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पटना हाईकोर्ट ने बिहार में जाति सर्वेक्षण के दौरान ट्रांसजेंडरओं को जाति की सूची में रखने के खिलाफ दायर हुई जनहित याचिका को निष्पादित करते हुए यह कहा है कि ट्रांसजेंडर समुदाय के सदस्यों को भूल वश ही जाति की सूची में दर्ज किया गया है

पटना हाईकोर्ट ने राज्य में जाति सर्वेक्षण के दौरान ट्रांसजेंडरओं को जाति की सूची में रखने के खिलाफ दायर हुई जनहित याचिका को निष्पादित करते हुए यह कहा है कि ट्रांसजेंडर समुदाय के सदस्यों को भूल वश ही जाति की सूची में दर्ज किया गया है। उन्हे इस सर्वेक्षण में एक जाति विशेष ना मानते हुए एक अलग ग्रुप माना जाए जिनकी अपनी एक निश्चित पहचान है।

चीफ जस्टिस के वी चंद्रन की खंडपीठ ने रेशमा प्रसाद की जनहित याचिका पर सुनवाई की।इन्ही ग्रुप के सदस्यों की सामाजिक आर्थिक और शैक्षणिक हालात से जुड़े जो आंकड़े जुटाए गए, वही तय करेंगे कि ट्रांस जेंडर के सामाजिक उत्थान के लिए उन्हे कल्याणकारी योजनाओं की कितनी ज़रूरत है ।

याचिकाकर्ता जो स्वयं एक ट्रांसजेंडर समुदाय से है, उसने हाई कोर्ट से अनुरोध किया कि जाति सर्वेक्षण के आंकड़े जुटाना में एन्यूमैरेटरों को जो फार्म दिया गया है, उस फॉर्म में ट्रांसजेंडर को जाति की सूची में उल्लेखित किया गया है।

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ये ट्रांसजेंडरों के अलग अस्तित्व एवं पहचान होने के मौलिक अधिकार का हनन है।राज्य सरकार की ओर से कोर्ट को बताया गया था कि 24 अप्रैल,2023 को ही सभी जिला अधिकारियों को यह सूचित किया गया कि वह ट्रांसजेंडररो का जेंडर तय करने के लिए महिला पुरुष के साथ एक तीसरा विकल्प (बॉक्स )भी रखे,जो “अन्य” के नाम से जाना जाएगा ।

ट्रांसजेंडर इसी तीसरे विकल्प को भरेंगे।साथ ही वे जिस जाति से होंगे, वो जाति का उल्लेख करेंगे।

हाई कोर्ट ने कहा कि चूंकि जाति सर्वेक्षण पूरा हो चुका है, इसलिए जनहित याचिकाकर्ता को या उसके ट्रांसजेंडर समुदाय के किसी भी सदस्यों को यह छूट दिया कोर्ट ने कि वह अपने जेंडर को तीसरे विकल्प में और अपनी जाति, जिसमें वह आते हैं।उसे जाति का विकल्प चुनने के लिए राज्य सरकार को अलग से अर्ज़ी दे सकते है।

पटना हाईकोर्ट ने भागलपुर के पास अगवानी घाट पर गंगा नदी के ऊपर बन रहे पुल के ध्वस्त होने के मामलें पर सुनवाई करते हुए निर्माण कंपनी एस पी सिंगला को अंडरटेकिंग देने को कहा कि वह अपने खर्च से पुल के ध्वस्त भाग का निर्माण करेगा

पटना हाईकोर्ट ने भागलपुर के पास अगवानी घाट पर गंगा नदी के ऊपर बन रहे पुल के ध्वस्त होने के मामलें पर सुनवाई की। अधिवक्ता मणिभूषण सेंगर व ललन कुमार की जनहित याचिकायों पर चीफ जस्टिस के वी चंद्रन की खंडपीठ ने सुनवाई करते हुए निर्माण कंपनी एस पी सिंगला को हलफ़नामा दायर कर अंडरटेकिंग देने को कहा कि वह अपने खर्च से इस पुल के ध्वस्त भाग का निर्माण करेगा। इस मामलें पर अगली सुनवाई 25 अगस्त,2023 को होगी।

विकास कुमार मेहता की ओर से कोर्ट के समक्ष पक्ष प्रस्तुत करते हुए वरीय अधिवक्ता एस डी संजय ने कहा कि राज्य सरकार की रिपोर्ट की कॉपी उन्हें दी जाये। उस रिपोर्ट की कॉपी का अध्ययन करने के बाद वे अपना पक्ष कोर्ट के समक्ष रखेंगे।

इससे पूर्व की सुनवाई में कोर्ट ने राज्य सरकार को घटना की पूरी जानकारी देते हलफ़नामा दायर करने का निर्देश दिया था। साथ ही कोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा दायर हलफ़नामा का जवाब देने के लिए याचिकाकर्ताओं को पुनः दो सप्ताह का समय दिया था।पिछली सुनवाई में कोर्ट में एस पी सिंगला कंपनी के एम डी एस पी सिंगला उपस्थित थे।

इससे पूर्व जस्टिस पूर्णेन्दु सिंह की सिंगल बेंच ने ग्रीष्मावकाश के दौरान ललन कुमार की याचिका पर सुनवाई की थी।उन्होंने गंगा नदी पर बन रहे खगड़िया के अगुबानी – सुल्तानगंज के निर्माणाधीन चार लेन पुल के ध्वस्त होने के मामलें को गंभीरता से लेते हुए निर्माण करने वाली कंपनी के एम डी को 21जून,2023 को कोर्ट में उपस्थित होने का निर्देश दिया था।

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इस मामलें में अधिवक्ता मणिभूषण प्रताप सेंगर ने एक जनहित याचिका दायर की थी।उन्होंने अपनी जनहित याचिका में कहा कि भ्रष्टाचार, घटिया निर्माण सामग्री और निर्माण कंपनी के घटिया कार्य से ये पुल दुबारा टूटा है।ये पुल 1700 करोड़ रुपए की लागत से बन रहा था ।

उन्होंने इस याचिका में कहा है कि इस मामलें की जांच स्वतंत्र एजेंसी से कराये जाने या न्यायिक जांच कराया जाये।जो भी दोषी और जिम्मेदार है,उनके विरुद्ध सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।

उन्होंने अपने जनहित याचिका में ये मांग की है कि इस निर्माण कंपनी को लिस्ट कर इससे और अन्य जिम्मेदार और दोषी लोगों से इस क्षति की वसूली की जाये।

कोर्ट के समक्ष याचिकाकर्ता की ओर से वरीय अधिवक्ता एस डी संजय व राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता पी के शाही और सरकारी अधिवक्ता अमीश कुमार ने पक्ष प्रस्तुत किया। इन मामलों पर अगली सुनवाई 25 अगस्त, 2023 को की जाएगी।

