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UPSC Result 2022: बिहार का UPSC पर कब्जा, टॉपर बनीं पटना की इशिता किशोर; द्वितीय स्थान पर गरिमा लोहिया

UPSC सिविल सेवा परिणाम 2022: यूपीएससी परीक्षा अपने कठिन स्तर और प्रतिस्पर्धात्मकता के लिए प्रसिद्ध है। UPSC ने मंगलवार को सिविल सेवा अंतिम परिणाम 2022 घोषित कर दिया गया। इशिता किशोर इस साल UPSC IAS टॉपर बनी हैं।

संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) ने अपनी आधिकारिक वेबसाइट- upsc.gov.in पर सिविल सेवा अंतिम परिणाम 2022 घोषित कर दिया है। इशिता किशोर इस साल UPSC IAS टॉपर बनी हैं। उम्मीदवार यूपीएससी की मेरिट लिस्ट ऑनलाइन चेक कर सकते हैं।

नियुक्ति के लिए कुल 1022 का चयन किया गया है। भारतीय प्रशासनिक सेवा के लिए कुल 180 उम्मीदवारों का चयन किया गया है। भारतीय विदेश सेवा के लिए 38 और भारतीय पुलिस सेवा के लिए 200 का चयन किया गया है।

UPSC TOPPER 2022

473 का चयन केंद्रीय सेवा समूह ‘ए’ और 131 का चयन समूह ‘बी’ सेवाओं के लिए किया गया है। अनुशंसित 101 उम्मीदवारों की उम्मीदवारी अनंतिम है। ऐसे उम्मीदवारों के रोल नंबरों की सूची मेरिट सूची में उल्लिखित है।।

यूपीएससी आईएएस टॉपर लिस्ट 2022

RankNameRoll Number
1Ishita Kishore5809986
2Garima Lohia1506175
3Uma Harathin N1019872
4Smriti Mishra0858695
5Mayur Hazarika0906457
6Gahana Navya James2409491
7Waseem Ahmad Bhat1802522

UPSC RESULT 2022 यहां देखें टॉपर्स की लिस्ट

उम्मीदवार यूपीएससी की मेरिट लिस्ट ऑनलाइन चेक कर सकते हैं। यूपीएससी मेरिट लिस्ट 2022 की जांच के लिए सीधा लिंक-

  • यूपीएससी सीएसई फाइनल मेरिट लिस्ट 2022 कैसे चेक करें
  • आधिकारिक वेबसाइट upsc.gov.in पर जाएं
  • होमपेज पर उस लिंक पर क्लिक करें जिसमें UPSC CSE मुख्य परिणाम 2022 (अंतिम) लिखा हो
  • स्क्रीन पर एक पीडीएफ फाइल खुलेगी
  • पीडीएफ फाइल में यूपीएससी सिविल सेवा मुख्य अंतिम परिणाम 2022 होगा।
  • मेरिट लिस्ट चेक करें और उसे डाउनलोड करें

पटना हाईकोर्ट ने अपर मुख्य सचिव और सीतामढ़ी विशेष उत्पाद जज 2 के खिलाफ अवमानना मामला दर्ज करने का आदेश दिया

पटना हाईकोर्ट के फैसला को नजरअंदाज कर जब्त सामान को नहीं छोड़े जाने पर सख्त रुख अपनाया। कोर्ट ने अपर मुख्य सचिव और सीतामढ़ी विशेष उत्पाद जज 2 के खिलाफ अवमानना मामला दर्ज करने का आदेश दिया है।

चीफ जस्टिस के वी चन्द्रन और जस्टिस मधुरेश प्रसाद की खंडपीठ ने मेरठ के जीनेथ कंपनी की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के बाद जब्त सामान को छोड़ने और इन अधिकारियों के खिलाफ अवमानना अर्जी दर्ज करने का आदेश दिया।

आवेदक के अधिवक्ता रोहित सिंह ने कोर्ट को बताया कि अस्पतालो में इस्तेमाल होने वाले समान को मेरठ के ट्रांसपोर्टर के यहां माल बुक कराया गया।उन्होंने कोर्ट को बताया कि ट्रांसपोर्टर ने ट्रक से बुक सामान को असम भेजा।

बिहार के सीतामढ़ी के रास्ते जब ट्रक जा रहा था, तो उत्पाद विभाग के अधिकारियों ने ट्रक रुकवा जांच किया।अधिकारी ने जो प्राथमिकी दर्ज की है, उसके अनुसार ट्रक जांच के दौरान दो हजार लीटर से ज्यादा विदेशी शराब जब्त किया गया।

इस दौरान ट्रक का ड्राइवर और खलासी भागने में कामयाब हो गये।उनका कहना था कि बुक समान को छोड़ने के लिए हाई कोर्ट में एक अर्जी दायर की गई थी।

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि अस्पताल में इस्तेमाल होने वाले समान को उत्पाद कानून के तहत जब्त नहीं किया जा सकता।

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कोर्ट ने सीतामढ़ी के विशेष उत्पाद जज को जब्त सामान को छोड़ने के बारे में कानून के तहत आदेश जारी करे।कोर्ट के आदेश के आलोक में आवेदक ने अर्जी दायर की।

लेकिन विशेष उत्पाद जज ने उसे खारिज कर दिया।इसके बाद आवेदक ने उत्पाद आयुक्त के समक्ष अपील दायर किया।आयुक्त ने भी अपील को खारिज कर दिया।

इस आदेश के वैधता को अपर मुख्य सचिव के समक्ष रिवीजन दायर कर चुनौती दी।अपर मुख्य सचिव ने हाई कोर्ट के पूर्व के आदेश को देख उसे नहीं मानते हुये जब्त सामान को छोड़ने से इंकार करते हुए उसे नीलाम कार्रवाई करने का आदेश दिया।

अपर मुख्य सचिव के आदेश सहित अन्य अधिकारियों द्वारा दिए गए आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी।

कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई कर जब्त सामान को छोड़ने का निर्देश दिया।साथ ही हाईकोर्ट के आदेश उल्लंघन करने को लेकर अपर मुख्य सचिव और सीतामढ़ी के विशेष उत्पाद जज दो के खिलाफ अवमानना का मामला दर्ज करने का आदेश हाई कोर्ट प्रशासन को दिया है।

पटना हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण निर्णय से हत्या के प्रयास में 10 साल की सजा पाए अभियुक्त को रिहा कर दिया

