प्रेम
एक सुखद अहसास, पर
जिस तक पहुँचने के लिए
पीड़ा एवं वेदना की घाटियों से पड़ता है गुजरना;
फिर भी मुमकिन है
कि यात्रा अधूरी रह जाए,
जिसके अधूरेपन में ही है
उसकी पराकाष्ठा,
उसका उत्कर्ष।
प्रेम नहीं है परीक्षा;
प्रेम है
सम्पूर्ण आनत समर्पण,
सन्देह से परे।
प्रेम नहीं है
पाने का नाम,
प्रेम है
सब कुछ की तथता,
और सब कुछ की तथता का
सम्पूर्ण समर्पण,
उसे दे देने का नाम।
प्रेम है
वेदना की अनुभूति,
उस अनुभूति को भी बार-बार जीने की चाह,
और उन अनुभूतियों को बार-बार जीते हुए
सुख एवं संतुष्टि का अहसास।
प्रेम नहीं है शरीर की चाह,
प्रेम नहीं है उन्नत उरोजों का आकर्षण, और
प्रेम नहीं है
योनि की गहराइयों को मापने वाली कामजन्य वासना!
प्रेम है मस्तक पर चुम्बन,
हाँ, निर्द्वन्द्व, वरद, दीर्घ चुम्बन
जो हमें आश्वस्त करता है!
प्रेम है उरोजों की थाप,
जो बहा ले जाती है हमें
माँ की थपकियों की तरह,
वर्तमान के उस विषम ताप से कहीं दूर
उस दुनिया की ओर,
जिसमें हम विचरण करना चाहते हैं,
जिसमें हम खोना चाहते हैं,
जिसमें हम समा जाना चाहते हैं।
प्रेम है
अपनी सुध-बुध को खोना,
प्रेम है
मुश्किल से मिलने वाला खिलौना।
प्रेम है
खुद को परखना,
प्रेम है
खुद को सिरजना।
प्रेम है
म्यान की तलवार,
प्रेम है
अवलम्ब की पुकार।
प्रेम है
आश्रय की तलाश, और
प्रेम है
आश्रय बन जाने की चाह!
प्रेम है
आँखों के रास्ते दिल में उतर जाना,
प्रेम है
खुरदरे हाथों को सहलाना।
प्रेम है
नि:शब्द होंठों का कम्पन,
प्रेम है
अस्तित्व का विसर्जन।
प्रेम है
असीम में विलीन होने की चाह,
प्रेम है
सामने वाले की परवाह!
जब आँखें बोलने लगतीं,
तो प्रेम है;
जब नज़रें झुकने लगतीं,
तो प्रेम है।
प्रेम है
शून्य में खो जाना,
प्रेम है
आहों में रो जाना।
प्रेम है
आकर्षण में खिंचता चला जाना,
प्रेम है
बँधता चला जाना।
जो बाँध ले
वो प्रेम है,
जो मुक्त कर दे,
वो प्रेम है।
प्रेम है
अनन्त में लीन हो जाना,
प्रेम है
भावों, अनुभूतियों और शब्दों में लीयमान हो जाना;
प्रेम है
नि:शब्द समर्पण,
प्रेम है
नि:शर्त समर्पण!
निःशब्द हो जाना ही
प्रेम है,
निर्वाक हो जाना ही
प्रेम है।
प्रेम है
‘प्रेम’ का मान,
प्रेम है
प्रेमिका का सम्मान!
अगर ऐसा नहीं, तो
प्रेम अधूरा है।