Breaking News : बिहार में जातिगत जनगणना पर पटना हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती

पटना हाईकोर्ट द्वारा जातीय सर्वेक्षण के मामलें में 1अगस्त,2023 को दिये फैसले को अखिलेश कुमार ने एक याचिका दायर कर सुप्रीम कोर्ट चुनौती दी गयी है। सुप्रीम कोर्ट की वकील तान्याश्री व अधिवक्ता ऋतु राज ने अखिलेश कुमार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर किया है।

पटना हाईकोर्ट अपने फैसले में जातीय सर्वेक्षण को सही ठहराते हुए इसके विरुद्ध दायर सभी याचिकायों को रद्द कर दिया था।याचिकाकर्ता के अधिवक्ता दीनू कुमार ने बताया था कि पटना हाईकोर्ट के इस मामलें में दिये गये फैसला का अध्ययन कर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाएगी।

इसके पूर्व राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में केवियट दायर कर सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया है कि इस सम्बन्ध में कोई आदेश पारित करने के पहले राज्य सरकार का भी पक्ष सुना जाये।राज्य सरकार ने पटना हाईकोर्ट के जातीय सर्वेक्षण के सम्बन्ध में आदेश आने के बाद बड़ी जोर शोर से पुनः जातीय सर्वेक्षण का कार्य प्रारम्भ कर दिया है ।

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इससे पूर्व पटना हाईकोर्ट ने मई,2023 में राज्य सरकार द्वारा जातीय सर्वेक्षण कराये जाने पर अंतरिम रोक लगा दी थी।इसके बाद राज्य सरकार द्वारा कराये जा रहे जातीय सर्वेक्षण पर तत्काल विराम लग गया।

पटना हाईकोर्ट में चीफ जस्टिस के वी चंद्रन की खंडपीठ ने 3 जुलाई,2023 से 7 जुलाई,2023 तक पांच दिनों की लम्बी सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रखा।1अगस्त,2023 को पटना हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के जातीय सर्वेक्षण को सही ठहराते हुए इसके विरुद्ध दायर सभी याचिकायों को ख़ारिज कर दिया।

पटना हाईकोर्ट के इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर चुनौती दी गयी है।इस मामलें पर सुप्रीम कोर्ट में शीघ्र सुनवाई किये जाने की संभावना है ।

बिहार सरकार द्वारा बिहार में जातियों की गणना एवं आर्थिक सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 1अगस्त,2023 को पटना हाइकोर्ट निर्णय देगा

पटना हाइकोर्ट कल 1अगस्त,2023 को राज्य सरकार द्वारा राज्य में जातियों की गणना एवं आर्थिक सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर निर्णय देगा। चीफ जस्टिस के वी चंद्रन की खंडपीठ ने इस सम्बन्ध में 3 जुलाई,2023 से पांच दिनों की लम्बी सुनवाई पूरी कर निर्णय सुरक्षित रखा था।

पिछली सुनवाई में राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता पी के शाही ने कोर्ट के समक्ष पक्ष प्रस्तुत किया था ।उन्होंने कहा कि ये सर्वे है,जिसका उद्देश्य आम नागरिकों के सम्बन्ध आंकड़ा एकत्रित करना,जिसका उपयोग उनके कल्याण और हितों के
किया जाना है।

उन्होंने कोर्ट को बताया कि जाति सम्बन्धी सूचना शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश या नौकरियों लेने के समय भी दी जाती है।एडवोकेट जनरल शाही ने कहा कि जातियाँ समाज का हिस्सा है। उन्होंने कहा कि हर धर्म में अलग अलग जातियाँ होती है।

उन्होंने कोर्ट को बताया कि इस सर्वेक्षण के दौरान किसी भी तरह की कोई अनिवार्य रूप से जानकारी देने के लिए किसीको बाध्य नहीं किया जा रहा है ।

उन्होंने कोर्ट को बताया कि जातीय सर्वेक्षण का कार्य लगभग 80 फी सदी पूरा हो गया है।उन्होंने कहा कि ऐसा सर्वेक्षण राज्य सरकार के अधिकारक्षेत्र में है।

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इससे पहले हाईकोर्ट ने अंतरिम आदेश देते हुए राज्य सरकार द्वारा की जा रही जातीय व आर्थिक सर्वेक्षण पर रोक लगा दिया था।कोर्ट ने ये जानना चाहा था कि जातियों के आधार पर गणना व आर्थिक सर्वेक्षण कराना क्या कानूनी बाध्यता है।

कोर्ट ने ये भी पूछा था कि ये अधिकार राज्य सरकार के क्षेत्राधिकार में है या नहीं।साथ ही ये भी जानना कि क्या इससे निजता का उल्लंघन होगा।

पहले की सुनवाई में याचिकाकर्ता के अधिवक्ता अभिनव श्रीवास्तव ने कोर्ट को बताया था कि राज्य सरकार ने जातियों और आर्थिक सर्वेक्षण करा रही है।

याचिकाकर्ताओं की ओर से कोर्ट के समक्ष पक्ष प्रस्तुत करते हुए अधिवक्ता दीनू कुमार ने बताया कि सर्वेक्षण कराने का ये अधिकार राज्य सरकार के अधिकारक्षेत्र के बाहर है।ये असंवैधानिक है और समानता के अधिकार का उल्लंघन है।

अधिवक्ता दीनू कुमार ने कोर्ट को ये भी बताया था कि राज्य सरकार जातियों की गणना व आर्थिक सर्वेक्षण करा रही है।उन्होनें ने बताया कि ये संवैधानिक प्रावधानों के विपरीत है।

उन्होंने कहा था कि प्रावधानों के तहत इस तरह का सर्वेक्षण केंद्र सरकार करा सकती है।ये केंद्र सरकार की शक्ति के अंतर्गत आता है।उन्होंने बताया था कि इस सर्वेक्षण के लिए राज्य सरकार पाँच सौ करोड़ रुपए खर्च कर रही है।

पटना हाईकोर्ट ने एलएन मिश्रा कॉलेज,मुजफ्फरपुर से एमबीए कर रही छात्रा यशी सिंह के अपहरण पर कड़ा रुख अपनाते हुए एसपी, मुजफ्फरपुर को चार सप्ताह में अनुसंधान का ब्यौरा दायर करने का आदेश दिया

पटना हाईकोर्ट ने एलएन मिश्रा कॉलेज,मुजफ्फरपुर से एमबीए कर रही छात्रा यशी सिंह के अपहरण पर कड़ा रुख अपनाते हुए एसपी, मुजफ्फरपुर को चार सप्ताह में अनुसंधान का ब्यौरा दायर करने का आदेश दिया। जस्टिस अनिल कुमार सिन्हा ने इस मामलें पर सुनवाई की।

