कन्हैया कुमार का कांग्रेस में जाना 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान ही तय हो गया था क्यों कि लोकसभा चुनाव के दौरान जिस तरीके से राजद,भाकपा माले और सीपीआई कन्हैया को हराने के लिए घेराबंदी कर रहा था ऐसे में कन्हैया के सामने कांग्रेस में जाने के अलावे कोई विकल्प नहीं बचा था।
1—बिहार में कन्हैया के सामने कांग्रेस से बेहतर कोई विकल्प नहीं था
2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस चाहती थी कि कन्हैया बेगूसराय से महागठबंधन के उम्मीदवार के रुप में चुनाव लड़े और इसके लिए अहमद पटेल कई बार लालू प्रसाद से बात किये इतना ही नहीं बीजेपी के विचारधार से असहमति रखने वाले कई बड़ी हस्ती लालू प्रसाद से जेल में जाकर मिले लेकिन राज्यसभा सांसद मनोज झा का वह तर्क भारी पड़ा जिसमें उनका मनना था कि कन्हैया सांसद बन गया तो फिर तेजस्वी के लिए खतरा हो सकता है इतना ही नहीं कन्हैया महागठबंधन का उम्मीदवार ना हो इसके लिए मनोज झा के साथ भाकपा माले और बिहार सीपीआई के नेता भी शामिल थे ।
2019 के लोकसभा चुनाव में राहुल और लालू प्रसाद के परिवार बीच पूरे लोकसभा चुनाव के दौरान जो दूरियां रही उसकी वजह कही ना कही कन्हैया भी रहा क्यों कि कांग्रेस का मानना था कि कन्हैया के महागठबंधन से बाहर रहने से मोदी के खिलाफ गोलबंदी कमजोर होगी और इसका प्रभाव भी देखने को मिल बिहार की चुनावी राजनीति में पहली बार लोकसभा चुनाव में राजद खाता तक नहीं खोल पाया।
2020 के बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान भी सीपीआई भले ही महागठबंधन का हिस्सा रहा लेकिन पूरे चुनाव के दौरान टिकट वितरण से लेकर प्रचार अभियान के तक कन्हैया को कैसे चुनावी प्रक्रिया से अलग रखे इसको लेकर मनोज झा के नेतृत्व में होटल मौर्या में वार रुम बना हुआ था इस खेल में भाकपा माले ,सीपीआई और कांग्रेस के भी कुछ सीनियर नेता शामिल थे ।
चुनाव प्रचार के दौरान तेजस्वी के बाद राजद के उम्मीदवारों ने चुनावी सभा कराने के लिए सबसे ज्यादा मांग कन्हैया का ही किया था 90 से अधिक ऐसे राजद के उम्मीदवार थे जो कन्हैया का सभा अपने क्षेत्र में करााना चाह रहा था लेकिन ऐसा नहीं हो सका ।
वही दूसरी और बीजेपी की पूरी टीम कन्हैया की पीछे पड़ी हुई है ऐसे में कन्हैया को राजनीति में बने रहने के लिए कांग्रेस से बेहतर विकल्प दूसरा कोई नहीं था क्यों कि बिहार में सीपीआई की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है वही राजद और बीजेपी के साथ खड़ी उन ताकतों के सामने सीपीआई आज की तारीख में खड़े होने की स्थिति में नहीं है ऐसे में कन्हैया के सामने कांग्रेस छोड़कर कोई दूसरा विकल्प नहीं था।
2—-कन्हैया के साथ आने से बिहार में कांग्रेस मजबूत होगी
आज कांग्रेस की स्थिति 2014 जैसी नहीं है साथ ही आज की तारीख में राहुल पप्पू वाली छवि से बाहर निकल चुका है वही राष्ट्रीय स्तर पर राहुल यह साबित करने में कामयाब रहा है कि वो नरेन्द्र मोदी से मजबूती के साथ लड़ सकता है फिर भी उन्हें ऐसे युवा चेहरे की जरुरत है जो अपने बल पर कुछ वोट जोड़ सके ।
इस लिहाज से कन्हैया बिहार में भी उपयोगी है खास करके बिहार के यूथ का एक हिस्सा और मुस्लिम अभी भी कन्हैया का दिवाना है वही कन्हैया के आने से बिहार कांग्रेस को एक ऐसा चेहरा मिल जायेंगा जो अपने बल पर पांच से दस हजार लोगों की सभा कर सकता है जिसको सूनने के लिए लोग घर से बाहर निकल सकते हैं ।
3–कन्हैया मीडिया ब्वॉय है
भले ही निगेटिव खबर ही क्यों ना चलाये लेकिन मीडिया को आज भी कन्हैया की जरुरत है कन्हैया के कांग्रेस में शामिल होने की खबर आज सभी चैनल का हेडलाइन है बिहार में सीपीआई दफ्तर में मीडिया सुबह से ही स्टोरी करने में लगी हुई है कि कैसे कन्हैया सीपीआई दफ्तर में आना बंद किया तो जिस कमरे में कन्हैया रहता था वहां से AC निकलवा लिया है।
निगेटिव स्टोरी ही क्यों ना चलाये आज से कन्हैया मीडिया में जगह लेता रहेगा ।