदय हुआ, जिसके पुरातात्विक प्रमाण शैल और गुफा चित्रों के रूप में आज भी हमारे सामने हैं। बिहार की कलाएं मानव जीवन की गहराइयों से उद्भूत हैं, अतः शाश्वत हैं। इन कलाओं के प्रति हमारा प्रेम ही इनके संरक्षण और विकास की गारंटी है। अतः आवश्यक है कि हम इन्हें अपनी नयी पीढ़ी को सौंपने का अथक प्रयास करें।
इस अवसर पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण पटना मंडल के सहायक अधीक्षक पुरातत्वविद डॉ. प्रसन्ना दीक्षित, फेसेस की महासचिव सुनिता भारती, फेसेस के संस्कृति सचिव शुभम सिंह, बिहार संग्रहालय के डिप्टी डायरेक्टर डॉ. सुनील कुमार झा सहित अन्य गणमान्य लोग भी उपस्थित थे।
उधर इस अवसर पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण,पटना सर्किल द्वारा नालंदा महाविहार पुरातात्विक स्थल (प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय) में भी छात्रों के बीच चित्रकला व भाषण प्रतियोगिता, विश्व धरोहर स्थलों की फोटो प्रदर्शनी और वृक्षारोपण कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
प्रति वर्ष 18 अप्रैल को विश्व विरासत दिवस मनाया जाता है । संयुक्त राष्ट्र संघ की संस्था यूनेस्को द्वारा घोषित इस दिवस को मनाये जाने का उद्देश्य अपनी विरासत के प्रति जन जागरूकता पैदा करना है । इस समय 1150 के करीब विश्व विरासत स्थल हैं इनमें से 40 भारत में स्थित हैं । विश्व विरासत स्थल वे स्थल या विरासत हैं, जिनके बारे में यह स्वीकार किया जाता है कि इनका निर्माण किसी देश, जाति या पंथ का न होकर संपूर्ण मानव जाति की उपलब्धि है और इस प्रकार उनका सार्वभौमिक मूल्य है और इसलिए उनके अस्तित्व को संरक्षित एवं सुरक्षित रखना संपूर्ण मानव जाति का कर्तव्य है ।