साहेबगंज कॉलेज के पूर्व प्राचार्य राम प्रसाद राय की नतनी ऐसी सिंह का अपहरण 22 दिसंबर 2022 को कॉलेज जाते वक्त हो गया था।घटना के 6 माह बाद भी पुलिस अब तक छात्रा की बरामदगी नहीं कर पाई है।

लड़की के नाना,पिता, माता ने बिहार के मुख्यमंत्री, डीजीपी बिहार,आईजी मुजफ्फरपुर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग,राष्ट्रीय महिला आयोग, आर्थिक अपराध विभाग ,एसपी मुजफ्फरपुर को कई बार ज्ञापन दे चुके हैं।साथ ही उनसे मिलकर अपनी व्यथा सुना चुके हैं।

पर पुलिस ने अबतक कोई कार्रवाई नहीं की है।यहां तक कि पुलिस अनुसंधान में एक सोनू कुमार नाम के लड़के जो अपराधी किस्म का है, का नाम अपहरण के मामले में सामने आया है । उसने नशे की सुई देकर छात्रा को मुजफ्फरपुर की चतुर्भुज स्थान में जाकर बेच दिया है।

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फिर भी मुजफ्फरपुर पुलिस को कोई सफलता नहीं मिली है। बिहार के सभी सम्बन्धित वरीय अधिकारियों से मिलकर उनके माता-पिता थक चुके हैं।याचिकाकर्ता के वकील अरविंद कुमार ने बताया कि मेरी बात सम्बन्धित आईओ से हुई, तो उन्होंने बताया कि सोनू कुमार को पकड़ा गया था ।दो-तीन दिन रखने के बाद मैंने उसे छोड़ दिया,क्योंकि उसके खिलाफ मुझे कोई सबूत नहीं मिले।जबकि सोनू का नाम अपहरणकर्ता में जांच के दौरान आ चुका है।

अंत में पटना हाई कोर्ट में अपनी याचिका दायर की।इस पर कोर्ट ने संज्ञान लेते हुए मुजफ्फरपुर के एसपी को पूरे अनुसंधान का ब्यौरा 4 सप्ताह के भीतर प्रस्तुत करने का आदेश दिया है।इस मामलें पर अगली सुनवाई 4 सप्ताह बाद की जाएगी।

बिहार में 34540 सहायक शिक्षकों की बहाली के बचे सीट पर कोर्ट के आदेश के बावजूद अब तक बहाली नहीं किये जाने से पटना हाईकोर्ट ने नाराजगी जाहिर की

पटना हाईकोर्ट ने राज्य में 34540 सहायक शिक्षकों की बहाली के बचे सीट पर कोर्ट के आदेश के बावजूद अब तक बहाली नहीं किये जाने से नाराजगी जाहिर की। जस्टिस पी बी बजनथ्री की खंडपीठ ने इस याचिका पर सुनवाई की।

कोर्ट ने शिक्षा विभाग के सम्बन्धित सचिव और प्राथमिक शिक्षा के निदेशक को अगली तारीख पर कोर्ट में उपस्थित हो कर स्थिति स्पष्ट करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा कि अगली तारीख पर दोनों अधिकारियों के खिलाफ अदालती आदेश के अवमानना के दोषी के लिए आरोप तय किया जायेगा।

कोर्ट का कहना था कि 19 अकटुबर, 2016 को हाई कोर्ट ने छह माह के भीतर सहायक शिक्षक के बचे हुये 2213 सीट पर बहाली प्रक्रिया पूरी करने का आदेश दिया था।लेकिन करीब सात साल के बाद भी बहाली नहीं की जा सकी।

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कोर्ट ने कोर्ट में उपस्थित निदेशक से जानना चाहा कि सहायक शिक्षक की बहाली करने के अधिकारी कौन हैं।कोर्ट के सवाल पर उन्होंने बताया कि जिला शिक्षा अधिकारी सहायक शिक्षक को बहाली करने के अधिकारी हैं।

इस पर कोर्ट ने कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा कि जिला शिक्षा अधिकारी जिला में बहाली करने के लिए अधिकृत हो सकते हैं।लेकिन यह मामला पूरे राज्य का हैं।

कोर्ट ने इस मामले पर अगली सुनवाई दो सप्ताह के बाद की जाएगी।

पटना हाईकोर्ट ने औरंगाबाद जिले के नाउरगढ़ में खुदाई के दौरान मिली मूर्तियों व अन्य पुरातत्विक महत्त्व की सामग्रियों के रख रखाव व सरंक्षण के लिए की जा रही कार्रवाई का ब्यौरा तलब किया

पटना हाईकोर्ट ने औरंगाबाद जिले के नाउरगढ़ में खुदाई के दौरान मिली मूर्तियों व अन्य पुरातत्विक महत्त्व की सामग्रियों के रख रखाव व सरंक्षण के लिए की जा रही कार्रवाई का ब्यौरा तलब किया है। अवधेश पाण्डेय की जनहित याचिका पर चीफ जस्टिस के वी चंद्रन की खंडपीठ ने सुनवाई की।

याचिकाकर्ता की ओर से कोर्ट को बताया गया कि औरंगाबाद जिले के नाउरागढ़ में भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा खुदाई के दौरान बड़ी तादाद में मूर्तियां व अन्य ऐतिहासिक महत्त्व की सामग्रियां प्राप्त हुई थी।लेकिन उनका उचित ढंग से रख रखाव और संरक्षण नहीं किया जा रहा है।इस प्रकार के महत्त्व की मूर्तियां और ऐतिहासिक महत्त्व धरोहरों की उपेक्षा की जा रही है।

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अधिवक्ता विनय कुमार पाण्डेय ने बताया कि इस तरह की पुरातत्विक महत्त्व और ऐतिहासिक मूर्तियों और अन्य सामग्रियों को निकाला गया।वहां पर एक स्टेडियम बनाया जाने लगा।इस पर कोर्ट ने रोक लगा दी है ।साथ ही कोर्ट ने राज्य सरकार को पूरा ब्यौरा प्रस्तुत करने का निर्देश दिया ।

इस मामलें पर अगली सुनवाई 8अगस्त,2023 को होगी।

पटना हाईकोर्ट ने शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक के खिलाफ कोर्ट में उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए जमानती वारंट जारी करने का आदेश दिया

पटना हाईकोर्ट ने शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक के खिलाफ कोर्ट में उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए जमानती वारंट जारी करने का आदेश दिया है। जस्टिस पीवी बजंत्री की खंडपीठ ने एक अवमानना के सिलसिले में श्री पाठक के विरुद्ध जमानतीय वारंट जारी किया।

एक शिक्षिका सुकृति कुमारी को नियमित शिक्षक का वेतन नहीं दे कर नियोजित शिक्षक का वेतन दिया गया,जबकि कोर्ट ने उन्हें नियमित शिक्षक का वेतन देने का निर्देश दिया था ।

