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संघ को अब भंग कर देना चाहिए – संघ का पूर्व प्रचारक

हाल ही में संघ के एक पूर्व प्रचारक से मुलाकात हो गयी आज कल वो विधायक भी हैंं लम्बे अवधि तक इनका मेरे यहां आना जाना रहा है इसलिए मुलाकात के साथ ही पुरानी यादें ताजी हो गयी । कोई चार घंटा का साथ रहा ऐसे में स्वाभाविक था कि संघ और बीजेपी को लेकर इनसे लम्बी बातचीत हुई अभी जो देश में चल रहा है उसको लेकर ये काफी दुखी है,एक बात है संघ का प्रचारक अभी भी लाग लपेट में विश्वास नहीं करता है और जो सच है उस सच को स्वीकार करने में तनिक भी देर भी नहीं करता है ।

1–संघ को अब भंग कर देना चाहिए बातचीत को लब्बोलुआब यही था कि संघ का सौ वर्ष पूरे होने वाला है अब इस संस्था को भंग कर देना चाहिए संतोष बाबू जिस समय मैं प्रचारक बना था उस समय पूरे देश में 3487 प्रचारक हुआ करता था(अविवाहित फुल टाइम संघ के लिए काम करने वाले ) पिछले वर्ष मैं बाहर निकला हूं उस समय मात्र 709 प्रचारक बच गये और हाल यह है कि नये लोग अब संघ के प्रचारक के रूप में काम करने नहीं आ रहे हैं यही स्थिति रही तो दो तीन वर्ष में सौ के नीचे हो जायेगा और आप जानते ही है कि संघ जो यहां तक पहुंचा है उसके पीछे हजारों प्रचारक का 24 घंटे का श्रम है वैसे भी संघ का लक्ष्य क्या था राम मंदिर ,धारा 370 और कॉमन सिविल कोड।

राम मंदिर और धारा 370 हो ही गया और 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले कॉमन सिविल कोड लागू हो ही जाएगा उसके बाद संघ के पास बचेगा क्या ।वैसे भी जब से सरकार में बीजेपी आयी है अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का हाल देख लीजिए अब पहले वाला तेज रहा है ,मजदूर संगठन.स्वदेशी जागरण मंच, और सरस्वती शिशु मंदिर का अब कोई मतलब रह गया संघ के सभी अनुषांगिक संस्थान का यही हाल है कोई भी संगठन कार्यक्रम और आन्दोलन से चलता है ।

सरकार में आने के बाद अब ये सब करने का गुंजाइश ही नहीं रह गया है ऐसे में संगठन कमजोर पड़ेगा संतोष बाबू विवेकानंद भी कहे थे किसी भी संस्था पर उर्म सौ वर्ष होता है और अभी जो देश मेंं हो रहा है वो संघ को स्वीकार्य नहीं है हिन्दु जागरण का यह मतलब नहीं है कि मुसलमान को तंग करे इससे संगठन को और नुकसान ही हो रहा बताइए संतोष बाबू आप तो देखे हैं ना एक साइकिल और साथ में झौला सुबह का नास्ता किसी के यहां दोपहर का भोजना किसी और के यहां,शाम का नास्ता मिला तो ठीक नहीं तो रात का भोजन किसी स्वयंसेवक के यहां होता था कोई डर भय नहीं आज ना भाजपा सत्ता में है बीस वर्ष पहले गांव में भाजपा और संघ कहां था फिर भी जो संघ का स्वयंसेवक नहीं भी था उसके दरवाजे पर भी चले जाते थे तो सम्मान के साथ बैठाते थे हमलोग को देख कर गांव की महिलाए भी हिन्दी में बात करने लगती थी हाफ पेंट वाला सर जी नाम ही था हम लोगों का लेकिन अब जो स्थिति बनते जा रहा है कोई प्रचारक सोच भी सकता है कि दूसरे विचार धारा वाले के यहां बैठ भी सकता है।

Editorial
Editorial

बताइए ना संतोष बाबू हम ठहरे प्रचारक मोटरसाइकिल से चलते हैं तो पार्टी वाला हल्ला करने लगता है आप विधायक है मोटरसाइकिल से चलिएगा बताइए तीन चार लोगों के यहां चले गये हजार रुपया का तेल लग जाता है गाड़ी रखिए तो ड्राइवर रखिए कहां से उसको पैसा देंगे विधायक फंड है तो कार्यकर्ता सबका अलगे हिसाब है संतोष बाबू यहां हमको मन नहीं लग रहा है बताइए कहता है भीड़ जुटाइए कहां से जुटाए और अगर जुट भी गया तो उसको लाने ले जाने में जो खर्च होगा कहां से लायेंगे ये सब जब पार्टी में सवाल करते हैं तो ऐसे देखता है जैसे मैं इस दुनिया के इंसान ही नहीं है बहुत मुश्किल है इसके लिए थोड़े ही अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिये हैं संघ में अब लौट सकते नहीं है और राजनीति हम लोगों से होने वाला नहीं है दिन भर झूठ बोलिए क्या करें कुछ समझ में नहीं आ रहा है ।

चलिए बहुत दिनों बाद मुलाकात हुई और चाचा जी लोग ठीक है ना माँ कुशल हैं बच्चा सबका पढ़ाई लिखाई चल रहा है एक बात संतोष बाबू आपका पूरा परिवार संघ का स्तम्भ रहा है आप ऐसे मत लिखा करिए सीधा हमला बोल देते हैं तो फिर विधायक जी क्या चाहते हैं कलम गिरवी लगा दे ना ना संतोष बाबू कांलेज जीवन से ही इंडिया टुडे नियमित पढ़ते थे उसमें भी तवलीन सिंह का लेख जरुर पढ़ते थे पत्रकार को स्वतंत्र जो जरुर होना। तभी जिनके कार्यक्रम में हम दोनों पहुंचे थे वो दौरे दौरे आये और बोले विधायक भी संतोष जी से क्या बतिया रहे हैं सब बात मीडिया में आ जाएगा, नहीं नहीं हम लोग इनके घर में पले बढ़े हैं पता है अपने मिजाज से पत्रकारिता करते हैं वैसे संघ को अब भंग कर देना चाहिए ये मैं अब मंच से भी बोलने वाला हूं ।

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