पटना हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण निर्णय से हत्या के प्रयास में दस साल की सजा पाए अभियुक्त को रिहा कर दिया ।जस्टिस आलोक कुमार पांडेय ने चंदन कुमार मंडल की अपील याचिका पर स्वीकृति देते हुए उसे रिहा कर दिया ।

शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि 06.09.2016 को शाम करीब 7.30 बजे जब वह शौच के लिए जा रही थी,तब वहां अपीलकर्ता और अन्य लोगों ने उसे पकड़ लिया और उसको मारने के इरादे से चाकू से वार किया। जिसके परिणामस्वरूप उसकी गर्दन और पेट के दाहिने हिस्से में चोटें आईं और वह जमीन पर गिर गई।

चीख सुनकर पीड़िता का पति और अन्य ग्रामीण जब आये, तो अपीलकर्ता और अन्य लोगो मौके से भाग गए।

याचिकाकर्ता पर आईपीसी की धारा 307, 324 और 341 के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी । जिस पर निचली अदालत ने याचिकाकर्ता को दंडनीय अपराधों के लिए दोषी ठहराते हुए धारा 307 के तहत पांच हजार रुपये के जुर्माने के साथ दस साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई थी।साथ ही आईपीसी की धारा 324 के तहत अपराध के लिए एक हजार के जुर्माने के साथ तीन साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई थी।

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याचिकाकर्ता के अधिवक्ता मनोहर प्रसाद सिंह ने कोर्ट में दलील दी थी कि प्राथमिकी दर्ज कराने में देरी की गई । उन्होंने कोर्ट को बताया की घटना स्थल के विवरण में परस्पर विरोधाभास पाया गया है ।

एपीपी एएमपी मेहता ने याचिका का कड़ा विरोध किया।तथ्यों का अवलोकन कर अदालत ने याचिकाकर्ता की 6 साल की हिरासत के मद्देनजर उसे रिहा कर दिया और उसकी शेष सजा को खत्म कर दिया।

पटना हाइकोर्ट ने नवनीत कुमार द्वारा उत्तर बिहार ग्रामीण बैंक में सौ करोड़ रुपए के घोटाले के मामलें में दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की

पटना हाइकोर्ट ने नवनीत कुमार द्वारा उत्तर बिहार ग्रामीण बैंक में सौ करोड़ रुपए के घोटाले के मामलें में दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की। जस्टिस पी बी बजनथ्री व जस्टिस ए अभिषेक रेड्डी के डिवीजन बेंच द्वारा की गई।

याचिकाकर्ता के एडवोकेट श्री शिव प्रताप ने बताया कि सुनवाई के दौरान कोर्ट द्वारा भारत सरकार और केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो को 5 सप्ताह में अपना जवाब दायर करने का निर्देश दिया I मामले की अगली सुनवाई 26 जून,2023 को होगी ।

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गौरतलब है कि इस मामले में पिछले वर्ष मार्च में मुजफ्फरपुर के कोर्ट के आदेश पर काजी मुहम्मदपुर थाने में सौ करोड़ रुपए के घोटाले की प्राथमिकी दर्ज हुई थी, लेकिन इसमें कोई भी प्रगति नहीं हुई ।

याचिकाकर्ता के द्वारा सितम्बर, 2022 में एक जनहित याचिका दायर की गई थी,जिसमें पूरे मामले की जांच सीबीआई और इ डी से कराने की मांग की गई थी ।

पटना हाईकोर्ट ने पटना मुख्य नहर के बांध व चार्ट भूमि पर अतिक्रमणकारियों द्वारा किये गए अतिक्रमण के मामले पर सुनवाई की

पटना हाईकोर्ट ने पटना मुख्य नहर के बांध व चार्ट भूमि पर अतिक्रमणकारियों द्वारा किये गए अतिक्रमण के मामले पर सुनवाई की। चीफ जस्टिस के वी चंद्रन व जस्टिस मधुरेश प्रसाद की खंडपीठ के समक्ष राज किशोर श्रीवास्तव की जनहित याचिका पर सुनवाई हुई।

अतिक्रमणकारी की ओर से उपस्थित अधिवक्ता ने इस मामले में अधिकारी के समक्ष अपनी बात को रखने की बात कही। कोर्ट का कहना था कि अभी सुनवाई खंडपीठ कर रही है।

इसके बाद खंडपीठ ने अतिक्रमणकारी के अधिवक्ता की दलील को सुनने के बाद उनकी याचिका को खारिज कर दिया।याचिकाकर्ता के अधिवक्ता सुरेंद्र कुमार सिंह ने हाई कोर्ट द्वारा विगत 5 मई, 2023 को इस मामले में पारित किए गए आदेश का हवाला दिया गया। इसमें दानापुर के अंचलाधिकारी ने अन्य बातों के अलावा चार सप्ताह में कम से कम 70 फीसदी अतिक्रमण को हटाने की बात कही थी।

इस बीच कोर्ट ने राज्य सरकार को विकल्प तलाशने को भी कहा है।इस नहर बांध व चार्ट भूमि पर अतिक्रमण की स्थिति को दानापुर के अंचलाधिकारी ने भी स्वीकार किया है।

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सोन नहर प्रमंडल, खगौल, पटना द्वारा अतिक्रमण वाद दायर करने के लिए दानापुर के अंचलाधिकारी को लिखा गया था, लेकिन अभी तक इसे नहीं हटाया गया।

सोन नहर प्रमंडल के कार्यपालक अभियंता द्वारा दानापुर के अंचलाधिकारी को अतिक्रमणकारियों की सूची भी अंचलाधिकारी को दी गई है।

कार्यपालक अभियंता ने अपने पत्र में विभागीय मुख्य नहर के बांध व चार्ट भूमि पर किये गए अतिक्रमण को अतिक्रमणकारियों के विरुद्ध अतिक्रमण वाद दायर कर ठोस अग्रेतर कार्रवाई करने हेतु अनुरोध किया था, ताकि विभागीय भूमि अतिक्रमणकारियों से मुक्त हो सके।

इस मामले में आगे की सुनवाई अब अगली सुनवाई 31जुलाई,2023 को की जाएगी।

पटना हाईकोर्ट ने स्वतंत्रता सेनानियो के पौत्र पौत्रियों को हाई कोर्ट नियुक्तियों में आरक्षण देने से साफ इंकार करते हुए दायर याचिका को रद्द को कर दिया