अपर मुख्य शिक्षा सचिव के के पाठक की ओर से अधिवक्ता नरेश दीक्षित ने कोर्ट को बताया कि उन्होंने जून, 2023 में पदभार ग्रहण किया है।तब से वे अदालती अवमानना से सम्बन्धित मामलों पर कार्रवाई कर रहे है।

याचिकाकर्ता शिक्षिका सुकृति कुमारी के मामलें में अदालती आदेश का पालन किया जा चुका है।लेकिन कोर्ट ने अदालती आदेश के पालन में हुए बिलम्ब को गंभीरता से लेते हुए जमानतीय वारंट जारी किया।

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अधिवक्ता नरेश दीक्षित ने कोर्ट को बताया कि पूर्व में कोर्ट द्वारा जारी जमानतीय वारंट को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गयी है,जिस पर कल सुनवाई होना तय हुआ है।इस मामलें को भी सुप्रीम कोर्ट के समक्ष रखा जायेगा।

इस मामलें पर अगली सुनवाई अगले सप्ताह की जाएगी।

पटना हाईकोर्ट में पटना एवं राज्य के अन्य क्षेत्रों में खुले आम नियमों का उल्लंघन कर मांस-मछली बेचने पर पाबन्दी लगाने सम्बंधित जनहित याचिका पर सुनवाई 18 जुलाई,2023 तक टली

पटना हाईकोर्ट में पटना एवं राज्य के अन्य क्षेत्रों में खुले आम नियमों का उल्लंघन कर मांस-मछली बेचने पर पाबन्दी लगाने सम्बंधित जनहित याचिका पर सुनवाई 18 जुलाई,2023 तक टली। चीफ जस्टिस के वी चन्द्रन की खंडपीठ इस जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही है।

पिछली सुनवाई में कोर्ट ने इस बारे में पटना नगर निगम को विस्तृत जानकारी देने के लिए तीन सप्ताह का समय दिया था। पटना नगर निगम की ओर से कोर्ट को बताया कि आधुनिक बूचडखाने के निर्माण और विकास के लिए स्थानों को चिन्हित कर लिया गया है।

साथ ही निविदा की कार्रवाई की जा रही है। पूरा ब्यौरा प्रस्तुत करने के लिए पटना नगर निगम ने तीन सप्ताह की मोहलत मांगी,जिसे कोर्ट ने मंजूर कर लिया था।ये जनहित याचिका अधिवक्ता संजीव कुमार मिश्र ने दायर की है।

पिछली सुनवाई में अधिवक्ता मानिनी जायसवाल ने कोर्ट को बताया था कि पटना समेत राज्य विभिन्न क्षेत्रों में अस्वास्थ्यकर और नियमों के विरुद्ध मांस मछली काटे और बेचे जाते हैं।उन्होंने कहा कि इससे जहाँ आम आदमी के स्वास्थ्य पर पर बुरा असर पड़ता हैं, वहीं खुले में इस तरह से खुले में जानवरों के काटे जाने से छोटे लड़कों के मन पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

याचिकाकर्ता के वकील मानिनी जयसवाल ने कोर्ट से यह भी आग्रह किया था कि खुले और अवैध रूप से चलने वाले बूचडखानों को नगर निगम द्वारा तत्काल बंद कराया जाना चाहिए ।

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उन्होंने कोर्ट को बताया था कि पटना के राजा बाज़ार, पाटलिपुत्रा , राजीव नगर, बोरिंग केनाल रोड , कुर्जी, दीघा , गोला रोड , कंकड़बाग आदि क्षेत्रों में नियमों का उल्लंघन कर खुले में मांस मछ्ली की बिक्री होती है।

अधिवक्ता मानिनी जयसवाल ने कोर्ट को जानकारी दी थी कि अस्वस्थ और बगैर उचित प्रमाणपत्र के ही जानवरों को मार कर इनका मांस बेचा जाता है ,जो कि जनता के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।

उनका कहना था कि शुद्ध और स्वस्थ मांस मछ्ली उपलब्ध कराने के लिए सरकार को आधुनिक सुविधाओं सुविधाओं के साथ बूचड़खाने बनाए जाने चाहिए,ताकि मांस मछली बेचने वालोंं को भी सुविधा मिले।

इस मामलें पर अब अगली सुनवाई 18 जुलाई, 2023 को की जाएगी।

राज्य के विभिन्न विश्वविद्यालयों व उनके अंतर्गत कॉलेजों में छात्रों के हॉस्टलों की दयनीय हालत पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को इन हॉस्टलों की स्थिति में सुधार के लिए ठोस कार्रवाई करने का निर्देश दिया

राज्य के विभिन्न विश्वविद्यालयों व उनके अंतर्गत कॉलेजों में छात्रों के हॉस्टलों की दयनीय हालत पर पटना हाईकोर्ट ने सुनवाई की। विकास चंद्र उर्फ़ गुड्डू बाबा की जनहित याचिका पर चीफ जस्टिस के वी कृष्णन की खंडपीठ ने सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को इन हॉस्टलों की स्थिति में सुधार के लिए ठोस कार्रवाई करने का निर्देश दिया। इसके साथ ही कोर्ट ने इस मामलें को निष्पादित कर दिया।

राज्य सरकार की ओर से कोर्ट को बताया गया कि इस मुद्दे पर राज्य सरकार ने विभिन्न विश्वविद्यालयों के कुलपतियों से विचार विमर्श किया।उन्होंने भी हॉस्टालों की स्थिति के सम्बन्ध में अपना रिपोर्ट दिया।राज्य सरकार इस मामलें पर कार्रवाई की योजना बना रही है।

याचिकाकर्ता विकास चंद्र उर्फ़ गुड्डू बाबा ने अपनी जनहित याचिका में बताया था कि राज्य के विश्वविद्यालयों व उनके अंतर्गत कालेजों में छात्रों के हॉस्टलों की स्थिति काफी दयनीय है।उन हॉस्टलों में बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध नहीं है।

छात्रों के लिए साफ सुथरे और अच्छे कमरे,स्वच्छ शौचालयों,शुद्ध पेय जल,कैंटीन,बिजली आदि सुविधायें उपलब्ध नहीं है।
याचिका में ये भी कहा गया कि इससे छात्रों को काफी कठिनाईयों का सामना करना पड़ता हैं ।

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इसका प्रभाव उनकी पढ़ाई और स्वास्थ्य पर पड़ता है ।इस याचिका ये अनुरोध किया गया कि छात्रों के लिए नये हॉस्टलों का निर्माण किया जाये,जिनमें उनके लिए सारी सुविधाएं उपलब्ध हो,ताकि उन्हें रहने और पढ़ने लिए सही माहौल मिले।

याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया कि इस मामलें में 23 अक्टूबर,2019 को बिहार सरकार के मुख्य सचिव और सभी सबंधित पक्षों को दिया गया।इसमें ये कहा गया कि छात्रों के लिए साफ सुथरे कमरे,स्नानघर, शौचालयों,बिजली आदि की बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने का अनुरोध किया गया।लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गयी।

