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बिहार सरकार के मंत्री शमीम अहमद के विरुद्घ पटना हाई कोर्ट में श्याम बिहारी प्रसाद द्वारा दायर चुनाव अर्जी पर सुनवाई जारी रहेगी

राज्य सरकार के मंत्री शमीम अहमद के विरुद्घ पटना हाई कोर्ट में श्याम बिहारी प्रसाद द्वारा दायर चुनाव अर्जी पर सुनवाई जारी रहेगी। जस्टिस नवनीत कुमार पांडेय श्याम बिहारी प्रसाद की चुनाव याचिका पर सुनवाई कर रहे है।

हाई कोर्ट ने शमीम अहमद द्वारा दायर अर्जी को खारिज कर दिया। इस याचिका को रद्द करने के लिए अंतरिम याचिका दायर किया गया था।अंतरिम याचिका में कहा गया था कि इस याचिका में याचिका दायर करने को लेकर कारण नहीं बताया गया।

चुनाव याचिका के जरिये चुनाव को मोहम्मद शमीम अहमद के निर्वाचन को रद्द करने का कोर्ट से माँग किया गया है।आवेदक की ओर से वरीय अधिवक्ता एस डी संजय ने कोर्ट को बताया कि नामांकन पत्र दाखिल करने के वक्त मंत्री शमीम अहमद के विरुद्ध दो आपराधिक मुकदमें लंबित थे, जिसकी जानकारी उन्होंने अपनी राजनैतिक दल यानी आरजेडी को दी है।

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इसमें रकसौल थाना कांड से जुड़े हुए मुकदमें में फाइनल फॉर्म दाखिल किया गया है, जिसे कोर्ट ने भी स्वीकार कर लिया। इस मामले में मुद्दों को तय करने पर सुनवाई आगामी 18 मई,2023 को की जाएगी।

पटना हाइकोर्ट में मोदी सरनेम मामलें पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी की याचिका पर सुनवाई 4 जुलाई ,2023 तक टली

पटना हाइकोर्ट में मोदी सरनेम मामलें पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी की याचिका पर सुनवाई 4 जुलाई ,2023 तक टली। जस्टिस संदीप कुमार ने इस मामलें पर सुनवाई करते हुए स्पष्ट किया कि निचली कोर्ट के आदेश पर फिलहाल रोक जारी रहेगी।
पिछली सुनवाई में कोर्ट ने निचली अदालत के आदेश पर 15 मई, 2023 तक का रोक लगाते हुए राहुल गांधी को राहत दे दी थी।

गौरतलब है कि पटना की निचली अदालत ने उन्हें 12 अप्रैल,2023 को मोदी सरनेम मामलें में की गई टिप्पणी पर कोर्ट में उपस्थित हो कर अपना पक्ष प्रस्तुत करने को कहा था।निचली अदालत के उस आदेश के विरुद्ध राहुल गांधी ने आदेश को रद्द करने के लिए पटना हाइकोर्ट में एक याचिका दायर की थी।

कोर्ट ने उनकी याचिका स्वीकार करते हुए उन्हें राहत दी थी।इसके अनुसार उन्हें पटना की निचली अदालत में फिलहाल उपस्थित नहीं होना पड़ेगा।

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गौरतलब है कि 2019 उन्होंने कर्नाटक में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मोदी सरनेम को ले कर टिप्पणी की थी।इसी मामलें में बिहार के वरिष्ठ बीजेपी नेता और राज्य के पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी ने पटना के सिविल कोर्ट में परिवाद पत्र दायर किया था।

इस मामलें में सूरत की कोर्ट ने उन्हें दो वर्षों की सजा सुनाई थी,जिस कारण उन्हें अपनी संसद सदस्यता खोनी पड़ी थी।

इस मामलें पर अगली सुनवाई 4 जुलाई, 2023 की जाएगी।

पटना हाईकोर्ट ने अंतिम मोहलत देते हुए कहा कि यदि 18 मई,2023 तक हलफनामा दायर नहीं किया गया, तो उन्हें स्वयं कोर्ट में उपस्थित होना होगा

पटना हाईकोर्ट ने अदालती आदेश के बावजूद जवाबी हलफ़नामा दायर नहीं करने के मामले को काफी गंभीरता से लिया।जस्टिस राजीव रंजन प्रसाद ने इस पर सख्त रुख अपनाते हुए परिवहन विभाग के सचिव को अंतिम मोहलत देते हुए कहा कि यदि 18 मई,2023 तक हलफनामा दायर नहीं किया गया, तो उन्हें स्वयं कोर्ट में उपस्थित होना होगा ।

कोर्ट ने सुनीता देवी की याचिका पर सुनवाई करते हुए ये आदेश दिया।याचिकाकर्ता ने राज्य सरकार के उस अधिसूचना को चुनौती दी थी, जिसके अंतर्गत राज्य के परिवहन विभाग ने मोटर वाहन अधिनियम-1988 के प्रावधान के आलोक में सार्वजनिक सुरक्षा और सुविधा हेतु 15 वर्ष से अधिक पुराने सभी कॉमर्शियल वाहनों की आवाजाही पर पटना नगर निगम, दानपुर, खगौल ऐवं फुलवारी नगर परिषद में तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी थी ।

कोर्ट ने 20 सितंबर 2022 को अपने आदेश से इस मामले में जवाबी हलफनामा परिवहन सचिव के मांगा था।

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सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वरीय अधिवक्ता सियाराम शाही ने कोर्ट को बताया कि कोर्ट ने पिछले आदेश के अनुपालन में परिवहन सचिव द्वारा अभी तक जवाबी हलफनामा दायर नहीं किया है ।

कोर्ट ने सरकारी अधिवक्ता प्रशांत प्रताप के अनुरोध पर अंतिम मोहलत देते हुए परिवहन सचिव को जवाबी हलफ़नामा दायर करने का निर्देश दिया।साथ ही कोर्ट ने कहा कि यदि अगली सुनवाई तक आदेश का अनुपालन नहीं किया गया,तो परिवहन सचिव को स्वयं कोर्ट में उपस्थित होकर स्थिति स्पष्ट करना होगा।

