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बिहार के पूर्व सांसद आनंद मोहन की जल्द रिहाई को चुनौती देने वाली याचिका पर SC ने सुनवाई नवंबर तक स्थगित कर दी

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को बिहार के बाहुबली नेता और पूर्व सांसद आनंद मोहन की रिहाई को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई नवंबर तक स्थगित कर दी । पूर्व IAS अधिकारी जी. कृष्णैया की पत्नी की याचिका पर SC ने सुनवाई 3 नवंबर तक के लिए टाल दी ।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ समय की कमी के कारण मंगलवार को इस मामले पर सुनवाई नहीं कर सकी क्योंकि यह बोर्ड में शीर्ष पर सूचीबद्ध नहीं था और अब इस पर 3 नवंबर को सुनवाई करेगी।

यह याचिका गोपालगंज के तत्कालीन डीएम जी.कृष्णैया की पत्नी उमा कृष्णैया की ओर से दायर की गई है। उमा कृष्णैया की याचिका में आरोप लगाया गया है कि बिहार सरकार ने 10 अप्रैल 2023 के संशोधन के जरिए पूर्व व्यापी प्रभाव से बिहार जेल नियमावली 2012 में संशोधन किया, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि दोषी आनंद मोहन को छूट का लाभ दिया जाए।

AnandMohan in SC

इससे पहले अगस्त में सुनवाई के दौरान SC ने बिहार सरकार से पूर्व सांसद की रिहाई पर जवाब मांगा था। कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा कि जेल मैनुअल में संशोधन के बाद सजा पाने वाले कितने दोषियों को पूर्व सांसद आनंद मोहन के साथ इस साल अप्रैल में रिहा किया गया, इस पर जवाब देते हुए बिहार सरकार ने कोर्ट को बताया कि आनंद मोहन सहित 97 दोषियों को सजा में छूट देकर जेल से रिहा किया गया था। 11 अगस्त को शीर्ष अदालत ने सुनवाई स्थगित कर दी थी और इसे सितंबर के आखिरी सप्ताह में पोस्ट किया था।

1994 में, गोपालगंज के तत्कालीन जिला मजिस्ट्रेट कृष्णैया को भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला था, जब उनके वाहन ने गैंगस्टर छोटन शुक्ला के अंतिम संस्कार के जुलूस को आगे बढ़ाने की कोशिश की थी। भीड़ को आनंद मोहन सिंह ने उकसाया था। इस मामले मे आनंद मोहन को उम्रकैद की सजा मिली थी।

SC ने बिहार के पूर्व सांसद आनंद मोहन की समयपूर्व रिहाई को चुनौती देने वाली पूर्व IAS अधिकारी जी. कृष्णैया की पत्नी उमा कृष्णैया की याचिका पर सुनवाई स्थगित कर दी

SC ने शुक्रवार को बिहार के पूर्व सांसद आनंद मोहन की समयपूर्व रिहाई को चुनौती देने वाली पूर्व IAS अधिकारी जी. कृष्णैया की पत्नी उमा कृष्णैया की याचिका पर सुनवाई स्थगित कर दी।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और दीपांकर दत्ता की पीठ ने याचिका पर सुनवाई की तारीख 26 सितंबर तय करते हुए कहा, हम इसे सितंबर में किसी भी गैर-विविध दिन पर उठाएंगे।

बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद पूर्व सांसद आनंद मोहन को मिली सजा में छूट के संबंध में मूल रिकॉर्ड अदालत के समक्ष पेश किया है।

शुक्रवार को शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ता जी कृष्णैया की पत्नी उमा कृष्णैया को मामले से संबंधित मूल फाइलों की प्रति प्राप्त करने के लिए राज्य सरकार के समक्ष आवेदन करने को कहा।

AnandMohan in SC

सुनवाई के दौरान, बिहार सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील रंजीत कुमार ने पीठ को अवगत कराया कि बिहार सरकार ने एक ही दिन में 97 दोषी व्यक्तियों की सजा में छूट पर विचार किया और उसने केवल गैंगस्टर से नेता बने आनंद मोहन सिंह को सजा में छूट नहीं दी। इस पर, न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता ने कहा, क्या इन सभी 97 लोगों पर एक लोक सेवक की हत्या का आरोप लगाया गया था? उनका मामला यह है कि आनंद मोहन को रिहा करने के लिए नीति बदल दी गई।

जवाब में वरिष्ठ वकील रंजीत कुमार ने कहा कि वह उन दोषियों को वर्गीकृत करते हुए एक विस्तृत प्रतिक्रिया दाखिल करेंगे, जिन्हें उनके अपराध के आधार पर छूट दी गई है । सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को 2 सप्ताह की अवधि के भीतर एक अतिरिक्त जवाबी हलफनामा दायर करने की अनुमति दी ।

इसने याचिकाकर्ता को प्रत्युत्तर हलफनामा, यदि कोई हो, दाखिल करने के लिए एक सप्ताह की अवधि भी दी। मारे गए नौकरशाह की विधवा की ओर से पेश वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ लूथरा ने अदालत को बताया कि राज्य सरकार ने उन्हें मामले से संबंधित आधिकारिक फाइलों की प्रति नहीं दी है।

