ओपिनियन पोल हो या फिर Exit Poll हो मेरा मानना है कि जिन्हें प्रदेश के जातिगत समीकरण के साथ साथ समाजिक समीकरण और सरकार की योजनाओं की समझ है उन्हें मतदाताओं का नब्ज पकड़ने में कोई खास परेशानी नहीं होती है, सब कुछ स्पस्ट दिखता है ।
यूपी को लेकर जो Exit Poll सामने आ रहे हैं वो दिखता है कि बीजेपी बड़े बहुमत के साथ सरकार में वापसी कर रहा है ऐसे में यह सवाल उठना लाजमी है कि बेरोजगारी ,मंहगाई ,किसान आन्दोलन,कोरोना के दौरान लोगों की परेशानी सब बेमानी था ऐसा नहीं हुआ होगा उसका भी असर जरुर पड़ा होगा लेकिन इसी आधार पर चुनावी नतीजे सामने आये ये जरुरी नहीं है ।
हालांकि मेरा मानना है कि 4 वर्ष 11 माह सरकार के कामकाज को लेकर वोटर जो सोचता है उसमें एक माह का प्रचार अभियान, पार्टियों द्वारा उम्मीदवारों का चयण और जातिगत समीकरण आज भी मंहगाई ,बेरोजगारी,बेहतर शिक्षा ,बेहतर अस्पताल, विकास और लाभुक योजना जैसे सारे ऐसे मुद्दे जिसको लेकर जनता 4 वर्ष 11 माह सोचती रहती है वो निष्प्रभावी हो जाता है।
याद करिए 1977 में सारा देश कांग्रेस के आपातकाल के खिलाफ था वही दक्षिण भारत पूरी तौर पर कांग्रेस के साथ खड़ा रहा ।1989 का चुनाव परिणाम को ही देख लीजिए पूरे उत्तर भारत से कांग्रेस साफ हो गया और इस बार फिर दक्षिण भारत कांग्रेस के साथ खड़ा रहा ।
2019 के लोकसभा चुनाव को ही देखे हिन्दू मुसलमान और पुलवामा की घटना के बावजूद पश्चिम बंगाल, ओडिशा ,पंजाब सहित दक्षिण के कई राज्यों में बीजेपी का प्रभाव उस तरीके से नहीं रहा जैसे हिन्दी पट्टी में देखने को मिला था इसलिए चुनाव परिणाम के पीछे बहुत सारे कारण होते हैं जिसमें तात्कालिक कारण भी कम महत्वपूर्ण नहीं होता है ।
1–बीजेपी चुनाव लड़ने में हमेशा मजबूत रही है
ऐसा नहीं है कि मोदी और शाह के आने से बीजेपी के चुनाव लड़ने के तरीके में बड़ा बदलाव आ गया है और इस वजह से विपक्ष बीजेपी की रणनीति के सामने टिक नहीं पा रही है।बात 1991 के लोकसभा चुनाव का है रोसड़ा लोकसभा क्षेत्र से रामविलास पासवान जनता दल से और बीजेपी से कामेश्वर चौपाल चुनाव लड़ रहे थे इस चुनाव में बीजेपी का वार रुम मेरे यहां ही था मुझे पैसा से भरा ब्रीफकेस पहली बार देखने को मिला था ।
उस चुनाव में गुजरात ,राजस्थान,दिल्ली ,मध्यप्रदेश,यूपी ,महाराष्ट्र के अलावे हिन्दू धर्म से जुड़े जीतने भी पीठ और मठ हैं उनके महंथ इस चुनाव के दौरान आये हुए थे कोई खाली हाथ नहीं आ रहा था साथ ही हर किसी के साथ पांच से दस कार्यकर्ता आया था जो चुनाव तक गांव गांव में घूमता रहा।
पैसे का आना इस कदर था कि संघ के दर्जनो अधिकारी ब्रीफकेस संभालने और पैसे के वितरण में ही 24 घंटे लगे रहते थे चुनाव आते आते रुम का रुम ब्रीफकेस से भर गया था और उतना ही कार्यकर्ता,रोसड़ा लोकसभा क्षेत्र का कौन सा ऐसा गांव नहीं था जहां बीजेपी के बाहरी कार्यकर्ता प्रचार में नहीं लगे हुए थे उस दौर में बीजेपी सर्वे करवा रही थी।
