2010 में उनके धुआंधार प्रचार के बावजूद पार्टी 22 पर सिमट गई थी
बीमार, सजायाफ्ता और थके हुए लालू प्रसाद अब बिहार की राजनीति का इतिहास बन चुके हैं।
उनके सोशल मीडिया पर लिखने-बोलने या सीधे प्रचार में उतरने से भी कोई फर्क नहीं पड़ता।
जब उनका परिवार ही उनकी बात नहीं सुन रहा और पार्टी पर पकड़ ढीली हो चुकी है, तब समझदार मतदाता उन्हें क्यों गंभीरता से लेंगे?
बिहार की पहली एनडीए सरकार का कार्यकाल पूरा होने पर जब 2010 में विधानसभा के चुनाव हुए थे,तब सरकार तीन चौथाई बहुमत से सत्ता में लौटी थी। राजद मात्र 22 सीटों पर सिमट गया था।
तब लालू प्रसाद जेल में नहीं थे। उनके धुआंधार प्रचार रूई के बादल की तरह उड़ गए थे।
लोगों ने लालू राज की वापसी रोकने और एनडीए के काम को फिर मौका देने के लिए जमकर वोट दिया था।
एनडीए पर आज भी जनता का भरोसा अटूट है।