पटना हाईकोर्ट ने स्वतंत्रता सेनानियो के पौत्र पौत्रियों को हाई कोर्ट नियुक्तियों में आरक्षण देने से साफ इंकार करते हुए दायर याचिका को रद्द को कर दिया।जस्टिस राजीव रंजन प्रसाद ने विकाश कुमार की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के बाद यह आदेश दिया।

कोर्ट को बताया गया कि हाई कोर्ट ने 550 सहायको की बहाली के लिए गत 3 फरवरी,2023को एक विज्ञापन जारी किया था।इस विज्ञापन में सभी को आरक्षण दिया गया, लेकिन स्वतंत्रता सेनानियो के पोता पोती को दिये जाने वाले दो प्रतिशत आरक्षण का लाभ नहीं दिया गया।

उनका कहना था कि राज्य सरकार ने 10 फरवरी 2016 को पत्रांक 2526 जारी कर स्वतंत्रता सेनानी के पौत्र पौत्रिओं को दो प्रतिशत आरक्षण देने का निर्णय लिया था।जिसका लाभ हाई कोर्ट अपने यहां के बहाली में नहीं दे रहा है।

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जबकि हाई कोर्ट के नियमावली के नियम 10 के तहत आरक्षण देने का प्रावधान है।वही हाई कोर्ट की ओर से इस याचिका का विरोध करते हुए कोर्ट को बताया गया कि इस बहाली में एससी /एसटी सहित ईबीसी /बीसी /ईडब्ल्यूएस को निर्धारित प्रतिशत के अनुसार आरक्षण दिया जा रहा है।

उनका कहना था कि हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस के आदेश के बाद नियमावली के नियम 10 के तहत आरक्षण दिया जाता हैं।कोर्ट ने दोनों पक्षों का दलील सुनने के बाद अर्जी को कोर्ट ने खारिज कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट में जातीय जनगणना से सम्बंधित मामलें पर सुनवाई अगले बेंच के गठन होने तक टली

सुप्रीम कोर्ट में जातीय जनगणना से सम्बंधित मामलें पर सुनवाई अगले बेंच के गठन होने तक टली। सुप्रीम कोर्ट मे जज जस्टिस संजय करोल ने इस मामलें पर सुनवाई से अपने को अलग किया।

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजय क़रोल ने पटना हाइकोर्ट के चीफ जस्टिस के रूप में इस मामलें पर सुनवाई की थी।

सुप्रीम कोर्ट में राज्य सरकार ने पटना हाइकोर्ट के उस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी,जिसमें कोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा राज्य में जातियों की गणना एवं आर्थिक सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर शीघ्र सुनवाई करने सम्बन्धी याचिका को रद्द कर दिया था।

साथ ही राज्य सरकार ने पटना हाइकोर्ट द्वारा 4 मई, 2023को पारित अंतरिम आदेश को भी चुनौती दी गई है। चीफ जस्टिस के वी चन्द्रन की खंडपीठ ने राज्य सरकार के 3 जुलाई,2023 के पूर्व सुनवाई करने की याचिका को कोर्ट ने 9मई,2023 को सुनवाई करने के बाद खारिज कर दिया था।

इस आदेश विरुद्ध को राज्य सरकार ने एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर कर की है।पटना हाइकोर्ट ने इन मामलों पर सुनवाई की तिथि 3 जुलाई,2023 ही रखा। 9 मई, 2023 को सुनवाई करने के बाद हाईकोर्ट ने इन मामलों पर सुनवाई की तिथि 3 जुलाई,2023 ही निश्चित किया था।

गौरतलब कि पहले 4मई,2023 को कोर्ट ने अंतरिम आदेश देते हुए जातीय जनगणना पर रोक लगा दी थी।चीफ जस्टिस के वी चन्द्रन की खंडपीठ ने अंतरिम आदेश पारित करते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि राज्य सरकार इस दौरान इक्कठी की गई आंकड़ों को शेयर व उपयोग फिलहाल नहीं करेगी।

Supreme-court-on-Bihar-caste-based-survey
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पटना हाइकोर्ट में राज्य सरकार द्वारा दायर याचिका में ये कहा गया था कि क्योंकि पटना हाइकोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि राज्य सरकार के पास जातीय जनगणना कराने का वैधानिक अधिकार नहीं है,इसीलिए इन याचिकाओं पर 3 जुलाई,2023 को सुनवाई करने का कोई कारण नहीं है।

साथ ही कार्यपालिका के पास जातीय जनगणना कराने का क्षेत्राधिकार नहीं है।इसे कोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में स्पष्ट कर दिया था।

कोर्ट ने ये भी कहा था कि जातीय जनगणना से जनता की निजता का उल्लंघन होता है।इस सम्बन्ध में विधायिका द्वारा कोई कानून भी नहीं बनाया गया है।

कोर्ट ने अपने 4 मई, 2023 के अंतरिम आदेश में जो निर्णय दिया है,उसमें सभी मुद्दों पर अंतिम निर्णय दिया गया।कोर्ट ने इन याचिकाओं में उठाए गए मुद्दों पर अंतिम रूप से निर्णय दे दिया है।

राज्य सरकार ने अपनी याचिका में कहा था कि इस सर्वेक्षण का मुख्य उद्देश्य
लोगों के लिए कल्याणकारी और विकास की योजना तैयार है।इसका किसी अन्य कार्य के लिए कोई उद्देश्य नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट में राज्य सरकार की इस याचिका पर सुनवाई के लिए जस्टिस बी आर गवाई और जस्टिस संजय करोल के बेंच का गठन किया गया था।लेकिन चूंकि जस्टिस संजय करोल ने इस मामलें की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया।

अतः इस मामलें की सुनवाई के लिए फिर बेंच गठित होने के बाद सुनवाई की जाएगी।

पटना हाई कोर्ट ने राज्य के पशु चिकित्सालयों में ड्रग व कॉस्मेटिक्स एक्ट के तहत फार्मासिस्टों के पद सृजित और नियुक्ति नहीं होने के मामलें पर राज्य सरकार से जवाबतलब किया

पटना हाई कोर्ट ने राज्य के पशु चिकित्सालयों में ड्रग व कॉस्मेटिक्स एक्ट के तहत फार्मासिस्टों के पद सृजित और नियुक्ति नहीं होने के मामलें पर राज्य सरकार से जवाबतलब किया।चीफ जस्टिस के वी चन्द्रन की खंडपीठ ने विकास चंद्र ऊर्फ गुड्डू बाबा की जनहित याचिका पर सुनवाई की।

