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नफरत फैलाने वाले एक दिन वो खुद उसका शिकार बन जाता है

नफरत कैसे हमारी आपकी जिंदगी को तबाह कर रहा है उसकी एक बानगी आपको सूनाते हैं कोई छह वर्ष पहले शाम के समय एक कॉल आया उस समय मैं बस में था आवाज सही से नहीं आ रहा था मैंने यह कहते हुए फोन रख दिया कि आवाज नहीं आ रही है नेटवर्क में आते ही फोन करते हैं।

घर पहुंचने के बाद उस नम्बर पर काॅल किये बात हुई तो पता चला फोन करने वाली उस इलाके से आती थी जहां आज भी नक्सलियों की समानांतर सरकार चलती है और आये दिन नक्सली हमला भी होता रहता था किसी और को लगा रही थी गलती से मेरे नम्बर पर काॅल कर दी। बात आयी चली गयी लेकिन कुछ ही दिनों बाद उस इलाके में एक बड़ी नक्सली घटना घटी घटना के चंद मिनट बाद है उसका फोन आया उस समय रात के कोई एक बज रहे होगा संतोष सर अभी अभी बड़ी घटना घटी है नक्सली तीन लोगों को मार दिया है और कई लोगों का साथ लेकर चला गया।वैसे मेरे इलाके में ये समान्य घटना है लेकिन आपके लिए खबर है इस घटना के बाद उससे हमारी बातचीत होने लगी और यू कहे तो नक्सली से जुड़ी खबर के लिए मेरा वो सबसे बड़ा सूत्र बन गयी। एक दिन उसका फोन आया सर पटना आये हैं मुलाकात होगी क्यों नहीं आओं ऑफिस में है काफी देर बातचीत हुई और पटना आने का प्रयोजन पूछा तो पता चला ये पटना में ही रहते थे दो वर्ष पहले बेबी हुई थी इसलिए अपने मायके में रह रही थी, पति अमेरिका में आईटी फील्ड से जुड़ा है बेटी दो वर्ष की हो गयी है अब फिर से पटना रहने आ रहे हैं बेटी बड़ी हो रही है ।

कुछ दिनों के बाद वो अपनी बेबी के साथ पटना सिफ्ट कर गयी पटना में ही पढ़ाई लिखाई हुई थी इसलिए पटना से उसका पुराना रिश्ता था एक दिन उसका फोन आया सर बच्चा का कोई बढ़िया डॉक्टर जो हो उससे जरा दिखवा देते बेबी का तबियत बहुत खराब है बोरिंग रोड में बच्चों का अच्छा डॉक्टर है उसके यहां नम्बर लगवा दिये और फिर जिस समय डॉक्टर समय दिये थे मैं भी पहुंच गया बेबी को देख कर मैं हैरान रह गया क्या हो गया खैर डॉक्टर पूछना शुरु किये क्या हुआ क्या क्या दवा दिए हैं पता चला इनके पति देव वही से पतंजलि का दवा बता रहे थे और वही दवा खिला रही थी स्थिति यह हो गया कि बेबी निमोनिया से इतनी संक्रमित हो गयी थी कि डाँक्टर परेशान हो गया इसी दौरान उसका घर जाना हुआ घर में प्रवेश करने के बाद मुझे पता नहीं क्यों बड़ा अटपटा लगा। अजीब अजीब सी आकृति उसके घर के अलग अलग हिस्से में बना हुआ था पहली बार मुझे एहसास हुआ कि इसका व्यवहार सामान्य नहीं है दो घंटे उसके घर पर रहे होंगे इस दौरान कई बात उसके पति का फोन आया और वो बार बार बेबी को डॉक्टर से दिखाने वाली बात छुपाती रही मैं हैरान था बेबी का हाल इतना बूरा है और ये डॉक्टर के पास ले जाने कि बात क्यों छुपा रही । बाद के दिनों मेंं उससे खुलकर बातचीत होने लगी एक दिन वो बताया कि मेरा पति का गजब का सोच है बेबी को डाँ से मत दिखाओं पटना में ये वैद्य है उससे दिखाओं पतंजलि के दवा का इस्तेमाल करो ।

