UPSC में टाप करने के बाद जिस तरीके से सूबे के मुख्यमंत्री से लेकर मंत्री और संतरी तक बधाई दे रहे हैं ऐसे में गालिब का एक शायरी याद आ गया ——– हम को मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन दिल के खुश रखने को गालिब ये खयाल अच्छा है ।
एक दौर था जब पटना विश्वविधालय को ‘ऑक्सफोर्ड ऑफ द ईस्ट’ कहा जाता था स्थापना के शुरुआती दिनों में वकालत और मेडिकल की पढ़ाई के क्षेत्र में देश और दुनिया में पटना विश्वविधालय ने अलग पहचान स्थापित किया बाद के दिनों में रामशरण शर्मा जैसे इतिहासकार की वजह से पटना विश्वविधालय की पहचान इतिहास लेखन के क्षेत्र में अंतराष्ट्रीय स्तर पर स्थापित हुआ ।60 के दशक में इस विश्वविधालय की पहचान यूपीएससी के फैक्ट्री के रुप में स्थापित हुआ ।
1960 में जगन्नाथन मुरली बिहार से UPSC के पहले टापर बने। उन्होंने पटना में रहकर ही पढ़ाई की थी और उनके पिता भी आइसीएस (ब्रिटिश काल) थे और तब पटना में पदस्थापित थे।बिहार के दूसरे टांपर छह साल बाद 1966 में पूर्णिया के आभास चटर्जी UPSC टापर बने 1970 में पटना विश्वविधालय के तीन छात्र UPSC में पहला स्थान श्याम शरण दूसरा स्थान अनुराधा मजूमदार और तीसरा स्थान लक्ष्णी चक्रवर्ती प्राप्त की थी बाद में श्याम शरण विदेश सचिव बने थे ।
पटना विश्वविधालय से पढ़े आमिर सुबहानी 1987 में टाप किये थे आमिर सुबहानी पटना विश्वविद्यालय के सांख्यिकी विभाग से स्नातकोत्तर में गोल्ड मेडलिस्ट थे।आमिर सुबहानी के बाद अभी तक कोई दूसरा पटना विश्वविधालय से पढ़कर UPSC में टाप नहीं किया है।
1988में UPSC में प्रशांत कुमार टापर रहे इनकी प्रारंभिक पढ़ाई पटना में हुई थी। उच्च शिक्षा सेंट स्टीफेंस कालेज, दिल्ली से हुई।1997 में सुनील कुमार बर्णवाल टापर रहे सुनील बर्णवाल की प्रारंभिक शिक्षा भागलपुर में हुई। आइएसएम धनबाद से बीटेक के बाद उन्होंने गेल में भी सेवा दी।
2001 के टापर आलोक रंजन झा ने हिंदू कालेज से स्नातक करने के बाद जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से एमफिल किया। इनके बाद फिर टापर के लिए लंबा इंतजार करना पड़ा और 20 साल बाद कटिहार के शुभम कुमार यूपीएससी में टाप किया है । शुभम ने बोकारो से 12वीं की। फिर बॉम्बे आईआईटी से सिविल इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन किया है।
1961 बैच के सेवानिवृत्त आइएएस अधिकारी आइसी कुमार का कहना है कि 1960 से पहले बिहार से करीब 26 आइसीएस थे। इसके बाद 1960 में प्रथम स्थान पर पटना के जगन्नाथन मुरली, पांचवें स्थान पर रामास्वामी और 12वें स्थान पर पूर्व केंद्रीय वित्तमंत्री यशवंत सिन्हा थे।
1977 बैच के आईपीएस अधिकारी बिहार के पूर्व डीजीपी अभयानंद का कहना है कि पटना विश्वविधालय उस समय पढ़ाई के हर क्षेत्र में देश और दुनिया में पहचान स्थापित कर लिया था यूपीएससी को तो मक्का कहा जाता था।हर बैच में 25 से 30 छात्र यूपीएससी करता था ।1980 बैच के आईपीएस अधिकारी रहे राजवर्धन शर्मा जो 1967 में पटना सांइस कांलेज के छात्र थे उनका कहना था कि फिजिक्स ,अर्थशास्त्र और इतिहास विभाग का टांपर का यूपीएससी तय माना जाता था।
लेकिन आज बिहार के स्कूल कांलेज से पढ़े बच्चों के पास कर्मचारी बनने लाइक भी योग्यता नहीं है पिछले 10 वर्षो का बिहार बोर्ड का टापर का लिस्ट निकाल लीजिए देखिए वो क्या कर रहा है ।
पटना विश्वविधालय में पढ़ने वाले पूर्ववर्ती छात्रों का कहना है कि एक रणनीति के तहत बिहार के नेताओं ने पटना विश्वविधालय को बर्वाद किया है और इस बर्वादी में ताबूत में आखिरी कील इंटरमीडियट की पढ़ाई खत्म करने का निर्णय रहा आज बिहार के बजट की बात करे तो सबसे अधिक राशी 17 प्रतिशत 38035.93 करोड़ रुपये खर्च शिक्षा पर ही हो रहा है परिणाम आपके सामने हैं ।
बिहार में जहां कही से भी उम्मीद की छोटी सी किरणें दिखायी दे रही है उसके निर्माण में बिहार के किसी भी संस्थान को कोई योगदान नहीं है। छात्र,मजदूर ,किसान और व्यापारी जो बिहार का नाम रोशन कर रहा है वो सभी व्यक्तिगत प्रयास से सफलता हासिल किया है ।
चलते चलते–मुद्दतें बीत गयी आज पर
यार-ए-ज़िद्द ना गयी
बंद कर दिए गए दरवाजे
मगर उम्मीद ना गयी !!