कोर्ट ने आज इस जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार से उम्मीद जाहिर की कि वह विभिन्न विश्वविद्यालयों के हॉस्टलों की स्थिति सुधारने के उचित व प्रभावी कदम उठाएगी।इसके साथ ही कोर्ट ने इस जनहित को निष्पादित कर दिया।

पटना हाईकोर्ट ने शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक के खिलाफ कोर्ट में उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए जमानती वारंट जारी करने का आदेश दिया

पटना हाईकोर्ट ने शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक के खिलाफ कोर्ट में उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए जमानती वारंट जारी करने का आदेश दिया है। जस्टिस पीवी बजंत्री की खंडपीठ ने एक अवमानना के सिलसिले में पाठक को

कोर्ट ने आज 13 जुलाई,2023 को निश्चित रूप से कोर्ट में स्वयं उपस्थित होने का आदेश दिया था।लेकिन किसी कारणवश के के पाठक स्वयं उपस्थित नहीं होकर,अपने वकील के जरिए हाजिर हुए।

कोर्ट ने इसे आदेश की अवमानना करार देते हुए उनकी हाजिरी को सुनिश्चित करने हेतु जमानती वारंट जारी करने का निर्देश दिया।

अपर मुख्य शिक्षा सचिव की ओर से कोर्ट के समक्ष उपस्थित अधिवक्ता नरेश दीक्षित ने बताया कि श्री पाठक ने जून, 2023 में अपने पद पर योगदान दिया।नालंदा जिला के एक शिक्षक घनश्याम प्रसाद सिंह को हेड मास्टर के पद पर प्रोन्नत का आदेश जारी किया गया।

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उन्होंने बताया कि अपर मुख्य सचिव पाठक ने नालंदा के जिला शिक्षा पदाधिकारी को पत्र लिख कर आदेश का पालन किये जाने का निर्देश दिया ।

जिला शिक्षा पदाधिकारी,नालंदा ने आदेश का पालन कर विभाग को सूचित किया।उस शिक्षक ने भी आदेश के अनुपालन होने को स्वीकार भी किया।

इस मामलें पर अगली सुनवाई 20 जुलाई,2023 को होगी।

बिहार सरकार द्वारा राज्य में जातियों की गणना एवं आर्थिक सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर पटना हाइकोर्ट में सुनवाई 7 जुलाई, 2023 को भी जारी रहेगी, जाने क्या हुआ आज की सुनवाई में

पटना हाइकोर्ट में राज्य सरकार द्वारा राज्य में जातियों की गणना एवं आर्थिक सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई अधूरी रही।इस मामलें पर कल 7जुलाई,2023 को भी सुनवाई जारी रहेगी। इस मामलें में दायर याचिकायों पर चीफ जस्टिस के वी चंद्रन की खंडपीठ सुनवाई कर रही है।

आज भी राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता पी के शाही ने कोर्ट के समक्ष पक्ष प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि ये सर्वे है,जिसका उद्देश्य आम नागरिकों के सम्बन्ध आंकड़ा एकत्रित करना,जिसका उपयोग उनके कल्याण और हितों के
किया जाना है।

उन्होंने कोर्ट को बताया कि जाति सम्बन्धी सूचना शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश के समय भी दी जाती है।जातियाँ समाज का हिस्सा है। उन्होंने कहा कि हर धर्म में अलग अलग जातियाँ होती है।

उन्होंने बताया कि इस सर्वेक्षण के दौरान किसी भी तरह की कोई अनिवार्य रूप से जानकारी देने के लिए किसीको बाध्य नहीं किया जा रहा है ।

उन्होंने कोर्ट को बताया कि जातीय सर्वेक्षण का कार्य लगभग 80 फी सदी पूरा हो गया है।उन्होंने कहा कि ऐसा सर्वेक्षण राज्य सरकार के अधिकार में है।

उन्होंने कोर्ट को बताया कि इससे सर्वेक्षण से किसी के निजता का उल्लंघन नहीं हो रहा है।महाधिवक्ता शाही ने कहा कि बहुत सी सूचनाएं पहले से ही सार्वजनिक होती हैं।

इससे पहले हाईकोर्ट ने अंतरिम आदेश देते हुए राज्य सरकार द्वारा की जा रही जातीय व आर्थिक सर्वेक्षण पर रोक लगा दिया था।कोर्ट ने ये जानना चाहा था कि जातियों के आधार पर गणना व आर्थिक सर्वेक्षण कराना क्या कानूनी बाध्यता है।

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कोर्ट ने ये भी पूछा था कि ये अधिकार राज्य सरकार के क्षेत्राधिकार में है या नहीं।साथ ही ये भी जानना कि इससे निजता का उल्लंघन होगा क्या।

पहले की सुनवाई में याचिकाकर्ता के अधिवक्ता अभिनव श्रीवास्तव ने कोर्ट को बताया कि राज्य सरकार ने जातियों और आर्थिक सर्वेक्षण करा रही है।

उन्होंने बताया कि सर्वेक्षण कराने का ये अधिकार राज्य सरकार के अधिकारक्षेत्र के बाहर है।ये असंवैधानिक है और समानता के अधिकार का उल्लंघन है।

अधिवक्ता दीनू कुमार ने कोर्ट को बताया कि राज्य सरकार जातियों की गणना व आर्थिक सर्वेक्षण करा रही है।उन्होनें ने बताया कि ये संवैधानिक प्रावधानों के विपरीत है।

उन्होंने कहा था कि प्रावधानों के तहत इस तरह का सर्वेक्षण केंद्र सरकार करा सकती है।ये केंद्र सरकार की शक्ति के अंतर्गत आता है।उन्होंने बताया था कि इस सर्वेक्षण के लिए राज्य सरकार पाँच सौ करोड़ रुपए खर्च कर रही है।

इस मामलें पर कल 6 जुलाई,2023 को भी सुनवाई जारी रहेगी।इस मामलें पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता दीनू कुमार, ऋतिका रानी,अभिनव श्रीवास्तव और राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता पी के शाही ने कोर्ट के समक्ष पक्षों को प्रस्तुत किया।

बिहार सरकार द्वारा राज्य में जातियों की गणना एवं आर्थिक सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर पटना हाइकोर्ट में सुनवाई कल 6 जुलाई, 2023 को भी जारी रहेगी, जाने क्या हुआ आज की सुनवाई में

पटना हाइकोर्ट में राज्य सरकार द्वारा राज्य में जातियों की गणना एवं आर्थिक सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कल 6 जुलाई,2023 को भी जारी रहेगी। इस मामलें में दायर याचिकायों पर चीफ जस्टिस के वी चंद्रन की खंडपीठ सुनवाई कर रही है।