कोर्ट इस जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि इस एक्ट की तहत फार्मासिस्टों पद सृजित व नियुक्ति की जानी चाहिए, ताकि पशु अस्पतालों में दवाओं की देखभाल और वितरण इन फार्मासिस्टों के जरिये सुनिश्चित किया जा सके।

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याचिकाकर्ता का कहना है कि राज्य वेटेरिनरी डायरेक्टरेट के लोक सूचना अधिकारी द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार फिलहाल राज्य के वर्ग – एक के पशु चिकित्सालयों में फार्मासिस्ट के पदों की मंजूरी नहीं दी गई है। इस मामले पर अगली सुनवाई 14 जुलाई,2023 को की जाएगी।

पटना हाइकोर्ट में राज्य में पुलिस स्टेशनो की दयनीय अवस्था और बुनियादी सुविधाएँ उपलब्ध नहीं होने के मामलें पर सुनवाई 10 जुलाई,2023 को की जाएगी

पटना हाइकोर्ट में राज्य में पुलिस स्टेशनो की दयनीय अवस्था और बुनियादी सुविधाएँ उपलब्ध नहीं होने के मामलें पर सुनवाई 10 जुलाई,2023 को की जाएगी।चीफ जस्टिस के वी चन्द्रन की खंडपीठ ने इस मामलें पर सुनवाई की।

पिछली सुनवाई में कोर्ट ने राज्य सरकार को पुलिस स्टेशन भवनों के निर्माण व सुधार के लिए उपलब्ध फंड के सम्बन्ध में पंद्रह दिनों में विस्तृत ब्यौरा प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था।

पूर्व की सुनवाई में कोर्ट ने राज्य सरकार को मॉडल पुलिस थाने के निर्माण पर विचार करने के लिए राज्य के विकास आयुक्त की अध्यक्षता में एक कमिटी गठित करने का निर्देश दिया था। राज्य सरकार की ओर से बिहार व अन्य राज्यों के मॉडल पुलिस थाने के सम्बन्ध में जानकारी दी गई थी।

कोर्ट ने जानना चाहा था कि पुलिस स्टेशनों के निर्माण व सुधार के लिए उपलब्ध फंड के सम्बन्ध में कितने दिनों में जानकारी दी जा सकती है।राज्य सरकार ने कोर्ट को बताया था कि पंद्रह दिनों में इस सम्बन्ध ब्यौरा प्रस्तुत कर दिया जाएगा।

कोर्ट द्वारा सहायता करने के लिए नियुक्त एमिकस क्यूरी सोनी श्रीवास्तव ने बताया कि पिछली सुनवाई में कोर्ट ने फंड की उपलब्धता के सम्बन्ध में ब्यौरा देने का निर्देश दिया था, लेकिन अब तक ये ब्यौरा कोर्ट में प्रस्तुत नहीं हुआ।

कोर्ट ने बिहार राज्य पुलिस भवन निर्माण निगम में काफी पद के रिक्त होने को काफी गम्भीरता से लिया था।उन्होंने राज्य सरकार को इन रिक्त पदों को शीघ्र भरने को कहा,ताकि पुलिस थाना भवनों का निर्माण कार्य तेजी से हो सके।

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एमिकस क्यूरी सोनी श्रीवास्तव ने कोर्ट को बताया था कि राज्य में 1263 थाना है,जिनमें 471 पुलिस स्टेशन के अपने भवन नहीं है।इन्हें किराये के भवन में काम करना पड़ रहा है।कोर्ट ने स्पष्ट किया कि राज्य में पुलिस स्टेशन भवनों का निर्माण और पुनर्निर्माण का कार्य समय सीमा के भीतर पूरा किया जाए।

जब तक दूसरे भवन में चल रहे पुलिस स्टेशन के लिए सरकारी भवन नहीं बन जाते,तब तक पुलिस अधिकारी कमल किशोर सिंह कॉर्डिनेटर के रूप में कॉर्डिनेट करेंगे।

इससे पहले भी पुलिस स्टेशन की दयनीय स्थिति और बुनियादी सुविधाओं का मामला कोर्ट में उठाया गया था।राज्य सरकार ने इन्हें सुधार लाने का वादा किया था,लेकिन ठोस परिणाम नहीं दिया था।

कोर्ट में सुनवाई के दौरान एमिकस क्यूरी अधिवक्ता सोनी श्रीवास्तव ने कोर्ट को बताया कि जो थाने सरकारी भवन में चल रहे हैं, उनकी भी हालत अच्छी नहीं है।उनमें भी बुनियादी सुविधाओं की काफी कमी है।

उन्होंने बताया कि पुलिस स्टेशन में बिजली,पेय जल,शौचालय जैसी बुनियादी सुविधाएँ भी उपलब्ध नहीं है। लगभग आठ सौ थाने ऐसे है, सरकारी भवनों में चल रहे है,लेकिन उनकी भी स्थिति अच्छी नहीं है।

उन्होंने कोर्ट को बताया कि जो थाना सरकारी भवन में है,उनमें भी निर्माण और मरम्मती की आवश्यकता है।उन्होंने बताया कि कई पुलिस स्टेशन के भवन की स्थिति खराब है।

पुलिसकर्मियों को काफी कठिन परिस्थितियों में और कई सुविधाओं के अभाव में कार्य करना पड़ता है।इस मामलें पर अगली सुनवाई 10 जुलाई,2023 को होगी।

पटना हाई कोर्ट ने मुजफ्फरपुर आई हॉस्पिटल में मोतियाबिंद के ऑपरेशन में कई व्यक्तियों के आंख की रौशनी खो जाने के मामले पर सुनवाई की

पटना हाई कोर्ट ने मुजफ्फरपुर आई हॉस्पिटल में मोतियाबिंद के ऑपरेशन में कई व्यक्तियों के आंख की रौशनी खो जाने के मामले पर सुनवाई की।चीफ जस्टिस के वी चन्द्रन की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता के अधिवक्ता को उन पीडितों के नाम देने का निर्देश दिया है,जिन्हें अब तक मुआबजा नहीं मिला है।

याचिकाकर्ता के अधिवक्ता विजय कुमार सिन्हा ने कोर्ट को बताया कि मुजफ्फरपुर आई हॉस्पिटल में मोतियाबिन्द के आपरेशन में 32 व्यक्तियों ने आँखों की रौशनी खो दिया था।इनमें से 19 पीडितों को राज्य सरकार द्वारा मुआबजा मिला है।लेकिन बाकी 13 पीडितों को अब तक भी मुआबजा नहीं मिला सका है।

