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Bihar News in Hindi: The BiharNews Post - Bihar No.1 News Portal

पटना हाइकोर्ट ने राज्य के पूर्व कैबिनेट मंत्री शंकर प्रसाद टेकरिवाल के निधन के 10 साल बाद सहरसा पुलिस ने उन्हें मिले सरकारी गार्ड और अंगरक्षक के एवज में 18 लाख रुपये से अधिक की राशि नीलाम पत्र के जरिये वसूलने की कार्रवाई पर रोक लगा दिया

पटना हाइकोर्ट ने राज्य के पूर्व कैबिनेट मंत्री शंकर प्रसाद टेकरिवाल के निधन के 10 साल बाद सहरसा पुलिस ने उन्हें मिले सरकारी गार्ड और अंगरक्षक के एवज में 18 लाख रुपये से अधिक की राशि नीलाम पत्र के जरिये वसूलने की कार्रवाई पर रोक लगा दिया।जस्टिस राजीव रंजन प्रसाद ने इस मामलें पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार से जवाब तलब किया है।

कोर्ट ने प्रभाकर टेकरीवाल की रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए ये आदेश दिया।

याचिकाकर्ता के तरफ से वरीय अधिवक्ता रामाकांत शर्मा ने कोर्ट को बताया की यह मामला सरकारी अफसरशाही के मनमानापन दर्शाता है। एक दिवंगत कैबिनेट मिनिस्टर जिन्हें सरकार की तरफ से अंगरक्षक और हाउस गार्ड मिला , उसके बदले सरकारी राशि वसूलने की कार्रवाई एक मजाक नहीं बल्कि सरकारी अफसरों द्वारा निर्दोष नागरिकों से जबरन पैसे वसूलने अथवा उनकी संपत्ति को लूटने की कार्रवाई है ।

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शर्मा ने कोर्ट को बताया कि शंकर प्रसाद टेकारिवाल 1990 से लेकर फरवरी 2005 तक सहरसा से लगातार विधायक रहे और 12 वर्षों तक वित्त, खनन एवं अन्य विभाग के मंत्री रहे उनके मंत्रीमंडल में रहने के समय राज्य सरकार ने उन्हें तीन अंगरक्षक और हाउस गार्ड दिया था।

2002 में रावड़ी सरकार से उन्होंने इस्तीफा देने के बाद जब वह सहरसा अपने गृह क्षेत्र गए ,तो उन्होंने अपने हाउस गार्ड और दो अंग रक्षकों को सरकार को लौटा दिया और विधायकों को मिलने वाले एक बॉडीगार्ड को भी उन्होंने, फरवरी 2005 में विधायकी कार्य काल पूरा होने पर वापस भेज दिया था।

उनका निधन 2012 में हुआ और उसके 10 साल बाद सहरसा के तत्कालीन एसपी ने मनमाने तरीके से स्व. टेकरीवाल को1998 से 2005 तक दिए गए एक अंगरक्षक मुहैय्या कराने के लिए लगभग 18 लाख रुपये की राशि बकाया बताते हुए स्व शंकर प्रसाद टेकरीवाल के बेटे प्रभाकर टेकरीवाल से वसूलने की कार्रवाई नीलाम वाद के जरिये शुरू किया।

जस्टिस रंजन ने हैरानी जताते हुए पूरी नीलाम वाद पर रोक लगाने का आदेश दिया।मामलें पर आगे सुनवाई होगी।

बिहार सरकार ने पटना हाइकोर्ट के उस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, जिसमें कोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा राज्य में जातियों की गणना एवं आर्थिक सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर शीघ्र सुनवाई करने सम्बन्धी याचिका को रद्द कर दिया था

राज्य सरकार ने पटना हाइकोर्ट के उस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी,जिसमें कोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा राज्य में जातियों की गणना एवं आर्थिक सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर शीघ्र सुनवाई करने सम्बन्धी याचिका को रद्द कर दिया था।साथ ही राज्य सरकार ने पटना हाइकोर्ट द्वारा 4 मई, 2023को पारित अंतरिम आदेश को भी चुनौती दी गई है।

