बिहार विधानसभा के दो सीटों पर होने वाली उप चुनाव को लेकर बिहार में सियासी घमासान चरम पर पहुंच गया है ।जदयू के लिए इन दोनों सीटों पर चुनाव जीतना पार्टी के जीवन और मरण से जुड़ा हुआ है। वही राजद इस चुनाव के सहारे यह तय करना चाह रही है कि आने वाले समय में महागठबंधन का स्वरूप क्या होगा।
जदयू उप चुनाव में दोनों सीट पर जीत हासिल करे इसके लिए अपना सब कुछ दाव पर लगा दिया है और पार्टी में चल रहे अंतर्विरोध पर विराम लगाते हुए नीतीश कुमार ने कुशेश्वर स्थान विधानसभा उप चुनाव का कमान आरसीपी सिंह को दिया है और तारापुर का कमान ललन सिंह को दिया है।
वही ऐसा लगा रहा है जैसे राजद 2024 के लोकसभा और 2025 के विधानसभा चुनाव में महागठबंधन के अंदर कांग्रेस की क्या हैसियत रहेंगी इसको लेकर लड़ाई लड़ रहा है।बिहार की राजनीति पर नजर रखने वाले विशेषज्ञों का मानना है कि अभी तेजस्वी के सामने प्राथमिकता मिल कर चुनाव लड़ने की होनी चाहिए थी क्यों कि उपचुनाव में जदयू दोनों सीट हार जाती है तो तेजस्वी और मजबूत होंगे।
लेकिन 2020 के विधानसभा चुनाव में जिस तरीके से तेजस्वी के साथ बिहार के युवा जुड़े उससे तेजस्वी का विश्वास चरम पर है ऐसे में तेजस्वी बिहार विधानसभा के इस उप चुनाव के सहारे कांग्रेस के कन्हैया फैक्टर और चाचा नीतीश से एक साथ दो दो हाथ करने की तैयारी कर ली हालांकि जानकार कहते हैं तेजस्वी का यह फैसला आत्मघाती भी साबित हो सकता है और इस बात को लालू प्रसाद बखूबी समझ भी रहे हैं और यही वजह है कि लालू प्रसाद पार्टी उम्मीदवार के समर्थन में बीमार रहने के बावजूद प्रचार करने का फैसला लिया है।
1–नीतीश कुमार का राह आसान हो गया
2020 के विधानसभा चुनाव का जो परिणाम सामने आया था उससे नीतीश को काफी धक्का लगा भले ही नीतीश के उस हार का सेहरा चिराग के सिर बंधा था लेकिन सच्चाई ये भी था कि बिहार की जनता नीतीश से उब चुकी थी और कुछ नया करना चाह रही थी अभी भी नीतीश कुमार को लेकर जमीन पर अभी भी नजरिया नहीं बदला है लेकिन जिस तरीके से तेजस्वी कांग्रेस को अलग करके महागठबंधन को तोड़ा है उससे नीतीश कुमार की राह आसान हो गयी ।
क्यों कि कांग्रेस से अलग होने की स्थिति में इन दोनों विधानसभा क्षेत्र में चिराग फैक्टर कमजोर पड़ जायेगा क्यों कि नीतीश विरोधी वोट उस तरह के आक्रमक नहीं हो पाएगा जैसा 2020 के विधानसभा चुनाव के दौरान देखने को मिला था ।ऐसा इसलिए होगा कि 2020 के विधानसभा चुनाव में चिराग के साथ पासवान छोड़कर जो भी वोटर जुड़े थे उनकी एक ही मंशा था नीतीश को हराना है लेकिन इस उप चुनाव में कांग्रेस के अलग होने से नीतीश से नाराज वोटर चिराग के साथ पूरी तौर चला जायेगा ऐसा होता दिख नहीं रहा है क्यों कि नाराज वोटर के चिराग के साथ जाने के बावजूद नीतीश कुमार हारते हुए नहीं दिख रहे हैं ऐसे में बिहार को कोई वोटर अपना वोट बर्वाद नहीं करना चाहेगा क्यों कि बिहार के वोटरों का लक्ष्य स्पष्ट रहता है ।