कोर्ट ने इसे काफी गम्भीरता से लेते अधिवक्ता विजय कुमार सिन्हा को इन पीडितों के नाम कोर्ट के समक्ष देने का निर्देश दिया है।इसके बाद कोर्ट इन्हें मुआबजा देने का आदेश राज्य सरकार को देगा।मुकेश कुमार ने ये जनहित याचिका दायर की है।

कोर्ट ने पूर्व की सुनवाई में निदेशक प्रमुख,स्वास्थ्य सेवा और सिविल सर्जन, मुजफ्फरपुर द्वारा हलफनामा नहीं दायर करने को गम्भीरता से लिया थ।कोर्ट ने पिछली सुनवाईयों में मुजफ्फरपुर के एस एस पी को कार्रवाई रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था।

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कोर्ट ने पूर्व की सुनवाई में कहा था कि इस मामलें में गठित डॉक्टरों की कमिटी को चार सप्ताह मे अपना रिपोर्ट प्रस्तुत करें।

कोर्ट को बताया गया था कि आँखों की रोशनी गवांने वाले पीडितों को बतौर क्षतिपूर्ति एक एक लाख रुपए दिए गए हैं।साथ ही मुजफ्फरपुर आई हॉस्पिटल को बंद करके एफ आई आर दर्ज कराया गया था,लेकिन अब तक दर्ज प्राथमिकी पर ठोस कार्रवाई नहीं की गई ।

याचिकाकर्ता के अधिवक्ता विजय कुमार सिंह ने आरोप लगाया गया है कि कथित तौर पर आई हॉस्पिटल के प्रबंधन व राज्य सरकार के अधिकारियों द्वारा बरती गई अनियमितता और गैर कानूनी कार्यों की वजह से कई व्यक्तियों को अपनी आँखें की रोशनी खोनी पड़ी।

याचिका में आगे यह भी कहा गया है कि जिम्मेदार अधिकारियों व अस्पताल प्रबंधन के विरुद्ध प्राथमिकी भी दर्ज करनी चाहिए, क्योंकि इन्हीं की लापरवाही की वजह से सैकड़ों लोगों को अपनी ऑंखें गंवानी पड़ी।

इस मामले पर अगली सुनवाई 28 जुलाई,2023 को की जाएगी।

बिहार सरकार के मंत्री शमीम अहमद के विरुद्घ पटना हाई कोर्ट में श्याम बिहारी प्रसाद द्वारा दायर चुनाव अर्जी पर सुनवाई जारी रहेगी

राज्य सरकार के मंत्री शमीम अहमद के विरुद्घ पटना हाई कोर्ट में श्याम बिहारी प्रसाद द्वारा दायर चुनाव अर्जी पर सुनवाई जारी रहेगी। जस्टिस नवनीत कुमार पांडेय श्याम बिहारी प्रसाद की चुनाव याचिका पर सुनवाई कर रहे है।

हाई कोर्ट ने शमीम अहमद द्वारा दायर अर्जी को खारिज कर दिया। इस याचिका को रद्द करने के लिए अंतरिम याचिका दायर किया गया था।अंतरिम याचिका में कहा गया था कि इस याचिका में याचिका दायर करने को लेकर कारण नहीं बताया गया।

चुनाव याचिका के जरिये चुनाव को मोहम्मद शमीम अहमद के निर्वाचन को रद्द करने का कोर्ट से माँग किया गया है।आवेदक की ओर से वरीय अधिवक्ता एस डी संजय ने कोर्ट को बताया कि नामांकन पत्र दाखिल करने के वक्त मंत्री शमीम अहमद के विरुद्ध दो आपराधिक मुकदमें लंबित थे, जिसकी जानकारी उन्होंने अपनी राजनैतिक दल यानी आरजेडी को दी है।

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इसमें रकसौल थाना कांड से जुड़े हुए मुकदमें में फाइनल फॉर्म दाखिल किया गया है, जिसे कोर्ट ने भी स्वीकार कर लिया। इस मामले में मुद्दों को तय करने पर सुनवाई आगामी 18 मई,2023 को की जाएगी।

पटना हाइकोर्ट में मोदी सरनेम मामलें पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी की याचिका पर सुनवाई 4 जुलाई ,2023 तक टली

पटना हाइकोर्ट में मोदी सरनेम मामलें पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी की याचिका पर सुनवाई 4 जुलाई ,2023 तक टली। जस्टिस संदीप कुमार ने इस मामलें पर सुनवाई करते हुए स्पष्ट किया कि निचली कोर्ट के आदेश पर फिलहाल रोक जारी रहेगी।
पिछली सुनवाई में कोर्ट ने निचली अदालत के आदेश पर 15 मई, 2023 तक का रोक लगाते हुए राहुल गांधी को राहत दे दी थी।

गौरतलब है कि पटना की निचली अदालत ने उन्हें 12 अप्रैल,2023 को मोदी सरनेम मामलें में की गई टिप्पणी पर कोर्ट में उपस्थित हो कर अपना पक्ष प्रस्तुत करने को कहा था।निचली अदालत के उस आदेश के विरुद्ध राहुल गांधी ने आदेश को रद्द करने के लिए पटना हाइकोर्ट में एक याचिका दायर की थी।

कोर्ट ने उनकी याचिका स्वीकार करते हुए उन्हें राहत दी थी।इसके अनुसार उन्हें पटना की निचली अदालत में फिलहाल उपस्थित नहीं होना पड़ेगा।

PatnaHighCourt
#PatnaHighCourt

गौरतलब है कि 2019 उन्होंने कर्नाटक में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मोदी सरनेम को ले कर टिप्पणी की थी।इसी मामलें में बिहार के वरिष्ठ बीजेपी नेता और राज्य के पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी ने पटना के सिविल कोर्ट में परिवाद पत्र दायर किया था।

इस मामलें में सूरत की कोर्ट ने उन्हें दो वर्षों की सजा सुनाई थी,जिस कारण उन्हें अपनी संसद सदस्यता खोनी पड़ी थी।

इस मामलें पर अगली सुनवाई 4 जुलाई, 2023 की जाएगी।

कर्नाटक के परिणाम का बिहार पर कोई असर नहीं होगा: सुशील कुमार मोदी

पटना। पूर्व उपमुख्यमंत्री एवं राज्यसभा सदस्य सुशील कुमार मोदी ने कहा कि कर्नाटक विधानसभा के चुनाव परिणाम का बिहार पर कोई असर नहीं पड़ेगा।