Breaking News : बिहार में जातीय सर्वेक्षण को हरी झंडी देने के पटना हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई अब सुप्रीम कोर्ट में 14 अगस्त को

जस्टिस संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति एसवीएन भट्टी की पीठ ने पटना हाईकोर्ट द्वारा जातीय सर्वेक्षण के मामलें में 1 अगस्त, 2023 को दिये फैसले के खिलाफ गैर-सरकारी संगठन (NGO) ‘एक सोच एक प्रयास’ की ओर से दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की।

वरिष्ठ वकील सीएस वैद्यनाथन ने यह कहते हुए मामले की सुनवाई स्थगित करने का अनुरोध किया कि इसी मुद्दे पर सुनवाई वाली अन्य याचिकाएं सूचीबद्ध नहीं हैं। उन्होंने पीठ से मामले की सुनवाई 11 अगस्त या 14 अगस्त को करने का अनुरोध किया। वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने भी मामले की सुनवाई 14 अगस्त को करने का अनुरोध किया। इस पर पीठ ने सहमति जताई।

NGO ‘एक सोच एक प्रयास’ की याचिका के अलावा एक अन्य याचिका नालंदा निवासी अखिलेश कुमार ने दायर की है। इसमें दलील दी गई है कि इस कवायद के लिए राज्य सरकार की अधिसूचना संवैधानिक व्यवस्था के खिलाफ है। संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार केवल केंद्र सरकार ही जनगणना कराने का अधिकार रखती है।

इससे पहले पटना हाईकोर्ट अपने फैसले में जातीय सर्वेक्षण को सही ठहराते हुए इसके विरुद्ध दायर सभी याचिकायों को रद्द कर दिया था। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता दीनू कुमार ने बताया था कि पटना हाईकोर्ट के इस मामलें में दिये गये फैसला का अध्ययन कर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाएगी।

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इसके पूर्व राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में केवियट दायर कर सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया है कि इस सम्बन्ध में कोई आदेश पारित करने के पहले राज्य सरकार का भी पक्ष सुना जाये।राज्य सरकार ने पटना हाईकोर्ट के जातीय सर्वेक्षण के सम्बन्ध में आदेश आने के बाद बड़ी जोर शोर से पुनः जातीय सर्वेक्षण का कार्य प्रारम्भ कर दिया है ।

इससे पूर्व पटना हाईकोर्ट ने मई,2023 में राज्य सरकार द्वारा जातीय सर्वेक्षण कराये जाने पर अंतरिम रोक लगा दी थी।इसके बाद राज्य सरकार द्वारा कराये जा रहे जातीय सर्वेक्षण पर तत्काल विराम लग गया।

पटना हाईकोर्ट में चीफ जस्टिस के वी चंद्रन की खंडपीठ ने 3 जुलाई,2023 से 7 जुलाई,2023 तक पांच दिनों की लम्बी सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रखा।1अगस्त,2023 को पटना हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के जातीय सर्वेक्षण को सही ठहराते हुए इसके विरुद्ध दायर सभी याचिकायों को ख़ारिज कर दिया।

पटना हाईकोर्ट के इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर चुनौती दी गयी है।इस मामलें पर सुप्रीम कोर्ट में शीघ्र सुनवाई किये जाने की संभावना है ।

Breaking News : बिहार में जातिगत जनगणना पर पटना हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती

पटना हाईकोर्ट द्वारा जातीय सर्वेक्षण के मामलें में 1अगस्त,2023 को दिये फैसले को अखिलेश कुमार ने एक याचिका दायर कर सुप्रीम कोर्ट चुनौती दी गयी है। सुप्रीम कोर्ट की वकील तान्याश्री व अधिवक्ता ऋतु राज ने अखिलेश कुमार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर किया है।

पटना हाईकोर्ट अपने फैसले में जातीय सर्वेक्षण को सही ठहराते हुए इसके विरुद्ध दायर सभी याचिकायों को रद्द कर दिया था।याचिकाकर्ता के अधिवक्ता दीनू कुमार ने बताया था कि पटना हाईकोर्ट के इस मामलें में दिये गये फैसला का अध्ययन कर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाएगी।

इसके पूर्व राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में केवियट दायर कर सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया है कि इस सम्बन्ध में कोई आदेश पारित करने के पहले राज्य सरकार का भी पक्ष सुना जाये।राज्य सरकार ने पटना हाईकोर्ट के जातीय सर्वेक्षण के सम्बन्ध में आदेश आने के बाद बड़ी जोर शोर से पुनः जातीय सर्वेक्षण का कार्य प्रारम्भ कर दिया है ।

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इससे पूर्व पटना हाईकोर्ट ने मई,2023 में राज्य सरकार द्वारा जातीय सर्वेक्षण कराये जाने पर अंतरिम रोक लगा दी थी।इसके बाद राज्य सरकार द्वारा कराये जा रहे जातीय सर्वेक्षण पर तत्काल विराम लग गया।