बीजेपी का कौन ऐसा नेता नहीं था जो प्रचार में नहीं आया वजह यह भी था कि कामेश्वर चौपाल रामजन्मभूमि का शिलान्यास किये थे और सामने रामविलास पासवान चुनाव लड़े रहे थे,चुनाव प्रचार देख कर लग ही नहीं रहा था कि रामविलास पासवान चुनाव जीत भी पायेंगे और जब रिजल्ट आया तो कामेश्वर चौपाल का जमानत जप्त हो गया इसलिए ये कहना कि भाजपा चुनाव मोदी और शाह युग में हाईटेक और पैसे वाला हो गया है ऐसा नहीं है इस मामले में बीजेपी शुरुआती दिनो से ही नम्बर वन रही है ।
प्रबंधन और पैसा से ही चुनाव जीता जाता तो 1991 में कामेश्वर चौपाल का जमानत जप्त नहीं होता फिर 2015 का बिहार विधानसभा चुनाव बीजेपी बूरी तरह से नही हारती या फिर पश्चिम बंगाल का चुनाव वो नहीं हारती बीजेपी अजय नहीं है मोदी और शाह की जोड़ी लगातार कमजोर हो रही है ये भी साफ दिख रहा है और इसकी वजह बेरोजगारी भी है, मंहगाई भी है और किसान आन्दोलन भी है ।
2—महिला वोटर और लाभकारी योजनाओं के सहारे जीत के दावे में कितना है दम
प्रधानमत्री आवास योजना ,अनाज योजना और किसान सम्मान योजना के साथ साथ पेशन योजना जिसका सीधा लाभ वोटर को मिल रहा है इसको लेकर कहां ये जा रहा है कि बीजेपी का यह तुरुप का इक्का है और यूपी में बड़े जीत के पीछे यही वजह रहेगी ।
अगर ऐसा होता तो 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी जदयू को करारी हार का सामना नहीं करना पड़ता ,आज पीएम जिस योजना के सहारे जनता के दिल पर राज करने कि बात कर रहे हैं वो सारी योजनाएं पहले से बिहार में चली आ रही है सरकारी योजनाओं का व्यक्तिगत लाभ की बात करे तो नीतीश जैसा देश में कोई दूसरा शासक नहीं होगा ।लेकिन 2020 के चुनाव में वो तीसरे नम्बर पर पहुंच गये वजह एनडीए से लोजपा का अलग होना रहा वही महिला वोटर के आगे आने से नीतीश जीत जाते हैं ये सारे तर्क भी बेमानी साबित हो गया 2020 के चुनाव में ।
चुनाव अभी भी जातीय समीकरण के आस पास ही घूम रहा है जो पार्टी जितने बेहतर तरीके से जातीय राजनीति को साधता है वो चुनाव जीत रहा है यही चुनावी केमिस्ट्री है और इसको गोलबंद करने के लिए जैसे बिहार में अंतिम चरण का चुनाव आते आते जगंल राज का मुद्दा भुनाने में नीतीश और मोदी कामयाब हो गये औऱ बिहार हारते हारते जीत गये क्यों कि यहां ना हिन्दू मुसलमान चला ना भारत पाकिस्तान चला अंत में जगलराज पर दाव लगाये और उसमें वो कामयाब हो गये क्यों कि जगलराज के प्रभावित वोटर मतदान केन्द्र पर जाते जाते सुरक्षा के सामने सभी परेशानी को भुल गये ।यूपी में भी चार फेज के बाद मोदी और योगी इसी लाइन पर आ गये थे यही देखना है कि इसका कितना असर पड़ा है रिजल्ट पर पड़ेगा क्यों कि बीजेपी का सारा दाव फेल कर चुका है अब यही मुद्दा है जिसके सहारे बीजेपी लड़ाई में दिख रहा है ।
3–यूपी का चुनाव परिणाम मोदी शाह के लिए वॉटरलू साबित होगा
वैसे यूपी का चुनाव परिणाम कुछ भी हो मोदी और शाह के लिए यूपी का चुनाव वॉटरलू साबित होगा यह तय है योगी आये तो मोदी और शाह की विदाई तय है योगी नहीं आये फिर भी मोदी और शाह की विदाई तय है क्यों कि यूपी चुनाव में बीजेपी के अंदर जो घमासान मचा था उसका असर यूपी के साथ साथ राजस्थान,बिहार,मध्यप्रदेश ,जैसे हिन्दी पट्टी पर पड़ेगा यह साफ दिख रहा है विरोध का स्वर उठेगा और इन दोनो के एकाधिकार पर पार्टी के अंदर से ही आवाज उठेगी यह भी तय है ।