राजद-जदयू के लोग भी नरेंद्र मोदी को पीएम बनाने के लिए वोट देंगे

श्री मोदी ने कहा कि देश की जागरूक जनता विधानसभा और लोकसभा के चुनाव में अलग-अलग तरह से मतदान करती है, इसलिए 2018 में राजस्थान-छत्तीसगढ में कांग्रेस को वोट देने वालों ने भी 2019 के संसदीय चुनाव में भाजपा का समर्थन किया था।

उन्होंने कहा कि 2024 में राजद-जदयू के मतदाता भी नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए बिहार में एकजुच होकर वोट देंगे।

sushilModi
#PatnaHighCourt

श्री मोदी ने कहा कि नीतीश कुमार का जनाधार खिसक चुका है। पिछले साल विधानसभा के तीन उपचुनावों ने जदयू को उसकी हैसियत बता दी।

उन्होंने कहा कि सात दल मिल कर भी कुढनी और गोपालगंज में भाजपा को नहीं हरा पाए थे। इनमें से जो एक दल कर्नाटक में सरकार बनाने जा रहा है, उसकी बिहार में कोई बिसात नहीं।

पटना हाईकोर्ट ने अंतिम मोहलत देते हुए कहा कि यदि 18 मई,2023 तक हलफनामा दायर नहीं किया गया, तो उन्हें स्वयं कोर्ट में उपस्थित होना होगा

पटना हाईकोर्ट ने अदालती आदेश के बावजूद जवाबी हलफ़नामा दायर नहीं करने के मामले को काफी गंभीरता से लिया।जस्टिस राजीव रंजन प्रसाद ने इस पर सख्त रुख अपनाते हुए परिवहन विभाग के सचिव को अंतिम मोहलत देते हुए कहा कि यदि 18 मई,2023 तक हलफनामा दायर नहीं किया गया, तो उन्हें स्वयं कोर्ट में उपस्थित होना होगा ।

कोर्ट ने सुनीता देवी की याचिका पर सुनवाई करते हुए ये आदेश दिया।याचिकाकर्ता ने राज्य सरकार के उस अधिसूचना को चुनौती दी थी, जिसके अंतर्गत राज्य के परिवहन विभाग ने मोटर वाहन अधिनियम-1988 के प्रावधान के आलोक में सार्वजनिक सुरक्षा और सुविधा हेतु 15 वर्ष से अधिक पुराने सभी कॉमर्शियल वाहनों की आवाजाही पर पटना नगर निगम, दानपुर, खगौल ऐवं फुलवारी नगर परिषद में तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी थी ।

कोर्ट ने 20 सितंबर 2022 को अपने आदेश से इस मामले में जवाबी हलफनामा परिवहन सचिव के मांगा था।

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सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वरीय अधिवक्ता सियाराम शाही ने कोर्ट को बताया कि कोर्ट ने पिछले आदेश के अनुपालन में परिवहन सचिव द्वारा अभी तक जवाबी हलफनामा दायर नहीं किया है ।

कोर्ट ने सरकारी अधिवक्ता प्रशांत प्रताप के अनुरोध पर अंतिम मोहलत देते हुए परिवहन सचिव को जवाबी हलफ़नामा दायर करने का निर्देश दिया।साथ ही कोर्ट ने कहा कि यदि अगली सुनवाई तक आदेश का अनुपालन नहीं किया गया,तो परिवहन सचिव को स्वयं कोर्ट में उपस्थित होकर स्थिति स्पष्ट करना होगा।

इस मामले पर अगली सुनवाई 18 मई,2023 को होगी ।

पटना हाइकोर्ट ने चंदन कुमार यादव द्वारा औषधि निरीक्षक के पद पर नियुक्ति हेतु BPSC द्वारा जारी विज्ञापन मे अनुभव संबंधी प्रावधान को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई की

पटना हाइकोर्ट ने चंदन कुमार यादव द्वारा औषधि निरीक्षक के पद पर नियुक्ति हेतु बी पी एस सी द्वारा जारी विज्ञापन मे अनुभव संबंधी प्रावधान को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई की।जस्टिस राजीव रंजन प्रसाद ने इस याचिका पर सुनवाई की।

याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि विज्ञापन में अनुभव से जुडा प्रावधान अनिवार्य योग्यता नही है। इसके लिए सरकार द्वारा वर्ष 2014 मे नियमावली बनाई गई थी,जिसमे औषधि एवं प्रसाधन नियमावली 1945 के नियम 49 मे प्रावधानित शैक्षणिक अर्हता को लागू करने की बात कही गई थी, न कि अनुभव को।

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वही दूसरी इलाहाबाद हाईकोर्ट के फुल बेंच ने कुलदीप सिंह बनाम उत्तर प्रदेश सरकार के मामले में यह तय किया है कि औषधि एवं प्रसाधन नियमावली 1945 की पारा 49 के अनुसार ये अनुभव औषधि निरीक्षक के पद हेतु अनिवार्य योग्यता नही है।

कोर्ट ने याचिकाकर्ता की याचिका स्वीकार किए जाने का निर्देश दिया गया। परीक्षा 20 जून,2023 से होनी है।कोर्ट ने बी पी एस सी को जवाब देने का निर्देश दिया गया। मामले की अगली सुनवाई 19 जून,2023 को होगी।

पटना हाइकोर्ट में बिहार राज्य में मानसिक स्वास्थ्य और चिकित्सा सुविधाओं से सम्बंधित मामलें पर सुनवाई 23 जून,2023 को होगी

पटना हाइकोर्ट में बिहार राज्य में मानसिक स्वास्थ्य और चिकित्सा सुविधाओं से सम्बंधित मामलें पर सुनवाई 23 जून,2023 को होगी। चीफ जस्टिस के वी चन्द्रन की खंडपीठ आकांक्षा मालवीय की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही है।

राज्य सरकार ने रूल्स बनाने के कोर्ट से समय की याचना की, जिसे कोर्ट ने स्वीकार करते हुए 23 जून,2023 की तिथि सुनवाई के लिए निर्धारित की।

पूर्व में हाईकोर्ट ने सुनवाई करते हुए राज्य सरकार के स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव को अबतक की गई कार्रवाई का ब्यौरा देने के लिए दिसंबर,2022 तक का मोहलत दिया था।

याचिका पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता अधिवक्ता आकांक्षा मालवीय ने कोर्ट को बताया था कि कोर्ट ने जो भी आदेश दिया,उस पर राज्य सरकार के द्वारा कोई प्रभावी और ठोस कार्रवाई अब तक नहीं किया गया है।

