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समस्तीपुर आत्महत्या मामला नयी अर्थ नीति के लिए चुनौती है

समस्तीपुर की घटना संकेत है कि नयी अर्थनीति से गांव और गरीब होता जा रहा है
सरकारी खैरात से किसान मजबूत नहीं हो सकता है
मुफ्त अनाज योजना ने गांव की पूरी अर्थ तंत्र को बर्बाद कर दिया है

रविवार की सुबह समस्तीपुर जिले के विद्यापतिनगर थाना क्षेत्र के मऊ धनेश्वर दक्षिण गांव से एक दिल दहलाने वाली घटना की सूचना आयी ,शुरुआती दौड़ में तो विश्वास ही नहींं हुआ कि ऐसा भी हो सकता है लेकिन दोपहर होते होते स्थिति स्पष्ट हो गयी कि आर्थिक तंगी के कारण एक ही परिवार के पांच सदस्यों ने आत्महत्या कर लिया है अमूमन बिहार में इस तरह की खबर नहीं के बराबर आती है जब कभी भी इस तरह की खबरे आयी भी है तो बाद में मामला हत्या में तब्दील हो गया है ।

आत्महत्या

1–बिहार में पांच वर्षो के दौरान एक हजार से अधिक लोगों ने आर्थिक तंगी के कारण आत्महत्या किया है बिहार में आर्थिक तंगी जैसे मामलों में आत्महत्या करने की प्रवृति पहले कभी नहीं रही है लेकिन मीडिया के आर्काइव के अध्ययन से दरभंगा ,सुपौल ,भागलपुर ,खगड़िया ,बेगूसराय,सीतामढ़ी.वैशाली सहित बिहार के कई जिलों से आत्महत्या से जुड़ी जो खबरों में पिछले पांच वर्षों दौरान काफी तेजी आयी है । पिछले पांच वर्षो में आर्थिक तंगी के कारण एक हजार से अधिक लोगों ने आत्महत्या किया है वही आर्थिक तंगी की वजह से घरेलू हिंसा,मानसिक बीमारी और जमीनी विवाद के मामले में काफी तेजी आयी है । वर्षो बरस पहले गाँव छोड़ कर चले गये लोग गांव में अपने हिस्से का हिसाब लेने आने लगे हैं जिससे गांव में अक्सर तनाव बना रहता है वही पहले जैसे जमीन की खरीद बिक्री भी नहीं हो पा रहा है पैसे का अभाव गांवों में साफ दिखायी दे रहा है और इसका असर किसान, खेतिहर मजदूर, पशुपालक और गांव के चौक चौहारे पर दुकान खोल कर जीवन जीने वाले या फिर रिक्शा, टेंपो चला कर जीवन जीने वाले लोगों पर सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ा है .

2— विद्यापति नगर समस्तीपुर जिले का समृद्ध इलाका माना जाता है जहां यह घटना घटी है वह इलाका समस्तीपुर जिले का सबसे समृद्ध इलाकों में एक माना जाता था ,अंग्रेज के जमाने में भी मऊ बाजितपुर सबसे बड़ा कर संग्रह का केन्द्र था दरभंगा महाराज को भी सबसे ज्यादा लगान वाला इलाका माना था। बिहार की खेतिहर समाज से जुड़े राजपूत ,यादव ,ब्राह्मण जाति का यह बाहुल्य इलाका है जब आप इस इलाके में प्रवेश करेंगे जो वहां खड़ी इमारत आज भी चीख चीख कर बताता है कि ये इलाका पहले कितना समृद्ध रहा होगा । एक दौर था जब हर दूसरे तीसरे घर में नौकरी वाला मिला जाता था यहां की जमीन काफी उपजाऊ माना जाता है सब्जी ,धनिया,खैनी और सरसों जैसी नकदी फसल का यह इलाका है और गंगा के किनारे होने के कारण लागत मूल्य भी ज्यादा नहीं लगता है लेकिन जैसे जैसे खेती से होने वाली आमदनी और अन्य सामग्री के बाजार भाव में अंतर बढ़ता गया किसान और खेतिहर मजदूरों की माली हालत बिगड़ती चली गयी विद्यापतिनगर का मऊ इसका सबसे बेहतर उदाहरण हो सकता है जहां के किसान अपनी फसल के बल पर बच्चों को बेहतर शिक्षा और परवरिश करने से लेकर बड़े शानो शौकत से रहता था लेकिन नयी आर्थिक नीति के कारण किसान कैसे उजड़ा है यहां आकर आप देख सकते हैं ।