आज राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता पी के शाही ने कोर्ट के समक्ष पक्ष प्रस्तुत किया।उन्होंने कहा कि ये सर्वे है,जिसका उद्देश्य आम नागरिकों के सम्बन्ध आंकड़ा एकत्रित करना,जिसका उपयोग उनके कल्याण और हितों के लिए किया जाना है।

उन्होंने बताया कि इस सर्वेक्षण के दौरान किसी भी तरह की कोई अनिवार्य रूप से जानकारी देने के लिए किसीको बाध्य नहीं किया जा रहा है ।

उन्होंने कोर्ट को बताया कि जातीय सर्वेक्षण का कार्य लगभग 80 फी सदी पूरा हो गया है।उन्होंने कहा कि ऐसा सर्वेक्षण राज्य सरकार के अधिकार में है।

उन्होंने कोर्ट को बताया कि इससे सर्वेक्षण से किसी के निजता का उल्लंघन नहीं हो रहा है।महाधिवक्ता शाही ने कहा कि बहुत सी सूचनाएं पहले से ही सार्वजनिक है ।

इससे पहले हाईकोर्ट ने अंतरिम आदेश देते हुए राज्य सरकार द्वारा की जा रही जातीय व आर्थिक सर्वेक्षण पर रोक लगा दिया था।कोर्ट ने ये जानना चाहा था कि जातियों के आधार पर गणना व आर्थिक सर्वेक्षण कराना क्या कानूनी बाध्यता है।

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कोर्ट ने ये भी पूछा था कि ये अधिकार राज्य सरकार के क्षेत्राधिकार में है या नहीं।साथ ही ये भी जानना कि इससे निजता का उल्लंघन होगा क्या।

कल की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के अधिवक्ता अभिनव श्रीवास्तव ने कोर्ट को बताया कि राज्य सरकार ने जातियों और आर्थिक सर्वेक्षण करा रही है।

उन्होंने बताया कि सर्वेक्षण कराने का ये अधिकार राज्य सरकार के अधिकारक्षेत्र के बाहर है।ये असंवैधानिक है और समानता के अधिकार का उल्लंघन है।

उन्होंने कोर्ट को बताया कि राज्य सरकार जातियों की गणना व आर्थिक सर्वेक्षण करा रही है।उन्होनें ने बताया कि ये संवैधानिक प्रावधानों के विपरीत है।

उन्होंने कहा था कि प्रावधानों के तहत इस तरह का सर्वेक्षण केंद्र सरकार करा सकती है।ये केंद्र सरकार की शक्ति के अंतर्गत आता है।उन्होंने बताया था कि इस सर्वेक्षण के लिए राज्य सरकार पाँच सौ करोड़ रुपए खर्च कर रही है।

इस मामलें पर कल 6 जुलाई,2023 को भी सुनवाई जारी रहेगी ।

बिहार सरकार द्वारा राज्य में जातियों की गणना एवं आर्थिक सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर पटना हाइकोर्ट में सुनवाई कल 4 जुलाई,2023 को भी जारी रहेगी, जाने क्या हुआ आज की सुनवाई में

पटना हाइकोर्ट में राज्य सरकार द्वारा राज्य में जातियों की गणना एवं आर्थिक सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कल 4 जुलाई,2023 को भी जारी रहेगी। इन मामलों में दायर याचिकायों पर चीफ जस्टिस के वी चंद्रन की खंडपीठ सुनवाई कर रही है।

इससे पूर्व हाईकोर्ट ने अंतरिम आदेश देते हुए राज्य सरकार द्वारा की जा रही जातीय व आर्थिक सर्वेक्षण पर रोक लगा दिया था।

कोर्ट ने ये जानना चाहा था कि जातियों के आधार पर गणना व आर्थिक सर्वेक्षण कराना क्या कानूनी बाध्यता है।कोर्ट ने ये भी पूछा है कि ये अधिकार राज्य सरकार के क्षेत्राधिकार में है या नहीं।साथ ही ये भी जानना कि इससे निजता का उल्लंघन होगा क्या।

आज की सुनवाई में याचिकाकर्ता की अधिवक्ता अपराजिता सिंह ने कोर्ट को बताया था कि राज्य सरकार जातियों और आर्थिक सर्वेक्षण करा रही है। उन्होंने बताया कि सर्वेक्षण कराने का ये अधिकार राज्य सरकार के अधिकारक्षेत्र के बाहर है।

उन्होंने कोर्ट को बताया कि राज्य सरकार जातियों की गणना व आर्थिक सर्वेक्षण करा रही है।उन्होनें ने बताया कि ये संवैधानिक प्रावधानों के विपरीत है।

अधिवक्ता अपराजिता सिंह ने कोर्ट को बताया कि प्रावधानों के तहत इस तरह का सर्वेक्षण केंद्र सरकार करा सकती है।ये केंद्र सरकार की शक्ति के अंतर्गत आता है।उन्होंने बताया कि इस सर्वेक्षण के लिए राज्य सरकार पाँच सौ करोड़ रुपए खर्च कर रही है।

दूसरी तरफ राज्य सरकार राज्य सरकार का कहना था कि जन कल्याण की योजनाएं बनाने और सामाजिक स्तर सुधारने के लिए ये सर्वेक्षण किया कराया जा रहा है।

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इससे पूर्व राज्य सरकार ने पटना हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने इन मामलों पर सुनवाई करते हुए जातीय जनगणना सम्बन्धी मामलें पर पटना हाइकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने इंकार कर दिया था।

सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को अपना पक्ष 3 जुलाई,2023 को पटना हाइकोर्ट के समक्ष प्रस्तुत करने को कहा था ।सुप्रीम कोर्ट में जातीय जनगणना से सम्बंधित मामलें पर अगली सुनवाई 14 जुलाई,2023 निर्धारित की गयी थी।

सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाइकोर्ट में इस मामलें पर 3 जुलाई,2023 को सुनवाई की तिथि निर्धारित होने को देखते हुए ये 14जुलाई,2023 की तिथि तय की थी।

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस राजेश बिंदल की खंडपीठ ने इन मामलों पर सुनवाई की थी।सुप्रीम कोर्ट में राज्य सरकार ने पटना हाइकोर्ट के उस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी,जिसमें कोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा राज्य में जातियों की गणना एवं आर्थिक सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर शीघ्र सुनवाई करने सम्बन्धी याचिका को रद्द कर दिया था।

साथ ही राज्य सरकार ने पटना हाइकोर्ट द्वारा 4 मई, 2023को पारित अंतरिम आदेश को भी चुनौती दी गई है। चीफ जस्टिस के वी चन्द्रन की खंडपीठ ने राज्य सरकार के 3 जुलाई,2023 के पूर्व सुनवाई करने की याचिका को कोर्ट ने 9मई,2023 को सुनवाई करने के बाद खारिज कर दिया था।

