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नीतीश ने बीजेपी के सामने रखा शर्त

बिहार की राजनीति में पिछले एक सप्ताह से जारी उफान अब थमता हुआ प्रतीत हो रहा है ऐसा जदयू की और से दिखाने की कोशिश शुरु हो गयी है और इसके लिए जदयू कल से ही सहजता के साथ मीडिया के सवालों का जवाब देना भी शुरू कर दिया है और वही जो अक्सर होता है एक सप्ताह से जारी सियासी घमासान की खबर को फालतू करार कर जदयू के नेता मीडिया पर ही ठीकरा फोड़ने लगे हैं ।

लेकिन बड़ा सवाल यह है कि इस सहजता के पीछे की वजह क्या है नीतीश आरसीपी सिंह के राज्यसभा भेजने को लेकर ललन सिंह और उपेन्द्र कुशवाहा को मनाने में कामयाब हो गये या फिर नीतीश कुमार की बीजेपी से जो मांग रही है अमित शाह को बिहार की राजनीति से अलग करे, बिहार विधानसभा अध्यक्ष और राज्यपाल को हटाये क्या इनमें से कुछ बाते बीजेपी का केन्द्रीय नेतृत्व मान लिया है।

1— क्या आरसीपी सिंह राज्यसभा जा रहे हैं ?    हालांकि आरसीपी के दिल्ली रवाना होने के बाद आरसीपी के करीबी माने जाने वालों के सोशल पेज और व्यक्तिगत बातचीत में कल पहली बार उनके चेहरे पर हंसी देखने को मिला है।वैसे शाम होते होते यह भी खबर आयी कि आरसीपी सिंह अपने  ट्विटर अकाउंट से जदयू हटा दिया लेकिन जदयू के अंदर कुछ चेहरे ऐसे हैं जिनके चेहरे पर हंसी कुछ तो कहता है । 

लेकिन बड़ा सवाल यह है कि आरसीपी सिंह को टिकट दिया जाये या नहीं दिया जाए इसके लिए पार्टी के विधायकों से अधिकार लेने कि जरूरत नीतीश कुमार को क्यों पड़ी या फिर एक सप्ताह तक आरसीपी सिंह के राज्यसभा में जाने को लेकर मीडिया द्वारा सवाल किये जाने पर खुल कर बोलने से नीतीश बचते क्यों दिखे।

नीतीश कुमार हरेन्द्र सिंह के बेटे की शादी में और रिसेप्शन में सार्वजनिक रूप से आरसीपी सिंह को नजरअंदाज क्यों करते रहे वही हाल के दिनों मे आरसीपी कई बार पटना आए हैं लेकिन उनकी नीतीश कुमार से मुलाकात नहीं हुई ।

नीतीश को ये सब करने कि जरूरत क्या है क्यों कि ऐसा भी नहीं है कि नीतीश आरसीपी सिंह को टिकट देने कि घोषणा कर देते तो पार्टी टूट जाती पार्टी से जुड़े एक नेता का कहना है कि नीतीश कुमार विधायकों की राय सार्वजनिक कर आरसीपी सिंह को औकात बता दिया कि उनके साथ पार्टी का विधायक की कौन कहे वार्ड सदस्य भी नहीं है ऐसे में आरसीपी माफी मांगे होगे तो नीतीश माफ कर सकते हैं क्यों कि आरसीपी से पहले भी गुस्सा रहे हैं और माफी भी देते रहे हैं।