Editorial
Editorial

महिलाओं को लेकर अजीब तरह का सोच है इस तरह का कपड़ा मत पहनो वो मत करो शाम होते होते कमरे पर आ जाओ हर समय विडियो काॅल करता है जैसे मुझ पर उसे भरोसा ही नहीं है।मैं खुद नौकरी करता था इतना तंग किया कि नौकरी छोड़ना पड़ा ये सब बताती रहती थी फिर बेबी के स्कूल में नाम लिखाने की बात हुई तो पति का आदेश हुआ कि बेबी का नाम ऐसे स्कूल में लिखाना जहां सिर्फ लड़किया पढ़ती हो पटना के सबसे बेस्ट स्कूल में नाम लिखाई एक दिन पता चला कि बेबी के नाम लिखाने को लेकर बड़ा बवाल हुआ है क्यों कि जिस स्कूल में नाम लिखाई है वहां क्रिस्चन शिक्षिका है और उसका प्रबंधक भी क्रिस्चन है इसलिए आज के आज उसे वहां से हटाओं मेरी बेबी का संस्कार खराब हो जाएगा इतना हंगामा किया कि अंत में उसको बेबी को स्कूल जाना बंद करना पड़ा और फिर उसे कहा कि देखो पटना में कही सरस्वती शिशु मंदिर है वहां बेबी का नाम लिखाओं वो ढूढती रही एक स्कूल मिला भी तो वो उसको पसंद नहीं आया फिर एक स्कूल में नाम लिखायी हालांकि उसका नाम भी क्रिस्चन जैसा ही था फिर वो वीडिओ कांल से पहले स्कूल को देखा स्कूल में क्या क्या है पत्नी उसको दिखायी की देखिए सरस्वती वंदना लिखा है ये देखिए माँ सरस्वती का फोटो लगा हुआ है ये देखिए शिक्षिका के मांग में सिंदूर लगा है गले में मंगल सूत्र है नाम भेल ही क्रिस्चन वाला है लेकिन यहां एक भी शिक्षिका क्रिस्चन नहीं है तब ठीक है यहां नाम लिखा लो ।

एक सप्ताह पहले उसका फोन आया संंतोष सर एक गांड़ी लेना है लेकिन जो गाड़ी मुझे पसंद है वो कह रहा है कि एक माह बाद देंगे एजेंसी वाले को फोन करवाये तो बड़ी मुश्किल है तैयार हुआ तीन अगस्त को अक्षय तृतीया उस दिन गाड़ी लेगे सारा पैसा भुगतान भी कर दिया अभी थोड़ी देर पहले उसका फोन आया संतोष सर गाड़ी आज नहीं दे देगा मैंने पुंछा क्यों रात में उसका फोन आया था कह रहा था तीन मई को ईद भी है इसलिए उस दिन गाड़ी मत निकालो। हद है तीन मई को तो अक्षय तृतीया है उस दिन शुभ माना जाता है ईद है तो क्या हुआ अपना शुभ दिन लोग छोड़ दे संतोष सर आप तो समझते ही किस दिमाग का है आज ही गाड़ी दे दे बोल दीजिए ना गाड़ी आ गया है आज कल खामखां विवाद से मैं बचना चाहता हूं उसको तो कुछ नहीं होगा मेरा तबियत खराब हो जाएगा प्लीज सर आप बोल दीजिएगा तो गांड़ी दे देगा ।


सॉरी सर एक और बात गाड़ी का नम्बर अपने पसंद का मिल सकता है कह रहा था ऐसा नंबर लो जो जोड़ने पर 18 आये शुभ होता है। मैं चुपचाप उसकी बातों को सुनता रहा और मुस्कुराता रहा घृणा और नफरत कभी भी एकतरफा नहीं होता है उसका असर अपने परिवार और आस पास के लोगों को भी होता है पता है वो अपने बेबी को क्या पढ़ता है नानी नाना मौसी पराई होती है वो हमेशा गलत बात समझती है उससे दूरी रखो। दादा दादी जो कहे वो करो मम्मा पूरे दिन किस किस से फोन पर बात करती है कहां कहां जाती है उस पर नजर रखा करो और चुपके से मुझको बताया करो आ रहे हैं अक्टूबर में इस बार साथ लेकर आयेंगे पासपोर्ट अप्लाई कर दिये हैं।

मुसलमानों से नफरत क्यों?