इस मामले पर अगली सुनवाई 18 मई,2023 को होगी ।

पटना हाइकोर्ट ने चंदन कुमार यादव द्वारा औषधि निरीक्षक के पद पर नियुक्ति हेतु BPSC द्वारा जारी विज्ञापन मे अनुभव संबंधी प्रावधान को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई की

पटना हाइकोर्ट ने चंदन कुमार यादव द्वारा औषधि निरीक्षक के पद पर नियुक्ति हेतु बी पी एस सी द्वारा जारी विज्ञापन मे अनुभव संबंधी प्रावधान को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई की।जस्टिस राजीव रंजन प्रसाद ने इस याचिका पर सुनवाई की।

याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि विज्ञापन में अनुभव से जुडा प्रावधान अनिवार्य योग्यता नही है। इसके लिए सरकार द्वारा वर्ष 2014 मे नियमावली बनाई गई थी,जिसमे औषधि एवं प्रसाधन नियमावली 1945 के नियम 49 मे प्रावधानित शैक्षणिक अर्हता को लागू करने की बात कही गई थी, न कि अनुभव को।

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वही दूसरी इलाहाबाद हाईकोर्ट के फुल बेंच ने कुलदीप सिंह बनाम उत्तर प्रदेश सरकार के मामले में यह तय किया है कि औषधि एवं प्रसाधन नियमावली 1945 की पारा 49 के अनुसार ये अनुभव औषधि निरीक्षक के पद हेतु अनिवार्य योग्यता नही है।

कोर्ट ने याचिकाकर्ता की याचिका स्वीकार किए जाने का निर्देश दिया गया। परीक्षा 20 जून,2023 से होनी है।कोर्ट ने बी पी एस सी को जवाब देने का निर्देश दिया गया। मामले की अगली सुनवाई 19 जून,2023 को होगी।

पटना हाइकोर्ट में बिहार राज्य में मानसिक स्वास्थ्य और चिकित्सा सुविधाओं से सम्बंधित मामलें पर सुनवाई 23 जून,2023 को होगी

पटना हाइकोर्ट में बिहार राज्य में मानसिक स्वास्थ्य और चिकित्सा सुविधाओं से सम्बंधित मामलें पर सुनवाई 23 जून,2023 को होगी। चीफ जस्टिस के वी चन्द्रन की खंडपीठ आकांक्षा मालवीय की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही है।

राज्य सरकार ने रूल्स बनाने के कोर्ट से समय की याचना की, जिसे कोर्ट ने स्वीकार करते हुए 23 जून,2023 की तिथि सुनवाई के लिए निर्धारित की।

पूर्व में हाईकोर्ट ने सुनवाई करते हुए राज्य सरकार के स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव को अबतक की गई कार्रवाई का ब्यौरा देने के लिए दिसंबर,2022 तक का मोहलत दिया था।

याचिका पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता अधिवक्ता आकांक्षा मालवीय ने कोर्ट को बताया था कि कोर्ट ने जो भी आदेश दिया,उस पर राज्य सरकार के द्वारा कोई प्रभावी और ठोस कार्रवाई अब तक नहीं किया गया है।

कोर्ट ने पिछली सुनवाई में इस जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए याचिकाकर्ता को भी पूरी जानकारी देने को कहा था। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को राज्य में मानसिक स्वास्थ्य सेवा में क्या क्या कमियों के सम्बन्ध में ब्यौरा देने को कहा था।

साथ ही कोर्ट ने इसमें सुधारने के उपाय पर सलाह देने को कहा था।याचिकाकर्ता की अधिवक्ता आकांक्षा मालवीय ने बताया था कि नेशनल मेन्टल हेल्थ प्रोग्राम ही के अंतर्गत राज्य के 38 जिलों में डिस्ट्रिक्ट मेन्टल हेल्थ प्रोग्राम चल रहा हैं।लेकिन इसमें स्टाफ की संख्या नाकाफी ही है। हर जिले में सात सात स्टाफ होने चाहिए, जबकि इनकी संख्या नाकाफी है।

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पूर्व की सुनवाई में उन्होंने बताया था कि राज्य सरकार का दायित्व है कि वह मेन्टल हेल्थ केयर एक्ट के तहत कानून बनाए।साथ ही इसके लिए मूलभूत सुविधाएं और फंड उपलब्ध कराए।लेकिन अबतक कोई ठोस और प्रभावी कदम नहीं उठाया गया है।

कोर्ट को ये भी बताया गया था कि सेन्टर ऑफ एक्सलेंस के तहत हर राज्य में मानसिक रोग के अध्ययन और ईलाज के लिए कॉलेज है।लेकिन बिहार ही एक ऐसा राज्य हैं,जहां मानसिक रोग के अध्ययन और ईलाज के लिए कोई कालेज नहीं है।जबकि प्रावधानों के तहत राज्य सरकार का ये दायित्व हैं।

पिछली सुनवाईयों में कोर्ट को बताया गया था कि केंद्र सरकार की ओर से दिए जाने वाले फंड में कमी आयी है,क्योंकि फंड का राज्य द्वारा पूरा उपयोग नहीं हो रहा था।पहले की सुनवाई में याचिकाकर्ता की अधिवक्ता आकांक्षा मालवीय ने कोर्ट को बताया कि बिहार की आबादी लगभग बारह करोड़ हैं।उसकी तुलना में राज्य में मानसिक स्वास्थ्य के लिए बुनियादी सुविधाएँ नहीं के बराबर है।