इस आदेश विरुद्ध को राज्य सरकार ने एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर कर की है।पटना हाइकोर्ट ने इन मामलों पर सुनवाई की तिथि 3 जुलाई,2023 ही रखा।

9 मई, 2023 को सुनवाई करने के बाद हाईकोर्ट ने इन मामलों पर सुनवाई की तिथि 3 जुलाई,2023 ही निश्चित किया था।गौरतलब कि पहले 4मई,2023 को कोर्ट ने अंतरिम आदेश देते हुए जातीय जनगणना पर रोक लगा दी थी।

इन मामलों पर कल भी सुनवाई जारी रहेगी।

बिहार में निबंधित और योग्य फार्मासिस्ट के पर्याप्त संख्या नहीं होने के कारण लोगों के स्वास्थ्य पर होने वाले असर के मामले पर पटना हाईकोर्ट में सुनवाई दो सप्ताह बाद होगी

पटना हाईकोर्ट में राज्य में निबंधित और योग्य फार्मासिस्ट के पर्याप्त संख्या नहीं होने के कारण लोगों के स्वास्थ्य पर होने वाले असर के मामले पर सुनवाई दो सप्ताह बाद होगी। चीफ जस्टिस के वी चंद्रन की खंडपीठ इस जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही है।

पूर्व की सुनवाई में कोर्ट ने राज्य सरकार को सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के आलोक में राज्य सरकार को पुनः जवाब देने के लिए दो सप्ताह का समय दिया था।ये जनहित याचिका मुकेश कुमार ने दायर किया है।

याचिकाकर्ता के अधिवक्ता प्रशान्त सिन्हा ने कोर्ट को बताया था कि डॉक्टरों द्वारा लिखें गए पर्ची पर निबंधित फार्मासिस्टों द्वारा दवा नहीं दी जाती है।

उन्होंने कोर्ट को बताया था कि बहुत सारे सरकारी अस्पतालों में अनिबंधित नर्स,एएनएम,क्लर्क ही फार्मासिस्ट का कार्य करते है।वे बिना जानकारी और योग्यता के ही मरीजों को दवा बांटते है।जबकि ये कार्य निबंधित फार्मासिस्टों द्वारा किया जाना है।

उन्होंने कहा कि इस तरह से अधिकारियों द्वारा अनिबंधित नर्स,एएनएम,क्लर्क से काम लेना न केवल सम्बंधित कानून का उल्लंघन है,बल्कि आम आदमी के स्वास्थ्य के साथ खिलबाड़ है।

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उन्होंने कोर्ट को बताया कि फार्मेसी एक्ट,1948 के तहत फार्मेसी से सम्बंधित विभिन्न प्रकार के कार्यों के अलग अलग पदों का सृजन किया जाना चाहिए।लेकिन बिहार सरकार ने इस सम्बन्ध में कोई ठोस कार्रवाई नहीं की है।

इस आम लोगों का स्वास्थ्य और जीवन पर खतरा उत्पन्न हो रहा है।उन्होंने कोर्ट से अनुरोध किया था कि फार्मेसी एक्ट,1948 के अंतर्गत बिहार राज्य फार्मेसी कॉउन्सिल के क्रियाकलापों और भूमिका की जांच के लिए एक कमिटी गठित की जाए।

ये कमिटी कॉउन्सिल की क्रियाकलापों की जांच करें,क्योंकि ये गलत तरीके से जाली डिग्री देती है।उन्होंने कोर्ट को बताया था कि बिहार राज्य फार्मेसी कॉउन्सिल द्वारा बड़े पैमाने पर फर्जी पंजीकरण किया गया है।

राज्य में बड़ी संख्या मे फर्जी फार्मासिस्ट कार्य कर रहे है।इस मामलें पर अगली सुनवाई दो सप्ताह बाद की जाएगी।

पटना हाईकोर्ट के हस्तक्षेप के बाद अंततः विधवा ज्योति कुमारी को दरभंगा जिला प्रशासन ने दिया साढ़े चार लाख रुपए का मुआवजा दिया

पटना हाईकोर्ट के हस्तक्षेप के बाद अंततः विधवा ज्योति कुमारी को दरभंगा जिला प्रशासन ने दिया साढ़े चार लाख रुपए का मुआवजा दिया। दरअसल कोविड के दौरान पति की मृत्यु हो गई थी।

लेकिन उसकी विधवा पत्नी को जिला प्रशासन ने राज्य सरकार द्वारा घोषित मुआवजे की राशि का भुगतान नहीं किया।बार बार गुहार लगाने के बाद भी जब दरभंगा जिला प्रशासन ने कोई ध्यान नहीं दिया, तो बाध्य होकर विधवा ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

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अधिवक्ता रतन कुमार कुमर ने रिट याचिका दायर कर यह मामला उठाया।जस्टिस मोहित कुमार शाह ने सुनवाई की।कोर्ट के कड़े रुख के बाद दरभंगा के समाहर्त्ता ने विधवा ज्योति कुमारी के नाम से जारी साढ़े चार लाख रुपए का चेक दिया।

इसके साथ ही कोर्ट ने इस मामले को निष्पादित कर दिया।

राज्य के विभिन्न विश्वविद्यालयों व उनके अंतर्गत कॉलेजों में छात्रों के हॉस्टलों की दयनीय हालत पर पटना हाईकोर्ट ने सुनवाई ई करते हुए राज्य सरकार को जवाब देने के लिए 14 जुलाई,2023 तक का मोहलत दिया

राज्य के विभिन्न विश्वविद्यालयों व उनके अंतर्गत कॉलेजों में छात्रों के हॉस्टलों की दयनीय हालत पर पटना हाईकोर्ट ने सुनवाई की। विकास चंद्र उर्फ़ गुड्डू बाबा की जनहित याचिका पर चीफ जस्टिस के वी कृष्णन की खंडपीठ ने सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को जवाब देने के लिए 14 जुलाई,2023 तक का मोहलत दिया है।

याचिकाकर्ता विकास चंद्र उर्फ़ गुड्डू बाबा ने अपनी जनहित याचिका में बताया कि राज्य के विश्वविद्यालयों व उनके अंतर्गत कालेजों में छात्रों के हॉस्टलों की स्थिति काफी दयनीय है।उन हॉस्टलों में बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध नहीं है।

छात्रों के लिए साफ सुथरे और अच्छे कमरे,स्वच्छ शौचालयों,शुद्ध पेय जल,कैंटीन,बिजली आदि सुविधायें उपलब्ध नहीं है।
याचिका में ये कहा गया कि इससे छात्रों को काफी कठिनाईयों का सामना करना पड़ता हैं ।

इसका प्रभाव उनकी पढ़ाई और स्वास्थ्य पर पड़ता है ।इस याचिका ये अनुरोध किया गया कि छात्रों के लिए नये हॉस्टलों का निर्माण किया जाये,जिनमें उनके लिए सारी सुविधाएं उपलब्ध हो,ताकि उन्हें रहने और पढ़ने लिए सही माहौल मिले।