कोर्ट ने पिछली सुनवाई में इस जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए याचिकाकर्ता को भी पूरी जानकारी देने को कहा था। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को राज्य में मानसिक स्वास्थ्य सेवा में क्या क्या कमियों के सम्बन्ध में ब्यौरा देने को कहा था।

साथ ही कोर्ट ने इसमें सुधारने के उपाय पर सलाह देने को कहा था।याचिकाकर्ता की अधिवक्ता आकांक्षा मालवीय ने बताया था कि नेशनल मेन्टल हेल्थ प्रोग्राम ही के अंतर्गत राज्य के 38 जिलों में डिस्ट्रिक्ट मेन्टल हेल्थ प्रोग्राम चल रहा हैं।लेकिन इसमें स्टाफ की संख्या नाकाफी ही है। हर जिले में सात सात स्टाफ होने चाहिए, जबकि इनकी संख्या नाकाफी है।

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पूर्व की सुनवाई में उन्होंने बताया था कि राज्य सरकार का दायित्व है कि वह मेन्टल हेल्थ केयर एक्ट के तहत कानून बनाए।साथ ही इसके लिए मूलभूत सुविधाएं और फंड उपलब्ध कराए।लेकिन अबतक कोई ठोस और प्रभावी कदम नहीं उठाया गया है।

कोर्ट को ये भी बताया गया था कि सेन्टर ऑफ एक्सलेंस के तहत हर राज्य में मानसिक रोग के अध्ययन और ईलाज के लिए कॉलेज है।लेकिन बिहार ही एक ऐसा राज्य हैं,जहां मानसिक रोग के अध्ययन और ईलाज के लिए कोई कालेज नहीं है।जबकि प्रावधानों के तहत राज्य सरकार का ये दायित्व हैं।

पिछली सुनवाईयों में कोर्ट को बताया गया था कि केंद्र सरकार की ओर से दिए जाने वाले फंड में कमी आयी है,क्योंकि फंड का राज्य द्वारा पूरा उपयोग नहीं हो रहा था।पहले की सुनवाई में याचिकाकर्ता की अधिवक्ता आकांक्षा मालवीय ने कोर्ट को बताया कि बिहार की आबादी लगभग बारह करोड़ हैं।उसकी तुलना में राज्य में मानसिक स्वास्थ्य के लिए बुनियादी सुविधाएँ नहीं के बराबर है।

इस मामलें पर अगली सुनवाई 23 जून,2023 को होगी।

पटना हाइकोर्ट ने बिहार में बगैर निबंधन कराए कोचिंग संस्थान खोलने, मनमाने ढंग से छात्रों से फीस बसूलने और बुनियादी सुविधाओं के नहीं होने के मामलें पर सुनवाई की

पटना हाइकोर्ट ने राज्य में बगैर निबंधन कराए कोचिंग संस्थान खोलने,मनमाने ढंग से छात्रों से फीस बसूलने और बुनियादी सुविधाओं के नहीं होने के मामलें पर सुनवाई की। वेटरन फोरम की जनहित याचिका पर चीफ जस्टिस के वी चन्द्रन की खंडपीठ ने सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को चार सप्ताह में जवाब देने का निर्देश दिया है।इस मामलें पर अगली सुनवाई 4 जुलाई,2023 को होगी।

याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता दीनू कुमार ने कोर्ट को बताया कि राज्य सरकार ने बिहार कोचिंग इंस्टिट्यूट(कन्ट्रोल एंड रेगुलेशन)एक्ट,2010 के section 9 के अंतर्गत नियम नहीं बने है।नियमों के बिना ही मनमाने तरीके से कुकुरमुत्ते की तरह पटना समेत राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में कोचिंग इंस्टिट्यूट खुल गए है।

कोर्ट ने इस तरह के जनहित याचिका की सराहना करते हुए आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि एक्ट 2010 में बनने के वाबजूद अबतक राज्य सरकार ने इस मामलें नियम क्यो नहीं बनायें।

उन्होंने कोर्ट को बताया बिना निबंधन के इस तरह के कोचिंग इंस्टिट्यूट खुल गए हैं।इनमें तो दावे बड़े बड़े किये जाते है,लेकिन इंस्टिट्यूट्स में न तो स्तरीय अध्यापन होता है और न ही योग्य शिक्षक होते है।

इन कोचिंग इंस्टिट्यूट में पढ़ाई का स्तर भी सही नहीं है।कोचिंग के नाम पर ये कोचिंग इंस्टिट्यूट अभिभावकओ व छात्रों से मनमाना फीस बसूलते है।

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अधिवक्ता दीनू कुमार ने कोर्ट को बताया कि इन कोचिंग इंस्टिट्यूट में न तो कोई पाठ्यक्रम होता है और न ही ये पाठ्यक्रम पूरा करने की जिम्मेदारी लेते है।इन्होने कोर्ट को बताया कि अधिकांश कोचिंग इंस्टिट्यूट एक या दो रूम के कमरे में संचालित किये जाते है।छात्र व छात्राओं के लिए बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध नहीं होती।

उन्होंने बताया कि इन कोचिंग इंस्टिट्यूट में न तो शुद्ध पेय जल की व्यवस्था है और न शौचालयों की।विशेषकर छात्राओं के लिए इन सुविधाओं का अभाव होता है।

उन्होंने कहा कि इन कोचिंग इंस्टिट्यूट को नियमानुसार और निबंधन होने के बाद ही इन्हें खोलने की अनुमति दी जानी चाहिए।साथ ही इन पर राज्य सरकार को अपनी निगरानी रखनी होगी।

याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता दीनू कुमार और रितिका रानी और राज्य सरकार की ओर से अपर महाधिवक्ता पी के वर्मा ने कोर्ट के समक्ष तथ्यों को प्रस्तुत किया।इस मामलें पर अगली सुनवाई 4जुलाई,2023 को होगी।

पटना हाइकोर्ट ने जबरन घर खाली कराने के मामले पर एसएसपी,पटना सहित बुद्धा कॉलोनी के थानेदार को लगाई कड़ी फटकार लगायी

पटना हाइकोर्ट ने जबरन घर खाली कराने के मामले पर एसएसपी,पटना सहित बुद्धा कॉलोनी के थानेदार को लगाई कड़ी फटकार लगायी। कोर्ट ने कहा कि आखिर किस कानून के तहत पुलिस घर खाली कराई।यही नहीं ,उस घर में रह रही 25 लड़कियों को बाहर कर दिया गया।

