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Bihar News in Hindi: The BiharNews Post - Bihar No.1 News Portal

नागेन्द्र जी की छुट्टी सुशील मोदी युग का अंत माना जा रहा है, 2020 में एनडीए सरकार गठन के बाद नागेन्द्र जी सबसे मजबूत केन्द्र के रुप में उभरे थे।

बिहार प्रदेश बीजेपी के संगठन महामंत्री नागेन्द्र जी का बिहार से छुट्टी बिहार बीजेपी में सुशील मोदी युग के समापन के रुप में देखा जा रहा है । 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव के बाद जिस तरीके से बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व ने नंद किशोर यादव, प्रेम कुमार और सुशील मोदी को मंत्री पद से बाहर का रास्ता दिखाया, उसी दिन से यह कयास लगाये जाने लगा था कि भाजपा अब बिहार में सुशील मोदी के प्रभा-मंडल से बाहर निकलना चाहता है। लेकिन सुशील मोदी की पार्टी ,संगठन और विधायक पर इतनी मजबूत पकड़ है कि चाह करके भी केन्द्रीय नेतृत्व बहुत कुछ नहीं कर पा रहा है।

इस बात को लेकर सुशील मोदी के खिलाफ जो एक गुट तैयार किया जा रहा है, वो नागेन्द्र जी से खासे नराज चल रहे थे क्योंकि नागेन्द्र जी संघ और बीजेपी के बीच सेतू के पद पर थे। इसलिए बिहार बीजेपी के नेता बहुत कुछ कर नहीं पा रहे थे क्योंकि नागेन्द्र जी 2011 से प्रदेश के संगठन महामंत्री हैं और आज बीजेपी की केन्द्रीय नेतृत्व पार्टी के जिस नेता को मोदी के खिलाफ खड़ा करना चाह रही है, वो नागेन्द्र जी के प्रभामंडल के सामने टिक नहीं पा रहे थे ।

ऐसे में केन्द्रीय नेतृत्व नागेन्द्र जी को बिहार से बाहर किये बगैर सुशील मोदी युग को खत्म नहीं कर पा रहा थे, वहीं नागेन्द्र जी की संघ के अंदर ऐसी छवि थी कि सीधे सीधे इनको हटाया भी नहीं जा सकता था। इसलिए इन्हें बिहार और झारखंड का क्षेत्रीय महामंत्री नियुक्त किया गया और इनका मुख्यालय पटना से रांची बना दिया गया। फिर इनके जगह पर जिन्हें लाया गया है, वो नरेन्द्र मोदी के करीबी हैं और गुजरात से हैं। ऐसे में नागेन्द्र जी उंचे ओहदे पर होने के बावजूद बहुत कुछ कर नहीं पायेंगे।

मतलब, बिहार में बीजेपी सभी स्तर पर ऐसे पदाधिकारी और नेता का कद छोटा करने में लगी है, जिनका रिश्ता सुशील मोदी और नीतीश कुमार से है। ऐसी स्थिति में सवाल यह है कि बीजेपी बिहार में चाहती क्या है? नीतीश के साथ सरकार में है और वहीं नीतीश सहजता से सरकार ना चला सकें, ये भी खेल हो रहा है। देखिए, आगे आगे होता है क्या, लेकिन इतना तय है कि अब बीजेपी नीतीश को शासन व्यवस्था चलाने में खुली छुट देने के मूड में नहीं है।

अब घर बैठे जान सकते हैं खून की उपलब्धता, ब्लड बैंकों का हुआ डिजिटलीकरण

पटना, 19 अगस्त। स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने गुरुवार को यहां बताया कि राज्यवासी अब घर बैठे खून की उपलब्धता जान सकते हैं। इसके लिए राज्य के 89 ब्लड बैंकों का डिजिटलीकरण किया गया है, ताकि लोगों को ब्लड मिलने में आसानी हो सके। स्वास्थ्य विभाग द्वारा इस दिशा में पहल करते हुये राज्य के कुल 94 ब्लड बैंकों के 89 ब्लड बैंकों को ई-रक्तकोष से जोड़कर इनका डिजिटलीकरण किया गया है। दूसरी ओर राज्य के 10 जिलों में 10 नए ब्लड बैंक भी बनाये जा रहे हैं, ताकि खून की उपलब्धता में कमी न हो।

श्री पांडेय ने कहा कि ब्लड कलेक्शन को बढ़ाने के लिए नए ब्लड कलेक्शन स्टोरेज यूनिट भी स्थापित किए जा रहे हैं। ब्लड स्टोरेज यूनिट के मामले में राज्य सरकार ने काफ़ी प्रगति की है। वर्ष 2016-17 में राज्य में केवल 8 ब्लड स्टोरेज यूनिट थे, जो अब बढ़कर 68 हो गए हैं। वहीं, राज्य में वर्ष 2017-18 में 46, 2018-19 में 54 एवं 2019-20 में 58 ब्लड स्टोरेज यूनिट थे। इस तरह पांच सालों में कुल 60 नए ब्लड स्टोरेज यूनिट की शुरुआत हुई है। आने वाले समय में इसकी संख्या 108 तक बढ़ाने की कार्ययोजना है। अभी राज्य में कुल 94 ब्लड बैंक क्रियाशील है। इसमें जिला अस्पताल एवं मेडिकल कॉलेज सहित कुल 38 सरकारी ब्लड बैंक तथा 5 रेड क्रॉस समर्थित एवं 51 निजी ब्लड बैंक हैं। अब राज्य के 10 जिलों में 10 नए ब्लड बैंक की शुरुआत होगी। इसमें अररिया, अरवल, सुपौल, पूर्वी चंपारण, शिवहर, बांका एवं भागलपुर के जिला अस्पतालों में नए ब्लड बैंक स्थापित किये जाएंगे। पटना के गुरु गोविन्द सिंह अस्पताल, गया के जेपीएन अस्पताल एवं दरभंगा के बेनीपुर अनुमंडलीय अस्पताल में भी नए ब्लड बैंक का निर्माण पूरा किया जाएगा। अररिया, अरवल, बांका एवं भागलपुर जिले में ब्लड बैंक का निर्माण अंतिम चरण में है।

श्री पांडेय ने कहा कि ई-रक्तकोष ब्लड बैंकों के कार्य प्रवाह को जोड़ने, डिजिटलीकरण और सुव्यवस्थित करने की एक पहल है। खून की आकस्मिक जरूरत होने पर ब्लड बैंकों पर लोगों की निर्भरता बढ़ जाती है। ऐसे में ब्लड बैंकों की खून की पर्याप्त उपलब्धता कई मरीजों के लिए जीवनदायनी साबित होती है। ब्लड बैंकों में खून की उपलब्धता अधिक से अधिक रक्तदान करने से सुनिश्चित होती है। इसलिए लोगों को स्वैच्छिक रक्तदान के लिए जरूर आगे आना चाहिए। नियमित रक्तदान करने से ह्ृदय रोगों से भी बचाव होता है। रक्तदान करने से एक व्यक्ति लगभग 3 से 4 मरीजों की जान बचा सकता है।

खेलो को बढ़ावा देना जरूरी कहा मंत्री सुमित कुमार सिंह ने

खेलो को बढ़ावा देना जरूरी कहा सुमित कुमार सिंह ने। चकाई सोनो प्रखंड अंतर्गत उच्च विद्यालय व उत्क्रमित उच्च विद्यालयों में विद्यालय प्रबंध समिति के गठन को लेकर बुधवार को प्लसटू उच्च विद्यालय सोनो के सभागार में आयोजित बैठक में राज्य के विज्ञान व प्रौद्योगिकी मंत्री सह स्थानिय विधायक सुमित कुमार सिंह ने हिस्सा लिया। विद्यालयों में अब तक किए गए कार्यों और आगे के कार्य योजना की जानकारी लिया एवं प्रबंध समिति गठन को लेकर आवश्यक निर्देश दिया।

इस दौरान विद्यालय के विकास हेतु विद्यालय को क्या चाहिए ? इस संबंध में छात्रों से उनके सुझाव मांगे। साथ ही उन्हें खेल कूद में भी हिस्सा लेने हेतु प्रोत्साहित किया।सुमित कुमार सिंह ने कहा की मेरी इच्छा है कि खेल कूद में भी अंतर्राष्ट्रीय पटल पर यहां के छात्र पहचान बनाएं और देश के लिए मेडल ले कर आएं। इसके लिए जो भी कमी है उसे दूर किया जाएगा। जल्द ही विद्यालय के खेल मैदान के सामने बने मंच पर छत बनाया जाएगा ताकि धूप व बारिश से बचा जा सके।उच्च विद्यालय सोनो में वाई-फाई लगाया जाएगा तथा कंप्यूटर लैब को अपडेट करके छात्रों के उपयोग में लाया जाएगा। इसको लेकर प्रभारी प्रधानाध्यापक प्रशांत कुमार जी को निर्देशित किया कि सभी छात्रों को कम्प्यूटर की शिक्षा के साथ जोड़ना अनिवार्य करें। जो कम्प्यूटर खराब है उसे जल्द से जल्द ठीक करवाएं। बैठक में पंचानंद सिंह जी, चन्द्रशेखर सिंहजी, प्रशांत कुमार जी, रणजीत कुमार जी, कुशेष कुमार शर्मा जी, राजेश कुमार सिंह जी, निरंजन कुमार सिंह जी, सहित कई उच्च विद्यालय व उत्क्रमित उच्च विद्यालयों के प्रभारी प्रधानाध्यापक उपस्थित थे।

भोजपुरी के शेक्सपीयर भिखारी ठाकुर के परिवार भीख मांगने को हुए मजबूर

दुनिया जिसे जानती है भोजपुरी के शेक्सपियर के रूप में आज भी उसके परिजन बने हुए हैं _भिखारी भोजपुरी के शेक्सपियर भिखारी ठाकुर के नाम पर हजारों लोग अमीर बन गए आज भी भिखारी ठाकुर के परिजन फटेहाल स्थिति में किसी तरह अपना गुजर-बसर कर रहे हैं उनकी सुध लेने की फुर्सत ना राज्य सरकार को है और ना ही उन संस्थाओं को जो भिखारी ठाकुर के नाम पर प्रतिवर्ष लाखों करोड़ों के अनुदान प्राप्त करते हैं.

