आज ही दिन 88 वर्ष पहले बिहार में अभी तक का सबसे बड़ा भूकंप हुआ था रिक्टर स्केल पर 8.4तीव्रता आंकी गयी थी ,आधिकारिक रिपोर्ट के मुताबिक भूकंप की वजह से दरभंगा में 1839 लोगों की मौत हुई,
तो मुजफ्फरपुर में 1583 लोगों की. मुंगेर में मरने वालों का आंकड़ा 1260 तक पहुंचा. बिहार में कुल मिला कर इस भूकंप की वजह से 7253 लोगों की मौत हुई थी साथ ही करीब 3400 वर्ग किलोमीटर का इलाका ऐसा रहा, जिस पर भूकंप का सबसे गंभीर असर पड़ा.
दरभंगा और मुंगेर शहर का नामोनिशान मिट गया था पटना में गंगा नदी के किनारे के सभी मकान या तो गिर गये या फिर क्षतिग्रस्त हुए. गांधी मैदान के नजदीक भी यही हाल रहा. चीफ जस्टिस से लेकर कमिश्नर और एसपी तक के आधिकारिक आवासों का बुरा हाल हुआ.
पीएमसीएच को भी नुकसान पहुंचा, रोगियों को अस्पताल के वार्डो से निकाल कर खुले मैदान में रखने की नौबत आयी. बिहार सचिवालय की बिल्डिंग को भी नुकसान पहुंचा, खास तौर पर टावर को. टावर का ऊपरी हिस्सा क्षतिग्रस्त हुआ और कुछ दिनों बाद गिर भी गया.
पटना से भी बूरा हाल दरभंगा का था जहां तत्कालीन दरभंगा जिले के राजनगर (अब जिला मधुबनी) शहर के लिए भूकंप अभिशाप रहा है. यह शहर भूकंप के केंद्र में शामिल होने के कारण इस प्राकृतिक आपदा से सबसे अधिक प्रभावित हुआ. वैसे तो राजनगर में भूकंप कई बार आया, लेकिन 15 जनवरी 1934 का भूकंप इस शहर के लिए विनाशकारी रहा था.
दोपहर के समय आये भूकंप ने राजनगर के रमेश्वर विलास पैलेस को चंद मिनटों में मलवे में तब्दील कर दिया वही कृषि विज्ञान के क्षेत्र में तब के सबसे महत्वपूर्ण संस्थान पूसा एग्रीक्लचरल इंस्टीट्यूट का कैंपस पूरी तरह तबाह हो गया.
रेलवे लाइन का हाल दरभंगा महराज के महल का हाल
इसी तरह राजनगर में मौजूद महाराजा दरभंगा का महल भी क्षतिग्रस्त हुआ. जहां तक सामान्य घरों का सवाल था, पूरे उत्तर बिहार में कम ही घर ऐसे बचे, जिसे किसी भी किस्म का नुकसान न हुआ हो.कांग्रेस से जुड़े देश के प्रमुख नेताओं के दौरे भी हुए. जवाहर लाल नेहरू ने करीब दस दिनों तक बिहार के भूकंपग्रस्त इलाकों का दौरा किया.
खुद महात्मा गांधी भी 11 मार्च को पटना पहुंचे. उसके बाद राजेंद्र बाबू के साथ वो लगातार भूकंपग्रस्त इलाकों में घूमते रहे, राहत कार्यो का जायजा लेते रहे. गांधी 20 मई तक बिहार में रहे. खास बात ये रही कि गांधी ने इस भूकंप को छुआछूत के खिलाफ भगवान के कहर के तौर पर गिनाया.