मैं रोसड़ा का रहने वाला हूं मेरा मोहल्ला नागपुर का रेशिमबाग है मतलब संघ का दूसरा मुख्यालय हालांकि अब पहले वाली बात नहीं रही फिर भी संघ और भाजपा को लेकर वैसा ही जुनून है।

दो दिन पहले भाई की शादी में जाने का मौका मिला सबके सब वही थे दरबाजा लग गया था हम सब लोग वरमाला का इन्तजार कर रहे थे मेरे चारों ओर हाफ पेंट तभी हमारे मधु चाचा चिल्लाते हैं टुनटुन योगी तो कमाल कर दिया क्या हुआ  लाउडस्पीकर बजाने पर रोक लगा दिया है ठीक बगल में दया चाचा बैठे हुए थे धीरे से बोलते हैं टूनटून योगा तो कमाल कर दिया मैंने कहा ठीक तो किया है लेकिन आप लोग जो रात के बारह बजने को है धमाल मचाये हुए हैं दो दो डीजे बज रहा है महफिल सजा है यहां गीत चल रहा है कानून बना है तो आप पर भी लागू होना चाहिए मुसलमान नहीं बजाये और आप नवाह करिए और 24 घंटे लोगों का जीना हराम किये रहिए ये कहां तक सही है इतना कहना था कि चचा जान फर्म में आ गये । खैर चचा जान मुझसे इतना प्यार करते हैं कि छोड़ो बेटा  ये धोती कुर्ता तुम पर बहुत जच रहा है कभी टीवी पर भी इस ड्रेस में आओ बहुत अच्छा लगेगा ।            

चाचा जी आपके पार्टी को मेरा चेहरा पसंद नहीं है,आपका पार्टी चाहता है कि मैं पत्रकारिता छोड़ दूं नहीं बेटा ऐसा क्या है तुम सही हो लड़ते रहना है हिम्मत नहीं हारना अरे ऐसा क्या है विचार अलग अलग नहीं हुआ तो फिर समाज मर जायेंगा लेकिन चचा जान हालात अब पहले जैसा नहीं रहा पत्रकारिता लोगो को पसंद नहीं है उन्हें बस तारीफ सुनना पसंद है चाचा जी आप लोग तो देश बटवारा के तीन चार वर्ष बाद ही पैदा लिए होंगे कहां आप लोगों को कभी हिन्दू मुसलमान करते हुए देखे बताइए।                     

भारत पाकिस्तान  बंटवारे के समय ना जाना कितने लोग बेघर हुए थे , कितने लोग मारे गये ,कितनी महिलाओं का अस्मत लूटा गया, कितने लोगों का जबरन धर्म परिवर्तन कराया गया ।धर्म के नाम पर देश को दो टुकड़े मे बटा गया ,गांधी की हत्या हुई हत्या के बाद पूरे देश में संघ से जुड़े लोगों की गिरफ्तारी हुई  बाबा दो वर्ष तक जेल में रहे। 

संघ का शाखा लगता था जिसका नाम था अभिमन्यु शाखा नागपुर से संघ के जो भी बड़े पदाधिकारी बिहार आते थे उनका प्रवास  यहां पहले से तय रहता था रज्जू भैया जो बाद में संघ के सरसंघचालक बने दो वर्ष तक मेरे यहां ही उनका रहना होता था फिर भी दादा जी का सबसे जिगरी दोस्त मुसलमान था वो किसी गांव का मुखिया था याद है ना वो अक्सर सुबह सुबह आते थे और घंटों दोनों दोस्त में बातचीत होती थी और साथ पहलवानी भी करते थे ।

Editorial

चाचा जी जो संघ से सबसे तेज तर्रार स्वयंसेवक माने जाते थे 1983 -84 में जहां तक मुझे याद है  अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद द्वारा कश्मीर के लाल चौक पर झंडा फहराने वालों में एक थे उनका सबसे अंतरंग मित्र मुसलमान है ,पहली बार इन्ही के घर सेवई खाने का मौका मिला था महताव चाचा की पत्नी से मिले तो पता ही नहीं चला ये अपनी नहीं है हां एक बात अटपटा लगा था चाची का मायके सड़क के उस पार आमने सामने ही था बार बार मैं यही सवाल कर रहा था ये कैसे हो सकता है।

याद करिए हर वर्ष दरवाजे पर  दुर्गा जी का प्रतिमा आता था पूरे सम्मान के साथ रखा जाता था दादी और माँ दुर्गा जी का खोइछा भरती थी फिर जयकारा के साथ नदी की और चल जाता था, ठीक उसी तरह मोहर्रम मेंं मुस्लिम युवा नाचते गाते हथियार लहराते हुए दरवाजा पर आता था दादी या फिर माँ चावल और पैसा उसी श्रद्धा के साथ चढ़ाती थी ।रोसड़ा से पांच किलोमीटर दूर दरगाह पर हर वर्ष  मेला लगता है कितनी बार सब भाई बहन कंधे पर बैठ कर गये होगे याद नही है आप भी मिल जाते थे।                 

