कश्मीर में बिना बात किए चालाकी से फौज के बल पर धारा 370 को हटा देना क्या काम आ रहा है ? 2 साल बाद भी लोहे की चादर से ढक दिए गए कश्मीर से कोई भी प्रकाश की किरण निकलती दिखाई दे रही है ? क्या कहीं लोकतंत्र सुगबुगाता दिख रहा है? क्या कोई नया नेतृत्व उभरा ? क्या पुराने नेताओं में से किसी का स्वर बदला ?
लोहे की चादर उठाओगे तो बस कराह या ललकार ही सुनाई देगी. यह जान लो कि गला दबाओगे तो आवाज बंद होगी गला छोड़ोगे तो वही आवाज और चिल्लाकर आएगी.
यह सोचा गया कि बंदूक के बल पर आतंकवाद को समाप्त करेंगे . लेकिन आज 2 वर्षों बाद भी हाल क्या है ? बंदूक का बल कश्मीर की जनता के लिए बंदूक का आतंक बन चुका है और आतंकवाद ने फिर से सर उठाया है. 2019 और 2020 में 50 से ज्यादा नागरिक मारे गए. इससे तो यही लगता है कि आतंकवाद ने कभी सिर झुकाया ही नहीं था
अभी पुंछ के इलाके में फौज और आतंकवादियों के बीच जो झड़प चल रही है उसमें 10 के लगभग फौजी मारे गए हैं . इनमे से दो तो प्रशिक्षित अफसर हैं. लेकिन एक भी आतंकवादी मारा या पकड़ा नहीं जा सका है. इसका अर्थ स्पष्ट है. आतंकवाद से भी लड़ना है तो उसका रास्ता, बन्दूक की नली नहीं है. इस रास्ते को अमेरिका समेत अनेक देश आज़मा चुके हैं.
ढोल चाहे जितना भी पीट लो वह अंततः फूटेगा ही. फूटने तक वह जो बजेगा वह अज्ञानी को ही सुहाना लगेगा. जो जानते हैं वो झूठ की ढम ढम से परेशान हैं.
जो लोग सोचते हैं कि चालाकी और चकमे की रणनीति से हम समस्याओं का हल कर लेंगे वे आज स्वयं समस्या बनकर कुर्सी पर बैठे हैं .
विद्रोही से संवाद और जनता की भागीदारी जैसी सीधी रणनीति के अलावा कुछ भी आजमा लो काम नहीं आएगा.