पटना हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में यह तय किया है कि प्रत्येक निचली अदालत को किसी आरोपी की जमानत अर्जी को निष्पादित करने से पूर्व लोक अभियोजक या अनुसंधान पदाधिकारी से यह जानकारी लेनी होगी कि उस आरोपी के विरुद्ध पूर्व में कितने आपराधिक मामले दर्ज हैं। इसके साथ ही हाई कोर्ट ने यह भी आदेश दिया है कि संबंधित अनुसंधानकर्ता या लोक अभियोजक के लिए यह ज़रूरी है कि वह ज़मानत की अर्ज़ीदार के पिछले सभी आपराधिक मामलों का इतिहास अदालत के समक्ष पेश करे।
आरोपी के आपराधिक इतिहास पर पुलिस और अभियोजक से मिली जानकारी को हर निचली अदालत को आदेश में उल्लेख करना होगा, जिससे वो किसी ज़मानत अर्ज़ी को मंज़ूर या खारिज करेंगे। न्यायमूर्ति राजीव रंजन प्रसाद की एकलपीठ ने अनिल बैठा की जमानत अर्जी पर सुनवाई करते हुए उक्त आदेश को पारित किया।
अदालतों से पूर्व के आपराधिक मामलों को छुपा कर ज़मानत लेने की गलत तरीको पर रोकथाम लगाने के लिए हाई कोर्ट ने ऐसा आदेश जारी किया है। इस आदेश की प्रति सभी जिला न्यायाधीश को देने का भी निर्देश हाई कोर्ट ने दिया है। विदित हो कि अनिल बैठा के मामले में जमानत अर्ज़ीदर पर 10 से अधिक आपराधिक मामले दर्ज थे, लेकिन उसने अपनी किसी भी ज़मानत अर्ज़ी में स्पष्ट तौर पर पूर्व के सभी आपराधिक मामलों के बारे में जानकारी नहीं दी थी। पिछला आपराधिक इतिहास को छुपा कर ज़मानत लेने के इस प्रयास को कोर्ट के साथ धोखाधड़ी करार देते हुए हाई कोर्ट ने इस पूरे प्रकरण की स्वतंत्र जांच कराने के लिए भी राज्य सरकार को आदेश दिया है और हाई कोर्ट के महानिबंधक कार्यालय को निर्देश दिया है कि हाई कोर्ट के साथ इस तरह की धोखाधड़ी करने वालों के विरुद्ध प्राथमिकी भी दर्ज की जाए।