प्रख्यात गांधीवादी बलदेव नारायण दादा जी के अच्छे मित्र थे और रोसड़ा में मुसहर को समाज में जगह मिले इस आंदोलन में  दादा जी बलदेव नारायण जी के साथ खड़े थे जबकि उस इलाके के अधिकांश ब्राह्मणउनके खिलाफ थे बलदेव नारायण लाहौर में भगत सिंंह के साथ पढ़ते थे आजादी के आन्दोलन में बड़ी भूमिका रही है गांधी जी इन्हें दलितों में भी महादलित मुसहर जाति को पढ़ाने और समाज के मुख्यधारा में जोड़ने के लिए इन्हें रोसड़ा भेजे थे और रोसड़ा आने के बाद डाँ राजेन्द्र प्रसाद के नाम पर मुसहर जाति के लिए इन्होंने स्कूल खोला ।               

दादा जी संघ के होने के बावजूद पूरी तौर पर इनके साथ रहे जबकि वो उस समय संघ के बड़े चेहरे थे पूरा नागपुर रोसड़ा में ही बसता था फिर भी कभी भी गांधी और मुसलमान को लेकर नफरत नहीं देखा इतना ही नहीं उस समय के लोहियावादी और समाजवादी नेताओं का भी परिवार पर उतना ही अधिकार था। मेरी दादी भले ही कर्पूरी ठाकुर को गाली देती रहती थी फिर भी जब वो आते थे सबसे पहले करैला का रस निकाल कर देती थी शायद उनको शुगर की बीमारी थी । कर्पूरी ठाकुर मेरे बड़े दादा जी के ससुराल के रहने वाले थे इसलिए हम लोगों के परिवार से उनका साला जीजा वाला ही  रिश्ता था। कहां हमारे दादा संघ के बड़े अधिकारी थे और जनसंघ के लिए पूरी तौर पर समर्पित थे ।जो सुनते हैं उस समय जनसंघ का चुनाव चिन्ह दीया छाप होता था और बिहार में पहली बार जनसंघ जहां से चुनाव जीता 1972 में उसमें रोसड़ा विधानसभा भी था ।आपको लोगों को तो खुब याद होगा फिर भी सभी विचारधाराओं के लोगों के लिए दरवाजे खुले रहते थे ।              

व्यक्तिगत रिश्ते इतने मधुर थे कि आप लोग जो गवाह रहे हैं सोच नहीं सकते हैं धर्म और जाति के नाम पर कभी  विभेद देखा ही नहीं जबकि भारत से पाकिस्तान का अलग हुए 25 वर्ष हुए होंगे धर्म के नाम पर दंगा होने वाले राज्यों में बिहार सबसे आगे था फिर भी हिन्दू और मुसलमानों के बीच आज जो दिख रहा है वो उस समय नहीं दिख रहा था  ऐसा क्यों कभी सोचे हैं सोचिए हम लोग कहां जा रहे हैं यहां तो कभी भी मुसलमान और हिन्दू जैसा कभी नहीं रहा आज ऐसा क्या हुआ जो आप योगी के इस निर्णय से खुश हैं ।रोसड़ा में मुसलमान को आबादी तो ना के बराबर है हां तीन वर्ष पहले  चैती दुर्गा पूजा में बवाल हुआ एक तरफा  मस्जिद पर आप लोग तिरंगा फहराये मस्जिद में रखे धार्मिक ग्रंथ को जला दिये इतना गुस्सा किस बात का आज तक  यहां हिंदू मुसलमान के नाम पर इससे पहले एक ईट भी नहीं चला था सोचिए कहां जा रहे हैं या फिर आजादी के बाद ऐसा क्या हुआ जो हमारे आपके दिल में इतना नफरत भर गया है ।

क्रमशः– – —

बिहार बीजेपी में सब कुछ ठीक ठाक नहीं चल रहा है

नरेन्द्र मोदी 2014में देश के प्रधानमंत्री बने और साथ में अमित शाह बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष इसके बावजूद भी बिहार बीजेपी मोदी और शाह के एजेंडे के साथ खड़ा नहीं था।

2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में मोदी और शाह पूरी ताकत लगा दिये बिहार बीजेपी पर कब्जा करने के लिए लेकिन इतनी बूरी हार हुई की दोनों को समझ में आ गया कि बिहार को साधना इनके बस में नहीं है,और फिर सुशील मोदी के हाथ बिहार बीजेपी का कमान सौप दोनों शांत बैठ गये।