इस मामलें पर अगली सुनवाई 23 जून,2023 को होगी।

पटना हाइकोर्ट ने बिहार में बगैर निबंधन कराए कोचिंग संस्थान खोलने, मनमाने ढंग से छात्रों से फीस बसूलने और बुनियादी सुविधाओं के नहीं होने के मामलें पर सुनवाई की

पटना हाइकोर्ट ने राज्य में बगैर निबंधन कराए कोचिंग संस्थान खोलने,मनमाने ढंग से छात्रों से फीस बसूलने और बुनियादी सुविधाओं के नहीं होने के मामलें पर सुनवाई की। वेटरन फोरम की जनहित याचिका पर चीफ जस्टिस के वी चन्द्रन की खंडपीठ ने सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को चार सप्ताह में जवाब देने का निर्देश दिया है।इस मामलें पर अगली सुनवाई 4 जुलाई,2023 को होगी।

याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता दीनू कुमार ने कोर्ट को बताया कि राज्य सरकार ने बिहार कोचिंग इंस्टिट्यूट(कन्ट्रोल एंड रेगुलेशन)एक्ट,2010 के section 9 के अंतर्गत नियम नहीं बने है।नियमों के बिना ही मनमाने तरीके से कुकुरमुत्ते की तरह पटना समेत राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में कोचिंग इंस्टिट्यूट खुल गए है।

कोर्ट ने इस तरह के जनहित याचिका की सराहना करते हुए आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि एक्ट 2010 में बनने के वाबजूद अबतक राज्य सरकार ने इस मामलें नियम क्यो नहीं बनायें।

उन्होंने कोर्ट को बताया बिना निबंधन के इस तरह के कोचिंग इंस्टिट्यूट खुल गए हैं।इनमें तो दावे बड़े बड़े किये जाते है,लेकिन इंस्टिट्यूट्स में न तो स्तरीय अध्यापन होता है और न ही योग्य शिक्षक होते है।

इन कोचिंग इंस्टिट्यूट में पढ़ाई का स्तर भी सही नहीं है।कोचिंग के नाम पर ये कोचिंग इंस्टिट्यूट अभिभावकओ व छात्रों से मनमाना फीस बसूलते है।

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अधिवक्ता दीनू कुमार ने कोर्ट को बताया कि इन कोचिंग इंस्टिट्यूट में न तो कोई पाठ्यक्रम होता है और न ही ये पाठ्यक्रम पूरा करने की जिम्मेदारी लेते है।इन्होने कोर्ट को बताया कि अधिकांश कोचिंग इंस्टिट्यूट एक या दो रूम के कमरे में संचालित किये जाते है।छात्र व छात्राओं के लिए बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध नहीं होती।

उन्होंने बताया कि इन कोचिंग इंस्टिट्यूट में न तो शुद्ध पेय जल की व्यवस्था है और न शौचालयों की।विशेषकर छात्राओं के लिए इन सुविधाओं का अभाव होता है।

उन्होंने कहा कि इन कोचिंग इंस्टिट्यूट को नियमानुसार और निबंधन होने के बाद ही इन्हें खोलने की अनुमति दी जानी चाहिए।साथ ही इन पर राज्य सरकार को अपनी निगरानी रखनी होगी।

याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता दीनू कुमार और रितिका रानी और राज्य सरकार की ओर से अपर महाधिवक्ता पी के वर्मा ने कोर्ट के समक्ष तथ्यों को प्रस्तुत किया।इस मामलें पर अगली सुनवाई 4जुलाई,2023 को होगी।

पटना हाइकोर्ट ने जबरन घर खाली कराने के मामले पर एसएसपी,पटना सहित बुद्धा कॉलोनी के थानेदार को लगाई कड़ी फटकार लगायी

पटना हाइकोर्ट ने जबरन घर खाली कराने के मामले पर एसएसपी,पटना सहित बुद्धा कॉलोनी के थानेदार को लगाई कड़ी फटकार लगायी। कोर्ट ने कहा कि आखिर किस कानून के तहत पुलिस घर खाली कराई।यही नहीं ,उस घर में रह रही 25 लड़कियों को बाहर कर दिया गया।

जस्टिस मोहित शाह ने पटना डीएम और सदर एसडीएम को इस मामले में कानूनी कार्रवाई करने का आदेश दिया।साथ ही किरायेदार को घर पर कब्जा दिलाने के मामले पर कार्रवाई करने का आदेश दिया। कोर्ट ने रेणु कुमारी सिंह की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई की।

आवेदिका के वकील शिव प्रताप ने कोर्ट को बताया कि गत सोमवार को सुंबह सुबह मकान मालिक पुलिस एव स्थानीय असामाजिक तत्वों के मिल कर जबरन किराये के घर से बेदखल कर दिया गया।

उनका कहना था कि इस घर में लड़कियों का छात्रावास था।कोर्ट ने पटना के एसएसपी सहित बुद्धा कॉलोनी के थानेदार को तलब किया।

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कोर्ट आदेश के बाद पटना के एसएसपी और बुद्धा कॉलोनी के थानेदार कोर्ट में हाजिर हो कर बताया कि आवेदिका के शिकायत पर प्राथमिकी दर्ज की गई हैं।उनका कहना था कि जांच में जबरन बेदखल करने की बात सामने आई हैं।

जांच रिपोर्ट पटना सदर एसडीएम को भेज दी गई हैं।अब डीएम और एसडीएम ही घर का कब्जा दिलाने की कार्रवाई कर सकते हैं।कोर्ट ने पटना डीएम और एसडीएम को तलब किया।आला अधिकारी कोर्ट में उपस्थित हुये।

कोर्ट ने सोमवार तक कब्जा दिलाने के बारे में कानून के तहत कार्रवाई करने का आदेश दिया।साथ ही मामले पर अगली सुनवाई की तारीख 18 मई,2023 को तय किया गया है।

पटना हाईकोर्ट ने बिहार के सभी डीएम समेत केंद्र सरकार की एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया को निर्देश दिया है कि बिहार में जितने भी हवाई पट्टियां, पुराने हवाई अड्डे और सिविल एनक्लेव हैं, उन सबों के भूमि को अतिक्रमण मुक्त किया जाए

