मैं पिछले तीन दिनों से नालंदा ,राजगीर और बोधगया घूम रहा हूं , मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का गृह इलाका है और नीतीश कुमार पर्यटन और पर्यावरण में दिलचस्पी भी रखते हैं और पर्यटन के क्षेत्र में सबसे ज्यादा पैसे खर्च करने कि बात करे तो वो इलाका भी यही है फिर भी राष्ट्रीय स्तर पर भी हम लोग कम्पीट नहीं कर सकते हैं।
तीन दिनों की यात्रा के दौरान मुझे महसूस हुआ कि नीतीश कुमार 2005 से लगातार बिहार के मुख्यमंत्री हैं जीतन राम मांझी का एक वर्ष से अधिक का कार्यकाल छोड़ दे तो फिर भी नालंदा ,राजगीर और बोधगया में पर्यटकों के लिए सामान्य सुविधा भी उपलब्ध नहीं है ।
राजगीर का जो पुराना रोपवे है उसका हाल यह है कि मेरे सामने दो व्यक्ति बाल बाल बच गये और मैं कैसे बच गया उपर वाले को ही पता है। इतना खतरनाक रोपवे मैंने नहीं देखा हरिद्वार का अनुभव था मुझे इसलिए परिवार और बच्चों के साथ चले गये ।
लेकिन रोपवे पर चढ़ने और उतरने के दौरान वहां मौजूद कर्मचारियों से थोड़ी सी भी चूक हुई तो दुर्घटना तय है ।लम्बें लोगों के लिए तो और भी मुश्किल है देश का यह एकलौता रोपवे हैं जहां भागते हुए रोपवे पर आपको चढ़ना है और भागते हुए रोपवे पर से उतरना है ।यहां आप रोपवे पर चढ़ रहे हैं या फिर उतर रहे हैं रोपवे रुकता नहीं है उसी स्पीड से आपको उस पर बैठ जाना है और उसी स्पीड से आपको उतरना है थोड़ी सी भी चूक हुई तो चोट लगना तय है ।
जबकि 2005 से अभी तक राजगीर में भवन निर्माण विभाग हजारों करोड़ की लागत से इंटरनेशनल कन्वेंशन सेंटर ,पुलिस एकेडमी भवन सहित दर्जनों भवनों का निर्माण सरकार ने कराई है ।राजगीर में कंक्रीट का जाल बिछा गया है लेकिन आपको राजगीर पहुंचने के लिए आज भी आपको उसी तरह जाम में घंटो फसना है जैसे पांच वर्ष पहले था ।पटना बाईपास से बिना जाम में फंसे निकल गये तो फतुहा वाली सड़क पर जो जाम मिलना तय है रेलवे का फ्लाईओवर अभी तक बन नहीं पाया है आगे बढ़ गये तो फिर बिहारशरीफ जाम से निकल गये तो आप भाग्यशाली है सड़क का हाल सामान्य स्तर का है ।
हां कुछ अच्छे होटल जरुर बने हैं फिर भी खाने और रहने की कोई व्यवस्था नहीं है जो अंतरराष्ट्रीय स्तर की तो छोड़िए भारतीय स्तर का भी हो । मैं 2010 से राजगीर जा रहा हूं जहां तक मुझे लगा राज्य सरकार पर्यटन के क्षेत्र में 100 करोड़ का भी निवेश नहीं किया है , इसी वर्ष नए रोपवे के निर्माण में ₹ 20 करोड़ 18 लाख 57000 खर्च हुआ हैं। रोपवे में कुल 20 केबिन लगाए गए हैं, इनमें 18 केबिन पर्यटकों के लिए है लेकिन अभी चालू नहीं है ।वही एक सफारी पार्क बनाया गया है जिस पर कुल 19 करोड़ 2900000 रुपया खर्च हुआ है लेकिन कल बारिश हो गयी तो वहां पहुंचना ही मुश्किल हो गया। एक पांडव पार्क बना है जहां बच्चों के साथ एक दो घंटा रह सकते हैं ।
नालंदा विश्वविद्यालय को सुरक्षित रखने के लिए जो नये स्ट्रक्चर बनाये गये हैं वो कब गिर जायेगा कहना मुश्किल है ,विश्वविद्यालय की जो दीवार बची है उस पर घास और कजरी जम गया है ,वही स्थिति जरासंध गुफा का भी है ऐसा नहीं है कि काम नहीं हुआ है लेकिन 15 -16 वर्षो में जो होना चाहिए था वो दूर दूर तक नहीं दिख रहा है, नीतीश कुमार के कार्यकाल में जितनी राशि भवन निर्माण में खर्च की गयी है मुझे नहीं लगता कि आजादी के बाद सरकार द्वारा अभी तक इतनी राशि खर्च हुई होगी भवन निर्माण के क्षेत्र में ।
गया और बोधगया का भी यही हाल है इस बार पिंडदान करने आये हजारों श्रद्धालुओं को होटल उपलब्ध नहीं रहने के कारण बस में रहने को मजबूर हुए ,गया में अभी तक बाईपास ठीक से नहीं बन पाया है जहां से आप सीधे बौद्ध गया या फिर शहर के बाहर बाहर आप निकल जाये। बौद्ध गया में इस बार संसद भवन जैसा एक मीटिंग हॉल बनते देखा और उसी कैम्पस में सरकार फाइव स्टार होटल बनवा रही है और पुलिस विभाग में करोड़ों का भवन बन रहा है। सामान्य सुविधा की ही बात करिए बौद्ध गया से लेकर मंदिर जाने के रास्ते में एक वास रुम और शौचालय नहीं है समझ में नहीं आता है सोच क्या है,राजगीर का भी यही हाल है परिवार साथ में हैं तो आप परेशान हो जायेंगे ।
वैसे यह सब इसलिए सामने ला रहे हैं ताकि बिहार से जुड़े जो भी लोग इस फील्ड में काम कर रहे हैं वो इन इलाकों के बेहतरी के लिए क्या किया जा सकता है जिससे भारतीय और विदेशी पर्यटक ज्यादा से ज्यादा आ सके इस पर सोचे क्यों कि जहां तक मैं देख रहा हूं बिहार में जिस तरह से सभी धर्मों का मुख्य केन्द्र के साथ साथ ऐतिहासिक स्थल मौजूद है ऐसे में बिहार पर्यटन के क्षेत्र में बड़ी इकोनॉमी खड़ी कर सकता है ।