पटना हाईकोर्ट में चीफ जस्टिस के वी चंद्रन की खंडपीठ ने 3 जुलाई,2023 से 7 जुलाई,2023 तक पांच दिनों की लम्बी सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रखा।1अगस्त,2023 को पटना हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के जातीय सर्वेक्षण को सही ठहराते हुए इसके विरुद्ध दायर सभी याचिकायों को ख़ारिज कर दिया।

पटना हाईकोर्ट के इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर चुनौती दी गयी है।इस मामलें पर सुप्रीम कोर्ट में शीघ्र सुनवाई किये जाने की संभावना है ।

सुप्रीम कोर्ट में जातीय जनगणना से सम्बंधित मामलें पर सुनवाई अगले बेंच के गठन होने तक टली

सुप्रीम कोर्ट में जातीय जनगणना से सम्बंधित मामलें पर सुनवाई अगले बेंच के गठन होने तक टली। सुप्रीम कोर्ट मे जज जस्टिस संजय करोल ने इस मामलें पर सुनवाई से अपने को अलग किया।

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजय क़रोल ने पटना हाइकोर्ट के चीफ जस्टिस के रूप में इस मामलें पर सुनवाई की थी।

सुप्रीम कोर्ट में राज्य सरकार ने पटना हाइकोर्ट के उस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी,जिसमें कोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा राज्य में जातियों की गणना एवं आर्थिक सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर शीघ्र सुनवाई करने सम्बन्धी याचिका को रद्द कर दिया था।

साथ ही राज्य सरकार ने पटना हाइकोर्ट द्वारा 4 मई, 2023को पारित अंतरिम आदेश को भी चुनौती दी गई है। चीफ जस्टिस के वी चन्द्रन की खंडपीठ ने राज्य सरकार के 3 जुलाई,2023 के पूर्व सुनवाई करने की याचिका को कोर्ट ने 9मई,2023 को सुनवाई करने के बाद खारिज कर दिया था।

इस आदेश विरुद्ध को राज्य सरकार ने एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर कर की है।पटना हाइकोर्ट ने इन मामलों पर सुनवाई की तिथि 3 जुलाई,2023 ही रखा। 9 मई, 2023 को सुनवाई करने के बाद हाईकोर्ट ने इन मामलों पर सुनवाई की तिथि 3 जुलाई,2023 ही निश्चित किया था।

गौरतलब कि पहले 4मई,2023 को कोर्ट ने अंतरिम आदेश देते हुए जातीय जनगणना पर रोक लगा दी थी।चीफ जस्टिस के वी चन्द्रन की खंडपीठ ने अंतरिम आदेश पारित करते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि राज्य सरकार इस दौरान इक्कठी की गई आंकड़ों को शेयर व उपयोग फिलहाल नहीं करेगी।

Supreme-court-on-Bihar-caste-based-survey
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पटना हाइकोर्ट में राज्य सरकार द्वारा दायर याचिका में ये कहा गया था कि क्योंकि पटना हाइकोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि राज्य सरकार के पास जातीय जनगणना कराने का वैधानिक अधिकार नहीं है,इसीलिए इन याचिकाओं पर 3 जुलाई,2023 को सुनवाई करने का कोई कारण नहीं है।

साथ ही कार्यपालिका के पास जातीय जनगणना कराने का क्षेत्राधिकार नहीं है।इसे कोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में स्पष्ट कर दिया था।

कोर्ट ने ये भी कहा था कि जातीय जनगणना से जनता की निजता का उल्लंघन होता है।इस सम्बन्ध में विधायिका द्वारा कोई कानून भी नहीं बनाया गया है।

कोर्ट ने अपने 4 मई, 2023 के अंतरिम आदेश में जो निर्णय दिया है,उसमें सभी मुद्दों पर अंतिम निर्णय दिया गया।कोर्ट ने इन याचिकाओं में उठाए गए मुद्दों पर अंतिम रूप से निर्णय दे दिया है।

राज्य सरकार ने अपनी याचिका में कहा था कि इस सर्वेक्षण का मुख्य उद्देश्य
लोगों के लिए कल्याणकारी और विकास की योजना तैयार है।इसका किसी अन्य कार्य के लिए कोई उद्देश्य नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट में राज्य सरकार की इस याचिका पर सुनवाई के लिए जस्टिस बी आर गवाई और जस्टिस संजय करोल के बेंच का गठन किया गया था।लेकिन चूंकि जस्टिस संजय करोल ने इस मामलें की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया।

अतः इस मामलें की सुनवाई के लिए फिर बेंच गठित होने के बाद सुनवाई की जाएगी।

पूर्व सांसद आनंद मोहन की जेल से रिहाई पर बिहार सरकार और अन्य को SC का नोटिस

आनंद मोहन की जेल से रिहाई के खिलाफ जी. कृष्णैया की पत्नी की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने जारी किया नोटिस, बिहार सरकार और आनंद मोहन को सर्वोच्च अदालत ने जारी किया नोटिस।

दिवंगत IAS अधिकारी जी कृष्णैया की पत्नी उमा कृष्णैया, बिहार के जेल नियमों में संशोधन के बाद आनंद मोहन की समय से पहले रिहाई को चुनौती देते हुए SC का रुख किया था।

इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल को भी नोटिस जारी किया है और दो सप्ताह में जवाब तलब किया है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने नियमों में बदलाव से संबंधित सभी रिकॉर्ड भी बिहार सरकार से मांगे हैं।

AnandMohan in SC

पूर्व आईएएस अधिकारी जी कृष्णय्या की पत्नी उमा देवी ने कहा- “हमें खुशी है कि सुप्रीम कोर्ट ने सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है और बिहार सरकार और इसमें शामिल अन्य लोगों को नोटिस जारी किया है। उन्हें 2 सप्ताह के भीतर जवाब देना है। हमें SC में न्याय मिलेगा।”

बिहार सरकार ने आनंद मोहन सिंह की रिहाई के लिए जेल मैन्यूअल में बदलाव किया था और लोकसेवक की हत्या को अपवाद से हटाकर सामान्य कर दिया था जिसके बाद आनंद मोहन सिंह की जेल से रिहाई हुई है। आनंद मोहन सिंह के साथ 26 और कैदियों की रिहाई हुई थी।

सुप्रीम कोर्ट ने YouTuber मनीष कश्यप की NSA लगाने के खिलाफ याचिका पर विचार करने से किया इनकार

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने YouTube मनीष कश्यप की उस याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया है, जिसमें दक्षिणी राज्य में बिहार के प्रवासियों पर हमलों पर फर्जी खबरें फैलाने में उनकी भूमिका को लेकर बिहार और तमिलनाडु में उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी दर्ज की गई थी।

मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा और जे बी पारदीवाला की पीठ ने, हालांकि, कश्यप को एक उपयुक्त न्यायिक मंच पर एनएसए के आह्वान को चुनौती देने की स्वतंत्रता दी। इसने उनके खिलाफ सभी 19 प्राथमिकी और उनके बिहार स्थानांतरित करने की याचिका को भी खारिज कर दिया।

इस समय तमिलनाडु की मदुरै जेल में बंद कश्यप की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मनिंदर सिंह की जोरदार दलीलों को खारिज करते हुए पीठ ने कहा, ”हम याचिका पर विचार करने के इच्छुक नहीं हैं।”

गिरफ्तार यूट्यूबर पर कई प्राथमिकी दर्ज हैं और उनमें से तीन बिहार में दर्ज हैं। प्राथमिकी के अलावा, कश्यप पर तमिलनाडु पुलिस द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत भी आरोप लगाए गए थे।

SC on ManishKashyap

सुप्रीम कोर्ट की बेंच के पास कश्यप के लिए कड़े शब्द थे…

“आपके पास एक स्थिर राज्य है, तमिलनाडु राज्य। आप बेचैनी पैदा करने के लिए कुछ भी प्रसारित करते हैं, ”पीठ ने मौखिक रूप से कहा।

बाद में, इसने पूछा, “क्या किया जाना है? आप ये फर्जी वीडियो बनाते हैं… ”

पीठ ने कश्यप को अपनी याचिका के साथ उच्च न्यायालय जाने की अनुमति दी।

कश्यप के वकील सीनियर एडवोकेट मनिंदर सिंह ने कहा कि क्योंकि उन्होंने अपने वीडियो दैनिक भास्कर जैसे मुख्यधारा के अखबारों की मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित किए थे, अगर उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत गिरफ्तार किया जाना है तो अन्य अखबारों के पत्रकारों को भी इसी तरह हिरासत में लेने की जरूरत है। उन्होंने एनएसए के तहत आरोपित मणिपुर के पत्रकार किशोरचंद्र वांगखेमचा का उदाहरण भी दिया।

आनंद मोहन की रिहाई के खिलाफ याचिका पर सुप्रीम कोर्ट 8 मई को करेगा सुनवाई, मारे गए IAS अधिकारी की पत्नी ने रिहाई के खिलाफ SC में दी थी याचिका

बिहार के बाहुबली नेता आनंद मोहन की रिहाई के खिलाफ याचिका पर सुप्रीम कोर्ट 8 मई को सुनवाई करेगा। बिहार के दबंग नेता/पूर्व सांसद आनंद मोहन की रिहाई के बाद, मारे गए आईएएस अधिकारी जी कृष्णैया की पत्नी ने आनंद मोहन की रिहाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दी थी याचिका।

जी कृष्णैया की पत्नी उमा कृष्णय्या ने बिहार सरकार के नियमों के बदलाव के नोटिफिकेशन को भी रद्द करने की मांग की है। उन्होंने तर्क दिया है कि गैंगस्टर से राजनेता बने आजीवन कारावास की सजा का मतलब उसके पूरे प्राकृतिक जीवन के लिए कारावास है और इसे केवल 14 साल तक यांत्रिक रूप से व्याख्यायित नहीं किया जा सकता है।

उन्होंने शीर्ष अदालत के समक्ष अपनी याचिका में कहा, “आजीवन कारावास, जब मृत्युदंड के विकल्प के रूप में दिया जाता है, तो अदालत द्वारा निर्देशित सख्ती से लागू किया जाना चाहिए और छूट के आवेदन से परे होगा।”