चीफ जस्टिस के वी चन्द्रन की खंडपीठ ने राज्य सरकार के 3 जुलाई,2023 के पूर्व सुनवाई करने की याचिका को कोर्ट ने 9मई,2023 को सुनवाई करने के बाद खारिज कर दिया था।

इस आदेश विरुद्ध को राज्य सरकार ने एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर कर की है।पटना हाइकोर्ट ने इन मामलों पर सुनवाई की तिथि 3 जुलाई,2023 ही रखा। 9 मई, 2023 को सुनवाई करने के बाद हाईकोर्ट ने इन मामलों पर सुनवाई की तिथि 3 जुलाई,2023 ही निश्चित किया था।

गौरतलब कि पहले 4मई,2023 को कोर्ट ने अंतरिम आदेश देते हुए जातीय जनगणना पर रोक लगा दी थी।चीफ जस्टिस के वी चन्द्रन की खंडपीठ ने अंतरिम आदेश पारित करते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि राज्य सरकार इस दौरान इक्कठी की गई आंकड़ों को शेयर व उपयोग फिलहाल नहीं करेगी।

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पटना हाइकोर्ट में राज्य सरकार द्वारा दायर याचिका में ये कहा गया था कि क्योंकि पटना हाइकोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि राज्य सरकार के पास जातीय जनगणना कराने का वैधानिक अधिकार नहीं है,इसीलिए इन याचिकाओं पर 3 जुलाई,2023 को सुनवाई करने का कोई कारण नहीं है।

साथ ही कार्यपालिका के पास जातीय जनगणना कराने का क्षेत्राधिकार नहीं है।इसे कोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में स्पष्ट कर दिया था।

कोर्ट ने ये भी कहा था कि जातीय जनगणना से जनता की निजता का उल्लंघन होता है।इस सम्बन्ध में विधायिका द्वारा कोई कानून भी नहीं बनाया गया है।

कोर्ट ने अपने 4 मई, 2023 के अंतरिम आदेश में जो निर्णय दिया है,उसमें सभी मुद्दों पर अंतिम निर्णय दिया गया।कोर्ट ने इन याचिकाओं में उठाए गए मुद्दों पर अंतिम रूप से निर्णय दे दिया है।

राज्य सरकार ने अपनी याचिका में कहा था कि इस सर्वेक्षण का मुख्य उद्देश्य आम लोगों के लिए कल्याणकारी और विकास की योजना तैयार है।इसका किसी अन्य कार्य के लिए कोई उद्देश्य नहीं है।

पटना हाइकोर्ट में पटना-गया-डोभी राष्ट्रीय राजमार्ग के निर्माण के मामलें पर सुनवाई गर्मी की छुट्टी बाद की जाएगी

पटना हाइकोर्ट में पटना गया डोभी राष्ट्रीय राजमार्ग के निर्माण के मामलें पर सुनवाई गर्मी की छुट्टी बाद की जाएगी।। चीफ जस्टिस के वी चंद्रन की खंडपीठ प्रतिज्ञा नामक संस्था द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही है।

पिछली सुनवाई में कोर्ट ने एन एच ए आई के क्षेत्रीय अधिकारी को हलफनामा दायर कर प्रगति रिपोर्ट देने का निर्देश दिया था। कोर्ट ने निर्माण कम्पनियों को बताने को कहा था कि निर्माण कार्य कब तक पूरा हो जाएगा।

पूर्व की सुनवाई में भी कोर्ट ने केंद्र,राज्य सरकार,एनएचएआई और अन्य सम्बंधित पक्षों को हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया था।