सुशील मोदी अरुण जेटली के साथ मिलकर 2017 में नीतीश कुमार को फिर से अपने साथ लाने में कामयाब हो गये और 2019 के लोकसभा चुनाव में 2014 के लोकसभा में जीती हुई पाँच सीट देकर नीतीश कुमार के साथ गठबंधन करने को मजबूर हुए ।
मतलब भारत की राजनीति में आप दोनों की जोड़ी भले ही महानायक वाली क्यों ना हो बिहार में चलेगी तो नीतीश और सुशील मोदी की ही चलेगी ।

ऐसा ही 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में भी हुआ नीतीश बिहार में मोदी और शाह किस लाइन पर बोलेगे ये भी नीतीश तय किये।
चिराग के साथ गठबंधन टूटने की वजह नीतीश खुद थे या फिर चिराग के पीछे बीजेपी खड़ी थी इसलिए गठबंधन नहीं हो सका यह अभी भी स्पष्ट नहीं है ।

लेकिन गठबंधन टूटने के बाद बीजेपी जिस तरीके से चिराग को मदद कर रहा था उससे यह संदेश जाने लगा था कि जदयू को कमजोर करने में बीजेपी शामिल है। हालांकि दूसरे चरण के बाद बीजेपी को लगा की यह दाव उलटा पड़ सकता है और राजद की सरकार बन जायेंगी तो फिर तीसरे चरण में चिराग को जो मदद मिल रहा था वह बंद हुआ और फिर पीएम मोदी चिराग के खिलाफ पहली बार दरभंगा की सभा में बोले तब तक बहुत देर हो चुकी थी,और फिर जो परिणाम आया उसमें पहली बार नीतीश बिहार में तीसरे नम्बर पर पहुँच गये ।

मोदी और शाह को जैसे ही मौका मिला सबसे पहले सुशील मोदी को बिहार से बाहर का रास्ता दिखाया, संगठन मंत्री नागेन्द्र जी को बिहार से बाहर किया और ऐसे विधायक को मंत्री बनाया जो नीतीश और सुशील मोदी के गुड बुक में नहीं थे और समय आने पर इन दोनों पर हमला भी कर सके ,उसी कड़ी में नितिन नवीन,सम्राट चौधरी और शहनवाज जैसे को मंत्री बनाया और प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल को नीतीश के खिलाफ बयान देने की खुली छुट दी गयी ।

बिहार विधानसभा के अध्यक्ष को सरकार को नीचे दिखाने को लेकर प्रेरित किया गया और संघ के एजेंडे को लागू करने को लेकर नीतीश पर दबाव बनाने को कहॉ गया।
पहली बार विधानसभा सत्र के दौरान जन गन मन की जगह वंदे मातरम गाया गया,विधानसभा के स्मृति स्तम्भ से अशोक चक्र को हटाया गया, इस तरह के कई काम हुए जो नीतीश को पसंद नहीं था।
2021में यानी 7 वर्ष बाद मोदी और शाह का बिहार भाजपा पर पूरी तरह कब्जा हो गया ।

वही नीतीश मोदी और शाह के रणनीति को भाप गये और चुनाव परिणाम आने के एक माह बाद ही वो चुपचाप पार्टी को मजबूत करने में लग गये गाँव गाँव तक संगठन को फिर से खड़ा करने की कोशिश शुरु हुई ,उपेन्द्र कुशवाहा को पार्टी में शामिल कर कुर्मी कोयरी गठजोड़ को मजबूत किया फिर नाराज सवर्ण नेता को मिलाना शुरु किया।

दोनों उप चुनाव जीते फिर विधान परिषद के सीट बटवारे में भी बड़े भाई की भूमिका में बने रहे विधान परिषद चुनाव में मधुबनी में बीजेपी वाले साथ नहीं दिये तो बेगूसराय में बदला ले लिये और बोचहा का रिजल्ट तो बता दिया कि बिहार में मोदी शाह की जोड़ी चलने वाला नहीं है।

यह बात जैसे ही सामने आया सुशील मोदी अपने अंदाज में हमला शुरु कर दिये और संकेत भी दे दिये कि नीतीश कमजोर होगे तो फिर 2024 का लोकसभा चुनाव में बिहार में हाल बूरा हो सकता है ।

ऐसे में आने वाले समय में नीतीश गठबंधन का साथ कब छोड़ते हैं ये तो नीतीश तय करेंगे लेकिन बिहार बीजेपी मोदी और शाह के नीति के साथ सहज नहीं है ये साफ दिखने लगा है और 60 से अधिक ऐसे बीजेपी विधायक है जो किसी भी समय चुनौती दे सकते हैं,ऐसे में वीर कुंवर सिंह के विज्योउत्सव कार्यक्रम की सफलता से मोदी और शाह के चेहते खुश हैं लेकिन सुशील मोदी की ट्टीट ने पलीता लगाने का काम कर दिया है यह साफ दिखने लगा है ।

