लालू का राज जंगल राज, तो मोदी योगी का राज ?
कल काफी दिनों बाद टीवी पर समाचार देख रहे थे सारा चैनल प्रयागराज हिंसा मामले में आरोपी जावेद के घर पर हो रही पुलिसिया कार्यवाही का लाइव चला रहे थे और एंकर से लेकर ग्राउंड में मौजूद रिपोर्टर इस अंदाज में रिपोर्टिंग कर रहे थे मानो ये भी इस न्याय व्यवस्था के साथ खड़ा है और सही ठहरा रहा है ।
टीवी चैनल के स्टूडियो में बहस भी कुछ इसी अन्दाज में चल रहा था कि जो हो रहा है बहुत सही हो रहा है और ऐसे लोगों के खिलाफ इसी तरह की कार्यवाही होनी चाहिए ।
सोशल मीडिया पर भी प्रशासन की इस कार्यवाही को लेकर कुछ इसी तरह की प्रतिक्रिया आ रही थी मतलब प्रशासन का यह कार्यवाही सही है और आने वाले दिनों में प्रशासन को इसी तरह से कार्यवाही करनी चाहिए।
तभी अचानक मुझे याद आया कि 5 अगस्त 1997 को पटना हाईकोर्ट ने एक याचिका की सुनवाई के दौरान क्यों कहां था कि बिहार में सरकार नहीं है बिहार में जंगलराज कायम हो गया।ये जानने के लिए कि ऐसा क्या हुआ था कि पटना हाईकोर्ट को ऐसी टिप्पणी करनी पड़ी थी कुछ सीनियर वकील को फोन लगा दिया। याचिकाकर्ता से तो बात नहीं हो पायी लेकिन उस समय पटना हाईकोर्ट में काम कर रहे कई वरिष्ठ वकील से बात हुई और इस पर लम्बी चर्चा हुई हालांकि शुरुआती दौर में वो समझ नहीं पाए कि ऐसा क्या हुआ है जो आज संतोष जी जंगलराज के बारे में बात कर रहे हैं खैर बात खत्म होते होते उनकी समझ में आ गया लेकिन चाह कर के भी कुछ कह नहीं पाये वैसे अधिकांश वकील प्रशासन के बुलडोजर एक्शन को गलत कहॉ।
वैसे याचिकाकर्ता के जिस आवेदन पर हाईकोर्ट ने जंगलराज जैसी तल्ख टिप्पणी की थी उसमें मुख्य तौर पर यही था कि प्रशासन आपराधिक मामलों में जाति आधारित कार्यवाही कर रही है, शहर के बड़े से बड़े कारोबारी की संपत्ति पर जबरन सत्ता संरक्षित एक खास जाति विशेष द्वारा कब्जा किया जा रहा है और प्रशासन मौन है।
जाति आधारित नरसंहार हो रहा है लेकिन कार्यवाही एकपक्षीय हो रहा है पूरी प्रशासनिक व्यवस्था अपराध और अपराधी को जाति के चश्मे से देख रहा है ।कानून जैसी कोई बात प्रदेश में है ही नहीं सरकार जो चाहती है प्रशासन वही करता है, अराजक स्थिति है कही भी कानून सम्मत कार्यवाही नहीं हो रही है कानून की सरेआम धज्जियां उड़ाई जा रही है।
1– बुलडोजर चलाना और पुलिस एनकाउंटर कौन सा राज है
बुलडोजर चलाना या फिर पकड़ कर बलात्कारी या अपराधियों को मार देना किस तरह का राज कहाँ जायेगा क्यों कि प्राकृतिक न्याय के अनुकूल यह व्यवस्धा तो सही नहीं है ।
अगर कोई व्यक्ति बिना नक्शा स्वीकृत कराये घर बना लेता है तो प्रशासन बिना नोटिस जारी किये हुए हमारे आपके मकान को पुलिस और प्रशासन तोड़ सकता है क्या ।