वैसे महागठबंधन साथ चुनाव लड़ता तो कुशेश्वर स्थान जहां कांग्रेस के प्रत्याशी अशोक राम का अपना व्यक्तिगत संबंध 1980 से है जब उनके पिता बालेश्वर राम रोसड़ा से लोकसभा चुनाव लड़े थे और वो संबंध पीढ़ी दर पीढ़ी से चला आ रहा है ।इसलिए राजद पूरी ताकत भी झौक देगी तब भी यादव और मुस्लिम वोट में 20से 30 प्रतिशत डिवीजन कराने में कामयाब हो जायेंगे इसके अलावा दलित में राम जाति का भी वोट वहां है।
वही बात चिराग की करे तो 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में उनका उम्मीदवार 13 हजार से अधिक वोट लाया था फिर भी जदयू सात हजार से अधिक वोट से जीत गया था इस बार अगर महागठबंधन साथ रहता तो चिराग यहां करिश्मा कर सकता था क्यों कि रामविलास पासवान का ननिहाल कुशेश्वर स्थान ही है और रामविलास पासवान और रामचंद्र पासवान रोसड़ा लोकसभा से जब चुनाव लड़ते थे उस समय कुशेश्वर स्थान विधानसभा क्षेत्र रोसड़ा लोकसभा क्षेत्र में ही पड़ता था इसलिए रामविलास पासवान का भी इस इलाके से घरेलू रिश्ता रहा है और इस इलाके के ब्राह्मण और राजपूत वोटर से इनका व्यक्तिगत रिश्ता रहा है लेकिन महागठबंधन टूटने से चिराग खास करके सवर्ण वोटर जो जदयू प्रत्याशी शशी हजारी से खासा नाराज है ऐसे में चाह करके भी वोट नहीं दे पाएंगा क्यों कि इस स्थिति में राजद उम्मीदवार चुनाव जीत सकता है अगर कांग्रेस रहता तो यहां को सवर्ण वोटर यह दांव खेल सकता था।
ऐसी ही स्थिति तारापुर विधानसभा में भी उत्पन्न हो सकती है चिराग के प्रत्याशी को 2020 के चुनाव में यहां सात हजार के करीब वोट आया था इस बार सात हजार वोट भी आ जाये तो बड़ी बात होगी क्योंकि यहां भी गठबंधन टूटने का असर दिखेगा अगर पप्पू यादव कांग्रेस से लड़ गया तो फिर राजद का हार निश्चित है ।
2– अब उपचुनाव में तेजस्वी का साख दाव पर लग गया है
हालांकि महागठबंधन साथ साथ चुनाव लड़ता और जदयू चुनाव जीत भी जाती तो राजद के सेहत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता लेकिन अब अगर राजद दोनों सीट हार जाती है और कांग्रेस मुस्लिम वोट में डिवीजन कराने में कामयाब हो जाती है तो फिर 2024 के लोकसभा चुनाव और 2025 के विधानसभा चुनाव में चुनाव में राजद उस हैसियत में चुनाव नहीं लड़ पायेंगी जिस हैसियत राजद 2019 का लोकसभा और 2020 का विधानसभा चुनाव लड़ा था वही दूसरी और जिस तरीके से कांग्रेस विधायक दल के नेता अजीत शर्मा सहित कई विधायक राजद से दो दो हाथ करने की बात रह रहे हैं ऐसे में कांग्रेस आलाकमान थोड़ा कमजोर पड़े तो उप चुनाव बाद कांग्रेस के विधायकों में बड़ी टूट हो जाये तो कोई बड़ी बात नहीं होगी ।
इसलिए तेजस्वी का यह दाव आत्मघाती साबित हो जाये तो कोई बड़ी बात नहीं होगी क्योंकि कांग्रेस के अलग होने से नीतीश कुमार एक बार फिर मजबूत हो सकते हैं और ऐसे में नीतीश कुमार बीजेपी से और अधिक से अधिक मोलजोल करने की स्थिति में आ जायेंगे ।