पटेल की तरह वीर कुंवर सिंह के सहारे राजपूत नेताओं को साधने की तैयारी में तो नहीं जुटा है बीजेपी

आरा में वीर कुंवर सिंह की जयंती के मौके पर 78 हजार 25 लोगों ने तिरंगा फहराकर पाकिस्तान के एक साथ 75 हजार लोगों द्वारा राष्ट्रीय ध्वज फहराने का वर्ल्ड रिकॉर्ड तोड़ दिया है और अब जल्द ही यह रिकॉर्ड ग्रीनिज बुक में भारत के नाम दर्ज होगा ।

लेकिन बड़ा सवाल यह है कि इस आयोजन के सहारे बीजेपी राजनीति के किस नैरेटिव का साधना चाह रही है। हालांकि जो नैरेटिव दिख रहा है वो यह था कि वीर कुंवर सिंह को जाति से बाहर निकाला जाये और उन्हें राष्ट्रवाद के नैरेटिव में फिट किया जाये।

इसके पीछे मोदी और शाह की यह सोच है कि पटेल की तरह ही वीर कुंवर सिंह ऐसे स्वतंत्रता सेनानी है जिनका जातीय आधार राष्ट्रीय फलक पर काफी मजबूत है लेकिन इनके जाति के कई ऐसे नेता है जो उन्हें आने वाले समय में चुनौती दे सकते हैं ऐसे में वीर कुंवर सिंह के व्यक्तित्व को राष्ट्रीय स्तर पर इस तरह से स्थापित किया जाये जिससे उनके विरादरी के नेता का प्रभाव कम हो ।

इसके लिए आने वाले समय बाबू साहब अंग्रेज के साथ लड़ाई के दौरान 22 अप्रैल 1858 को जब बलिया के शिवपुर घाट पर गंगा पार कर रहे थे तब उनकी भुजा में गोली लगी जिसे काटकर गंगा में फेंक दिया था उस स्थान पर पटेल से भी बड़ी मूर्ति और शौर्य पार्क बनाने की योजना है जिसकी चर्चा आज अमित शाह अपने भाषण के दौरान किये हैं ।

साथ ही वीर कुंवर सिंह के 80 वर्ष मे हथियार उठाने और अंग्रेज का हराने का जो शौर्यगाथा रहा है उसका इस्तमाल मोदी के लिए आने वाले समय में किया जा सका ये भी रणनीति का हिस्सा है ताकी मोदी ने मार्गदर्शक मंडल के सहारे जिस तरीके आडवाणी सहित बीजेपी के तमाम बड़े नेताओं को एक साथ साध दिये थे वैसे कोई मोदी को ना साधे।

क्यों कि वीर कुंवर सिंह की जो छवि रही है वो कही से भी बीजेपी के नैरेटिव में फिट नहीं बैठता है ये अलग बात है कि आजादी के आन्दोलन के दौरान सावरकर कई बार वीर कुंवर सिंह को अंग्रेजों के खिलाफ हिन्दू चेहरा के रूप में स्थापित कोशिश की जरूर किया था लेकिन उस तरीके से आगे नहीं बढ़ पाया था वैसे आज शाह कह गये हैं कि वीर कुंवर सिंह के बारे में सही इतिहास नहीं लिखा गया है ऐसे में आने वाले समय में वीर कुंवर सिंह की अलग छवि देखने को मिले तो कोई बड़ी बात नहीं होगी देखिए आगे आगे होता है क्यों कि जाति इस देश का यथार्थ है और पटेल की तरह राजपूतों का शहरीकरण नहीं हो पाया है अभी भी बड़ी आबादी गांव में रहता है कृषि उसका मुख्य पेशा है ।

ऐसे में मोदी और शाह इस खेल में कहां तक कामयाब होते हैं कहना मुश्किल है लेकिन देश की राजनीति को बदलने की एक बड़ी कोशिश जरुर है।

वीर कुंवर सिंह की जंयती पर खास

कालिदास तुम सही थे ! तुम्हारा वह कथानक चित्र जिसमें तुम पेड़ के एक डाल पर बैठे हो और उसी डाल को काट रहे हो यह बिना सोचे कि डाली जब कट के गिरेगी तो तुम भी उसी डाली के साथ गिर जाओगे।

