राेसड़ा के भिरहा गांव की हाेली पूरे प्रदेश में प्रसिद्ध है। यहां वृंदावन की तर्ज पर लाेग हाेली का जश्न मनाते हैं। इस बार न कोरोना है और न ही कोई दूसरी बंदिश। पिछले दो साल यहां की होली पाबंदियों की भेंट चढ़ गई थी। लेकिन इसबार पूरे गांव में होली को लेकर काफी उत्साह देखने को मिला।
स्थानीय लोग बताते है कि 1935 में गांव के कई लोग होली देखने वृंदावन गए थे। वहीं की तर्ज पर यहां भी होली मनाने का निर्णय लिया गया। पहली बार 1936 में वृंदावन की तर्ज पर होली हुई। वर्ष 1941 में यह गांव तीन भागों पुरवारी टोल,पछियारी टोल और उतरवारी टोल में बंटकर होली मनाने लगा।
लोगो ने बताया कि आज भी इन्हीं तीन टोलों के बीच होली के आयोजन में श्रेष्ठता साबित करने की होड़ रहती है। होलिका दहन की संध्या से ही तीनों टोले में अलग-अलग सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं। गांव में बड़े-बड़े तोरणद्वार बनाए गए है। रंग बिरंगे रोशनी से पूरा भिरहा गांव होली में भी दिखता है तीनों टोलों के तीनों मंदिर परिसर में रात भर नृत्य और संगीत का आयोजन किया गया है। दूर दराज से गायिका और नृत्यांगना को बुलाया गया था।
आज होली के दिन नृत्य का आनंद लेने के बाद सभी लोग फगुआ पोखर पँहुच रंग से घोलू हुए पानी मे कुर्ता फार होली खेला गया बिरहा गांव की होली को देखते आसपास के गांव के साथ-साथ दूरदराज के जिले के लोग भी पहुंचे हुए थे।