सिंगापुर के प्रधानमंत्री ली सीन लूंग ने ‘देश में लोकतंत्र को कैसे काम करना चाहिए’ विषय पर आयोजित बहस पर चर्चा करते हुए कहां कि ‘ज्यादातर देश उच्च आदर्शों और महान मूल्यों के आधार पर स्थापित होते हैं और शुरू होते हैं, लेकिन अक्सर संस्थापक नेताओं और अग्रणी पीढ़ी के बाद दशकों और पीढ़ियों में धीरे-धीरे चीजें बदल जाती हैं।
‘स्वतंत्रता के लिए लड़ने और जीतने वाले नेता अक्सर महान साहस, अपार संस्कृति और उत्कृष्ट क्षमता वाले असाधारण व्यक्ति होते हैं। वे आग में तपकर आए और लोगों और राष्ट्रों के नेताओं के रूप में उभरे। वे डेविड बेन-गुरियन्स हैं, जवाहरलाल नेहरू हैं, और हमारे अपने भी हैं।
‘लेकिन आज नेहरू के भारत की बात करे तो मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, लोकसभा में लगभग आधे सांसदों के खिलाफ दुष्कर्म और हत्या के आरोपों सहित आपराधिक मामले लंबित हैं। हालांकि यह भी कहा जाता है कि इनमें से कई आरोप राजनीति से प्रेरित हैं।’ लेकिन सवाल तो है ऐसे में लोकतंत्र कैसे बचेगा जब चुन कर आने वाले प्रतिनिधियों का चरित्र दागदार हो भ्रष्ट हो ।
वही दूसरी और आज बिहार विधानसभा के स्थापना दिवस के अवसर पर विधानसभा और विधान परिषद के सदस्यों के लिए आज प्रबोधन कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस मौके पर बिहार सरकार के संसदीय कार्य मंत्री विजय चौधरी ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश द्वारा शराबबंदी कानून को लेकर सवाल खड़े किये जाने पर कहा कि आज हर कोई हमलोग पर अंगुली उठाने के लिए तैयार बैठा रहता है। मौका मिला नहीं कि हम लोगों पर उंगली उठा दी जाती है। आज शराबबंदी पर एक संस्था की तरफ से अंगुली उठाई जा रही है।
मंत्री विजय चौधरी ने कहा कि लोकसभा अध्यक्ष पूरे देश के विधायिका के कस्टोडियन हैं। आज बिहार की शऱाबबंदी कानून पर सवाल खड़े किये गये और कहा गया कि बिना समझ के कानून बना दिया गया। जबकि भारत का संविधान इसी विधायिका ने बनाया है ऐसे में आप विधायिका को बचाने के लिए आगे आयें। उन्होंने कहा कि गाहे-बगाहे शराबबंदी कानून को उदाहरण के तौर पर बताया गया और कहा गया कि विधायिका ने बिना सोचे-समझे कानून बना दिया। विजय चौधरी ने इस पर गहरी आपत्ति जताई और लोकसभा अध्यक्ष को आगे आने को कहा।
मुझे लगता है विजय चौधरी के सवाल का जवाब सिंगापुर के प्रधानमंत्री ली सीन लूंग के भाषण में निहित है और आने वाले समय में खास करके भारत में जिस तरीके के प्रतिनिधि चुनाव जीत कर आ रहे हैं क्या होगा भारतीय लोकतंत्र कर सोच कर मन सिहर जाता है इसके लिए कोई और नहीं राजनीतिक दल ही जिम्मेदार है जो सत्ता में बने रहने के लिए हर क्षण अलोकतांत्रिक निर्णय लेते रहते हैं और ऐसे ऐसे लोगों को सांसद और विधायक का टिकट देते हैं जिन्हें लोकतंत्र से कोई वास्ता नहीं है ना समझदारी है ये सब पहले जाति के नाम पर चला और अब राष्ट्रवाद के आड़ में चल रहा है गौर से सोचिए आजादी के आन्दोलन वाली पीढ़ी के जाने के बाद भारतीय लोकतंत्र राजनीतिक दल किसी दिशा में ले गये हैं कैसे लोगों को वो टिकट दे रहे हैं ।
यह तर्क कि अपराधी को जनता वोट देती है तो पार्टी मजबूरी हो जाती है ऐसे लोगों को टिकट दे सही है लेकिन ऐसे लोगों के सदन में आने से लोकतांत्रिक मूल्य कैसे स्थापित होगा ये कौन सोचेंगा बिहार में विधान परिषद का चुनाव होने वाला है पार्टियां कैसे कैसे लोगों को टिकट दे रही है ऐसे में सवाल उठना लाजमी है खुद सरकार नहीं चाहती है कि सदन चले जनता से जुड़े मुद्दों पर बहस हो ।नारों और व्यक्तिगत लाभ से जुड़ी योजनाओं के सहारे कब तक लोकतंत्र के पहिया को खींच सकते हैं