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याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया कि इस मामलें में 23 अक्टूबर,2019 को बिहार सरकार के मुख्य सचिव और सभी सबंधित पक्षों को दिया गया।इसमें ये कहा गया कि छात्रों के लिए साफ सुथरे कमरे,स्नानघर, शौचालयों,बिजली आदि की बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने का अनुरोध किया गया।लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गयी।

कोर्ट ने आज इस जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को अबतक की गयी कार्रवाई का ब्यौरा राज्य को 14 जुलाई,2023 प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।इस मामलें पर अब अगली सुनवाई 14 जुलाई, 2023 को होगी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ पटना सिविल कोर्ट में दायर परिवाद पत्र पर जल्द सुनवाई करने के गुहार परिवादी पटना हाई कोर्ट से लगाई

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ पटना सिविल कोर्ट में दायर परिवाद पत्र पर जल्द सुनवाई करने के गुहार परिवादी पटना हाई कोर्ट से लगाई है।कोर्ट ने दायर याचिका में त्रुटियों को दो सप्ताह के भीतर दूर करने का आदेश दिया है।

कांग्रेस कमेटी के मानवाधिकार विभाग के प्रदेश अध्यक्ष अधिवक्ता इंद्रदेव प्रसाद की ओर से दायर आपराधिक रिट याचिका पर जस्टिस अनिल कुमार सिन्हा ने सुनवाई की।

कोर्ट ने दायर याचिका में हाई कोर्ट प्रशासन की ओर से उठाई गई आपत्तियों को दो सप्ताह के भीतर दूर करने का आदेश दिया। अधिवक्ता इंद्रदेव प्रसाद ने अर्जी दायर कर कोर्ट से केस को जल्द निष्पादित करने के लिए पटना सिविल कोर्ट के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी को आदेश देने की मांग।

उनका कहना है कि बगैर किसी तैयारी के और बिना किसी पूर्व सूचना के 24 मार्च, 20 को देश को सम्बोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने सम्पूर्ण देश में 21 दिनों का लॉक डाउन लगाने की घोषणा कर दी थी ।प्रधानमंत्री ने अपने सम्बोधन में यह भी कहा कि दो माह के अध्ययन के बाद प्रभावी मुकाबले एक मात्र विकल्प सोशल डिस्टेंसिंग एक दूसरे से दूरी बना कर रखना अपने घरों में बंद रहना लागू कर दिये।

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उनका कहना है कि सम्बोधन देश वासियों को आतंकित करने वाली झूठी सूचनाओं पर आधारित हैं।एक वर्ष के अध्ययन से कोरोना का संक्रमण उस तरह से नहीं फैली, जिस तरह से फैलने की बात सम्बोधन में कही गई थी।

सिविल कोर्ट में केस दायर किये जाने के बाद 12 मई, 2021 तक तारीख दी गई।उसके बाद इस केस में कोई तारीख नहीं दी जा रही हैं।

विपक्ष की बैठक टांय-टांय फिश हो गई; ‘खोदा पहाड़ निकली चुहिया’ परंतु बैठक के बाद जो चुहिया निकली वह भी मरी हुई : सुशील मोदी

बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री सम्प्रति राज्य सभा सांसद श्री सुशील कुमार मोदी ने कहा है कि विपक्ष की बैठक टांय-टांय फिश हो गई। कहावत है ‘खोदा पहाड़ निकली चुहिया’ परंतु बैठक के बाद जो चुहिया निकली वह भी मरी हुई ।

• विपक्षी एकता बैठक की निकली हवा
• अरविंद केजरीवाल गुस्से में पत्रकार वार्ता छोड़कर चले गए

श्री मोदी ने कहा कि बैठक कि एक ही उपलब्धि है कि अगली बैठक का स्थान और तिथि तय हो गई। न तो प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार, न ही नीतीश कुमार को संयोजक बनाने की चर्चा हुई। उल्टे अरविंद केजरीवाल गुस्से में प्रेस कॉन्फ्रेंस छोड़कर चले गए।

Sushil_Modi

श्री मोदी ने कहा कि 7 मुख्य विपक्षी दल बैठक से नदारद थे। 15 शामिल दलों में 10 परिवारवादी दल हैं और 12 दल हैं जिन पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं। ऐसे वंशवादी और भ्रष्टाचारी से लिप्त पार्टियां ईमानदार नरेंद्र मोदी का मुकाबला नहीं कर सकती।

पटना हाईकोर्ट ने राज्य के सरकारी मेडिकल कालेजों समेत ज़िला अस्पतालों में वेंटीलेटर,एमआरआई मशीन,सिटी स्कैन जैसी सुविधाएं उपलब्ध नहीं होने के मामलें पर सुनवाई की

पटना हाईकोर्ट ने राज्य के सरकारी मेडिकल कालेजों समेत ज़िला अस्पतालों में वेंटीलेटर,एमआरआई मशीन,सिटी स्कैन जैसी सुविधाएं उपलब्ध नहीं होने के मामलें पर सुनवाई की। चीफ जस्टिस के वी चन्द्रन की खंडपीठ ने रणजीत पंडित की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को 11अगस्त,2023 तक की गयी कार्रवाईयों का ब्यौरा निर्देश दिया।

याचिकाकर्ता के अधिवक्ता दीनू कुमार ने कोर्ट को बताया राज्य के बहुत सारे प्राथमिक चिकित्सा केन्द्रो के अपने भवन नहीं है।इसके लिए राज्य सरकार को भूमि उपलब्ध करा कर अपने भवन प्राथमिक चिकित्सा केंद्र हेतु बनाने की आवश्यकता है।

उन्होंने कोर्ट को बताया कि राज्य के सभी नौ सरकारी मेडिकल कालेजों में जो सिटी स्कैन मशीन लगाए गए हैं, वे पीपीपी मोड पर लगाए गए है।इन्हें मेडिकल कॉउन्सिल ऑफ इंडिया मान्यता नहीं देता है।

इसी तरह से राज्य के पाँच मेडिकल कालेजों में एमआरआई मशीन लगाया है, जो कि पीपीपी मोड पर लगाया गया कि।उन्होंने कोर्ट को बताया कि कोर्ट के बार बार आदेश देने बाद भी सिटी स्कैन और एमआरआई मशीन नहीं लगाया गया।

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कोर्ट के 3 अगस्त,2022 के आदेश के छह महीने पूरा होने के बाद भी इन्हें अस्पतालों में अबतक नहीं लगाया गया है।

इस जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान अधिवक्ता दीनू कुमार और अधिवक्ता रितिका रानी ने याचिकाकर्ता की ओर से और एडवोकेट जनरल ने राज्य सरकार की ओर से पक्षों को प्रस्तुत किया।

इस मामलें पर अगली सुनवाई 11अगस्त,2023 को की जाएगी।