AnandMohan in SC

जी कृष्णैया की पत्नी उमा कृष्णय्या ने कहा सीएम नितीश कुमार को इस तरह की चीजों को बढ़ावा नहीं देना चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर वह (आनंद मोहन) भविष्य में चुनाव लड़ेंगे तो जनता को उनका बहिष्कार करना चाहिए। मैं उन्हें वापस जेल भेजने की अपील करती हूं।

आनंद मोहन का नाम उन 20 से अधिक कैदियों की सूची में था, जिन्हें इस सप्ताह के शुरू में राज्य के कानून विभाग द्वारा जारी एक अधिसूचना द्वारा मुक्त करने का आदेश दिया गया था, क्योंकि उन्होंने 14 साल से अधिक समय सलाखों के पीछे बिताया था।

बिहार के पूर्व सांसद आनंद मोहन की रिहाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचीं ज़ी. कृष्णैया की पत्नी

गोपालगंज में मारे गए डीएम जी कृष्णैया की पत्नी उमा कृष्णैया ने आनंद मोहन को फिर से जेल भेजने की मांग की है। बिहार के दबंग नेता/पूर्व सांसद आनंद मोहन की रिहाई के बाद, मारे गए आईएएस अधिकारी जी कृष्णैया की पत्नी, जिन्हें 1994 में उनके नेतृत्व में एक भीड़ ने पीट-पीट कर मार डाला था, ने Supreme Court में याचिका दायर कर जेल से उनकी समय से पहले रिहाई को चुनौती दी है। बिहार के जेल नियमों में संशोधन के बाद गुरुवार सुबह मोहन को सहरसा जेल से रिहा कर दिया गया।

जी कृष्णैया की पत्नी उमा कृष्णय्या ने बिहार सरकार के नियमों के बदलाव के नोटिफिकेशन को भी रद्द करने की मांग की है। उन्होंने तर्क दिया है कि गैंगस्टर से राजनेता बने आजीवन कारावास की सजा का मतलब उसके पूरे प्राकृतिक जीवन के लिए कारावास है और इसे केवल 14 साल तक यांत्रिक रूप से व्याख्यायित नहीं किया जा सकता है।

उन्होंने शीर्ष अदालत के समक्ष अपनी याचिका में कहा, “आजीवन कारावास, जब मृत्युदंड के विकल्प के रूप में दिया जाता है, तो अदालत द्वारा निर्देशित सख्ती से लागू किया जाना चाहिए और छूट के आवेदन से परे होगा।”

AnandMohan in SC

जी कृष्णैया की पत्नी उमा कृष्णय्या ने कहा सीएम नितीश कुमार को इस तरह की चीजों को बढ़ावा नहीं देना चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर वह (आनंद मोहन) भविष्य में चुनाव लड़ेंगे तो जनता को उनका बहिष्कार करना चाहिए। मैं उन्हें वापस जेल भेजने की अपील करती हूं।

आनंद मोहन का नाम उन 20 से अधिक कैदियों की सूची में था, जिन्हें इस सप्ताह के शुरू में राज्य के कानून विभाग द्वारा जारी एक अधिसूचना द्वारा मुक्त करने का आदेश दिया गया था, क्योंकि उन्होंने 14 साल से अधिक समय सलाखों के पीछे बिताया था।

“बिहार में बहुत अधिक जातिवाद है, हर क्षेत्र में; नौकरशाही, राजनीति, सेवा…” SC ने पटना हाईकोर्ट से जाति सर्वेक्षण पर रोक वाली याचिका पर 3 दिन में सुन कर अंतरिम आदेश करने को कहा

दिल्ली/पटना । बिहार में जाति आधारित सर्वेक्षण के खिलाफ याचिका पर शुक्रवार को सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पटना हाईकोर्ट 3 दिन में याचिका को सुन कर अंतरिम आदेश दे।

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि जातिवाद बिहार में बड़े पैमाने पर है और नौकरशाही या राजनीति हर क्षेत्र में प्रचलित है।

जस्टिस एमआर शाह और जेबी पर्दीवाला की पीठ राज्य में चल रहे जाति सर्वेक्षण पर रोक लगाने की याचिका पर विचार कर रही थी।

न्यायमूर्ति शाह ने टिप्पणी की, “वहां बहुत अधिक जातिवाद है। हर क्षेत्र में। नौकरशाही, राजनीति, सेवा।”

“बिहार में हर क्षेत्र में इतना जातिवाद”: सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाईकोर्ट से जाति सर्वेक्षण पर रोक के लिए याचिका पर फिर से विचार करने को कहा।

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याचिकाकर्ता ‘यूथ फॉर इक्वलिटी’ का कहना है कि पूरी प्रक्रिया बिना उचित कानूनी आधार के हो रही है. लोगों को जाति बताने के लिए बाध्य करना उनकी निजता का भी हनन है।

बिहार सरकार राज्य में जातियों की संख्या और उनकी आर्थिक स्थिति का पता लगाने के लिए जाति जनगणना करा रही है।सरकार का कहना है कि इससे आरक्षण के लिए प्रावधान करने और विभिन्न योजनाओं के समुचित क्रियान्वयन में मदद मिलेगी।