लोक संस्कृति के वाहक कवि व भोजपुरी के शेक्सपियर माने जाने वाले भिखारी ठाकुर का जयंती 18 दिसंबर को मनाई जाती है ।लेकिन क्या कोई यकीन कर सकता है कि भक्तिकालीन भक्त कवियों व रीत कालीन कवियों के संधि स्थल पर कैथी लिपि में कलम चलाकर फिर रामलीला, कृष्णलीला, विदेशिया, बेटी-बेचवा, गबरघिचोरहा, गीति नाट्य को अभिनीत करने वाले लोक कवि भोजपुरी के शेक्सपीयर भिखारी ठाकुर के परिवार चीथड़ो में जी रहा हो। देश ही नहीं विदेशों में भोजपुरी के क्षेत्र में ख्याति प्राप्त करने वाले मल्लिक जी के परिवार गरीबी का दंश झेल रहा है। यह सच है कि उनके जयंति व पुण्यतिथि पर कुछ गणमान्य पहुंचते हैं, कार्यक्रम भी आयोजित होते हैं, लेकिन यह सब मात्र श्रद्धांजलि की औपचारिकता तक सिमट कर रह जाते हैं। न तो ऐसे किसी आयोजन में भिखरी ठाकुर के गांववासियों का दर्द सुना जाता है न ही उनके दर्द की दवा की प्रबंध की बात होती है।कुतुबपुर दियारा स्थित मल्लिक जी का खपरैल व छप्पर निर्मित जीर्ण-शीर्ण घर आज भी अपने जीर्णोद्धार की बाट जोह रहा है? यही से भिखारी ठाकुर ने काव्य सरिता प्रवाहित की थी और उनकी प्रसिद्धि की गूंज आज भी अंतरराष्ट्रीय मंच पर सुनाई पड़ रही है।

भिखारी ठाकुर के प्रपौत्र सुशील आज भी अदद चतुर्थ श्रेणी की नौकरी के लिए भटक रहा,कोई सुधी तक नहीं लेने वाला.भिखारी ठाकुर के प्रपौत्र सुशील कुमार आज एक अदद चतुर्थ श्रेणी की नौकरी के लिए मारा-मारा फिर रहा है। दर्द भरी जुबान से सुशील बतातें हैं कि अगर फुआ और फुफा नहीं रहते तो शायद मैं एमए तक पढ़ाई नहीं कर पाता। रोटी की लड़ाई में मेरी पढ़ाई नेपथ्य में चली गई रहती। समहरणालय में चतुर्थ वर्गीय कर्मचारी की नौकरी के लिए वे आवेदन किये हैं। पैनल सूची में नाम भी है, लेकिन एक साल बीत गए, भगवान जाने नौकरी कब मिलेगी। हाल यह है कि विभिन्न कार्यक्रमों में उन्हें एवं उनके परिजन को मंच तक नहीं बुलाया जाता है।जिस दीपक की लौ से समाज में व्याप्त कुरीतियों और सामयिक संमस्याओं को उजागर करने का महती प्रयास भिखारी ठाकुर ने किया उनकी लौ में आज कई लोग रोटियां सेंक रहे हैं, लेकिन दीपक तले अंधेरे की कहावत चरितार्थ है। दबी जुबान से दिल की बात बाहर आती है कि भिखारी ठाकुर के नाम पर कई लोग वृद्धा पेंशन एवं सुख सुविधा का लाभ उठा रहे हैं। परिवार को हरेक जरूरत की दरकार है। एक ओर जहां सुशील जीवकोपार्जन के लिए दर-दर भटक रहे हैं वहीं, उनकी पुत्रवधू व सुशील की मां गरीबी का दंश झेल रही है।

भिखरी ठाकुर के इकलौते पुत्र शीलानाथा ठाकुर थे। वे भिखारी ठाकुर के नाट्य मंडली व उनके कार्यक्रमों से कोई रूची नहीं थी। उनके तीन पुत्र राजेन्द्र ठाकुर, हीरालाल ठाकुर व दीनदयाल ठाकुर भिखारी की कला को जिन्दा रखे। नाटक मंडली बनाकर जगह-जगह कार्यक्रम करने लगे। लेकिन इसी बीच उनके बाबू जी गुजर गये। फिर पेट की आग तले वह संस्कार दब गई।अब तो राजेन्द्र ठाकुर भी नहीं रहे। फिलवक्त भिखारी ठाकुर के परिवार में उनके प्रपौत्र सुशील ठाकुर, राकेश ठाकुर, मुन्ना ठाकुर एवं इनकी पत्नी रहती है। जीर्ण-शीर्ण हालात में किसी तरह सत्ता व सरकार को कोसते जिंदगी जिये जा रहे हैं उनके परिजन.लोक साहित्य व संस्कृति के पुरोधा, भोजपुरी के शेक्सपीयर के गांव कुतुबपुर काश, स्थानीय सांसद व केन्द्रीय राज्य मंत्री रहे राजीव प्रताप रूढी के सांसद ग्राम योजना के तहत गोद में होता तो शायद पुरोधा के गांव को तारणहार की प्रतिक्षा नहीं होती। गंगा नदी नाव से उस पर छपरा से करीब 25 किलोमीटर दूर स्थित कुतुबपुर गांव आज भी अंधेरे तले है। कार्यक्रमों की रोशनी व राजनेताओं का आश्वासन उस गांव को रोशन नहीं कर सका। शायद श्रद्धांजलि सभा और सांस्कृतिक समारोह भी कुछ लोगों तक सीमट कर है। वरन्, सरकार दो फूल चढ़ाने में भी भिखारी ही रहा है। आस-पास दर्जनों गांव, हजारों की बस्ती, तीन पंचायतों में एक मात्र अपग्रेड हाईस्कूल। वह भी प्राथमिक विद्यालय से अपग्रेड हुआ है। प्रारंभिक शिक्षक और पढ़ाई हाईस्कूल तक। आगे की पढ़ाई के लिए नदी इस पर आना होता है। कुछ बच्चे तो आ जाते हैं, बच्चियां कहाँ जाये।

कुतुबपुर से सटे कोट्वापट्टी रामपुर, रायपुरा, बिंदगोवा व बड़हरा महाजी अन्य पंचायतें हैं। लोगों की जीविका का मुख्य आधार कृषि है। अब नदी इनके खेतों को निगलने लगी है। 75 फीसद भूमिखंड में सरयू, गंगा नदी का राग है। टापू सदृश गांव है। 2010 से निर्माणाधीन छपरा आरा पुल से कुछ उम्मीद जगी है, लेकिन फिलहाल नाव से आने-जाने की व्यवस्था है। अस्पताल है ही नहीं। बाढ़ की तबाही अलग से झेलना पड़ता है। प्रत्येक साल किसानों को परवल की खेती में बाढ़ आने पर लाखों-करोड़ों रूपयों का घाटा सहना पड़ता है। सुविधा के नाम पर इस गांव में पक्की सड़क तक नहीं है।छपरा- लोक कलाकार भिखारी ठाकुर जो समाज के न्यूनतम नाई वर्ग में पैदा हुए थे, वे अपनी नाटकों, गीतों एवं अन्य कला माध्यमों से समाज के हाशिये पर रहने वाले आम लोगों की व्यथा कथा का वर्णन किया है। अपनी प्रसिद्ध रचना विदेशिया में जिस नारी की विरह वर्णन एवं सामाजिक प्रताड़ना का उन्होंने सजीव चित्रण किया है। वही नारी आज साहित्यकारों एवं समाज विज्ञानियों के लिए स्त्री-विमर्श के रूप में चिन्तन एवं अध्यन का केन्द्र-बिन्दु बनी हुई है। भिखारी ठाकुर ने अपने नाटकों के माध्यम से सामाजिक कुरीतियों, विषमता, भेदभाव के खिलाफ संघर्ष किया। इस तरह उन्होंने देश के विशाल भेजपुरी क्षेत्र में नवजागरण का संदेश फैलाया। बेमेल-विवाह, नशापान, स्त्रियों का शोषण एवं दमन, संयुक्त परिवार के विघटन एवं गरीबी के खिलाफ वे जीवनपर्यन्त विभिन्न कला माध्यमों के द्वारा संघर्ष करते रहे। यही कारण है कि इस महान कलाकार की प्रासंगिकता आज भी बनी हुई है। कभी महापंडित राहुल सांकृत्यायन के जिन्हें साहित्य का अनगढ़ हीरा एवं भोजपुरी का शेक्सपीयर कहा था उस भिखारी ठाकुर का जन्म सरण जिले के छपरा जिले के सदर प्रखंड के कुतुबपुर दियारा में 18 दिसंबर 1887 को हुआ को हुआ था। उनके पिता का नाम दलश्रृंगार ठाकुर एवं माता का नाम शिवकली देवी था। भिखारी ठाकुर निरक्षर थे, परंतु उनकी साहित्य-साधना बेमिसाल थी। रोजी-रोटी कमने के लिए वे पश्चिम बंगाल के मेदनीपुर नामक स्थान पर गये जहां बंगाल के जातरा पाटियों के द्वारा किये जा रहे रामलीला के मंचन से वे काफी प्रभावित हुए, और उससे प्रेरणा पाकर उन्होंने नाच पार्टी का गठन किया।लोक कलाकार भिखारी ठाकुर के समस्त साहित्य का संकलन अब तक पूरा नहीं हो सका है। बिहार राष्ट्रभाषा परिषद, पटना के पूर्व निदेशक प्रो0 डॉ0 वीरेन्द्र नारायण यादव के प्रयास से परिषद ने रचनाओं का एक संकलन भिखारी ठाकुर ग्रंथावली के नाम से प्रकाशित किया है, परंतु अभी भी उनके लिए बहुत कुछ किये जाना बाकी है। विभिन्न विश्वविद्यालयों में उनपर शोध-कार्य चल रहे हैं। कई पुस्तकें भी उनसे प्रकाशित हुई है।

जदयू के प्रदेश कार्यालय में प्रत्येक सप्ताह के 4 दिन विभिन्न विभागों के मंत्री गण करेंगे जनसुनवाई…उमेश सिंह कुशवाहा

जदयू के प्रदेश अध्यक्ष उमेश सिंह कुशवाहा ने एक बयान जारी कर कहा है कि नीतीश सरकार के विकास कार्यक्रमों को तेज गति से लागू करने और जनसमस्याओं को त्वरित समाधान करने के लिए पार्टी के प्रदेश कार्यालय में अगले सप्ताह से विभिन्न विभागों के मंत्री गण पार्टी कार्यालय में उपस्थित होकर जन समस्याओं की सुनवाई करेंगे इसके तहत प्रत्येक महीने के प्रत्येक सप्ताह में 4 दिन बिहार सरकार के विभिन्न विभागों के मंत्री गण जदयू के प्रदेश कार्यालय में उपस्थित रहेंगे और इस दौरान प्रत्येक सप्ताह के मंगलवार बुधवार गुरुवार और शुक्रवार को पार्टी के कार्यकर्ताओं एवं अन्य लोगों से संवाद स्थापित करने एवं उनकी समस्याओं को सुनकर उनके निराकरण हेतु बिहार सरकार के विभिन्न विभागों के मंत्रीगण निर्धारित तिथि और समय पर उपस्थित रहेंगे।

इसके लिए बिहार सरकार के सभी माननीय मंत्रियों को पत्र लिखकर सूचित कर दिया गया है ताकि निर्धारित तिथि और समय पर सभी माननीय गण प्रदेश कार्यालय में उपस्थित रह सकें उमेश सिंह कुशवाहा ने कहा कि इस कार्यक्रम के तहत निर्धारित तिथि के दिन 11:30 बजे से तीन विभागों के माननीय मंत्री पार्टी के प्रदेश कार्यालय में उपस्थित रहेंगे उन्होंने बताया कि इसको लेकर माननीय मंत्रियों की कार्यक्रमों की सूची जारी कर दी गई है इसके तहत प्रत्येक मंगलवार को दिन के 11:30 बजे से शिक्षा मंत्री विजय कुमार चौधरी खान एवं उपभोक्ता संरक्षण विभाग के मंत्री लेसी सिंह और अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री जमा खाँ उपस्थित रहेंगे वही बुधवार को दिन के 11:30 बजे दिन से ग्रामीण विकास मंत्री श्रवण कुमार मध निषेध उत्पाद एवं निबंधन विभाग के मंत्री सुनील कुमार और ग्रामीण कार्य विभाग के मंत्री जयंत राज उपस्थित रहेंगे जबकि गुरुवार को दिन के 11:00 बजे से ऊर्जा विभाग तथा योजना एवं विकास विभाग के मंत्री विजेंद्र यादव परिवहन मंत्री श्रीमती शीला कुमारी और समाज कल्याण विभाग के मंत्री मदन सहनी उपस्थित रहेंगे उसके बाद सप्ताह के शुक्रवार को दिन के 11:30 बजे से भवन निर्माण मंत्री अशोक चौधरी जल संसाधन विभाग तथा सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के मंत्री संजय कुमार झा और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के मंत्री सुमित कुमार उपस्थित रहेंगे।