कालिदास तुम अलग नहीं हो । सदियों से मनुष्य जाति यही तो करती आई है ।
आज बुलडोजर चलाने पर जो खुश है वो तुम्हारे कथानक चित्र को वो पात्र है, जिसे यह समझ में नहीं आ रहा है कि कानून है तो तुम हो, संविधान है तो तुम हो ।शासन और सत्ता तो चाहती ही है कि कानून और संविधान पर से लोगों का भरोसा उठ जाये ।
आज जिस रहमान के घर बुलडोजर चलने पर खुश हो, वह सिर्फ रहमान का घर नहीं है वह घर भारतीय संविधान और न्याय संहिता का घर है जिसके बुनियाद पर भारत बसा हुआ है ।सत्ता और सरकार तो चाहती ही कि कभी धर्म के नाम पर तो कभी जाति के नाम पर कानून और संविधान को धत्ता बताते रहे । कल तुम रहमान का घर टूटने पर खुशी मना रहे थे आज रमन झा और विवेक गुप्ता के घर बुलडोजर चला तो कागज दिखा रहे हो ।

तेरी हंसी कब तरे घर मातम लेकर पहुंच जाये किसी ने नहीं देखा है सत्ता और सरकार को इतनी छूट दिये तो फिर बहु बेटी को घर से उठा कर ले जाये तो कोई बड़ी बात नहीं होगी ।

Editorial

देखो सत्ता का चरित्र आज जरुरत पड़ी तो वीर कुंउर सिंह के परिवार वाले की हत्या मामले में एक माह बाद डाँक्टर पर कार्यवाही हो रही है ।इससे पहले सूना था बिहार में इलाज में लापरवाही बरतने पर किसी डाँक्टर पर कार्यवाही हुई हो ।वैसे 23 अप्रैल के बाद डाँक्टर साहब को मनचाही जगह मिल जायेंगी ये भी तय है काली हो सकता है इस कथा में तुम्हारे नाम को जोड़कर उस ज़माने के तुझे नापसंद करने वालों ने तेरी फिरकी ली हो ।फिर भी एक बात तो है, तुम मिथक कथा के पात्र ही सही पर जीवंत बिंब हो मनुष्य जाति के एक पहलू के ।

भाई भाई को लड़ा रहा है सत्ता के लिए और ससुरे को समझ में नहीं आ रहा है नौकरी और रोजगार हाथ से जा रहा है शहर दर शहर उजर रहा है 35 रुपया का पेट्रोल 120 रुपया में बेच रहा है अपनी ऐयाशी के लिए फिर भी समझ में नहीं आ रहा है।
काली मेरा मानना है कि तुम ये कहानी मनुष्य को संचेत करने के लिए गढ़ा था लेकिन दुर्भाग्य है काली 1500 सौ वर्ष बाद भी समझ में नहीं आया है क्या करोगे मनुष्य समझदार ही हो जाता तो फिर ऐसे लोगों की दुकाने कैसे चलती है।

संघ को अब भंग कर देना चाहिए – संघ का पूर्व प्रचारक

हाल ही में संघ के एक पूर्व प्रचारक से मुलाकात हो गयी आज कल वो विधायक भी हैंं लम्बे अवधि तक इनका मेरे यहां आना जाना रहा है इसलिए मुलाकात के साथ ही पुरानी यादें ताजी हो गयी । कोई चार घंटा का साथ रहा ऐसे में स्वाभाविक था कि संघ और बीजेपी को लेकर इनसे लम्बी बातचीत हुई अभी जो देश में चल रहा है उसको लेकर ये काफी दुखी है,एक बात है संघ का प्रचारक अभी भी लाग लपेट में विश्वास नहीं करता है और जो सच है उस सच को स्वीकार करने में तनिक भी देर भी नहीं करता है ।

1–संघ को अब भंग कर देना चाहिए बातचीत को लब्बोलुआब यही था कि संघ का सौ वर्ष पूरे होने वाला है अब इस संस्था को भंग कर देना चाहिए संतोष बाबू जिस समय मैं प्रचारक बना था उस समय पूरे देश में 3487 प्रचारक हुआ करता था(अविवाहित फुल टाइम संघ के लिए काम करने वाले ) पिछले वर्ष मैं बाहर निकला हूं उस समय मात्र 709 प्रचारक बच गये और हाल यह है कि नये लोग अब संघ के प्रचारक के रूप में काम करने नहीं आ रहे हैं यही स्थिति रही तो दो तीन वर्ष में सौ के नीचे हो जायेगा और आप जानते ही है कि संघ जो यहां तक पहुंचा है उसके पीछे हजारों प्रचारक का 24 घंटे का श्रम है वैसे भी संघ का लक्ष्य क्या था राम मंदिर ,धारा 370 और कॉमन सिविल कोड।