पटना हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय से राज्य के सभी डीएम समेत केंद्र सरकार की एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया को निर्देश दिया है कि बिहार में जितने भी हवाई पट्टियां, पुराने हवाई अड्डे और सिविल एनक्लेव हैं, उन सबों के भूमि को अतिक्रमण मुक्त करने का निर्देश दिया।साथ ही यह सुनिश्चित करें कि वे भविष्य में भी उपयोग आने हेतु सुरक्षित और संरक्षित रहें।

चीफ जस्टिस के.वी विनोद चंद्रन एवं जस्टिस मधुरेश प्रसाद की खंडपीठ ने निखिल सिंह सहित अन्य 30 जनहित याचिकाकर्ताओं की अर्जियों को निष्पादित करते हुए यह निर्णय सुनाया।

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कोर्ट ने इस फैसले में यह भी स्पष्ट किया की राज्य में हवाई अड्डों का निर्माण या विकास हो या नही,यह एक नीतिगत मामला है।इसमें केंद्र और राज्य सरकार को निर्णय लेना है, न कि हाई कोर्ट को।

पटना हाइकोर्ट ने राज्य के पूर्व कैबिनेट मंत्री शंकर प्रसाद टेकरिवाल के निधन के 10 साल बाद सहरसा पुलिस ने उन्हें मिले सरकारी गार्ड और अंगरक्षक के एवज में 18 लाख रुपये से अधिक की राशि नीलाम पत्र के जरिये वसूलने की कार्रवाई पर रोक लगा दिया

पटना हाइकोर्ट ने राज्य के पूर्व कैबिनेट मंत्री शंकर प्रसाद टेकरिवाल के निधन के 10 साल बाद सहरसा पुलिस ने उन्हें मिले सरकारी गार्ड और अंगरक्षक के एवज में 18 लाख रुपये से अधिक की राशि नीलाम पत्र के जरिये वसूलने की कार्रवाई पर रोक लगा दिया।जस्टिस राजीव रंजन प्रसाद ने इस मामलें पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार से जवाब तलब किया है।

कोर्ट ने प्रभाकर टेकरीवाल की रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए ये आदेश दिया।

याचिकाकर्ता के तरफ से वरीय अधिवक्ता रामाकांत शर्मा ने कोर्ट को बताया की यह मामला सरकारी अफसरशाही के मनमानापन दर्शाता है। एक दिवंगत कैबिनेट मिनिस्टर जिन्हें सरकार की तरफ से अंगरक्षक और हाउस गार्ड मिला , उसके बदले सरकारी राशि वसूलने की कार्रवाई एक मजाक नहीं बल्कि सरकारी अफसरों द्वारा निर्दोष नागरिकों से जबरन पैसे वसूलने अथवा उनकी संपत्ति को लूटने की कार्रवाई है ।

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शर्मा ने कोर्ट को बताया कि शंकर प्रसाद टेकारिवाल 1990 से लेकर फरवरी 2005 तक सहरसा से लगातार विधायक रहे और 12 वर्षों तक वित्त, खनन एवं अन्य विभाग के मंत्री रहे उनके मंत्रीमंडल में रहने के समय राज्य सरकार ने उन्हें तीन अंगरक्षक और हाउस गार्ड दिया था।

2002 में रावड़ी सरकार से उन्होंने इस्तीफा देने के बाद जब वह सहरसा अपने गृह क्षेत्र गए ,तो उन्होंने अपने हाउस गार्ड और दो अंग रक्षकों को सरकार को लौटा दिया और विधायकों को मिलने वाले एक बॉडीगार्ड को भी उन्होंने, फरवरी 2005 में विधायकी कार्य काल पूरा होने पर वापस भेज दिया था।

उनका निधन 2012 में हुआ और उसके 10 साल बाद सहरसा के तत्कालीन एसपी ने मनमाने तरीके से स्व. टेकरीवाल को1998 से 2005 तक दिए गए एक अंगरक्षक मुहैय्या कराने के लिए लगभग 18 लाख रुपये की राशि बकाया बताते हुए स्व शंकर प्रसाद टेकरीवाल के बेटे प्रभाकर टेकरीवाल से वसूलने की कार्रवाई नीलाम वाद के जरिये शुरू किया।

जस्टिस रंजन ने हैरानी जताते हुए पूरी नीलाम वाद पर रोक लगाने का आदेश दिया।मामलें पर आगे सुनवाई होगी।

बिहार सरकार ने पटना हाइकोर्ट के उस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, जिसमें कोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा राज्य में जातियों की गणना एवं आर्थिक सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर शीघ्र सुनवाई करने सम्बन्धी याचिका को रद्द कर दिया था

राज्य सरकार ने पटना हाइकोर्ट के उस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी,जिसमें कोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा राज्य में जातियों की गणना एवं आर्थिक सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर शीघ्र सुनवाई करने सम्बन्धी याचिका को रद्द कर दिया था।साथ ही राज्य सरकार ने पटना हाइकोर्ट द्वारा 4 मई, 2023को पारित अंतरिम आदेश को भी चुनौती दी गई है।

चीफ जस्टिस के वी चन्द्रन की खंडपीठ ने राज्य सरकार के 3 जुलाई,2023 के पूर्व सुनवाई करने की याचिका को कोर्ट ने 9मई,2023 को सुनवाई करने के बाद खारिज कर दिया था।

इस आदेश विरुद्ध को राज्य सरकार ने एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर कर की है।पटना हाइकोर्ट ने इन मामलों पर सुनवाई की तिथि 3 जुलाई,2023 ही रखा। 9 मई, 2023 को सुनवाई करने के बाद हाईकोर्ट ने इन मामलों पर सुनवाई की तिथि 3 जुलाई,2023 ही निश्चित किया था।