जदयू के प्रदेश अध्यक्ष उमेश सिंह कुशवाहा ने कहा कि बिहार सरकार के मंत्रियों की उपस्थिति में जन समस्याओं की सुनवाई की जाएगी उन्होंने बताया कि इस कार्यक्रम में पार्टी के कार्यकर्ताओं के साथ आम आदमी अपनी जन समस्याओं को माननीय मंत्री के समक्ष रख सकेंगे ताकि जन समस्याओं का त्वरित गति समाधान की जा सके इसके साथ ही माननीय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में जो बिहार में विकास कार्यक्रमों को चलाया जा रहा है उसका लाभ जन-जन तक पहुंचाई जा सके उमेश सिंह कुशवाहा ने कहा कि जदयू के प्रदेश कार्यालय में माननीय मंत्रियों की उपस्थिति से बिहार में विकास की गति को तेज करने में सफलता मिलेगी इसी उद्देश्य से इस कार्यक्रम की शुरुआत की जा रही है उन्होंने बताया कि माननीय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के दिशा निर्देश में पार्टी कार्यालय में विभिन्न विभाग के माननीय मंत्रियों उपस्थिति को सुनिश्चित करने का फैसला किया गया है और इस कार्यक्रम के जरिए बिहार के विकास में तेजी लाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।

तालिबान: दोराहे पर अफ़ग़ानिस्तान और भारत की दुविधा

अफ़ग़ानिस्तान में घड़ी की सुई रिवर्स डायरेक्शन में मुड़ चुकी है। अफ़ग़ानी समाज का उदारवादी प्रगतिशील तबका, जो धार्मिक रूप से सहिष्णु है, नागरिक अधिकारों का हिमायती है, लोकतांत्रिक मूल्यों में आस्था रखता है और महिलाओं एवं उनके अधिकारों को लेकर प्रगतिशील सोच रखता है, अपने अस्तित्व को लेकर सशंकित है। और, तालिबान को लेकर सशंकित केवल अफ़ग़ानी समाज ही नहीं है, वरन् पूरी-की-पूरी दुनिया डरी और सहमी हुई है। कारण यह कि तालिबान कोई संस्था नहीं है, वरन् सोच और मानसिकता है, ऐसी सोच और मानसिकता, जो आधुनिक काल की तमाम प्रगतियों को नकारती हुई आधुनिकता पर मध्ययुगीनता की जीत सुनिश्चित रहना चाहती है। अफ़ग़ानिस्तान में उदारवादी लोकतांत्रिक शासन-व्यवस्था और उसके मूल्यों को नकारता हुआ तालिबान उसे इस्लामिक धर्म और धर्मतंत्र की गिरफ़्त में लाना चाहता है।

तालिबान के नेतृत्व में अफ़ग़ानिस्तान का ‘इस्लामिक एमिरेट ऑफ अफ़ग़ानिस्तान’ में तब्दील होना इसी को पुष्ट करता है। यह प्रतीक है अफ़ग़ानिस्तान में उदारवादी लोकतांत्रिक मूल्यों के अन्त का, महिला अधिकारों एवं मानवाधिकारों की त्रासदी का, अल्पसंख्यक जनजातियों की पहचान के साथ-साथ व्यवस्था में उनके समुचित एवं पर्याप्त प्रतिनिधित्व एवं भागीदारी की शुरू हो चुकी प्रक्रिया के अवरुद्ध होने का और समावेशी अफ़ग़ानिस्तान के सपनों के धूल-धूसरित होने का।

स्पष्ट है कि तालिबान अफ़ग़ानिस्तान का सच है, ऐसा सच जो अफ़ग़ानिस्तान ही नहीं, वरन् भारत सहित शेष दुनिया के लिए ख़ौफ़नाक और भयावह साबित हो सकता है। तालिबान को लेकर मुसलमानों के एक तबके में उत्साह है, जो और भी भयावह और ख़तरनाक है क्योंकि उन्हें यह लगता है कि तालिबान इस्लामीकरण की प्रक्रिया के ज़रिए मुसलमानों के धार्मिक वर्चस्व को सुनिश्चित करेगा और पूरी दुनिया में शरीयत को लागू करेगा। उनकी आँखें तब भी नहीं खुल रही हैं जब वे देख रहे हैं कि राजधानी काबुल पर क़ब्ज़े के बाद वहाँ से भागने वाले लोगों में ग़ैर-मुस्लिमों की तुलना में मुसलमान कहीं अधिक हैं। और, ऐसा नहीं कि यह सब अनपेक्षित है। फ़रवरी,2020 में अफ़ग़ानिस्तान सरकार को दरकिनार करते हुए जिन शर्तों पर अमेरिका और तालिबान के बीच शान्ति समझौता सम्पन्न हुआ, उसके बाद ऐसा ही होना था। बस, प्रतीक्षा थी अमेरिका के नेतृत्व वाले नाटो सैनिकों की वापसी की। फिर, यह सब महज़ समय की बात रह गयी, लेकिन, यह सब इतनी जल्दी होगा, इसकी भी उम्मीद शायद किसी को नहीं रही होगी।

जहाँ तक भारत के संदर्भ में इन बदलावों के निहितार्थों का प्रश्न है, तो भारत गहरे संकट में है और भारतीय कूटनीति की असफलता से उपजे इस संकट के मूल में मौजूद है भारत की विदेश-नीति की त्रासदी। ऐसा नहीं है कि पिछले तीन दशकों के दौराजहाँ तक भारत के संदर्भ में इन बदलावों के निहितार्थों का प्रश्न है, तो भारत गहरे संकट में है और भारतीय कूटनीति की असफलता से उपजे इस संकट के मूल में मौजूद है भारत की विदेश-नीति की त्रासदी। ऐसा नहीं है कि पिछले तीन दशकों के दौरान भारत की अफ़ग़ानिस्तान नीति और तालिबान को लेकर उसका नज़रिया कभी आश्वस्त करने वाला रहा हो, पर पिछले क़रीब सवा सात वर्षों के दौरान भारत की विदेश-नीति ने चेक एंड बैलेंसेज की उपेक्षा करते हुए अमेरिकोन्मुखी नज़रिया अपनाया। इसी नज़रिए के कारण इसने क्षेत्रीय समीकरणों और अफ़ग़ान समस्या के समाधान के लिए क्षेत्रीय स्तरों पर चल रहे प्रयासों को अपेक्षित महत्व नहीं दिया और आज उसे इसकी क़ीमत चुकानी पड़ रही है।

अब दिक़्क़त यह है कि काबुल और अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता पर क़ब्ज़े के बाद आज भी भारत में अफ़ग़ानिस्तान संकट को हिन्दू-मुसलमान की बाइनरी में रखकर देखा जा रहा है जो दु:खद एवं त्रासद है। भारतीय समाज का एक हिस्सा अपनी राजनीतिक सुविधा के हिसाब से इसे मुस्लिम समाज के साथ-साथ भारतीय समाज और राजनीति के उदारवादी, धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी और वामपंथी तबके को बदनाम करने के अवसर के रूप में देख रहा है और इस अवसर को भुनाने की हरसंभव कोशिश कर रहा है। और, इसका एक त्रासद पहलू यह भी है कि मुस्लिम समाज का एक हिस्सा अफ़ग़ानिस्तान के मोर्चे पर होने वाले इन बदलावों से उत्साहित है। उसे न तो अपनी त्रासद स्थिति चिन्तित करती है, और न ही अफ़ग़ानियों का दु:ख, उनकी पीड़ा एवं उनकी बेचैनियाँ ही विचलित करती हैं। वह तो इस्लामी सत्ता की पुनर्स्थापना और इस्लामी वर्चस्व की संभावना मात्र से उत्साहित एवं पुलकित है।

अब सवाल यह उठता है कि जब वर्तमान में तालिबान अफ़ग़ानिस्तान के सच के रूप में सामने आ चुका है और उसे पाकिस्तान एवं चीन सहित तमाम भारत-विरोधी शक्तियों का समर्थन मिल रहा है, अमेरिका सहित दुनिया की तमाम बड़ी शक्तियाँ अपनी ज़िम्मेदारियों का निर्वाह से परहेज़ कर रही हैं, ऐसे में भारत को क्या करना चाहिए? दरअसल, अब भारत बैकफ़ुट पर है, वह रिसीविंग इंड पर है और उसके सामने सीमित विकल्प हैं, ऐसी स्थिति में आवश्यकता इस बात की है कि भारत वेट एंड वाच की रणनीति अपनाते हुए अफ़ग़ानिस्तान में फँसे भारतीयों को सुरक्षित रूप से बाहर निकालने की कोशिश करे, बैक चैनल से तालिबान के साथ डील करते हुए उसके भारत-विरोधी रवैये को कम करने की कोशिश करें और अफगानिस्तान में अपने अब सवाल यह उठता है कि जब वर्तमान में तालिबान अफ़ग़ानिस्तान के सच के रूप में सामने आ चुका है और उसे पाकिस्तान एवं चीन सहित तमाम भारत-विरोधी शक्तियों का समर्थन मिल रहा है, अमेरिका सहित दुनिया की तमाम बड़ी शक्तियाँ अपनी ज़िम्मेदारियों का निर्वाह से परहेज़ कर रही हैं, ऐसे में भारत को क्या करना चाहिए? दरअसल, अब भारत बैकफ़ुट पर है, वह रिसीविंग इंड पर है और उसके सामने सीमित विकल्प हैं, ऐसी स्थिति में आवश्यकता इस बात की है कि भारत वेट एंड वाच की रणनीति अपनाते हुए अफ़ग़ानिस्तान में फँसे भारतीयों को सुरक्षित रूप से बाहर निकालने की कोशिश करे, बैक चैनल से तालिबान के साथ डील करते हुए उसके भारत-विरोधी रवैये को कम करने की कोशिश करें और अफगानिस्तान में अपने सामरिक हितों को साधने के साथ-साथ अपने निवेश को सुरक्षित करने की यथासंभव कोशिश करे। साथ ही, जल्दबाज़ी में प्रतिक्रिया देने की बजाय अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के अगले कदम की प्रतीक्षा करे और उनके साथ मिलकर तालिबान पर अंतर्रा्ष्ट्रीय दबाव निर्मित करने की कोशिश करे। उपयुक्त अवसर और अपने लिए अनुकूल माहौल की प्रतीक्षा करने के अलावा उसके पास कोई विकल्प नहीं है। और, हाँ, तालिबान के बहाने मुस्लिम समुदाय और भारतीय समाज के लिबरल-सेक्यूलर तबके को बदनाम करने की कोशिश तथा अफ़ग़ान संकट का राजनीतिकरण भारत के लिए आत्मघाती साबित होगा, और निकट भविष्य में भारत को इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है। भारत को यह समझना होगा कि अफ़ग़ानियों को भी अपनी लड़ाई ख़ुद लड़नी होगी और उसे भी अपने सामरिक हित खुद सुनिश्चित करने होंगे। इसके लिए न तो अमेरिका सहित अन्य वैश्विक शक्तियाँ सामने आयेंगी और न ही अंतर्राष्ट्रीय समुदाय। भारत अगर संयम एवं धैर्य से काम लेता है, तो वह गृहयुद्ध की ओर बढ़ते अफ़ग़ानिस्तान में ताजिक, उज़्बेक और हज़ारा जनजातियों के साथ-साथ अफ़ग़ानी पश्तून समाज के उदारवादी, लिबरल, डेमोक्रेटिक एवं सेक्यूलर तबके बीच अपने गुडविल की बदौलत इस क्षति की कुछ हद तक भरपायी कर सकता है। इसके लिए आवश्यकता है खुद के प्रति भरोसे की और सटीक रणनीति की। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि भारत सरकार इसी रणनीति पर विचार कर रही है, पर समस्या है हिन्दू-मुस्लिम बाइनरी की।

-लेखक कुमार सर्वेस

(लेखक अंतर्राष्ट्रीय मामलों के जानकार हैं और सिविल सेवा परीक्षा हेतु तैयारी कर रहे छात्रों के मेंटरिंग कर रहे हैं।)

#अफगानिस्तानसंकट #तालिबान

सेंसेक्स 163 अंक नीचे, निफ्टी 16,569 पर हुआ बंद

सेंसेक्स 162.78 अंक नीचे 55,629.49 पर, जबकि निफ्टी 45.75 अंक गिरकर 16,568.85 पर बंद हुआ। धातु और रियल्टी शीर्ष गिरे; एफएमसीजी, आईटी और फार्मा हरे निशान में बंद हुए।