पटना उच्च न्यायालय ने शीर्ष अदालत के समक्ष अपील प्रस्तुत करने के लिए सर्वेक्षण पर कोई अंतरिम रोक लगाने से इनकार कर दिया था।

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि अंतरिम राहत देने या न देने का निर्णय लेने से पहले उच्च न्यायालय को गुण-दोष के आधार पर मामले की सुनवाई करनी चाहिए थी।

पटना हाइकोर्ट के 7 जजों के GPF अकाउंट बंद होने के मामलें को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष सुनवाई 24 फरवरी, 2023 को होगा

पटना हाइकोर्ट के सात जजों के जीपीएफ अकाउंट बंद होने के मामलें को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष 24 फरवरी,2023 को सुनवाई होना तय हुआ है। इस मामलें को चीफ जस्टिस डी बाई चन्द्रचूड़ के मामला जब आया, तो उन्होंने पूछा कि मामला क्या है। जजों के जीपीएफ अकाउंट बंद कर दिया गया है।

कोर्ट ने जानना चाहा कि ये याचिका किसके द्वारा दायर की गई, तो याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने चीफ जस्टिस चन्द्रचूड को बताया कि पटना हाइकोर्ट के सात जजों ने याचिका दायर की है।

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कोर्ट ने आश्चर्य जाहिर करते हुए इस मामलें की सुनवाई की सुनवाई 24फरवरी,2023 को निर्धारित की है।

सुप्रीम कोर्ट ने बार कॉउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) द्वारा ऑल इंडिया बार एग्जाम लिये जाने को सही ठहराया

सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने बार कॉउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) द्वारा ऑल इंडिया बार एग्जाम लिये जाने को सही ठहराया है। जस्टिस संजय किशन कॉल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस ए एस ओका, जस्टिस विक्रम नाथ व जस्टिस जे के माहेश्वरी की संवैधानिक पीठ ने ये आदेश को पारित किया।

सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट रूप से कहा है कि आल इंडिया स्तर पर बार की परीक्षा एनरोलमेंट के पहले लिया जाना चाहिए या बाद में, इस मामले में बीसीआई निर्णय ले सकता है।

इतना ही नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने वी सुधीर बनाम बार कॉउंसिल ऑफ इंडिया के मामले में इस निर्णय को भी खारिज कर दिया, जिसमें यह कहा गया था कि विधि का व्यवसाय करने वाले के ऊपर एडवोकेट एक्ट की धारा 24 में दिये गए प्रावधान के अलावे कोई अन्य शर्त नहीं लगाया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि एडवोकेट एक्ट द्वारा इस तरह के नियमों को बनाने के लिए बीसीआई को पर्याप्त शक्तियां दी गई है।

Supreme Court
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संवैधानिक पीठ की अध्यक्षता करने वाले सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस एस के कॉल ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को देते हुए कहा कि इस निर्णय का प्रभाव यह होगा कि अब यह बीसीआई के ऊपर निर्भर करेगा कि आल इंडिया बार की परीक्षा को एनरोलमेंट के बाद लेता है या पहले।

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष बीसीआई का पक्ष रखने का काम बीसीआई अध्यक्ष सह वरीय अधिवक्ता मनन कुमार मिश्रा ने किया। गौरतलब है कि भारत में विधि व्यवसाय करने के लिए विधि स्नातक को आल इंडिया बार की परीक्षा पास करनी होती है।

सुप्रीम कोर्ट के कालेजियम ने आज अपने बैठक में सुप्रीम कोर्ट में पाँच जजों की बहाली की अनुशंसा की है

सुप्रीम कोर्ट के कालेजियम ने आज अपने बैठक में सुप्रीम कोर्ट में पाँच जजों की बहाली की अनुशंसा की है।

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राजस्थान हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस पंकज मित्तल,पटना हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस संजय करोल, मणिपुर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस पी वी संजय कुमार,पटना हाईकोर्ट के जज जस्टिस अहसानउद्दीन अमानुल्लाह और इलाहाबाद के जज जस्टिस मनोज मिश्रा को सुप्रीम कोर्ट के जज बनाए जाने की अनुशंसा की है।

आम लोगों से जुड़े मुद्दे को उठाने की ताकत वकीलों में ही हैं: चीफ जस्टिस यू यू ललित

पटना, 24 सितंबर 2022।  सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस यू यू ललित ने वकीलों के शक्ति की रेखांकित करते हुए कहा कि आम लोगों से जुड़े मुद्दे को उठाने की ताकत वकीलों में ही हैं। बार कॉउन्सिल ऑफ इंडिया और बिहार राज्य बार कॉउंसिल द्वारा संयुक्त रूप से पटना के बापू सभागार में वकीलों के सामाजिक दायित्व के विषय पर सेमिनार आयोजित किया गया।

चीफ जस्टिस ललित ने कहा कि वकीलों की सामाजिक भूमिका काफी बड़ी हैं,लेकिन उन्हें आम लोगों से सम्बंधित मुद्दे उठाने की बड़ी ताक़त है।उन्होंने कहा कि स्वतन्त्रता संग्राम में अग्रिम पंक्ति में वकीलों ने ही स्वतन्त्रता संग्राम को नेतृत्व दिया।

केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू ने सेमिनार को सम्बोधित करते हुए कहा कि विधायिका,कार्यपालिका और न्यायपालिका को एक टीम की तरह देश के कल्याण के लिए काम करना होगा।

उन्होंने कहा कि देश में लगभग चार करोड़ अस्सी लाख मामलें पूरे देश की अदालतों में मामलें सुनवाई के लिए लंबित है।उन्होंने कहा कि आधुनिक तकनीक और हाईकोर्ट और वकील के सहयोगी इन्हें काफी हद तक कम किया जा सकता है।

साथ ही उन्होंने कहा कि लगभग नौ हज़ार करोड़ रुपए निचली अदालतों में बुनियादी सुविधाएँ के लिए रखे गए,लेकिन उस राशि का पूरा उपयोग नहीं किया गया।ये अफ़सोस की बात है।

बार कॉउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा ने सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि आज बिहार के वकीलों ने उत्साह दिखाया,वह अद्भुत हैं।उन्होंने समाज में वकीलों की भूमिका इंगित करते हुए कहा कि वकील न सिर्फ पेशेगत कार्य करते है,बल्कि आम लोगों की सेवा और कानूनी सहायता देते हैं।

उन्होंने राज्य के वकीलों के की दशा का जिक्र करते हुए कहा कि राज्य के सिविल और अन्य अदालतों में बुनियादी सुविधाओं का काफी अभाव है।न उनके बैठने की सही व्यवस्था है,न शौचालय की।

महिला अधिवक्ताओं की दशा और भी बुरी है।इन्ही स्थितयों के कारण इन कोर्ट में महिला अधिवक्ताओं की भागीदारी काफी कम है।उन्होंने ने कहा कि वकीलों के साथ बदसलुकी और हत्याओं की काफी घटनाएं होती है।इसके लिए एडवोकेट एक्ट को प्रभावी ढंग से लागू करने की जरूरत हैं।

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजय कॉल,जस्टिस एम आर शाह,जस्टिस बी आर गवई,जस्टिस माहेश्वरी,जस्टिस एम एम सूंदरश ने भी इस सेमिनार को सम्बोधित किया।पटना हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस संजय करोल ने भी सेमिनार को सम्बोधित किया।

सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस यू यू ललित,किरण रिजिजू समेत अन्य अतिथियों कार्यक्रम सभागार और व्यवस्था की भूरी भूरी प्रशंसा की।

देशद्रोह कानून पर सुप्रीम कोर्ट की रोक, नहीं दर्ज होंगे नए मामले

देशद्रोह कानून पर सुप्रीम कोर्ट की रोक, नहीं दर्ज होंगे नए मामले; पुराने केसों में भी कोर्ट से मिलेगी राहत, सुप्रीम कोर्ट ने देशद्रोह कानून पर रोक लगा दी है।

अब इसके तहत नए केस नहीं दर्ज हो सकेंगे। इसके अलावा पुराने मामलों में भी लोग अदालत में जाकर राहत की अपील कर सकते हैं। सरकार का पक्ष रख रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी थी कि इस कानून की समीक्षा होने तक इसके तहत नए केस दर्ज करने पर रोक लगाना ठीक नहीं होगा।

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उनका कहना था कि संज्ञेय अपराधों में वरिष्ठ अधिकारी की संस्तुति पर ऐसे केस दर्ज किए जा सकते हैं। हालांकि अदालत ने केंद्र सरकार की दलीलों को ठुकराते हुए कानून पर रोक लगाने का फैसला दिया।

Supreme Court : मगध विश्वविद्यालय के पूर्व वाइस चांसलर राजेन्द्र प्रसाद की गिरफ्तारी पर फिलहाल रोक लगा कर राहत दी है

सुप्रीम कोर्ट ने मगध विश्वविद्यालय के पूर्व वाइस चांसलर (वीसी) राजेन्द्र प्रसाद उर्फ डॉ राजेन्द्र प्रसाद की गिरफ्तारी पर फिलहाल रोक लगा कर राहत दी है। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता डा रणजीत कुमार ने बताया कि साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने राजेन्द्र प्रसाद द्वारा पटना हाई कोर्ट में दायर अग्रिम जमानत व कार्यवाही को रद्द करने हेतु दायर अर्जियों पर आदेश की सूचना की तिथि से तीन सप्ताह के भीतर सुनवाई करने का आग्रह किया है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इस बीच याचिकाकर्ता की गिरफ्तारी पर रोक रहेगी। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को निष्पादित कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने आपराधिक रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए उक्त आदेश को पारित किया है।

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राजेन्द्र प्रसाद के विरुद्ध आई पी सी की धारा 120 बी (अपराध करने के लिए रची गई आपराधिक साजिश) / 420(जालसाजी) व भ्रष्टाचार निवारण एक्ट की धाराओं में केस दर्ज किया गया था। इसके पूर्व याचिकाकर्ता ने पटना हाई कोर्ट के समक्ष अग्रिम जमानत हेतु याचिका भी दायर किया है। इसके अलावा याचिकाकर्ता ने आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने के लिए अर्जी भी दायर किया है।