राम मंदिर और धारा 370 हो ही गया और 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले कॉमन सिविल कोड लागू हो ही जाएगा उसके बाद संघ के पास बचेगा क्या ।वैसे भी जब से सरकार में बीजेपी आयी है अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का हाल देख लीजिए अब पहले वाला तेज रहा है ,मजदूर संगठन.स्वदेशी जागरण मंच, और सरस्वती शिशु मंदिर का अब कोई मतलब रह गया संघ के सभी अनुषांगिक संस्थान का यही हाल है कोई भी संगठन कार्यक्रम और आन्दोलन से चलता है ।

सरकार में आने के बाद अब ये सब करने का गुंजाइश ही नहीं रह गया है ऐसे में संगठन कमजोर पड़ेगा संतोष बाबू विवेकानंद भी कहे थे किसी भी संस्था पर उर्म सौ वर्ष होता है और अभी जो देश मेंं हो रहा है वो संघ को स्वीकार्य नहीं है हिन्दु जागरण का यह मतलब नहीं है कि मुसलमान को तंग करे इससे संगठन को और नुकसान ही हो रहा बताइए संतोष बाबू आप तो देखे हैं ना एक साइकिल और साथ में झौला सुबह का नास्ता किसी के यहां दोपहर का भोजना किसी और के यहां,शाम का नास्ता मिला तो ठीक नहीं तो रात का भोजन किसी स्वयंसेवक के यहां होता था कोई डर भय नहीं आज ना भाजपा सत्ता में है बीस वर्ष पहले गांव में भाजपा और संघ कहां था फिर भी जो संघ का स्वयंसेवक नहीं भी था उसके दरवाजे पर भी चले जाते थे तो सम्मान के साथ बैठाते थे हमलोग को देख कर गांव की महिलाए भी हिन्दी में बात करने लगती थी हाफ पेंट वाला सर जी नाम ही था हम लोगों का लेकिन अब जो स्थिति बनते जा रहा है कोई प्रचारक सोच भी सकता है कि दूसरे विचार धारा वाले के यहां बैठ भी सकता है।

Editorial
Editorial

बताइए ना संतोष बाबू हम ठहरे प्रचारक मोटरसाइकिल से चलते हैं तो पार्टी वाला हल्ला करने लगता है आप विधायक है मोटरसाइकिल से चलिएगा बताइए तीन चार लोगों के यहां चले गये हजार रुपया का तेल लग जाता है गाड़ी रखिए तो ड्राइवर रखिए कहां से उसको पैसा देंगे विधायक फंड है तो कार्यकर्ता सबका अलगे हिसाब है संतोष बाबू यहां हमको मन नहीं लग रहा है बताइए कहता है भीड़ जुटाइए कहां से जुटाए और अगर जुट भी गया तो उसको लाने ले जाने में जो खर्च होगा कहां से लायेंगे ये सब जब पार्टी में सवाल करते हैं तो ऐसे देखता है जैसे मैं इस दुनिया के इंसान ही नहीं है बहुत मुश्किल है इसके लिए थोड़े ही अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिये हैं संघ में अब लौट सकते नहीं है और राजनीति हम लोगों से होने वाला नहीं है दिन भर झूठ बोलिए क्या करें कुछ समझ में नहीं आ रहा है ।

चलिए बहुत दिनों बाद मुलाकात हुई और चाचा जी लोग ठीक है ना माँ कुशल हैं बच्चा सबका पढ़ाई लिखाई चल रहा है एक बात संतोष बाबू आपका पूरा परिवार संघ का स्तम्भ रहा है आप ऐसे मत लिखा करिए सीधा हमला बोल देते हैं तो फिर विधायक जी क्या चाहते हैं कलम गिरवी लगा दे ना ना संतोष बाबू कांलेज जीवन से ही इंडिया टुडे नियमित पढ़ते थे उसमें भी तवलीन सिंह का लेख जरुर पढ़ते थे पत्रकार को स्वतंत्र जो जरुर होना। तभी जिनके कार्यक्रम में हम दोनों पहुंचे थे वो दौरे दौरे आये और बोले विधायक भी संतोष जी से क्या बतिया रहे हैं सब बात मीडिया में आ जाएगा, नहीं नहीं हम लोग इनके घर में पले बढ़े हैं पता है अपने मिजाज से पत्रकारिता करते हैं वैसे संघ को अब भंग कर देना चाहिए ये मैं अब मंच से भी बोलने वाला हूं ।