साप्ताहिक एफ एंड ओ समाप्ति के दिन बुधवार को दिनभर के उतार-चढ़ाव के बाद शेयर बाजार गिरावट के साथ बंद हुआ। सेंसेक्स 162.78 अंक नीचे 55,629.49 पर, जबकि निफ्टी 16,701.85 तक बढ़ने के बावजूद 45.75 अंक गिरकर 16,568.85 पर बंद हुआ।

निफ्टी बैंक और निफ्टी मेटल में गिरावट के चलते निफ्टी के ज्यादातर सेक्टोरल इंडेक्स लाल निशान में बंद हुए। इसके विपरीत निफ्टी एफएमसीजी, निफ्टी फार्मा और निफ्टी पीएसयू बैंक हरे निशान में बंद हुए।

निफ्टी के प्रमुख शेयरों के टॉप गेनर और लूजर का हाल

पंचायत चुनाव में प्रत्याशी आंन लाइन कर सकते हैं नांमकन

कोरोना को देखते हुए आयोग ने लिया निर्णय 24 सितंबर को है पहले चरण का मतदान, पंचायत चुनाव में प्रत्याशी आंन लाइन कर सकते हैं नांमकन

पंचायत चुनाव की घोषणा हो गई है। इसबार 11 चरणों में चुनाव होंगे। पहली बार पंचायत चुनाव के दौरान नामांकन प्रक्रिया पर विशेष जोर दिया गया और चुनाव में पहली बार आनलाइन आवेदन भी स्वीकार किया जायेगा । इसके लिए http://sec.bihar.gov.in साइट का इस्तेमाल किया जा सकता है।

इस बार छह पदों के लिए चुनाव होगा। इसमें से चार पद का चुनाव ईवीएम तथा दो पद का चुनाव बैलेट पेपर से होगा। इवीएम से जिला परिषद, ग्राम पंचायत मुखिया, पंचायत समिति और ग्राम पंचायत के वार्ड सदस्य का चुनाव होगा। बैलेट पेपर से सरपंच और पंच का चुनाव होगा।

इसबार 11 चरणों में होगा चुनाव मंगलवार को कैबिनेट ने बिहार पंचायत चुनाव का ऐलान कर दिया। इसबार 11 चरणों में वोट डाले जाएंगे। 24 सितंबर को पहले चरण का चुनाव होगा। इसके बाद 29 सितंबर, 8 अक्टूबर, 20 अक्टूबर, 24 अक्टूबर, 3 नवंबर, 15 नवंबर, 24 नवंबर, 8 दिसंबर और 12 दिसंबर को वोट डाले जाएंगे। बाढ़ को लेकर पंचायत चुनाव टलने की आशंका जताई जा रही थी। पहले चरण में उन जिलों में वोटिंग होगी जहां बाढ़ का असर कम है। इसके बाद अन्य जिलों में चुनाव कराए जाएंगे।

राज्य सरकार का बड़ा फैसला बीपीएससी से बहाल होंगे 45892 प्रधान शिक्षक व प्रधानाध्यापक, प्रभारी प्रिसपल युग का होगा अंत

राज्य के प्राथमिक व उच्च माध्यमिक विद्यालयों में 45 हजार 892 हेडमास्टरों की कमीशन से सीधी नियुक्ति होगी। इनमें 40558 पद प्राथमिक स्कूलों के प्रधान शिक्षकों की जबकि 5334 प्रधानाध्यापक के पद उत्क्रमित उच्च माध्यमिक विद्यालयों के होंगे। शिक्षा विभाग के प्रधान शिक्षक व प्रधानाध्यापकों की नियुक्ति व सेवाशर्त नियमावली-2021 के दो अलग-अलग प्रस्तावों को मंगलवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता में हुई राज्य मंत्रिपरिषद की बैठक में मंजूरी दी गई। शिक्षा मंत्री विजय कुमार चौधरी ने बताया कि बिहार लोक सेवा आयोग (बीपीएससी) इन पदों पर नियुक्ति के लिए सीधी भर्ती की प्रतियोगिता परीक्षा आयोजित करेगा। खास बात यह है कि प्राथमिक स्कूलों में पहली बार प्रधान शिक्षक नियुक्त किये जायेंगे। अबतक ऐसे स्कूलों में सबसे वरीय शिक्षक विद्यालय का संचालन करते थे।

पंचायती राज विभाग की अधिसूचना के अनुसार राज्य में पंचायत चुनाव 11 चरण में होंगे

पंचायती राज विभाग की अधिसूचना के अनुसार राज्य में पंचायत चुनाव 11 चरण में होंगे

24 सितंबर 29 सितंबर 8 अक्टूबर 20 अक्टूबर 24 अक्टूबर 3 नवंबर 15 नवंबर 24 नवंबर 29 नवंबर 8 दिसंबर और 12 दिसंबर को मतदान संपन्न हो जाएगा

बाढ़ से बिहार का हाल बेहाल

सीएम ने किया हवाई सर्वेक्षण एनडीआरएफ के हवाले हुआ तीन जिले ,बाढ़ प्रभावित प्रति परिवार को मिलेगा 6000हजार रुपया ,राहत शिविर में जन्म लेने वाली बेटी को राज्य सरकार देगी 15 हजार रुपया

मुख्यमंत्री श्नीतीश कुमार ने आज बाढ़ प्रभावित इलाकों का हवाई सर्वेक्षण किया एवं नवगछिया प्रखंड स्थित रामधारी इंटर स्तरीय उच्च विद्यालय, पकरा एवं गोपालपुर प्रखंड के उच्च विद्यालय, मकनपुर में बाढ़ राहत शिविरों का निरीक्षण किया। निरीक्षण के क्रम में मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को आवश्यक दिषा-निर्देश दिए।

रामधारी इंटर स्तरीय उच्च विद्यालय के बाढ़ राहत शिविर के निरीक्षण के क्रम में मुख्यमंत्री ने अधिकारियों से बाढ़ राहत चिकित्सा शिविर, समुदायिक रसोई केंद्र, आंगनबाड़ी केंद्र द्वारा बाढ़ प्रभावित परिवारों के बच्चों को पढ़ाने की सुविधा आदि के संबंध में पूरी जानकारी ली। मुख्यमंत्री ने बाढ़ राहत शिविर, पकरा के निरीक्षण के क्रम में आवासित लोगों से बातचीत की और उनकी समस्याओं से अवगत हुए।

निरीक्षण के दौरान जिलाधिकारी को निर्देश देते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि बाढ़ राहत शिविर का पूरा प्रबंधन ठीक रखें। उन्होंने कहा कि हवाई सर्वेक्षण के क्रम में हमने देखा है कि भागलपुर जिले में काफी संख्या में लोग बाढ़ से प्रभावित हुए हैं इसलिए जरूरत के मुताबिक राहत शिविरों की संख्या बढ़ायें ताकि प्रभावित लोगों को किसी प्रकार की कोई दिक्कत न हो। बाढ़ राहत षिविरों में लोगों की संख्या भी सीमित रखें ताकि लोगों को रहने में कोई असुविधा न हो।

पकरा बाढ़ राहत षिविर के निरीक्षण के पश्चात् मुख्यमंत्री गोपालपुर प्रखंड स्थित उच्च विद्यालय, मकनपुर बाढ़ राहत शिविर पहुॅचे। मुख्यमंत्री ने बाढ़ राहत शिविर में रह रहे लोगों से सामुदायिक रसोई में मिलने वाले भोजन के संबंध में जानकारी ली। बाढ़ राहत चिकित्सा शिविर, सामुदायिक रसोई आदि का जायजा लेने के बाद मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को कई जरूरी निर्देश दिए।

निरीक्षण के पष्चात पत्रकारों से बात करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि बाढ़ प्रभावित इलाकों का हम लगातार दौरा कर रहे हैं। इसके साथ ही स्थल निरीक्षण कर बाढ़ राहत षिविरों की स्थिति की भी जानकारी ले रहे हैं। हम प्रतिदिन बाढ़ प्रभावित इलाकों की स्थिति की जानकारी लेते रहते हैं और आवश्यक गाइडलाइन्स भी जारी किये जाते हैं। सभी प्रभावित लोगों को राहत मिले, इसके लिए हर जरूरी इंतजाम किये जा रहे हैं। राज्य सरकार की तरफ से बाढ़ प्रभावित प्रति परिवार को 6,000 रुपये की आर्थिक मदद दी जाती है। बाढ़ राहत शिविरों में सभी प्रभावित लोगों के आवासन, भोजन आदि का प्रबंध किया गया है। इसके अलावा गर्भवती महिलाओं का विशेष रूप से ख्याल रखा जा रहा है। राहत शिविरों में रह रहीं गर्भवती महिलाओं को बेटा होने पर 10 हजार रुपये और बेटी होने पर 15 हजार रुपये की आर्थिक सहायता भी दी जाती है। मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार के खजाने पर पहला हक आपदा पीड़ितों का है। राज्य सरकार की तरफ से प्रभावित लोगों को राहत देने के लिए सभी जरूरी कदम उठाए जा रहे हैं।

इस अवसर पर सांसद श्री अजय कुमार मंडल, विधायक श्री गोपाल मंडल, मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव श्री दीपक कुमार, जल संसाधन विभाग के सचिव श्री संजीव कुमार हंस, आपदा प्रबंधन विभाग के विषेष कार्य पदाधिकारी श्री संजय अग्रवाल, आयुक्त भागलपुर प्रमंडल श्री प्रेम सिंह मीणा, आई0जी0 भागलपुर श्री सुजीत कुमार, जिलाधिकारी श्री सुब्रत कुमार सेन एवं नवगछिया के पुलिस अधीक्षक श्री सुशांत कुमार सरोज सहित अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।

लालू प्रसाद की अग्नि परीक्षा शुरु चारा घोटाले के सबसे बड़े मामले में बचाव पक्ष की और से दी गयी दलील

,डोरंडा कोषागार से 139.35 करोड़ रुपये की हुई थी अवैध निकासी, लालू प्रसाद की अग्नि परीक्षा शुरु चारा घोटाले के सबसे बड़े मामले में बचाव पक्ष की और से दी गयी दलील। इस मामले में 108 आरोपी ट्रायल फेसकर रहे हैं ।

बिहार के बहुचर्चित चारा घोटाला (Fodder Scam) मामले में आज रांची के सीबीआइ कोर्ट में बचाव पक्ष की ओर से बहस शुरु हो गयी है आज अभियुक्त पूर्व आईएएस अधिकारी वो तत्कालीन वित्त सचिव डॉ फूल चंद सिंह के अधिवक्ता ने रखा पक्ष है इस मामले में अगली सुनवाई 19 अगस्त को होगी।चारा घोटाले के सबसे बड़े मामले RC 47A/96 में जिसमें डोरंडा कोषागार से 139.35 करोड़ रुपये की हुई थी अवैध निकासी ।इस मामले में 108 आरोपी ट्रायल फेसकर रहे हैं ।

