बीजेपी बिहार विधान परिषद चुनाव में भी छद्म युद्ध के सहारे जदयू को हराने में जुटा
कल देर शाम मधुबनी से एक फोन आया बिहार विधान परिषद चुनाव को लेकर बीजेपी और जदयू में गठबंधन तो हो गया ना ,सीट की भी घोषणा हो गयी और मधुबनी सीट जदयू के खाते में गया है, लेकिन यहां तो बीजेपी के विधान पार्षद घूम रहे हैं और कह रहे हैं बीजेपी यहां से चुनाव लड़ेगी अभी थोड़ी देर पहले बात हुई तो महासेठ बोले बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष से कल भी हमारी बात हुई है वो बोले हैं कि चुनाव लड़ना है।
इस तरह की खबर सिर्फ मधुबनी से ही नहीं आ रही है इस तरह की खबर वैसे अधिकांश सीटों से आ रही है जहां जदयू चुनावी मैदान में है, ठीक उसी तरीके से जैसे 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान चिराग की पार्टी से बीजेपी के नेता चुनाव लड़े थे ।
बीजेपी पर खास नजर रखने वाले पत्रकारों का भी मानना है कि बीजेपी बिहार विधान सभा चुनाव की तरह ही बिहार विधान परिषद के चुनाव में भी छद्म युद्ध के सहारे इस चुनाव में भी जदयू को हराना चाह रही है।
और इसी रणनीति के तहत बिहार विधान परिषद चुनाव से ठीक पहले वैसे तमाम बीजेपी के नेता को पार्टी में शामिल करवाया गया जो एलजेपी के टिकट पर जदयू को हराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाये थे ।
संदेश साफ है जदयू बीजेपी में पहले वाली बात नहीं रही आप जदयू का विरोध भी करते हैं तो कोई बात नहीं है आपकी वापसी तय है।
जानकार बता रहे हैं कि पिछले दो माह से जाति जनगणना और विशेष राज्य के दर्जा को लेकर बीजेपी जिस तरीके से जदयू पर हमलावर है इसके पीछे बीजेपी की रणनीति यह है कि पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच ये संदेश जाता रहे कि जदयू से रिश्ता पहले जैसा नहीं है ऐसे में आप निर्णय लेने को स्वतंत्र है।
सोमवार को बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल जिस अंदाज में विशेष राज्य की मांग पर सवाल खड़े करते हुए जिन बिन्दू पर फोकस किये हैं उससे कही ना कही यह संदेश देने कि कोशिश है कि मंत्रिमंडल में भी जो बीजेपी के मंत्री है उन्हें काम करने नहीं दिया जा रहा है उन्होंने लिखा है कि शाहनवाज हुसैन अच्छा प्रयास कर रहे हैं पर पूरे मंत्रिमंडल का सहयोग आवश्यक है।
इसी तरह जनसंख्या नीति पर सवाल खड़े करते हुए नीतीश पर सीधा हमला बोला है संजय जायसवाल ने लिखा है कि आज भी हम जनसंख्या स्थिरीकरण के लिए कोई अभियान नहीं चला रहे हैं जबकि इसमें भी बिहार पूरे देश में सबसे ज्यादा फिसड्डी है।
इन सबके पीछे भी बीजेपी की रणनीति यही है कि बीजेपी कार्यकर्ताओं के बीच संदेश साफ जाये कि जदयू से 2005 वाला रिश्ता नहीं रहा है ऐसे में गठबंधन धर्म उतना मायेने नहीं रखता है ।
इसलिए विधान परिषद चुनाव तक यह खेल बीजेपी की ओर से जारी रहेगा ।