गौरतलब कि पहले 4मई,2023 को कोर्ट ने अंतरिम आदेश देते हुए जातीय जनगणना पर रोक लगा दी थी।चीफ जस्टिस के वी चन्द्रन की खंडपीठ ने अंतरिम आदेश पारित करते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि राज्य सरकार इस दौरान इक्कठी की गई आंकड़ों को शेयर व उपयोग फिलहाल नहीं करेगी।

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पटना हाइकोर्ट में राज्य सरकार द्वारा दायर याचिका में ये कहा गया था कि क्योंकि पटना हाइकोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि राज्य सरकार के पास जातीय जनगणना कराने का वैधानिक अधिकार नहीं है,इसीलिए इन याचिकाओं पर 3 जुलाई,2023 को सुनवाई करने का कोई कारण नहीं है।

साथ ही कार्यपालिका के पास जातीय जनगणना कराने का क्षेत्राधिकार नहीं है।इसे कोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में स्पष्ट कर दिया था।

कोर्ट ने ये भी कहा था कि जातीय जनगणना से जनता की निजता का उल्लंघन होता है।इस सम्बन्ध में विधायिका द्वारा कोई कानून भी नहीं बनाया गया है।

कोर्ट ने अपने 4 मई, 2023 के अंतरिम आदेश में जो निर्णय दिया है,उसमें सभी मुद्दों पर अंतिम निर्णय दिया गया।कोर्ट ने इन याचिकाओं में उठाए गए मुद्दों पर अंतिम रूप से निर्णय दे दिया है।

राज्य सरकार ने अपनी याचिका में कहा था कि इस सर्वेक्षण का मुख्य उद्देश्य आम लोगों के लिए कल्याणकारी और विकास की योजना तैयार है।इसका किसी अन्य कार्य के लिए कोई उद्देश्य नहीं है।

पटना हाइकोर्ट में पटना-गया-डोभी राष्ट्रीय राजमार्ग के निर्माण के मामलें पर सुनवाई गर्मी की छुट्टी बाद की जाएगी

पटना हाइकोर्ट में पटना गया डोभी राष्ट्रीय राजमार्ग के निर्माण के मामलें पर सुनवाई गर्मी की छुट्टी बाद की जाएगी।। चीफ जस्टिस के वी चंद्रन की खंडपीठ प्रतिज्ञा नामक संस्था द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही है।

पिछली सुनवाई में कोर्ट ने एन एच ए आई के क्षेत्रीय अधिकारी को हलफनामा दायर कर प्रगति रिपोर्ट देने का निर्देश दिया था। कोर्ट ने निर्माण कम्पनियों को बताने को कहा था कि निर्माण कार्य कब तक पूरा हो जाएगा।

पूर्व की सुनवाई में भी कोर्ट ने केंद्र,राज्य सरकार,एनएचएआई और अन्य सम्बंधित पक्षों को हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया था।

पटना गया डोभी राष्ट्रीय राजमार्ग के निर्माण कार्य कर रही कम्पनियों ने कोर्ट को बताया था कि 31मार्च,2023 तक फेज एक का अधिकांश कार्य पूरा कर लिया जाएगा।साथ ही इस राजमार्ग के निर्माण कार्य को लगभग 30 जून, 2023 तक पूरा कर लिए जाने का अश्वासन दिया था।

याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता मनीष कुमार ने कोर्ट को बताया था कि जिस गति से काम किया जा रहा है, ऐसे में तय समय सीमा में निर्माण कार्य पूरा होना कठिन है।उन्होंने बताया था कि तय समय सीमा में कार्य पूरा करने के लिए संसाधनों और कार्य करने वाले लोगों की संख्या बढ़ाने की जरूरत होगी।

इससे पूर्व अधिवक्ताओं की टीम ने खंडपीठ के समक्ष पटना गया डोभी एनएच का निरीक्षण कर कोर्ट में रिपोर्ट प्रस्तुत किया था।पूर्व की सुनवाई में कोर्ट ने वकीलों की टीम को इस राजमार्ग के निर्माण कार्य का निरीक्षण कर रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा था।

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पिछली सुनवाई में भी राष्ट्रीय राजमार्ग का निर्माण करने वाली कंपनी ने इसका निर्माण कार्य 30 जून,2023 तक पूरा करने का अश्वासन कोर्ट को दिया था।साथ ही कोर्ट ने इस फेज के निर्माण में बाधा उत्पन्न होने वाले सभी अवरोधों को तत्काल हटाने का निर्देश सम्बंधित अधिकारियों को दिया था।

कोर्ट को पटना गया डोभी राष्ट्रीय राजमार्ग के फेज दो व तीन के निर्माण में लगी निर्माण कंपनी ने बताया था कि पटना गया डोभी एनएच के निर्माण में कई जगह बाधा उत्पन्न किया जा रहा है।

इस मामलें पर अगली सुनवाई गर्मी की छुट्टी के बाद की जाएगी।

पटना हाइकोर्ट ने राज्य में लोकायुक्त व अन्य सदस्यों के रिक्त पदों को भरने के दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की

पटना हाइकोर्ट ने राज्य में लोकायुक्त व अन्य सदस्यों के रिक्त पदों को भरने के दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की।विकास चन्द्र ऊर्फ गुड्डू बाबा की जनहित याचिका पर चीफ जस्टिस के वी चन्द्रन की खंडपीठ ने सुनवाई की।

राज्य सरकार की ओर से एडवोकेट जनरल पी के शाही ने कोर्ट को बताया कि राज्य में लोकायुक्त व अन्य सदस्यों के रिक्त पदों को भरे जाने की प्रक्रिया शुरू हो गई है।उन्होंने कहा कि शीघ्र ही इन पदों पर नियुक्ति कर ली जाएगी।