इससे पहले सात अगस्‍त को अभियाेजन पक्ष की बहस पूरी कर ली गई थी। इस मामले में बिहार के पूर्व सीएम लालू प्रसाद, डॉ जगन्‍नाथ मिश्र, पूर्व सांसद जगदीश शर्मा समेत 110 लोगों को आरोपित बनाया गया था। इस मामले में आरोपित डॉ जगन्‍नाथ मिश्र समेत 37 आरोपितों का निधन हो चुका है। इस मामले में अभियोजन पक्ष ने 575 गवाहों के बयान दर्ज कराए थे। वहीं बचाव पक्ष की ओर से 27 आरोपितों की गवाही होनी है। इसके आधार पर बहस पूरी होगी। रांची के सिविल कोर्ट परिसर में स्थित सीबीआइ की विशेष कोर्ट में मामले की सुनवाई चल रही है।डोरंडा कोषागार (RC 47A/96) से अवैध निकासी मामले की सुनवाई विशेष कोर्ट में चल रही है। कोर्ट ने कहा था कि जो फिजिकल मोड में बहस करना चाहते हैं, वे अदालत में व्‍यक्तिगत रूप से उपस्थित हों। कोरोना गाइडलाइन के अनुरूप वे बहस कर सकते हैं। इस दौरान अधिकतम पांच लोग मौजूद रह सकते हैं। वहीं जो वर्चुअल मोड में बहस चाहते हैं वे कोर्ट की अनुमति ले लें। दस्‍तावेजों को देख लें और तब बहस करें। बहस के लिए दोनों विकल्‍प हैं। मालूम हो कि लालू प्रसाद समेत 77 आरोपितों ने फिजिकल कोर्ट शुरू होने तक सुनवाई टालने का आग्रह किया था। लेकिन कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया। बचाव पक्ष ने कहा था कि पिछले आदेश के आलोक में वे हाईकोर्ट जाएंगे। इसलिए उन्‍हें समय मिलना चाहिए लेकिन कोर्ट ने समय देने से साफ इनकार कर दिया। हालांकि अदालत ने इस मामले में प्रतिदिन सुनवाई का निर्णय लिया।

इस सुनवाई पर सब की नजर है क्यों कि लालू प्रसाद इन दिनों जमानत पर हैं लेकिन इस मामले में अगर सजा होती है तो उन्हें फिर जेल जाना पड़ सकता है। ऐसे में लालू के परिवार के साथ साथ बिहार की राजनीति के लिए डोरंडा कोषागार अवैध निकासी मामला काफी महत्वपूर्ण है ।

नई ऊंचाई पर बाजार: सेंसेक्स रिकॉर्ड ऊंचाई पर, निफ्टी पहली बार 16,600 के ऊपर पहुंचा

घरेलू इक्विटी बाजार बेंचमार्क बीएसई सेंसेक्स और निफ्टी 50 कल साप्ताहिक समाप्ति से पहले मंगलवार को नए रिकॉर्ड स्तर पर बंद हुए। सेंसेक्स 209.69 अंकों की तेजी के साथ 55,792.27 और निफ्टी 51.55 अंकों की बढ़त के साथ पहली बार 16,614.60 पर बंद हुआ।

बाजार को IT और FMCG शेयर्स का सपोर्ट मिला । टेक महिंद्रा, टीसीएस, नेस्ले इंडिया, टाइटन कंपनी, हिंदुस्तान यूनिलीवर लिमिटेड (एचयूएल), इंफोसिस और एचसीएल टेक सेंसेक्स में शीर्ष पर रहे।

बाढ़ देखते हुए अब नवम्बर में होगा पंचायत चुनाव

राज्य सरकार ने बाढ़ प्रभावित डीएम से मांगी रिपोर्ट, बाढ़ देखते हुए अब नवम्बर में होगा पंचायत चुनाव । 17 जिलों के डीएम ने सितम्बर में चुनाव कराने को लेकर खड़े किये हाथ आज कैबिनेट की बैठक में हो सकता है निर्णय

बाढ़ के हालात को देखते हुए राज्य सरकार पंचायत चुनाव को नवम्बर में कराने पर विचार कर रही है वैसे आज पंचायत चुनाव को लेकर कैबिनेट की बैठक में राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा तिथि निर्धारित करने को लेकर दिये गये प्रस्ताव पर विचार करने वाली है ।

राज्य चुनाव आयोग सितंबर से नवंबर के बीच 10 चरण में चुनाव कराना चाहती है, लेकिन इस कार्य में सबसे बड़ी बाधा है 17 जिलों में बाढ़ । क्यों कि बाढ़ की वजह से ग्रामीण इलाकों में काफी नुकसान हुई है इसलिए चुनाव की तिथियों का कोई फैसला लेने के पहले राज्य सरकार जिलों में बाढ़ की स्थिति को लेकर जिलाधिकारियों से फीड बैक लेने की तैयारी कर रही है।

वही आयोग ने अब तक जो तैयारी की है, उसमें भी बाढ़ के संभावित असर वाले प्रखंडों में बाद के चरणों में चुनाव कराने की ही बात है। हालांकि आयाेग ने जिलों से रिपोर्ट के आधार पर जब यह कार्यक्रम तय किया, तब बाढ़ के इतने खतरनाक रूप अख्तियार करने का अंदाजा शायद नहीं था। इस बार कई इलाकों में बाढ़ अनुमान से कही अधिक असर दिखा रही है। करीब 14 साल बाद भागलपुर-किऊल रेलखंड पर बाढ़ के कारण यातायात बंद करना पड़ा है तो पटना के पास गंगा अपने रिकार्ड स्‍तर तक पहुंचने से कुछ ही सेंटीमीटर नीचे रह गई। हथीदह और कई इलाकों में गंगा ने पुराने रिकार्ड तोड़ दिए। गंगा के अलावा गंडक और कोसी जैसी नदियों में अब भी काफी पानी है।वही स्थिति सीतामंढ़ी ,शिवहर,मधुबनी और दरभंगा जिले कि भी है जहां बाढ़ का पानी पहले ही कम हो गया है लेकिन कम स्थिति फिर बिगड़ जायेगी कहना मुश्किल है इसलिए राज्य सरकार बाढ़ के बाद ही चुनाव कराने के मूड में है ।

लालू प्रसाद के पुत्र मोह में पार्टी और परिवार में मचा घमासन जगदानंद सिंह इस्तीफा पर अड़े तेजस्वी ने पार्टी नेताओं की बुलाई बैठक

बिहार में लालू-राबड़ी परिवार (Lalu-Rabri Family) से जगदानंद सिंह (Jagdanand Singh) का रिश्ता लगभग टूट चुका है लालू प्रसाद के लगातार बातचीत के बावजूद जगदानंद सिंह राजद कार्यालय जाने को तैयार नहीं है।
हलाकि तेजस्वी का कहना है कि ऐसी कोई बात नहीं है यह सब मीडिया का खेल है जगदानंद सिंह कही किसी से कहे हैं कि मैं नराज हूं फिर मीडिया ये सवाल कहां से उठा रही है वैसे तेजस्वी जो कुछ भी कह रहे हैं लेकिन बगैर आग के धुआं नहीं उठाता है जिस दिन तेज प्रताप जगदानंद सिंह को हिटलर कहां था उसी दिन से जगदानंद सिंह पार्टी दफ्तर नही जा रहे हैं 15 अगस्त जैसे मौके पर जब पार्टी अध्यक्ष राष्ट्र ध्वज फहराते थे उस दिन भी वो नहीं गये और इसको लेकर जब जब तेजस्वी से सवाल किया गया वो सवालो को टालते रहे ।


लालू प्रसाद के करीबियों में जगदानंद सिंह पहले व्यक्ति नहीं हैं, जिन्हें उनके बेटे तेज प्रताप यादव (Tej Pratap Yadav) के बयानों से धक्का लगा है। इसके पहले पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह (Raghuvansh Prasad Singh) और आरजेडी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रामचंद्र पूर्वे (Ramchandra Purvey) पर भी तेज प्रताप के बयानों की गाज गिर चुकी है। रघुवंश तो इतने व्यथित हुए कि अपने आखिरी क्षणों में अस्पताल से ही लालू का साथ छोड़ने का एलान कर दिया था। फिर भी तेज प्रताप की बदजुबान जारी है । नतीजतन पुत्र के प्रति मोह से लालू के अपने लगातार बिछुड़ते जा रहे हैं।

2019 में प्रदेश अध्‍यक्ष पद से बेदखल किए गए थे रामचंद्र पूर्वे जगदानंद के अनुशासन का अक्सर मजाक उड़ाने वाले तेज प्रताप ने चार बार से लगातार आरजेडी के प्रदेश अध्यक्ष बनते आ रहे रामचंद्र पूर्वे को 2019 में पद से बेदखल कराया था। उनपर चुगली करने और फोन नहीं उठाने का आरोप लगाया था। तेज प्रताप की सिफारिश पर आरजेडी में एक पदाधिकारी बनाने में देरी का खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा था। यह वही पूर्वे हैं, जिन्होंने 1997 में जनता दल से अलग होकर लालू की नई बनी पार्टी का संविधान तैयार किया था। चारा घोटाले (Fodder Scam) में लालू जब जेल गए तो राबड़ी देवी (Rabri Devi) के साथ मंत्री के रूप में सबसे पहले शपथ लेने वाले पूर्वे ही थे। बाकी मंत्रीमंडल का गठन बाद में हुआ था। पूर्वे अपनी ही बनाई पार्टी से अब अलग-थलग हैं।

तेज प्रताप के कारण टूटा दरोगा प्रसाद राय परिवार से रिश्‍ता बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री दरोगा प्रसाद राय (Daroga Prasad Rai) के घराने से लालू परिवार का बहुत ही धनिष्ट रिश्ता रहा था उस रिश्ते को रिश्तेदारी में बदलने के लिए लालू प्रसाद ने बड़ी धूमधाम से रिश्ता जोड़ा था और तेज प्रताप की शादी दरोगा प्रसाद की पौत्री ऐश्वर्या राय (Aishwarya Rai) के साथ हुई थी। लेकिन छह महीने के भीतर ही मामला तलाक तक पहुंच गया। 2019 के लोकसभा चुनाव में भी तेज प्रताप ने आरजेडी के शिवहर सहित अधिकृत दो प्रत्याशियों के खिलाफ लालू-राबड़ी मोर्चा बनाकर प्रत्याशी उतार दिए थे और उस प्रत्याशी के पक्ष में प्रचार भी किया था ।


तेज प्रताप से इस तरह के आचरण को लेकर पार्टी में ही नहीं परिवार में भी जबरदस्त शीत युद्ध जारी है राबड़ी और मिसा को छोड़ दे तो परिवार के अधिकांश सदस्य तेज प्रताप के व्यवहार से नराज है तेजस्वी तो कई बार तेज प्रताप के हरकत के कारण शर्मिदा होना पड़ा है ।


वैसे इस बार स्थिति बदली हुई है जगतानंद नहीं माने तो फिर लालू प्रसाद को पार्टी को सम्भाले रखना बड़ी मुश्किल होगी क्यों कि जगतानंद सिंह के प्रदेश अध्यक्ष रहने से तेजस्वी को बिहार की राजनीति समझने में काफी मदद मिलती है साथ ही आज भी जगतानंद सिंह को बिहार की राजनीति में काफी साफ सुथरी छवि है और इसका लाभ राजद को मिलता रहता है ।
तेजस्वी इसको लेकर पार्टी दफ्तर में एक बैठक बुलाया जिसमें श्याम रजक और आलोक मेहता मौजूद थे ।बैठक में जगतानंद सिंह को लेकर चर्चा हुई और इस बात पर जोड़ दिया गया कि इससे पार्टी की छवि खराब हो रही है ऐसे में पार्टी को कठोर निर्णय लेने कि आवश्कता है ।

भारत ने अंतिम दिन इंग्लैंड को नाटकीय अंदाज में हराया !

