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राजनीति में आधी आबादी और युवा कैसे अपनी जगह बनाये लोकत्रंत के सामने ये बड़ी चुनौती है

बात कोई दो वर्ष पूरानी है एक दिन दिल्ली से किसी महिला अधिकारी का बिहार के किसी मामले को लेकर फोन आया बात आयी चली गयी। कुछ दिनों के बाद फिर कोई ऐसा वाकया बिहार से जुड़ा हुआ था उसको लेकर बातचीत हुई और फिर धीरे धीरे बातचीत का सिलसिला बढ़ता चला गया ।

एक दिन वो बतायी की मैं बिहार आ रही हूं मैंने पुंछा क्यों वो बतायी की मेरा कांलेज शिक्षक में हो गया है कल दिल्ली वाली नौकरी से रिजाइन भी दे दिए हैं अगले माह ज्वाइन कर लेगें चलते चलते मैं सिर्फ इतना ही कहा यह निर्णय सही है ।दस मिनट बहस भी हुई उसका तर्क यही था कि बिहार के बदलाव में मैं भी कुछ योगदान करना चाहती हूं ।

एक वर्ष से अधिक हो गया उसका बिहार आये हुए, बदलाव को लेकर जिस सोच के साथ वो आयी थी उसको लेकर नीत नयी प्रयोग करती रहती है। इस दौरान क्या समस्याएं आ रही है उस पर अक्सर बात होती रहती है एक महिला को बिहार के प्रवेश में अकेले रहना आज भी कितना मुश्किल है इसको लेकर कई घटनाओं का जिक्र मुझसे कि है, मैं तो हैरान हूं कितना मुश्किल है आज भी बिहार में अकेले महिला को घर छोड़कर बाहर नौकरी करना हलाकि इस पर चर्चा बाद में करेंगे ।

राजनीति शास्त्र की प्रोफेसर हैं तो स्वभाविक है चर्चा के केन्द्र में राजनीति रहेगा ,अक्सर वो बिहार की राजनीति को लेकर मुझसे सवाल करती रहती है मैं सिर्फ बिहार की राजनीति से जुड़ी सूचना देता हूं ।कुछ दिन पहले दरभंगा के ग्रामीण कार्यविभाग में कार्यरत इंजीनियर के पास से बरामद पैसे को लेकर मैं स्टोरी चला रहा था ।

एक दिन उसका फोन आया इस इंजीनियर पर सरकार कारवाई क्यों नहीं कर रही है मैंने उसे बता दिया कि सरकार के मजबूत नेता का इसको संरक्षण प्राप्त है> मुझे नहीं मालूम था कि उस नेता को लेकर उसके मन में बड़ा आदर भाव है ,इसी तरह से सवाल करती रहती है कभी प्रशांत किशोर को लेकर तो कभी कन्हैया को लेकर तो कभी रितू जयसवाल को लेकर तो कभी माले के नवनिर्वाचित विधायक को लेकर मुझे इन सब के बारे में जो इनसाइड स्टोरी है वो बताते रहते हैं ।

कैसे कन्हैया को बेगूसराय में हराने के लिए बिहार के सारे वामपंथी पार्टियां एक साथ खड़ी थी और इस खेल में राजद क्यों शामिल था ,अंबानी ग्रुप इस खेल कैसे शामिल हुआ ये सब बताते रहते हैं ।प्रशांत किशोर की राजनीति का जो माँडल है उस माँडल के लिए प्रयाप्त पैसा चाहिए ऐसे में कल इस देश का पीएम अंबानी और अंडानी का बेटा बन जाये तो कोई बड़ी बात नहीं है, क्यों कि देश की राजनीति जिस मॉडल पर आगे बढ़ रही है आने वाले समय में इस देश में लोहिया ,कर्पूरी ठाकुर ,रामविलास पासवान और लालू ,मुलायम ,नीतीश और सुशील मोदी जैसे साधारण परिवार जन्मे व्यक्ति जिस उंचाई तक पहुंच गये अब वो होने वाला नहीं है ।

आज बिहार की राजनीति में परिवार के बाहर कही किसी कोने से थोड़ी सी भी जो उम्मीद की किरणें दिख रही है उसके पीछे का सच वहीं है जो आप आज की राजनीति में देख रहे हैं टिकट के लिए पैसा देना होगा। फिर चुनाव लड़ना है तो पांच करोड़ खर्च करने होंगे।

बिहार में जो भी युवा चेहरा दिख रहा है जो कुछ बदलाव की बात कर रहा है उन सबके पीछे का सच यही है कि वो किसी ना किसी राजनीतिक दल के साथ जुड़ना चाह रहा है ।ताकी वो विधायक ,सांसद बन सके।

मेरा अनुभव तो यह है कि ऐसे युवा चेहरा आज की राजनीति में जो लोग हैं उन्हें लोकतंत्र में कोई बदलाव हो इससे कोई मतलब नहीं है लोकतांत्रिक संस्थान से कोई मतलब नहीं है बस पावर कैसे मिले उसकी सोच इससे आगे नहीं है ।क्यों कि आपका साध्य – वह लक्ष्य , मंज़िल या मुकाम है -जहाँ आप पहुँचना चाहते हैं साधन -वह सब जिसका उपयोग आप करते हैं उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए। वो ईमानदार नहीं रहेंगा तो फिर उससे बदलाव की उम्मीद करना बेमानी है ।

बिहार की राजनीति को लेकर इस तरह की चर्चा इससे अक्सर होती रहती है संयोग से किसी बात को लेकर मैं उसको कल फोन किया बातचीत चल ही रहा था कि उसने ऐसी बात कह दी कि मैं हैरान रह गया । पहली बार मुझे पता चला कि दिल्ली में सरकारी नौकरी छोड़कर ये बिहार इसलिए आयी थी कि वो सक्रिय राजनीति में शामिल होना चाहती थी और इसी उदेश्य को प्राप्त करने के लिए प्रोफेसर की नौकरी ज्वाइन की थी लेकिन अब इसका इरादा बदल गया है एक सप्ताह पहले इसके पति जो सरकारी अधिकारी है मिलने आये थे ।

तचीत में बोली की अब राजनीति में नहीं जाना है, जनाब हैरान थे जिस वजह से ये दिल्ली की नौकरी छोड़ी, शादी के शर्त में एक शर्त ये भी था की मुझे आप सक्रिय राजनीति में जाने से रोक नहीं सकते हैं .वो लड़की अचानक आज कह रही है कि राजनीति मेरे बस की बात नहीं है आज की राजनीति में कुछ भी बदलाव की बात सोचना बेमानी है अब कुछ अलग तरीके से सोच रहे हैं पति महोदय हैरान थे आखिर इसका आत्म परिवर्तन कैसे हो गया पता चला पत्रकार संतोष सिंह का प्रभाव है ।

खैर ये अलग बात है लेकिन यह सच्चाई है कि आज की जो युवा पीढ़ी है वो बदलाव चाहता है लेकिन हर फिल्ड में सिस्टम इतना मजबूती के साथ खड़ा है कि वहां आप कुछ कर नहीं सकते हैं आज की युवा पीढ़ी के सामने यही सबसे बड़ी चुनौती है ।इसलिए जो जहां हैं सिस्टम में बदलाव को लेकर कोशिश जारी रखिए यही मूलमंत्र होगा देश को बदलने के लिए क्यों कि अब इस देश में फिलहाल किसी बड़े बदलाव या बड़े आन्दोलन की दूर दूर तक सम्भावना नहीं दिख रहा है जिससे निकले व्यक्ति से कुछ उम्मीद किया जा सके ।

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