पिछली सुनवाई में याचिकाकर्ता विकास चंद्र ने कोर्ट को बताया था कि लोकायुक्त व सदस्यों के पद रिक्त होने के कारण लोकायुक्त कार्यालय में सुनवाई नहीं हो रही है।इससे आम आदमी को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।

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उन्होंने कोर्ट को बताया था कि लोकायुक्त का पद 13 फरवरी,2022और दो सदस्यों का पद 17 मई,2021 से रिक्त पड़े है।

उन्होंने कोर्ट को बताया था कि राज्य सरकार द्वारा इन रिक्त पदों को इतने दिनों तक नहीं भरा जाना उनकी उपेक्षापूर्ण रवैया दिखाता है।प्रावधानों के अनुसार इन पदों को राज्य सरकार द्वारा शीघ्र भरा जाना चाहिए।

कोर्ट ने एडवोकेट जनरल पी के शाही के दिए गए आश्वासन के आलोक में इस जनहित याचिका को निष्पादित कर दिया।

बिहार सरकार की याचिका खारिज: पटना हाइकोर्ट ने बिहार सरकार द्वारा राज्य में जातियों की गणना एवं आर्थिक सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 3 जुलाई,2023 के पूर्व ही सुनवाई करने के दायर याचिका को खारिज कर दिया

पटना हाइकोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा राज्य में जातियों की गणना एवं आर्थिक सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 3 जुलाई,2023 के पूर्व ही कोर्ट द्वारा सुनवाई करने के लिए दायर याचिका को खारिज कर दिया। चीफ जस्टिस के वी चन्द्रन की खंडपीठ ने इन मामलों पर सुनवाई की तिथि 3 जुलाई,2023 ही रखा।पूर्व में हाईकोर्ट ने इन मामलों पर सुनवाई की तिथि 3 जुलाई,2023 ही रखा था।

गौरतलब कि पहले 4मई,2023 को कोर्ट ने अंतरिम आदेश देते हुए जातीय जनगणना पर रोक लगा दी थी।

चीफ जस्टिस के वी चन्द्रन की खंडपीठ ने अंतरिम आदेश पारित करते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि राज्य सरकार इस दौरान इक्कठी की गई आंकड़ों को शेयर व उपयोग फिलहाल नहीं करेगी।

राज्य सरकार द्वारा दायर याचिका में ये कहा गया है कि क्योंकि पटना हाइकोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि राज्य सरकार के पास जातीय जनगणना कराने का वैधानिक अधिकार नहीं है,इसीलिए इन याचिकाओं पर 3 जुलाई,2023 को सुनवाई करने का कोई कारण नहीं है।

कार्यपालिका के पास जातीय जनगणना कराने का क्षेत्राधिकार नहीं है।इसे कोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में स्पष्ट कर दिया है।

कोर्ट ने ये भी कहा कि जातीय जनगणना से जनता की निजता का उल्लंघन होता है।इस सम्बन्ध में विधायिका द्वारा कोई कानून भी नहीं बनाया गया है।

कोर्ट ने अपने 4 मई, 2023 के अंतरिम आदेश में जो निर्णय दिया है,उसमें सभी मुद्दों पर अंतिम निर्णय दिया गया।कोर्ट ने इन याचिकाओं में उठाए गए मुद्दों पर अंतिम रूप से निर्णय दे दिया है।

राज्य सरकार ने अपनी याचिका में कहा था कि इन जनहित याचिकाओं में उठाए गए मुद्दों पर कोर्ट ने अपना निर्णय अंतिम रूप से दे दिया है।इस कारण इन याचिकाओं की सुनवाई 3 जुलाई,2023 के पूर्व ही करके इनका निष्पादन कर दिया जाए।लेकिन कोर्ट ने राज्य सरकार की इस याचिका को रद्द करते हुए सुनवाई की तिथि 3मई, 2023 ही निश्चित किया है।

याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता दीनू कुमार, रितिका रानी, अभिनव श्रीवास्तव और राज्य सरकार की ओर से एडवोकेट जनरल पी के शाही ने पक्षों को कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किया

बिहार में जातियों की गणना एवं आर्थिक सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर पटना हाइकोर्ट में 9 मई, 2023 को सुनवाई होगी

पटना हाइकोर्ट में राज्य सरकार द्वारा राज्य में जातियों की गणना एवं आर्थिक सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 3 जुलाई,2023 के पूर्व ही कोर्ट द्वारा सुनवाई करने के लिए याचिका दायर की गई थी। पटना हाईकोर्ट इन मामलों कल 9 मई, 2023 को सुनवाई करेगी। गौरतलब कि पहले कोर्ट ने अंतरिम आदेश देते हुए जातीय जनगणना पर रोक लगा दी थी।

चीफ जस्टिस के वी चन्द्रन की खंडपीठ ने अंतरिम आदेश पारित करते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि राज्य सरकार इस दौरान इक्कठी की गई आंकड़ों को शेयर व उपयोग फिलहाल नहीं करेगी।

राज्य सरकार द्वारा दायर याचिका में ये कहा गया है कि क्योंकि पटना हाइकोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि राज्य सरकार के पास जातीय जनगणना कराने का वैधानिक अधिकार नहीं है,इसीलिए इन याचिकाओं पर 3 जुलाई,2023 को सुनवाई करने का कोई कारण नहीं है।

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कार्यपालिका के पास जातीय जनगणना कराने का क्षेत्राधिकार नहीं है।इसे कोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में स्पष्ट कर दिया है।

कोर्ट ने ये भी कहा कि जातीय जनगणना से जनता की निजता का उल्लंघन होता है।इस सम्बन्ध में विधायिका द्वारा कोई कानून भी नहीं बनाया गया है।

कोर्ट ने अपने 4 मई, 2023 के अंतरिम आदेश में जो निर्णय दिया है,उसमें सभी मुद्दों पर अंतिम निर्णय दिया गया।कोर्ट ने इन याचिकाओं में उठाए गए मुद्दों पर अंतिम रूप से निर्णय दे दिया है।