भारत ने सोमवार को लॉर्ड्स में खेले गए दूसरे टेस्ट मैच में इंग्लैंड को हराकर पांच मैचों की सीरीज में 1-0 से बढ़त बना ली है। इस मैच में दोनों टीमों के बीच काफी गर्मागर्म पल भी देखने को मिले। केएल राहुल, जिन्हें पहली पारी में उनके शानदार शतक के लिए प्लेयर ऑफ द मैच चुना गया था, ने कहा, “यदि आप हमारे एक खिलाड़ी के पीछे जाते हैं तो सभी ग्यारह वापस आ जाएंगे।”

भारत के सलामी बल्लेबाज ने जीत के बाद कहा, “दो प्रतिस्पर्धी टीमों के साथ आप बहुत दिल और महान कौशल और कुछ शब्द देखने जा रहे हैं।”

जीत के बाद सचिन तेंदुलकर ने किया ट्वीट:

इंग्लैंड ने टॉस जीतकर भारत को बल्लेबाजी के लिए बुलाया, केएल राहुल ने पहली पारी में 250 गेंदों में 129 रनों की शानदार पारी के साथ भारत के लिए 364 रन का कुल स्कोर बनाया। राहुल ने अपने सलामी जोड़ीदार रोहित शर्मा के साथ 126 रन जोड़े, जो 83 रन पर गिर गए और फिर अपने कप्तान विराट कोहली के साथ 117 रनों की साझेदारी की, जिन्होंने 42 रन बनाए।

50 लाख मोदी की तस्वीर वाली झोला के सहारे सियासत साधने मैंदान में उतरी बीजेपी सांसद और विधायक को दी गयी जिम्मेवारी

प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के प्रचार प्रसार के लिए भाजपा ने आज से झोला बांटने के अभियान की शुरूआत कर दी है। प्रदेश कार्यालय में केन्द्रीय गृहमंत्री नित्यानंद राय ने इस शुभारंभ किया। प्रदेश कार्यालय से शुरू हुए इस अभियान के पहले चरण में पार्टी के विधायक और सांसद पूरे प्रदेश में 50 लाख झोला बांटेगे। पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत हर महीने पांच किलो मुफ्त अनाज देने की योजना केन्द्र सरकार चला रही है।
अब भाजपा बिहार के लोगों को झोला बांटकर ये बतायेगी की उनके घरों तक जो अनाज पहुंच रहा है, वो असल में मोदी सरकार की देन है। भाजपा के कार्यकर्ता बूथ लेवल तक कार्यक्रम आयोजित कर झोला वितरित करेंगे। झोला पर पीएम मोदी की तस्वीर, भाजपा का कमल निशान, पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना छपा है।पीएम के साथ ही क्षेत्रवार सांसद व विधायक की तस्वीर भी इसपर छपी होगी। भाजपा कार्यकर्ता49 हजार 780 जनवितरण दुकानों पर PM मोदी का बैनर लगा कर लाभुकों के बीच यह झोला वितरित करेगा।
विधायक 20 हजार तो सांसदों को बनवाना होगा 1 लाख झोला
सांसद ,विधायक और विधानपरिषद सदस्यों को विशेष जिम्मेवारी दी गयी है जिसके तहत प्रत्येक सांसद को 1 लाख झोला, 1 हजार फ्लैक्स तो विधायक को 20 हजार झोला, 200 फ्लैक्स बांटने की जिम्मेवारी दी गयी है। प्रधानमंत्री अन्न योजना के तहत राज्य के गरीबी रेखा से नीचे बसर करने वाले परिवार को 5 किलो अनाज और 1 किलो दाल नबंबर तक मुफ्त में मिलेगा
नीतीश कुमार को इस योजना से रखा गया है दूर

भाजपा के इस झोला अभियान का असल मकसद, आमलोगों तक ये बात पहुंचाना है कि गरीबों को जो अनाज मिल रहा है वो असल में मोदी सरकार का दिया है।और यही वजह है कि यूपी में इस योजना के शुभआरम्भ के दौरान जो झोला बाटा गया था उसमें योगी की तस्वीर थी लेकिन बिहार में नीतीश कुमार की तस्वीर झोला पर नहीं है ।
यहां संसदीय क्षेत्रों के लिहाज से भाजपा के सांसदों का चेहरा होगा। जहां विधायक हैं वहां विधायक का। कुल मिलाकर केन्द्र सरकार के काम का क्रेडिट नीतीश कुमार ना ले पाएं, इसकी पूरी कोशिश की गई है।राजद ने इस झोला राजनीति पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री अन्न योजना मोदी की योजना नहीं है जो सिर्फ बीजेपी के विधायक और सांसद का फोटो झोला पर रहेगा तत्तकाल पीएम मोदी इस प्रवृति पर रोक लगाये नहीं तो राजद इसको लेकर जनता के बीच जायेंगी ।

भोजपुरी अश्लील क्यों बन गई ?

वो साठ का दशक था,तब मनोरंजन के इतने साधन नहीं थे। ले-देकर दशहरा के समय दरभंगा और अयोध्या से आने वाली रामलीला मण्डली का आसरा था। कहीं से गाँव के खेलावन बाबा को पता चलता कि इस महीने गाँव में होने वाली यज्ञ में वृन्दावन से रासलीला मण्डली आ रही है,फिर तो उनके चेहरे की ख़ुशी देखते बनती थी।

इधर लोगो को यशादी-ब्याह के मौसम में आने वाली नाच और मेले-ठेले में होने वाली नौटकी का बड़ी जोर-शोर से इंतजार रहता था।

उधर गाँव के कुछ उत्साही सनूआ-मनूआ द्वारा दशहरा-
दीपावली में ड्रामा भी किया जाता था।

हां, गाँव-जवार में बिजली अभी ठीक से आई नहीं थी।

दूरदर्शन के दर्शन की कल्पना भी बेमानी थी। किसी गाँव में डेढ़ मीटर लम्बी रेडियो आ जाए तो आस-पास गाँव वाले साइकिल से सुनने पहुंच जाते थे।

तब भोजपुरी के पहले सुपरपस्टार भिखारी ठाकुर की लोकप्रियता आसमान छू रही थी। छपरा से लेकर बंगाल और आसाम से लेकर आसनसोल तक वो जहाँ भी,जिस मौके पर जाते,वहाँ खुद-ब-खुद मेला लग जाता था।

उनके इंतजार में लोग ऊँगली पर दिन गिनना शुरू कर देते थे। उनका नाटक गबरघिचोर हो या गंगा स्नान, विदेसिया हो या बेटीबेचवा लोग हंसते-हंसते कब रोने लगते,किसी को कुछ पता नहीं चलता था।

“करी के गवनवा भवनवा में छोड़ी करs
अपने परइलs पुरूबवा बलमुआ..”

ये बच्चे-बच्चे को जबानी याद था। क्योंकि इन नाटकों के गीत महज गीत नहीं थे। इन नाटकों के संवाद महज संवाद नहीं थे।

वो मनोरंजन भी केवल मनोरंजन नहीं था,बल्कि वो मनोरंजन का सबसे उदात्त स्वरूप था, जहाँ भक्ति, प्रेम और वात्सल्य के साथ हास्य-व्यंग्य का उच्चस्तरीय स्तर मौजूद था।

जहाँ स्त्री विमर्श की गहन पड़ताल थी, तो सामाजिक- आर्थिक विसंगतियों पर एक साथ चोट की जा रही थी। कुल मिलाकर तब भिखारी सिर्फ एक कलाकार न होकर एक समाज-सुधारक की भूमिका में थे।

वही दौर था भिखारी के समकालीन छपरा के महेंदर मिसिर का। दोनों में खूब दोस्ती थी।

बच्चा-बच्चा जानता कि भिखारी खाली समय में अगर कुतुबपुर में नहीं हैं,तो वो पक्का मिश्रौलिया में होंगे। अपने समय के दो महान कलाकारों की इस गाढ़ी मित्रता की कल्पना मेरे जैसे कई संगीत के विद्यार्थियों के चित्त आनंदित करती है…

“अंगूरी के डसले बिया नगिनिया रे ए ननदी संइयाँ के बोला द..”

“भला कौन पूरबिया होगा भला जिसे इतना याद न होगा..” ?

लेकिन साहेब भिखारी-महेंदर मिसिर के बाद एक झटके में जमाना बदला। तब सिनेमा जवान हो रहा था। भोजपुरी में भी तमाम फिल्में बननें लगीं थी।

गाजीपुर के नाजिर हुसैन और गोपलगंज के चित्रगुप्त नें चित्रपट में ऐसा जादू उतारा कि आज भी वो फ़िल्में, वो संगीत मील का पत्थर हैं।

लेकिन हम इस लेख में मुम्बई और सिनेमा की बात नही करेंगे..क्योंकि तब गाँव में धड़ल्ले से नांच पार्टी खुल रहीं थीं।

हर जिले में ढोलक के साथ बीस जोड़ी झाल लेकर गवनई पार्टी वाले व्यास जी लोग आ गए थे। ये व्यास जी लोग “मोटकी गायकी” के व्यास कहे जाते थे।

ये व्यास लोग रात भर रामायण महाभारत की कथा को वर्तमान सन्दर्भों के साथ जोड़कर सुनाते। सवाल-जबाब का लम्बा-लम्बा प्रसङ्ग चलता। बिहार के गायत्री ठाकुर जब हवा में झाल लहरा के गाते…

“चलत डहरिया पीरा जाला पाँव रे
जोन्हीयो से दूर बा बलमुआ के गाँव रे…”

तो श्रोताओं के हाथ अपने आप जुड़ जाते थे, क्योंकि इस गीत में बलमुआ का मतलब उनके पतिदेव से नहीं, बल्कि ईश्वर से था।

इधर उनके जोड़ीदार बलिया यूपी के बिरेन्द्र सिंह ‘धुरान’ भी माथे पर पगड़ी बांध,मूँछों पर ताव देकर ललकारते…तो अस्सी साल के बूढों की बन्द पड़ी धमनियों का रक्त संचरण अपने आप बढ़ जाता।

ये जोड़ी पुरे भोजपुरिया जगत में प्रसिद्ध थी। इन दोनों के चाहने वालों की लिस्ट में टी-सीरीज के मालिक गुलशन कुमार भी शामिल थे।

और इन गायत्री-धुरान नामक दो घरानों नें भोजपुरी को सैकड़ों गायक दिए..ये परम्परा आज वटवृक्ष का आकार ले चुकी है।

फिर आते हैं..भोजपुरी की मेहीनी परम्परा में..धीरे-धीरे समय बदला.. अस्सी का दशक आया…मुन्ना सिंह और नथुनी सिंह का,

भला कौन होगा,जिसे ये गाना याद न होगा ?

“जबसे सिपाही से भइले हवलदार हो
नथुनिए पर गोली मारे संइयाँ हमार हो..”

तब तब टेपरिकार्डर और आडियो कैसेट मार्किट में आ गए थे।
शहरों से निकलकर गाँव-गाँव इनकी पहुंच आसान हो गई थी।

उस समय कैसेट गायकों को बड़े ही सम्मान के साथ देखा जाता था। क्योंकि गायक बनना आसान नहीं था और कैसेट कलाकार बनना तो अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि थी।

तब वीनस और टी-सीरीज जैसी म्यूजिक कम्पनियाँ कलाकारों को बुलाकर रिकॉर्डिंग करातीं थीं.

और ये म्यूजिक कम्पनियां उन्ही गायकों का कैसेट बनातीं थीं जिनकी आवाज में कुछ ख़ास होता था।

जिनको दो-चार हजार लोग जानते-पहचानते थे। शायद इसी वजह से जिस गायक का बाजार में कैसेट होता था, उसका मार्किट टाइट हो जाता था।

उसे फटाफट दूर-दूर से प्रोग्राम के ऑफर आने लगते थे। बाकी लोग उससे हड़कते थे, “अरेs मरदे कैसेट के कलाकार हवन…दूर रहा…”
.
उसी समय कुछ अच्छे गाने वाले हुए..बिहार में शारदा सिन्हा जी का गाना..

“पटना से बैदा बोलाई दs हो, नज़रा गइली गुईयाँ”

जब कुसुमावती चाची सुनतीं तो उनका चेहरा ऐसा खिल जाता,मानों किसी ने उनके दिल की बात कह दी हो…उसी दौर में भरत शर्मा व्यास जब गाते…

“कबले फिंची गवना के छाड़ी,हमके साड़ी चाहीं.”

तो छपरा जिला के रेवती गाँव में गवना करा के आई मनोहर बो अपने मनोहर को याद करके चार दिन तक खाना-पीना छोड़ देतीं।

वहीं नया-नया दहेज हीरो होंडा पाया सिमंगल का रजेसवा जब गांजा के बाद ताड़ी पीने में महारत हासिल कर लेता तो कहीं दूर हार्न से भरत शर्मा की आवाज आती..