अगर ऐसा होने लगे तो आज धर्म के नाम पर हो रहा है ,कल किसी ओर के नाम पर होगा और तीसरे दिन किसी और के नाम पर तोड़ा जाएगा ऐसे में इस कार्यवाही को आप कौन सा शासन व्यवस्था कहेंगे । ऐसा नहीं है लालू प्रसाद के राज में भी कानून के विपरीत जो कुछ भी हो रहा था उसके समर्थन में आज की ही तरह सामाजिक न्याय के नाम पर प्रशासन और सरकार के कार्यवाही को सही ठहराने वाली जनता उस समय भी थी और उसी जनता और तथाकथित सामाजिक न्याय के सहारे लालू प्रसाद और उनकी पार्टी 15 वर्षों तक बिहार के सत्ता पर काबिज रहे और उसके बाद 5 वर्षों तक केंद्र की सत्ता पर भी काबिज रहे लेकिन आज वही तथाकथित सामाजिक न्याय के दौरान बिहार में जो कुछ भी हुआ उसका खामियाजा लालू परिवार और उसकी पार्टी भुगत रही है और नीतीश कुमार उसी युग की याद दिला कर बिहार की गद्दी पर 22 वे वर्ष में प्रवेश कर गये ।
क्यों कि भारतीय समाज अराजकता को कभी स्वीकार नहीं करता है ,शांति पसंद है ,मेहनतकश है, जिंदगी में ज्यादा हलचल और उठापटक को पसंद नहीं करता है। वो दौर जाति का था आज धर्म का है जातिवादी राजनीति करने वाले आज अछूत बने हैं कल धर्मवादी राजनीति करने वाले भी अछूत बनेंगे ये तय है।
क्यों कि जाति और धर्म के आड़ में राजनीति करने वालों से सुशासन को लेकर गलती करेंगे ही करेंगे एक दौर ऐसा भी आयेगा कि उन्हें एक पक्षीय होना ही पड़ेगा और उसी दिन से उलटी गिनती शुरू हो जायेंगी ये भी तय है ,भेल ही वक्त जितना लगे ।
एक और बात इस तरह के शासन व्यवस्था में सत्ता के इशारे पर काम करने वाले अधिकारी आज फंसे या कल फंसे फसना तय है लालू राज के कई आईपीएस अधिकारी जो सरकार के इशारे पर सारे नियम कानून को ताक पर रख दिये थे ऐसे अधिकारी एसपी से डीआईजी नहीं बन पाये ,डीएम से आयुक्त नहीं बन पाये दर्जनों अधिकारियों को पेंशन के लिए हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट जाना पड़ रहा है वही जैसे ही लालू राज गया ऐसे अधिकारी रिटायर हो गये लेकिन फील्ड में पोस्टिंग नहीं मिली एक कुर्सी पर बिना पंखा वाले दफ्तर में पूरी नौकरी गुजारनी पड़ी ।
क्या हुआ हैदराबाद एनकाउंटर का दर्ज हो गया ना हत्या का मुकदमा ,यूपी में पिटाई वाली वीडियो पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के संज्ञान ले लिया है कोई नहीं बचा पाएगा इसलिए पदाधिकारियों को भी जो कानून कहता है उसके साथ खड़ा रहना चाहिए जितने बुलडोजर चले हैं पदाधिकारियों को अपनी पेंशन से भुगतान करना होगा याद रखिएगा ।
वही धर्म के आधार पर जो भावना भड़का रहे हैं उनका हस्र भी समाजिक न्याय के सहारे समाज में विद्वेष फैलाने वाले जैसे नेता और कार्यकर्ता जैसा होगा ये तय है।
याद करिए एक दौर था जब संसद में योगी रो रहे थे पुलिसिया जुल्म को लेकर और आज ऐसे में जनता को हमेशा संविधान और न्याय व्यवस्था के साथ खड़ा रहना चहिए नहीं तो सत्ता पगला जायेगा ।