पटना हाईकोर्ट ने राज्य में जाति सर्वेक्षण के दौरान ट्रांसजेंडरओं को जाति की सूची में रखने के खिलाफ दायर हुई जनहित याचिका को निष्पादित करते हुए यह कहा है कि ट्रांसजेंडर समुदाय के सदस्यों को भूल वश ही जाति की सूची में दर्ज किया गया है। उन्हे इस सर्वेक्षण में एक जाति विशेष ना मानते हुए एक अलग ग्रुप माना जाए जिनकी अपनी एक निश्चित पहचान है।
चीफ जस्टिस के वी चंद्रन की खंडपीठ ने रेशमा प्रसाद की जनहित याचिका पर सुनवाई की।इन्ही ग्रुप के सदस्यों की सामाजिक आर्थिक और शैक्षणिक हालात से जुड़े जो आंकड़े जुटाए गए, वही तय करेंगे कि ट्रांस जेंडर के सामाजिक उत्थान के लिए उन्हे कल्याणकारी योजनाओं की कितनी ज़रूरत है ।
याचिकाकर्ता जो स्वयं एक ट्रांसजेंडर समुदाय से है, उसने हाई कोर्ट से अनुरोध किया कि जाति सर्वेक्षण के आंकड़े जुटाना में एन्यूमैरेटरों को जो फार्म दिया गया है, उस फॉर्म में ट्रांसजेंडर को जाति की सूची में उल्लेखित किया गया है।
ये ट्रांसजेंडरों के अलग अस्तित्व एवं पहचान होने के मौलिक अधिकार का हनन है।राज्य सरकार की ओर से कोर्ट को बताया गया था कि 24 अप्रैल,2023 को ही सभी जिला अधिकारियों को यह सूचित किया गया कि वह ट्रांसजेंडररो का जेंडर तय करने के लिए महिला पुरुष के साथ एक तीसरा विकल्प (बॉक्स )भी रखे,जो “अन्य” के नाम से जाना जाएगा ।
ट्रांसजेंडर इसी तीसरे विकल्प को भरेंगे।साथ ही वे जिस जाति से होंगे, वो जाति का उल्लेख करेंगे।
हाई कोर्ट ने कहा कि चूंकि जाति सर्वेक्षण पूरा हो चुका है, इसलिए जनहित याचिकाकर्ता को या उसके ट्रांसजेंडर समुदाय के किसी भी सदस्यों को यह छूट दिया कोर्ट ने कि वह अपने जेंडर को तीसरे विकल्प में और अपनी जाति, जिसमें वह आते हैं।उसे जाति का विकल्प चुनने के लिए राज्य सरकार को अलग से अर्ज़ी दे सकते है।