“बन्हकी धराइल होंडा गाड़ी
हमार पिया मिलले जुआड़ी.”

फिर इन्हीं भरत शर्मा की ऊँगली थामकर निकले कुछ और गायक…जिनमे हमारे बलिया की शान मदन राय,गोपाल राय और रविन्द्र राजू जैसे गायक हैं…आज भी मेरे प्रिय गायक गोपाल राय गाते हैं…

“झुमका झुलनी चूड़ी कंगन हार बनववनी
उपरा से निचवा से तहके सजवनी
सोनरा के सगरो दोकान लेबु का हो
काहें खिसियाईल बाड़ू जान लेबू का हो..”

तो मन करता है कि इसी खरमास में कोई बढ़िया दिन देखकर बियाह कर ले और तब इस गाने की अगली लाइन सुनें…!

इसमें कोई शक नही है कि..आज भी भरत शर्मा के साथ-साथ मदन राय, गोपाल राय,विष्णु ओझा भोजपुरी के सर्वकालिक लोकप्रिय गायक हैं…कोई स्टार बने या बिगड़े..न इनका महत्व कभी कम हुआ,न ही होगा…आज भोजपुरी संगीत में जो कुछ भी सुंदर हैं..इन्हीं जैसे गायकों की देन है।

लेकिन आइये इधर..नब्बे का दशक बीत रहा था। ठीक उसी उसी समय एकदम लीक से हटकर एक और गायक कम नेता जी आ गए।

वो थे काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में बीपीएड की पढ़ाई कर रहे मनोज तिवारी ‘मृदुल’..दो शैली यहाँ हो गयी भोजपुरी में…एक भरत शर्मा व्यास वाली शैली थी…दूसरी थी मनोज तिवारी वाली शैली.

शर्मा जी वाली शैली में अभी भी गायत्री ठाकुर और व्यास शैली का प्रभाव था.लेकिन मनोज तिवारी ने लीक बदल दिया…

“लल्लन संगे खीरा खाली सुनें प्रभुनाथ गाली
घायल मनोज से बुझाली बगलवाली जान मारेली..”

गायकी के इस नए अंदाज नें युवाओं के बीच धूम ही मचा दिया। धीरे-धीरे इसमें स्टेज पर लेडिज डांसर के संग नृत्य का तड़का भी दिया जाने लगा। और ये क्रम लम्बा चला।

फिर साहेब आ जातें है सीधे 2002 में… मार्केट में आडियो और वीसीआर को चुनौती देने के लिए आ गया सीडी कैसेट। अब हाल ये हुआ कि टाउन डिग्री कालेज से मेलेट्री साइंस में बीए करके गाँव के मनोजवा,करिमना चट्टी-चौराहे पर सीडी की दुकानें खोलने लगे।

यहां तक कि चट्टी के गुप्त रोग स्पेशलिस्ट सुखारी डाक्टर के मेडिकल स्टोर पर भी फ़िल्म सीडी मिलने लगी। जहाँ सुविधानुसार हर तरह की फिल्में यानी लाल,पिली,नीली किस्म की फिल्में आसानी से मिल जातीं थीं।

मुझे याद नहीं कि नानी का गेंहू बेचकर भाड़े पर मिथुन चक्रवर्तीया और सनी देवला की कितनी फिल्में देखीं होंगी।

तब जिनके यहाँ गाँव में पहली दफा सीडी आई थी, उनके यहाँ बिजली आते ही मेला लग जाता था। इस माहौल को ध्यान रखते हुए उस समय भोजपुरी की म्यूजिक कम्पनियों ने एक नया ट्रेंड निकाला…वो था भोजपुरी म्यूजिक वीडियो सीडी…!

टी सीरीज तब भी इस मामले में नम्बर एक थी।

उसने मनोज तिवारी के सुपरहिट एल्बम बगल वाली,सामने वाली, ऊपर वाली, नीचे वाली, पूरब के बेटा, सबका वीडियो बना डाला..!

फिर हुआ क्या कि लोग जिसे आज तक आडियो में सुनते थे..और कैसेट के रैपर पर छपे गायक को बड़े ध्यान से देर तक देखते थे.. लोग उसे वीडियो में नाँचते-और झूमते देखने लगे।

इसी चक्कर में टी-सीरीज ने भरत शर्मा और मदन राय के तमाम पुराने गीतों का इतना घटिया फिल्मांकन कर दिया,जिसकी कल्पना आप नहीं कर सकते हैं.. वो घटिया इस मामले में कि गाने का भाव कुछ और तो वीडियो में कुछ और दिखाया जाने लगा।

तब तक आँधी की तरह असम से आ गई कल्पना..

“एगो चुम्मा ले लs राजाजी.. बन जाई जतरा..”

बिहार के भूतपूर्व संस्कृति मंत्री बिनय बिहारी जी के इस गीत ने मार्केट में तहलका मचा दिया और करीब एक साल तक इस गीत का जबरदस्त प्रभाव रहा।

इसी क्रम में…डायमंड स्टार गुडडू रंगीला,सुपर स्टार राधेश्याम रसिया और सुनील छैला “बिहारी” को याद करने के लिये मुझे अलग से लिखना पड़ेगा।

लेकिन आतें हैं..जिला गाजीपुर के दिनेश लाल यादव “निरहुआ..” पर….

“बुढ़वा मलाई खाला बुढ़िया खाले लपसी
केहू से कम ना पतोहिया पिए पेपसी “

दिनेश लाल के इस खांटी नए अंदाज को जनता नें हाथो-हाथ लिया। फिर क्या था ? टी-सीरिज ने झट से इस मौके को लपका और मार्किट में आ गया उनका अगला एल्बम….
“निरहुआ सटल रहे”

इस कैसेट के आते ही समूचे भोजपुरिया जगत में धूम मच गई..और हाल ये हुआ कि कुछ दिन पहले महज कुछ हजार लेकर घूम-घूम बिरहा गाने वाले दिनेश लाल यादव रातों-रात स्टार हो गए।

ठीक उसी समय कुलांचे भरने लगा आरा जिला का एक और सीधा-साधा सा गायक। आज दुनिया उसको पवन सिंह के नाम से भले जानती है,लेकिन पवन अपने शुरुवाती दिनों में सबसे खास किस्म के गायक हुआ करते थे।

शायद ईश्वर की कृपा..कुछ ही सालों में पवन की आवाज में निखार और भाव आना शुरू हुआ और वो मार्किट में टी सीरिज से वीडियो सीडी लेकर आ गए..

“खा गइलs ओठलाली”..

एकदम आर्केस्ट्रा के अंदाज में.. मूंछो वाले दुबले-पतले पवन सिंह एक्टिंग और डांस के नाम पर दाएं और बाएं हाथ को हिलाते हुए..गाते कि..

“रहेलाs ओहि फेरा में बहुते बाड़ा बवाली..”

तो हम जैसे सात में पढ़ने वाले लड़कों को भी इस बेचारे गायक पर तरस आता.. लेकिन “निरहुआ सटल रहे” की ऊब के बाद पवन ने मार्केट में एक नए किस्म का टेस्ट दे दिया..उनका एल्बम तब बजाया जाता,जब लोग “निरहुआ सटल रहे” दो-चार बार सुनकर ऊब जाते..

उधर समय बदला निरहुआ स्टार होकर फिल्मों में चले गए मनोज तिवारी स्टार हो चुके थे.. एक के बाद एक उनकी फिल्में सुपरहिट हो रहीं थीं..तब तक पवन सिंह फिर आ गए..

“कमरिया करे लपालप लॉलीपॉप लागेलू”

ज़ाहिद अख़्तर के लिखे इस एक गीत ने मार्केट में धूम मचा ही दिया…सिर्फ राष्ट्रीय नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ये आज भी भोजपुरी का सर्वाधिक लोकप्रिय गीत है, जिस पर हमें समझ नहीं आता कि गर्व करें या शर्म करें…!

लेकिन ठीक इसी गीत से शुरु हुआ भोजपुरी संगीत का “पवन सिंह युग उर्फ़ लॉलीपॉप युग”….जो लगातार पांच साल तक अनवरत चला।

देखते ही देखते पवन ने म्यूजिक का ट्रेंड ही बदल दिया।

एकदम बम्बइया सालिड डीजे टाइप का म्यूजिक…और हर एल्बम में हर वर्ग के लिए हर किस्म के गाने गाए..

ये दौर ऐसा चला कि नवरात्र हो या सावन,होली हो या चैता। जहाँ भी जाइए बस पवन सिंह,नही तो पवन सिंह टाइप के गानें….

हाल ये हुआ कि भोजपुरी मने पवन सिंह हो गया।

पवन ने कुछ साल तक एकक्षत्र राज किया और झट से फिल्मों में मनोज तिवारी, निरहुआ के बाद तीसरे गायक अभिनेता हो गए औऱ उनकी फ़िल्म आई..

“रंगली चुनरिया तोहरे नाम”

इसके बाद पवन की स्टाइल में कुछ बाल गायक भी पैदा हुआ…जैसे कल्लू और सनिया….

“लगाई दिही चोलिया में हुक राजा जी…और ओही रे जगहिया दांते काट लिहले राजा जी”.. ये एक साल तक खूब बजा..!

जिसका असर ये हुआ कि बड़े-बड़े लोग अपने बेटे-बेटी को पढ़ाई छुड़ा के अश्लील गायक बनाने लगे। खेत बेचके एल्बम की शूटिंग होने लगी।

क्योंकि लोगों के दिलो में ये बात समा गयी कि एक बार बेटा चमक गया तो हम जीवन भर बैठकर खाएंगे।

इधर पवन के फिल्मों की तरफ जानें के बाद कुछ ही साल में आ गए सिवान के खेसारी लाल यादव…एकदम देशी अंदाज.. शादी ब्याह में औरतों के गाए जाने वाले गीतों की धुन…उन्हीं के अंदाज में।

बस जरा अश्लीलता की छौंक और गवनई का तड़का..

अब जो पवन सिंह ने भोजपुरी को धूम-धड़ाका और डीजे में बदल दिया था..उसे खेसारी लाल ने एकदम देहाती संगीत यानी झाल, ढोलक, बैंजो,क्लीयोरनेट वाले युग की तरफ़ मोड़ दिया..

इस मुड़ाव के बाद हुआ क्या कि पांच साल से रस-परिवर्तन खोज रही जनता ने इसे भी हाथों-हाथ ले लिया.

कौन ऐसा भोजपुरिया कोना होगा “संइयाँ अरब गइले ना” नहीं बजा होगा..”

कौन ऐसा रिक्शा, ठेला, जीप, बस, ट्रक वाला नही होगा जो खेसारी के गीतों से अपनी मेमोरी को फूल न कर लिया होगा..

इधर कुछ सालों में फिर समय बदला है..मनोज तिवारी, निरहुआ, पवन सिंह के बाद खेसारी लाल यादव,राकेश मिश्रा,रितेश पांडेय,कलुआ सब फिल्मी दुनिया के हीरो हो गए हैं।

और इस ट्रेंड नें स्ट्रगल कर रहे भोजपुरिया गायकों के दिमाग एक बात भर दिया कि “गायकी में हीट तो फिलिम में फीट” अब हर भोजपुरी गायक खुद को गायक नहीं हीरो मानने लगा है।

इधर आडियो गयावीडियो सीडी गया.. हाथों-हाथ आ गया स्मार्ट फोन.. पेनड्राइव, लैपटाप, डाऊनलोड और डिलीट।पन्द्रह सेकेंड के शॉर्ट्स वीडियोज और रील का जमाना..