समस्तीपुर आत्महत्या मामले में क्या कह रहा है परिवार

3—हिन्दू रीति रिवाज भी बर्बादी की एक बड़ी वजह है
मनोज झा के आर्थिक तंगी की बात करे तो ऐसा नहीं था कि खैनी की दुकान और टेम्पो चलाने से उसका जीवन यापन नहीं चल पा रहा था ।पहले पांच बीघा जमीन भी था लेकिन कुछ जमीन गंगा के कटाव के कारण खत्म हो गया शेष बहन की शादी और टेम्पू निकालने में बिक गया फिर भी घर चल रहा था और किसी तरह अपने बच्चे को पढ़ा भी रहा था लेकिन दो वर्ष पहले बेटी की शादी के लिए गांव के ही एक सूदखोर से तीन लाख रुपया कर्ज लिया था इसी को लेकर मनोज झा और उसका परिवार काफी तनाव में था क्यों कि जिससे कर्ज लिया था वो आये दिन अपमानित करता रहता था और कमाई का बड़ा हिस्सा सूद में चला जाता था इस तरह के तंगी के दौर से गुजरने वाला गांव में कोई एक मनोज झा नहीं है आज बिहारी समाज के गरीबी की सबसे बड़ी वजह शादी , श्राद्ध,मुंडन और जनेऊ जैसा रीति रिवाज भी है जिसे करने में इतना खर्च होता है कि समाज का हर वर्ग तबाह है जिसके घर एक बेटी की शादी हुई वह घर पाँच वर्ष पीछे चला जाता है। इसी तरह एक श्राद्ध किये दो वर्ष पीछे हो गये ऐसा ही कुछ मुंडन और जनेऊ संस्कार का है क्यों कि इसका ताना बाना इस तरह बुना गया है कि जो जिस स्थिति में बिना कर्ज लिए इस तरह का काम संभव नहीं है ।

4–गांव गांव में सूदखोर का नया वर्ग जन्म ले लिया है बिहार के हर गाँव में अब सूद पर पैसे देने का संगठित गिरोह काम कर है जिसमें गांव का शराब माफिया, बाहर कमाने वाले लोग और गांव के अपराधी का पैसा लगा रहता है कर्ज लेना आसान है लेकिन कर्ज का ब्याज 10 प्रतिशत सैकड़ा से भी ज्यादा है हर सप्ताह ब्याज मूलधन में जुड़ता रहता है वही गाँव में पहले जैसा अर्थ तंत्र रहा नहीं जिसके सहारे किसान और मजदूरों का काम चल जाता है हर गांव में इस तरह के धंधे में लगे लोग से आम लोग परेशान है पूंजी की जरूरत है लेकिन उस तरह का व्यापार नहीं हो रहा है वही खेती में लागत मूल्य लगातार बढ़ता जा रहा है लेकिन उस हिसाब से आमदनी नहीं हो रही है इससे परेशानी बढ़ती जा रही है। ऐसे में बिहारी समाज को नये सिरे से अर्थव्यवस्था और सामाजिक और धार्मिक जकड़न से बाहर निकलने पर सोचना होगा नहीं तो आने वाले समय में गांव गांव मऊ बन जाये तो बड़ी बात नहीं होगी ।

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