सुशील मोदी की राजनीति अभी तक बालिग नहीं हो पाई. संभवतः इसीलिए इनकी पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने बिहार की राजनीति से उनको अलग किया था।
जब दिल्ली ले जाए गए तो उनके भक्तों को उम्मीद थी कि बिहार में इतने लंबे समय तक वित्त विभाग को इन्होंने कुशलता से संभाला है. अब निर्मला सीतारमण की कुर्सी पर सुशील जी का बैठना तो पक्का ही है. लेकिन दिल्ली वालों ने तो इनके हल्केपन को पहचान कर ही बिहार को इनसे मुक्त कराया था. इसीलिए बिहार के मीडिया में बयान देने के लिए ही इनको छुट्टा छोड़ दिया है।
लालू जी के यहां छापेमारी के मामले में अपने को काबिल साबित करने की हड़बड़ी में सुशील जी अपनी दिल्ली सरकार को ही नाकाबिल साबित कर रहे हैं. उनका दावा है कि लालू जी के खिलाफ सीबीआई जाँच की माँग को मनमोहन सिंह ने दबा दिया था. लेकिन मनमोहन सिंह की सरकार तो 2014 में ही चली गई थी. उसके बाद से अब तक तो यानी आठ वर्षों से तो दिल्ली में बड़े मोदी जी की ही सरकार है. यह सरकार इतनी नाकाबिल है कि छह वर्षों दबे उस ज्ञापन को खोज निकालने में उसको आठ वर्ष लग गए. वह भी कब ! जब नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के बीच दूरी घटती हुई नज़र आ रही है।
हमारा सवाल तो यही था. लालू यादव के यहाँ सीबीआई की छापेमारी कहीं नीतीश जी के लिए चेतावनी तो नहीं थी शिवानन्द