सलाहकारों की फ़ौज **
नौकरी जब शुरू की थी तब जानकारी दी गई थी कि सरकार के मुख्य सलाहकार मुख्य सचिव हुआ करते हैं।
जैसे-जैसे समय बीता, मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री ने अपने चारों तरफ सलाहकारों की सेना खड़ी कर ली।
यह तथाकथित विशेष्य माने जाने लगे, विभिन्न विधाओं के। कोई ऊर्जा तो कोई विधि-व्यवस्था, आदि आदि।
यह सभी सलाहकार जन-सेवक की तरह वेतन लेते हैं और सरकारी सुख-सुविधाओं का उपभोग भी करते हैं।
मैं भी जब DGP था, तब एक चर्चा सुनने को मिली कि पुलिस विभाग के लिए भी सलाहकार नियुक्त किए जाएँगे। मैंने अनौपचारिक रूप से अपनी भावना राज्य प्रमुख तक पहुँचा दी कि जो सलाह दें, वे ही क्रियान्वित भी करें।
यह नहीं होगा कि सलाहकार सलाह देकर किनारे हो जाएँगे और क्रियान्वयन की ज़िम्मेदारी कोई और लेगा। अगर अच्छा हुआ तो सलाहकार महोदय की वाह-वाह और खेल बिगड़ा तो ठीकरा किसी और के सर।
लगता है यह बात राज्य प्रमुख को सही लगी और पुलिस में कोई सलाहकार नियुक्त नहीं हुआ।
अन्य विभागों में हुआ।
नीतिगत रूप से भी जो व्यक्ति सरकारी वेतन पर सलाह देता है, उसको अपने सलाह की पूरी जवाबदेही लेनी चाहिए। अगर यह नहीं होता है, तो सलाहकार और दलाल में कोई अंतर नहीं रह जाएगा।
लेखक–अभयानंद (बिहार पुलिस के पूर्व डीजीपी)