2–क्या बीजेपी नीतीश कुमार के शर्त को मान लिया    नीतीश कुमार धर्मेन्द्र प्रधान के माध्यम से मोदी के सामने जो शर्त रखा था उसमें पहला था अमित शाह को बिहार के मामले से बाहर करे, दूसरा विधानसभा अध्यक्ष और राज्यपाल को हटाए और ऐसे लोगों को मंत्रिमंडल में शामिल करे जिनकी छवि बेहतर हो वैसे राज्यसभा के उम्मीदवारों के चयन में पहली बार भूपेन्द्र यादव को केन्द्रीय नेतृत्व बाहर रखा है लेकिन लालू प्रसाद के परिवार पर छापेमारी से नीतीश फिर असहज हो गये हैं क्यों कि कहा यह जा रहा है कि यह सब नीतीश पर दबाव बनाने के लिए अमित शाह द्वारा किया गया है और यही वजह रही कि जिस सीबीआई के छापेमारी को लेकर महागठबंधन की सरकार गिर गयी थी और इस बार छापेमारी पर पार्टी का प्रवक्ता तक कुछ भी बोलने से बचते रहे वही कल जब ललन सिंह से रेड को लेकर सवाल किये तो कोई जबाव नहीं दिये ।

nitish kumar

3—विजय कृष्ण का रिहा होना और शिवानंद का लालू को लेकर बयान नीतीश के रणनीति का हिस्सा तो नहीं है    बिहार में जदयू और भाजपा रिश्ते को लेकर जारी अटकलों के बीच विजय कृष्ण का रिहा होने भले ही खबर नहीं बन पाया लेकिन हाईकोर्ट में बहस के दौरान सरकार के वकील की भूमिका रही है उससे बहुत कुछ समझा जा सकता है साथ ही सतेन्द्र सिंह का परिवार जिस तरीके से चुप है संकेत साफ है आने वाले समय में विजय कृष्ण को राजपूत की राजनीति के लिए आगे लाया जा सकता है क्यों आनंद मोहन को लेकर नीतीश सहज नहीं है।  वही शिवानंद तिवारी जिस तरीके से लालू प्रसाद से तेजस्वी के हाथों कमान सौंपने कि बात कही है यह सिर्फ तिवारी की ही बात नहीं है नीतीश और तेजस्वी के बीच बातचीत का आधार यह भी रहा है क्यों कि लालू प्रसाद के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहने के कारण ही रेड हो रहा है आज हट जाये तो फिर बहुत चीजें बदल जायेंगी और यही वजह है कि अब सुशील मोदी लालू के बजाय लालू के बेटे और बेटी पर हमला करना शुरु कर दिये हैं नीतीश चाहते हैं कि तेजस्वी ऐसे लोगों के साथ सरकार में आये जिनकी छवि बेहतर हो शिवानंद तिवारी नीतीश के इसी अभियान को तेजस्वी के सहमति से शुरु किये हैं।

4–नीतीश बीजेपी का साथ छोड़ेंगे यह मन बना चुके हैं    याद करिए 5 फरवरी 2017 को नीतीश कुमार प्रकाश पर्व के दौरान एक पेंटिंग में कमल के फूल में रंग भरा था,सवाल उठा तो इसी तरह मीडिया पर ठीकरा फोड़ा जाने लगा था लेकिन छह माह के अंदर 26 जुलाई को राजद का साथ छोड़ दिये ।2020 के चुनाव परिणाम के बाद नीतीश कुमार के बयान और बैचेनी से समझा जा सकता है कि वो एनडीए से बाहर निकलना चाहते हैं।हालांकि इस बार नीतीश कुमार 2017 की तरह आसानी से निर्णय नहीं ले सकते हैं क्यों कि बीजेपी इनकी कई तरह की घेराबंदी कर रखी हैं आरसीपी सिंह को राज्यसभा में नहीं भेजना उसी घेराबंदी को कमजोर करना है इसलिए 31 मई तक इंतजार करने कि जरूरत है अगर आरसीपी नहीं गये तो राष्ट्रपति चुनाव से पहले ही खेला हो जायेंगा यह तय है और आरसीपी सिंह राज्यसभा गये तो फिर कुछ समय तक टल सकता है लेकिन यह तय है कि नीतीश बीजेपी के साथ ज्यादा दिनों तक नहीं रह पायेंगे ।

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