इसी चक्कर में भोजपुरी की म्यूजिक इंडस्ट्री भी एकदम से बदल गयी है। कई छोटी म्यूजिक कम्पनियां बिक गयीं।

कारण बस ये कि आज हर जिले में एक दर्जन म्यूजिक कम्पनी हैं तो डेढ़ दर्जन रिकॉर्डिंग स्टूडियोम जिनमें हर जिले के हज़ारों भोजपुरी गायक गा रहे हैं, तो क़रीब लाख अभी रियाज कर रहें हैं।

हर गांव में पच्चीस गायक अभिनेता हैं.. जो एक घण्टे में हिट होकर मनोज,निरहुआ, पवन और खेसारी की तरह मोनालिसा के कमर में हाथ डालना चाहतें हैं।

इस हीरो बनने के चक्कर में इनके गाने सुनिए तो वो सीधे सम्भोग से शुरू होते हैं और सम्भोग पर ही आकर खत्म हो जातें हैं.. यानी “तेल लगा के मारम, त पीछे से फॉर देम, त तहरा चूल्हि में लवना लगा देम, त सकेत बा ए राजा अब ना जाइ.त खोलs की ढुकाइ….!

ये छोटी सी बानगी भर है…. यू ट्यूब खोलिये तब आपको पता चले कि जो जितना नीचे गिर सकता है.. उतना ही वो सुपरहिट है..

इसका बस एक ही कारण है..वो है “व्यूज”

आज भोजपुरी में सफलता का मानक मिलियन व्यूज बन गया है। किसका कौन सा गाना कितनी देर यू ट्यूब इंडिया की टाइम लाइन पर ट्रेडिंग में हैं.. ये तय कर रहा है।

किस गीत पर कितने मिलियन शॉर्ट्स वीडियोज और रील बन रहे हैं… ये कर रहा है।

और इस मिलियन व्यूज की सत्ता उन लोगों के हाथ मे चली गई है जो सामान्यतः अनपढ़ हैं..

इन्हें न भोजपुरी की लोक संस्कृति का ज्ञान है,न ही संस्कारों का…न ही अपने घर से डर है,न ही समाज से।

इनके लिए हर हाल में व्यूज महत्वपूर्ण है।

इस खेल में पहले सिर्फ टी सीरीज और वीनस थी,अब बड़े बड़े कारपोरेट इसमें कूद पड़े हैं। सबको हर हाल में व्यूज चाहिए।

इनको हर हफ़्ते गाने बनाने हैं…हर हफ्ते चैनल के इंगेजमेंट बढाने हैं..

तो हर हफ़्ते नया मसाला चाहिए…

इसलिए अब सारी बड़ी कंपनीयाँ उसी गीत-संगीत में पैसा लगाना चाहतीं हैं जो इंटरनेट पर जल्दी-जल्दी पापुलर हो जाए। जिसको अपना यू टयूब चैनल बड़ा करना है..उसकी जरूरत ये भोजपुरी स्टार पूरी करते हैं..

आज एक-एक गीत गाने के तीन से पाँच लाख रुपये मिल रहे हैं..

म्यूजिक कम्पनियो की चांदी का समय अब आया है।

इस कम्पटीशन में एक-एक गाने ने दस-दस लाख रुपये खर्च हो रहें हैं…

यू ट्यूब पर ताजा आया खेसारी का गीत “चाची के बाची” और “खेसरिया के बेटी” इसी व्यूज के भेड़ियाधसान से निकली एक घटना है।

भोजपुरी के एक लाख गायक जो स्टार बनने का सपना पाले हुए हैं.. वो यही काम कर रहें हैं..

व्यूज लाने के लिए कुछ भी गाने का काम..

जिसे सुनकर आप कहेंगे कि हाय ! ये महेंद्र मिसिर, भिखारी ठाकुर.. भरत शर्मा और शारदा सिन्हा मदन राय और गोपाल राय की भोजपुरी को क्या हो गया ?

लेकिन समाधान कैसे होगा ?

जी समाधान तो तब होगा,जब इन्हीं के अंदाज में इन्हीं के हथियारों से इन्हीं के खिलाफ इनसे लड़ा जाएगा..लेकिन लड़ाई होगी तो कैसे.. महज दो-चार लोग.. इन लाखों का सामना कैसे करेंगे..?

ये भी हो सकता था।

लेकिन कौन समझाने जाए,हर जनपद में बने उन भोजपुरी अस्मिता के तथाकथित संगठनों को,जिनमें दूर-दूर तक कहीं एकता नहीं है। कोई किसी के प्रयास को बर्दास्त नहीं कर सकता है।

दरअसल इनकी गलती भी नहीं है। भोजपुरी के नाम पर बने ये संगठन छठ घाट पर भोजपुरी की अस्मिता से ज्यादा व्यक्तिगत राजनीति चमकाने वाली दूकान बनकर रह गए हैं।

भोजपुरी बुद्धिजीवियों और भोजपुरीया अनपढ़ गायकों की संयुक्त मार से आहत है।

बुद्धिजीवी ये समझते हैं कि समस्त भोजपुरी बेल्ट की जनता उनकी तरह ही बुद्धिजीवी हैं..ये अनपढ़ ये समझते हैं..की सब लोग मूर्ख हैं… चाची के बाची में क्या बुराई है ?

अब चाची के बाची वालों ने अपनी बर्बादी की तरफ कदम रख दिया है।

लेकिन उनको रिप्लेस कौन करेगा… कैसे होगा ?

किसी को पता नहीं… ये अलग विषय है,जिस पर एक अलग से लेख लिखूँगा…

बस आपको और हमको..सबको मिलकर बेहतर और साफ़-सुथरा कंटेंट प्रमोट करना पड़ेगा..क्योंकि आज भी अच्छा सुनने वालों की कमी नहीं है…

वरना भोजपुरी तो अश्लीलता का पर्याय बन ही चुकी है…

आज नही तो कल, संविधान की आठवी अनुसूची में भी शामिल हो हो जाएगी,लेकिन फायदा क्या होगा जब भोजपुरी में भोजपुरी गायब हो जाएगी।शरीर से आत्मा ही निकल जाएगी.और रह जायेगा मृतक शरीर के रूप में अश्लीलता.सिर्फ अश्लीलता…!

( लेखक अनूप नारायण सिंह वरिष्ठ फिल्म पत्रकार व फिल्म सेंसर बोर्ड कोलकाता रीजन एडवाइजरी कमिटी के सदस्य हैं)

बिहार में एक मंदिर ऐसा भी है जहाँ 11 शिवलिंग विराजमान है।

#एकादशरूद्र_शिव
बिहार का एक एेसा अनोखा शिवालय है जहां एक साथ ग्यारह शिवलिंग की पूजा की जाती है। यहां ग्यारह शिवलिंग एक साथ विराजमान है। जिला मुख्यालय से पांच किलोमीटर दूर राजनगर प्रखंड क्षेत्र का मंगरौनी गांव प्राचीन काल से तंत्र विद्या के साधकों लिए प्रसिद्ध रहा है। इस गांव में प्राचीन शक्तिपीठ बूढ़ी माई मंदिर, भुवनेश्वरी देवी मंदिर अवस्थित हैं। माता भुवनेश्वरी मंदिर के बगल में ही अपने आप में अद्भुत एकादशरूद्र शिव विराजमान हैं।लगभग आठ फुट लंबे व पांच फुट चौड़ाई में बनी एक ही पीठिका (जलढरी) पर शिव के 11 रूपों के रूप में11 शिवलिंग स्थापित हैं। पड़ोसी देश नेपाल सहित राज्य व राज्य के बाहर से शिवभक्त एक ही पीठिका पर विराजमान इन 11 अद्भुत शिवलिंगों के दर्शन, पूजन को पुहंचते हैं। सावन माह में तो यहां की छटा ही निराली हो उठती है। इनके दर्शन मात्र से मन को पूर्ण शांति मिल जाती है।यह शिवालय श्रद्धालुओं की असीम श्रद्धा का केंद्र है। इसकी स्थापना 1954 ई. में बाबूसाहेब जगदीश नंदन चौधरी ने की थी। यहां कांची कामकोटि के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती व पुरी के शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती भी आकर पूजा कर चुके हैं। इन शंकराचार्यों ने भी यहां की महिमा का भरपूर बखान किया था। मंदिर गुंबदनुमा है। परिसर में नेपाल के एक शिवभक्त द्वारा लकड़ी का बनाया दो मंजिला भवन है। हालांकि अब यह जीर्ण-शीर्ण हो चुका है। कहा जाता है कि पूर्व में इसमें तंत्र विद्या, ज्योतिष के शिक्षार्थी रहते थे। मंदिर से पूरब चातुश्चरण यज्ञ किया तालाब है।

11 Shivling Temple in Bihar

तालाब के पश्चिमी घाट के पीछे श्राद्ध स्थली है। ऐसी मान्यता है कि बहुत से गरीब लोग अपने पितरों का गया में श्राद्ध करने की इच्छा रहने के बाद भी नहीं जा पाते थे। उनके लिए यहां तंत्र विद्या से अभिसंचित श्राद्ध स्थली बनाई गई। यहां पिंडदान करने पर गया जाने जैसा फल मिलता है। शिवमंदिर के सामने पंडित मुनेश्वर झा जो तंत्र साधक थे द्वारा स्थापित भगवती भुवनेश्वरी एक मंदिर में विराजमान हैं।सावन में यहां हजारों की संख्या में शिव भक्त पहुंचते हैं। यहां बाबूबरही के पिपराघाट स्थित कमला, बलान व सोनी के संगम से जल लेकर कांवरिए आते हैं। कांवरियों की सुविधा के लिए सावन की प्रत्येक सोमवारीको चार बजे दिन तक जलाभिषेक की व्यवस्था रहती है। चार से साढ़े छह बजे तक षोडषोपचार पूजा की जाती है। बाबा भोलेनाथ का श्रृंगार नयनाभिराम होता है।

11 Shivling Temple in Bihar

ऐसे पहुंचें मंगरौनी

मधुबनी जिला मुख्यालय से लगभग पांच किमी की दूरी पर यह शिवालय है। आप मधुबनी रेलवे स्टेशन या बस स्टैंड से रिक्शा, ऑटो या निजी वाहन से मंदिर परिसर तक पहुंच सकते हैं। कहा-पुजारी आत्माराम ने ‘यहां आने वाले भक्तों की हरेक मनोकामना बाबा एकादशरूद्र पूरी करते हैं। इन शिवलिंगों के स्पर्श मात्र से मन को अद्भुत शांति मिलती है। महाशविरात्रि में मिथिला पंरपरा के अनुसार शिव-पार्वती विवाह का आयोजन होता है। यहां की परंपरा के अनुसार चार दिन तक विशेष विवाह श्रृंगार कादर्शन शिवभक्त करते हैं।चौथे दिन यह श्रृंगार हटा कर शिवलिंग की विशेषपूजा की जाती है। प्रत्येक सोमवार को होने वाले यहां के भंडारा में जो भोजन करता है वह पेट रोग से मुक्त हो जाता है। यहां एक साथ शिव के विभिन्न रूपों का दर्शन शिवभक्तों को अलौकिक आनंद देता है।’

बिहार में खुल गया 8 वीं तक का स्कूल

आज बिहार में कक्षा 1 से 8 तक का स्कूल खुल गया है
कोरोना की दूसरी लहर के दौरान राज्य सरकार ने प्राथमिक विधालय से लेकर कॉलेज तक को बंद कर दिया था ।
कोरोना का लहर कमजोर पड़ने पर जुलाई में राज्य सरकार ने कॉलेज और 11 वीं तक की कक्षा को खोल दिया था और आज से कक्षा 1 से 8 वीं तक का स्कूल आज यानी 16 अगस्त से खुल गया । छोटे बच्चों के स्कूलों को लेकर सरकार ने सुरक्षा को लेकर विशेष सावधानी के निर्देश दिए हैं। नए आदेश के तहत बच्चों से शिक्षक की दूरी पर भी विशेष ध्यान देने को कहा गया है। बुक से लेकर बच्चों की अन्य पाठ्य सामग्री को हाथ लगाने से पहले शिक्षक को हैंड सैनिटाइजर का इस्तेमाल करना होगा।
जो भी स्कूल इस आदेश का अनुपालन नहीं करेगा उस पर कठोर कारवाई की जायेगी ।