”तमाशबीन हूं मैं ”
हाल के दिनों में सुशील मोदी द्वारा दिये गये तीन बयान पर गौर करिए
1–सुशील कुमार मोदी ने कहा कि हम इस मुद्दे पर विधानसभा और विधान परिषद में पारित प्रस्ताव का हिस्सा रहे हैं. जातीय जनगणना कराने में अनेक तकनीकि और व्यवहारिक कठिनाइयां हैं, फिर भी बीजेपी समर्थन में है।
2–सुशील मोदी ने कहा, ” 1977 में आपातकाल हटने के बाद पहले संसदीय चुनाव में रामविलास पासवान ने सबसे ज्यादा मतों के अंतर से जीतने का रिकार्ड बनाया था. वे एनडीए राजनीति के प्रमुख शिल्पी थे.”
उनकी जयंती पर राजकीय समारोह होना चाहिए और रामविलास पासवान की मूर्ति लगानी चाहिए।
3– सुशील कुमार मोदी ने कहा कि रघुवंश बाबू की जयंती पर राजकीय समारोह हो और सरकार इस पर निर्णय करे. सुशील मोदी ने एक ट्वीट में कहा कि पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह वास्तव में गरीबों की चिंता करने वाले ईमानदार नेता थे ।
पहला बयान संघ,बीजेपी और नरेन्द्र मोदी के विचार से विपरीत है वही दूसरा और तीसरे बयान की बात करे तो पहली बार सुशील मोदी नीतीश कुमार से असहमति दिखाने कि कोशिश करते दिख रहे हैं।
इसकी वजह क्या है बीजेपी की राजनीति की बात करे तो सुशील मोदी संगठन और पार्टी के अंदर राजनाथ सिंह जैसे सरीखे नेता को छोड़ दे तो सबसे अनुभवी और सीनियर हैं ।
मोदी और शाह के विरोध के बावजूद आज भी सुशील मोदी के बगैर बिहार बीजेपी में पत्ता भी नहीं हिल सकता है ।2020 में सरकार गठन को लेकर राजनाथ सिंह की जगह कोई और नेता आया होता तो बिहार बीजेपी उसी दिन केन्द्रीय नेतृत्व के खिलाफ बगावत कर देता।
आज भी 90 प्रतिशत विधायक मोदी के साथ है फिर भी मोदी हाशिए पर हैं वजह इन्हें नीतीश पर काफी भरोसा था और उसी भरोसा में छल हो गया । नीतीश अगर मोदी को लेकर बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व के सामने खड़े हो जाते तो मोदी और शाह का कुछ नहीं चलता लेकिन नीतीश कुमार ऐसा नहीं किये ।
फिर लगा कि केन्द्रीय मंत्रिमंडल में जगह मिल जायेगी पीएम मोदी ने ये भरोसा भी दिलाया था कि आप जैसे प्रशासनिक अनुभव रखने वाले नेता की केन्द्र में जरुरत है लेकिन ऐसा हुआ नहीं, नीतीश भी अब इनसे दूरी बनाने लगे हैं ।
वही नागेन्द्र जी के संगठन महामंत्री से हटाये जाने के बाद इनकी परेशानी और बढ़ गयी क्यों कि अभी भी नागेन्द्र जी के सहारे सुशील मोदी की सियासत चल रही थी क्यों कि नागेन्द्र जी को बिहार बीजेपी में सुशील मोदी की क्या पकड़ वो पता था ।फिर जेटली जैसा केन्द्र में कोई भरोसेमंद साथी नहीं रहा नड्डा से कुछ उम्मीद थी लेकिन वो मोदी और शाह के प्रभामंडल से पार्टी को बाहर नहीं निकाल पाये ।
ऐसे में सुशील मोदी के पास दो विकल्प था या तो मार्गदर्शक मंडल में जाने कि तैयारी शुरु कर दे या फिर बिहार की राजनीति में मजबूती के साथ कूद पड़े। इनके सलाहकार भी मानते हैं कि लालू परिवार के विरोध की राजनीति बहुत हो गयी और अब इससे बाहर निकलिए।
मोदी इसी का इन्तजार कर रहे थे और जैसे ही जातीय जनगणना की बात आयी मोदी बिहार की सियासत को देखते हुए संघ, पार्टी और पीएम मोदी के विचार से विपरीत स्टेंड ले लिये क्यों कि जिस समय बिहार विधानमंडल में जातीय जनगणना को लेकर प्रस्ताव लाया जा रहा था उस समय भी संघ इसके खिलाफ था लेकिन मोदी संघ की परवाह ना करते हुए बिहार विधानमंडल में प्रस्ताव का समर्थन ही नहीं किया बढ़चढ़ कर हिस्सा भी लिया ।
सुशील मोदी रामविलास पासवान और रघुवंश बाबू को लेकर जो बयान दिये हैं उसके पीछे यह राजनीति है कि सुशील मोदी उस छवि से बाहर निकलना चाह रहे हैं जिसमें इन पर आरोप लगता रहा है कि ये नीतीश की जी हजूरी करते हैं ।इसी छवि से मोदी और शाह भी नराज है अब देखना यह है कि सुशील मोदी बयान देने तक ही सीमित रहते हैं या फिर इस मांग को लागू कराने को लेकर आगे भी बढ़ते हैं ।
क्यों कि रामविलास पासवान के बरसी में जा कर मोदी ने एक लाइन तो बिहार की राजनीति में खीच दिया है कि चिराग ही रामविलास पासवान का असली वारिस है और आने वाले समय में चिराग के सहारे बिहार में नीतीश की घेराबंदी की जा सकती है ।