जस्टिस मोहित शाह ने पटना डीएम और सदर एसडीएम को इस मामले में कानूनी कार्रवाई करने का आदेश दिया।साथ ही किरायेदार को घर पर कब्जा दिलाने के मामले पर कार्रवाई करने का आदेश दिया। कोर्ट ने रेणु कुमारी सिंह की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई की।

आवेदिका के वकील शिव प्रताप ने कोर्ट को बताया कि गत सोमवार को सुंबह सुबह मकान मालिक पुलिस एव स्थानीय असामाजिक तत्वों के मिल कर जबरन किराये के घर से बेदखल कर दिया गया।

उनका कहना था कि इस घर में लड़कियों का छात्रावास था।कोर्ट ने पटना के एसएसपी सहित बुद्धा कॉलोनी के थानेदार को तलब किया।

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कोर्ट आदेश के बाद पटना के एसएसपी और बुद्धा कॉलोनी के थानेदार कोर्ट में हाजिर हो कर बताया कि आवेदिका के शिकायत पर प्राथमिकी दर्ज की गई हैं।उनका कहना था कि जांच में जबरन बेदखल करने की बात सामने आई हैं।

जांच रिपोर्ट पटना सदर एसडीएम को भेज दी गई हैं।अब डीएम और एसडीएम ही घर का कब्जा दिलाने की कार्रवाई कर सकते हैं।कोर्ट ने पटना डीएम और एसडीएम को तलब किया।आला अधिकारी कोर्ट में उपस्थित हुये।

कोर्ट ने सोमवार तक कब्जा दिलाने के बारे में कानून के तहत कार्रवाई करने का आदेश दिया।साथ ही मामले पर अगली सुनवाई की तारीख 18 मई,2023 को तय किया गया है।

पटना हाईकोर्ट ने बिहार के सभी डीएम समेत केंद्र सरकार की एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया को निर्देश दिया है कि बिहार में जितने भी हवाई पट्टियां, पुराने हवाई अड्डे और सिविल एनक्लेव हैं, उन सबों के भूमि को अतिक्रमण मुक्त किया जाए

पटना हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय से राज्य के सभी डीएम समेत केंद्र सरकार की एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया को निर्देश दिया है कि बिहार में जितने भी हवाई पट्टियां, पुराने हवाई अड्डे और सिविल एनक्लेव हैं, उन सबों के भूमि को अतिक्रमण मुक्त करने का निर्देश दिया।साथ ही यह सुनिश्चित करें कि वे भविष्य में भी उपयोग आने हेतु सुरक्षित और संरक्षित रहें।

चीफ जस्टिस के.वी विनोद चंद्रन एवं जस्टिस मधुरेश प्रसाद की खंडपीठ ने निखिल सिंह सहित अन्य 30 जनहित याचिकाकर्ताओं की अर्जियों को निष्पादित करते हुए यह निर्णय सुनाया।

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कोर्ट ने इस फैसले में यह भी स्पष्ट किया की राज्य में हवाई अड्डों का निर्माण या विकास हो या नही,यह एक नीतिगत मामला है।इसमें केंद्र और राज्य सरकार को निर्णय लेना है, न कि हाई कोर्ट को।

पटना हाइकोर्ट ने राज्य के पूर्व कैबिनेट मंत्री शंकर प्रसाद टेकरिवाल के निधन के 10 साल बाद सहरसा पुलिस ने उन्हें मिले सरकारी गार्ड और अंगरक्षक के एवज में 18 लाख रुपये से अधिक की राशि नीलाम पत्र के जरिये वसूलने की कार्रवाई पर रोक लगा दिया

पटना हाइकोर्ट ने राज्य के पूर्व कैबिनेट मंत्री शंकर प्रसाद टेकरिवाल के निधन के 10 साल बाद सहरसा पुलिस ने उन्हें मिले सरकारी गार्ड और अंगरक्षक के एवज में 18 लाख रुपये से अधिक की राशि नीलाम पत्र के जरिये वसूलने की कार्रवाई पर रोक लगा दिया।जस्टिस राजीव रंजन प्रसाद ने इस मामलें पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार से जवाब तलब किया है।

कोर्ट ने प्रभाकर टेकरीवाल की रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए ये आदेश दिया।

याचिकाकर्ता के तरफ से वरीय अधिवक्ता रामाकांत शर्मा ने कोर्ट को बताया की यह मामला सरकारी अफसरशाही के मनमानापन दर्शाता है। एक दिवंगत कैबिनेट मिनिस्टर जिन्हें सरकार की तरफ से अंगरक्षक और हाउस गार्ड मिला , उसके बदले सरकारी राशि वसूलने की कार्रवाई एक मजाक नहीं बल्कि सरकारी अफसरों द्वारा निर्दोष नागरिकों से जबरन पैसे वसूलने अथवा उनकी संपत्ति को लूटने की कार्रवाई है ।

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शर्मा ने कोर्ट को बताया कि शंकर प्रसाद टेकारिवाल 1990 से लेकर फरवरी 2005 तक सहरसा से लगातार विधायक रहे और 12 वर्षों तक वित्त, खनन एवं अन्य विभाग के मंत्री रहे उनके मंत्रीमंडल में रहने के समय राज्य सरकार ने उन्हें तीन अंगरक्षक और हाउस गार्ड दिया था।

2002 में रावड़ी सरकार से उन्होंने इस्तीफा देने के बाद जब वह सहरसा अपने गृह क्षेत्र गए ,तो उन्होंने अपने हाउस गार्ड और दो अंग रक्षकों को सरकार को लौटा दिया और विधायकों को मिलने वाले एक बॉडीगार्ड को भी उन्होंने, फरवरी 2005 में विधायकी कार्य काल पूरा होने पर वापस भेज दिया था।

उनका निधन 2012 में हुआ और उसके 10 साल बाद सहरसा के तत्कालीन एसपी ने मनमाने तरीके से स्व. टेकरीवाल को1998 से 2005 तक दिए गए एक अंगरक्षक मुहैय्या कराने के लिए लगभग 18 लाख रुपये की राशि बकाया बताते हुए स्व शंकर प्रसाद टेकरीवाल के बेटे प्रभाकर टेकरीवाल से वसूलने की कार्रवाई नीलाम वाद के जरिये शुरू किया।

जस्टिस रंजन ने हैरानी जताते हुए पूरी नीलाम वाद पर रोक लगाने का आदेश दिया।मामलें पर आगे सुनवाई होगी।