सुप्रीम कोर्ट के समक्ष याचिकाकर्ता की दलील थी कि उनकी अर्जियों पर सुनवाई बड़े पैमाने पर मुकदमों के लंबित रहने की वजह से नहीं सुना जा रहा है।

बिहार के डीजीपी एसके सिंघल की बढ़ी मुश्किले, नियुक्ति पर खड़ा किया सवाल

दिल्ली — बिहार के डीजीपी एसके सिंघल की मुश्किलें सकती है । सुप्रीम कोर्ट ने उनकी नियुक्ति को लेकर दायर एक याचिका की सुनवाई करते हुए बिहार सरकार को नोटिस जारी करने का आदेश दिया है. कोर्ट ने बिहार सरकार से ये पूछा है कि आख़िरकार क्यों नहीं डीजीपी की नियुक्ति करने को सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना माना जाये।

दरअसल सुप्रीम कोर्ट में बिहार के डीजीपी एसके सिंघल की नियुक्ति को लेकर एक याचिका दायर की गयी है. याचिका में कहा गया है कि बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना कर बिहार में डीजीपी की नियुक्ति कर दी है. कोर्ट में इस मामले की सुनवाई हुई. याचिकाकर्ता की ओर से बहस करते हुए वरीय अधिवक्ता जय साल्वा ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने कई बार राज्यों के डीजीपी की नियुक्ति में अपने आदेश का पालन सुनिश्चित करने को कहा है, लेकिन बिहार में कोर्ट के आदेश को ताक पर रख कर डीजीपी की नियुक्ति कर दी गयी।

मामले की सुनवाई कर रही सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने पूछा कि हाईकोर्ट में इस मामले को क्यों नहीं ले ज़ाया गया. याचिकाकर्ता के वकील ने बताया कि हाईकोर्ट में दो मामले लंबित हैं और उस पर सुनवाई नहीं हो रही है. याचिकाकर्ता के वकील जय साल्वा ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को इस पर सुनवाई करनी चाहिये. ऐसे ही मामले में कोर्ट झारखंड सरकार को अवमानना का नोटिस जारी कर चुकी है. इसके बाद कोर्ट ने बिहार सरकार को नोटिस जारी करने का आदेश दिया.

सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को आदेश दे रखा है कि वह किसी भी पुलिस अधिकारी को कार्यवाहक डीजीपी के तौर पर नियुक्त नहीं करे. राज्य सरकार डीजीपी या पुलिस कमिश्नर के पद पर नियुक्ति के लिए जिन पुलिस अधिकारियों के नाम पर विचार कर रही होगी, उनके नाम यूपीएससी को भेजे जाएंगे. यूपीएससी उसे शॉर्टलिस्ट कर तीन सबसे उपयुक्त अधिकारियों की सूची राज्य को भेजेगा. उन्हीं तीन में से किसी एक को राज्य सरकार पुलिस प्रमुख नियुक्त कर सकेगी.

कोर्ट ने ये भी कहा था कि मौजूदा पुलिस प्रमुख के रिटायरमेंट से तीन महीने पहले यह सिफारिश यूपीएससी को भेजी जाये. सरकार को ये कोशिश करनी चाहिए कि कि डीजीपी बनने वाले अधिकारी का पर्याप्त सेवाकाल बचा हो. सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर ये कहा गया है कि बिहार सरकार ने कोर्ट के इस आदेश को ताक पर रख कर डीजीपी के पद पर एसके सिंघल की नियुक्ति कर दी है.

नीट परीक्षा को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला ऐतिहासिक-सुशील मोदी

नीट-पीजी एवं यूजी में आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला गरीबों की ऐतिहासिक जीत – सुशील कुमार मोदी

  1. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने नीट-पीजी एवं यूजी के ऑल इंडिया कोटा में पहली बार ओबीसी को 27 फीसद और सामान्य वर्ग के गरीब छात्रों को 10 फीसद आरक्षण देने का फैसला किया था।
    अत्यंत प्रसन्नता की बात है कि सुप्रीम कोर्ट ने दोनों वर्गों के छात्र-छात्राओं को दाखिले में आरक्षण देने के सरकार के फैसले को बहाल रखा।
    इससे मेडिकल के स्नातक और परास्नातक ( यूजी-पीजी) पाठ्यक्रम में नामांकन चाहने वाले 4 हजार से ज्यादा छात्रों को लाभ होगा।
  2. नीट-पीजी एवं यूजी में नामांकन के 15 प्रतिशत केंद्रीय कोटा में आरक्षण देने के फैसले को जब सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई, तब सरकार ने मजबूती से अपना पक्ष रखा।
    इस मुद्दे पर अदालत का ताजा निर्णय सभी वर्ग के गरीबों के हित में एक ऐतिहासिक विजय है।
  3. सुप्रीम कोर्ट ने सामान्य वर्ग को आरक्षण देने के लिए पारिवारिक वार्षिक आय की 8 लाख की सीमा को भी स्वीकार किया है।
    इससे नीट-पीजी काउंसलिंग में गतिरोध खत्म होगा।