राज्य सरकार ने अपनी याचिका में कहा है कि इन जनहित याचिकाओं में उठाए गए मुद्दों पर कोर्ट ने अपना निर्णय अंतिम रूप से दे दिया है।इस कारण इन याचिकाओं की सुनवाई 3 जुलाई,2023 के पूर्व ही करके इनका निष्पादन कर दिया जाए।

पटना हाइकोर्ट ने एससी/ एसटी छात्रवृत्ति घोटाले के आरोपी आईएएस एस . एम. राजू की नियमित जमानत याचिका पर सुनवाई पूरी कर आदेश सुरक्षित रखा

पटना हाइकोर्ट ने एससी/ एसटी छात्रवृत्ति घोटाले के आरोपी आईएएस एस . एम. राजू की नियमित जमानत याचिका पर सुनवाई पूरी कर आदेश सुरक्षित कर लिया है। राजेश कुमार वर्मा ने राजू की जमानत याचिका पर सभी पक्षों को सुनने के बाद निर्णय सुरक्षित रखा।

गौरतलब है कि 2017 में निगरानी ब्यूरो द्वारा दर्ज हुए इस घोटाले के मुकदमे में राजू 20 जनवरी 2023 से जेल में बंद है।राजू के वकील आशीष गिरी ने कोर्ट को बताया कि इस मामले के मुख्य आरोपी एवं पूर्व आईएएस परशुराम कड़ा रमैया को जमानत मिल चुकी है। याचिकाकर्ता भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी है और उन्होंने अपने समय में इस छात्रवृत्ति घोटाले का उजागर भी किया।

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वही निगरानी ब्यूरो की तरफ से एडवोकेट अरविंद कुमार ने जमानत याचिका का विरोध करते हुए कोर्ट को बताया कि जब राजू एससी/ एसटी कल्याण विभाग में थे, तो उनके ही समय में कई ऐसे छात्र छात्राओं का विवरण केस डायरी में मिला है ,जो दाखिला तो लिए लेकिन एक भी दिन बिना क्लास किए परीक्षा दी है।
फिर भी उन्हे छात्रवृत्ति की राशि का भुगतान हुआ है।उनके विरुद्ध घोटाले में शामिल होने के ठोस के सबूत है।

पटना हाइकोर्ट ने बिहार कारागार नियमावली में की गई संशोधन को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को 12 मई, 2023 तक जबाब दायर करने का निर्देश दिया है

पटना हाइकोर्ट ने बिहार कारागार नियमावली में की गई संशोधन को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को 12 मई, 2023 तक जबाब दायर करने का निर्देश दिया हैं। अनुपम कुमार सुमन ओर से दायर याचिका पर चीफ जस्टिस के वी चन्द्रन विनोद चन्द्रन की खंडपीठ ने सुनवाई की।

कोर्ट को बताया गया कि
राज्य सरकार ने गत 10 अप्रैल,2023 को बिहार कारागार नियमावली, 2012 के नियम 481(i)(क) में संशोधन करते हुए “ड्यूटी पर तैनात लोक सेवक की हत्या” शब्द को हटाने के लिए संशोधन कर दिया।इस कारण गोपालगंज डीएम हत्या कांड के दोषी पूर्व सांसद आनंद मोहन सहित 26 सजायाफ्ता बंदियों को जेल से छोड़ दिया गया।

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उन्होंने बिहार कारागार नियमावली के नियम 481(i)(क) में किए गए संशोधन को गैरकानूनी करार देने और संशोधन अधिसूचना को निरस्त करने की मांग कोर्ट से की।कोर्ट ने इस मामले में राज्य सरकार को जबाब दायर करने का निर्देश दिया।इस मामलें पर अगली सुनवाई 12 मई, 2023 को होगी।

पटना हाइकोर्ट ने बिहारशरीफ में इस वर्ष रामनवमी की शोभायात्रा के दौरान हुई हिंसा की निष्पक्ष जांच कराने के लिए दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की

पटना हाइकोर्ट ने बिहारशरीफ में इस वर्ष रामनवमी की शोभायात्रा के दौरान हुई हिंसा की निष्पक्ष जांच कराने के लिए दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की। चीफ जस्टिस के वी चन्द्रन की खंडपीठ ने अमरेन्द्र कुमार सिन्हा की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को इस सम्बन्ध में की गई कार्रवाई का ब्यौरा अगली सुनवाई में प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।

याचिकाकर्ता की ओर से कोर्ट के समक्ष पक्ष प्रस्तुत करते हुए वरीय अधिवक्ता एस डी संजय ने कहा कि बिहारशरीफ में रामनवमी शोभायात्रा के दौरान बड़े पैमाने पर हिंसा हुई।उन्होंने कहा कि इससे बड़े पैमाने पर जान माल की हानि और व्यवसाई वर्ग को नुकसान झेलना पड़ा।

उन्होंने कोर्ट के समक्ष पक्षों को रखते हुए कहा कि इस मामलें की जांच हाईकोर्ट के अवकाशप्राप्त जज कराई जाए या सीबीआई या एनआईए से कराई जाए।इस जांच से निष्पक्ष और वास्तविक परिस्थिति सामने आ सकेगी।

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इस जनहित याचिका में ये भी अनुरोध किया गया है कि जिनके जान माल की क्षति और व्यावासायिक हानि हुई हो,उन्हें राज्य सरकार की ओर से क्षतिपूर्ति दिलाई जाए।

सभी सम्बंधित पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह इस मामलें में उठाए गए क़दमों और प्रशासन द्वारा की गई कार्रवाई का पूरा ब्यौरा कोर्ट के समक्ष अगली सुनवाई में प्रस्तुत करें।

याचिकाकर्ता की ओर से वरीय अधिवक्ता एस डी संजय और राज्य सरकार की ओर एडवोकेट जनरल पी के शाही ने कोर्ट के समक्ष पक्षों को रखा।इस मामलें पर अगली सुनवाई गर्मी की छुट्टी के बाद की जाएगी।

पटना हाइकोर्ट में राज्य सरकार द्वारा राज्य में जातियों की गणना एवं आर्थिक सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 3 जुलाई,2023 के पूर्व ही कोर्ट द्वारा सुनवाई करने के लिए याचिका दायर की गई है

पटना हाइकोर्ट में राज्य सरकार द्वारा राज्य में जातियों की गणना एवं आर्थिक सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 3 जुलाई,2023 के पूर्व ही कोर्ट द्वारा सुनवाई करने के लिए याचिका दायर की गई है। गौरतलब कि कल कोर्ट ने अंतरिम आदेश देते हुए जातीय जनगणना पर रोक लगा दी थी।

चीफ जस्टिस के वी चन्द्रन की खंडपीठ ने अंतरिम आदेश पारित करते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि राज्य सरकार इस दौरान इक्कठी की गई आंकड़ों को शेयर व उपयोग फिलहाल नहीं करेगी।

राज्य सरकार द्वारा दायर याचिका में ये कहा गया है कि क्योंकि पटना हाइकोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि राज्य सरकार के पास जातीय जनगणना कराने का वैधानिक अधिकार नहीं है,इसीलिए इन याचिकाओं पर 3 जुलाई,2023 को सुनवाई करने का कोई कारण नहीं है।

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कार्यपालिका के पास जातीय जनगणना कराने का क्षेत्राधिकार नहीं है।इसे कोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में स्पष्ट कर दिया है।

कोर्ट ने ये भी कहा कि जातीय जनगणना से जनता की निजता का उल्लंघन होता है।इस सम्बन्ध में विधायिका द्वारा कोई कानून भी नहीं बनाया गया है।

कोर्ट ने अपने 4 मई, 2023 के अंतरिम आदेश में जो निर्णय दिया है,उसमें सभी मुद्दों पर अंतिम निर्णय दिया गया।कोर्ट ने इन याचिकाओं में उठाए गए मुद्दों पर अंतिम रूप से निर्णय दे दिया है।

राज्य सरकार ने अपनी याचिका में कहा है कि इन जनहित याचिकाओं में उठाए गए मुद्दों पर कोर्ट ने अपना निर्णय अंतिम रूप से दे दिया है।इस कारण इन याचिकाओं की सुनवाई 3 जुलाई,2023 के पूर्व ही करके इनका निष्पादन कर दिया जाए।

तेलंगाना हाईकोर्ट के जस्टिस अन्नीरेड्डी अभिषेक रेड्डी का स्थानांतरण पटना हाईकोर्ट हुआ

केंद्र सरकार ने आज एक अधिसूचना जारी कर तेलंगाना हाईकोर्ट के जस्टिस अन्नीरेड्डी अभिषेक रेड्डी का स्थानांतरण पटना हाईकोर्ट कर दिया है । भारत के संविधान के अनुच्छेद 222 में प्रदत्त शक्तियों का उपयोग कर चीफ जस्टिस ऑफ़ इंडिया ने उनका स्थानांतरण किया है ।

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श्री रेड्डी जल्द पटना हाईकोर्ट के जज के रूप में अपना योगदान कर सकते हैं ।

पटना हाइकोर्ट ने बिहार सरकार द्वारा जातियों की गणना एवं आर्थिक सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अंतरिम आदेश देते हुए फिलहाल रोक लगा दी

पटना हाइकोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा राज्य में जातियों की गणना एवं आर्थिक सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अंतरिम आदेश देते हुए फिलहाल रोक लगा दी। चीफ जस्टिस के वी चन्द्रन की खंडपीठ ने कल सुनवाई पूरी निर्णय सुरक्षित रखा था। कोर्ट ने निर्देश दिया किया कि राज्य सरकार इस दौरान इक्कठी की गई आंकड़ों को शेयर व उपयोग नहीं फिलहाल नहीं करेगी।

कल कोर्ट ने ये जानना चाहा था कि जातियों के आधार पर गणना व आर्थिक सर्वेक्षण कराना क्या कानूनी बाध्यता है।कोर्ट ने ये भी पूछा है कि ये अधिकार राज्य सरकार के क्षेत्राधिकार में है या नहीं।साथ ही ये भी जानना कि इससे निजता का उल्लंघन होगा क्या।

पिछली सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के अधिवक्ता दीनू कुमार ने कोर्ट को बताया कि राज्य सरकार ने जातियों और आर्थिक सर्वेक्षण करा रही है।उन्होंने बताया कि सर्वेक्षण कराने का ये अधिकार राज्य सरकार के अधिकारक्षेत्र के बाहर है।

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अधिवक्ता दीनू कुमार ने कोर्ट को बताया था कि राज्य सरकार जातियों की गणना व आर्थिक सर्वेक्षण करा रही है।उन्होनें ने बताया कि ये संवैधानिक प्रावधानों के विपरीत है।

उन्होंने कहा कि प्रावधानों के तहत इस तरह का सर्वेक्षण केंद्र सरकार करा सकती है।ये केंद्र सरकार के क्षेत्राधिकार के अंतर्गत आता है।उन्होंने बताया कि इस सर्वेक्षण के लिए राज्य सरकार पाँच सौ करोड़ रुपए खर्च कर रही है।

दूसरी तरफ राज्य सरकार राज्य सरकार का कहना कि जन कल्याण की योजनाएं बनाने और सामाजिक स्तर सुधारने के लिए ये सर्वेक्षण किया कराया जा रहा है।

इस याचिकाकर्ताओं की ओर से दीनू कुमार व ऋतु राज, अभिनव श्रीवास्तव ने और राज्य सरकार की ओर से एडवोकेट जनरल पी के शाही व केंद्र सरकार की ओर से अधिवक्ता नरेश दीक्षित ने कोर्ट के समक्ष पक्षों को प्रस्तुत किया।