पटना गया डोभी राष्ट्रीय राजमार्ग के निर्माण कार्य कर रही कम्पनियों ने कोर्ट को बताया था कि 31मार्च,2023 तक फेज एक का अधिकांश कार्य पूरा कर लिया जाएगा।साथ ही इस राजमार्ग के निर्माण कार्य को लगभग 30 जून, 2023 तक पूरा कर लिए जाने का अश्वासन दिया था।

याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता मनीष कुमार ने कोर्ट को बताया था कि जिस गति से काम किया जा रहा है, ऐसे में तय समय सीमा में निर्माण कार्य पूरा होना कठिन है।उन्होंने बताया था कि तय समय सीमा में कार्य पूरा करने के लिए संसाधनों और कार्य करने वाले लोगों की संख्या बढ़ाने की जरूरत होगी।

इससे पूर्व अधिवक्ताओं की टीम ने खंडपीठ के समक्ष पटना गया डोभी एनएच का निरीक्षण कर कोर्ट में रिपोर्ट प्रस्तुत किया था।पूर्व की सुनवाई में कोर्ट ने वकीलों की टीम को इस राजमार्ग के निर्माण कार्य का निरीक्षण कर रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा था।

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पिछली सुनवाई में भी राष्ट्रीय राजमार्ग का निर्माण करने वाली कंपनी ने इसका निर्माण कार्य 30 जून,2023 तक पूरा करने का अश्वासन कोर्ट को दिया था।साथ ही कोर्ट ने इस फेज के निर्माण में बाधा उत्पन्न होने वाले सभी अवरोधों को तत्काल हटाने का निर्देश सम्बंधित अधिकारियों को दिया था।

कोर्ट को पटना गया डोभी राष्ट्रीय राजमार्ग के फेज दो व तीन के निर्माण में लगी निर्माण कंपनी ने बताया था कि पटना गया डोभी एनएच के निर्माण में कई जगह बाधा उत्पन्न किया जा रहा है।

इस मामलें पर अगली सुनवाई गर्मी की छुट्टी के बाद की जाएगी।

पटना हाइकोर्ट ने राज्य में लोकायुक्त व अन्य सदस्यों के रिक्त पदों को भरने के दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की

पटना हाइकोर्ट ने राज्य में लोकायुक्त व अन्य सदस्यों के रिक्त पदों को भरने के दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की।विकास चन्द्र ऊर्फ गुड्डू बाबा की जनहित याचिका पर चीफ जस्टिस के वी चन्द्रन की खंडपीठ ने सुनवाई की।

राज्य सरकार की ओर से एडवोकेट जनरल पी के शाही ने कोर्ट को बताया कि राज्य में लोकायुक्त व अन्य सदस्यों के रिक्त पदों को भरे जाने की प्रक्रिया शुरू हो गई है।उन्होंने कहा कि शीघ्र ही इन पदों पर नियुक्ति कर ली जाएगी।

पिछली सुनवाई में याचिकाकर्ता विकास चंद्र ने कोर्ट को बताया था कि लोकायुक्त व सदस्यों के पद रिक्त होने के कारण लोकायुक्त कार्यालय में सुनवाई नहीं हो रही है।इससे आम आदमी को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।

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उन्होंने कोर्ट को बताया था कि लोकायुक्त का पद 13 फरवरी,2022और दो सदस्यों का पद 17 मई,2021 से रिक्त पड़े है।

उन्होंने कोर्ट को बताया था कि राज्य सरकार द्वारा इन रिक्त पदों को इतने दिनों तक नहीं भरा जाना उनकी उपेक्षापूर्ण रवैया दिखाता है।प्रावधानों के अनुसार इन पदों को राज्य सरकार द्वारा शीघ्र भरा जाना चाहिए।

कोर्ट ने एडवोकेट जनरल पी के शाही के दिए गए आश्वासन के आलोक में इस जनहित याचिका को निष्पादित कर दिया।

बिहार सरकार की याचिका खारिज: पटना हाइकोर्ट ने बिहार सरकार द्वारा राज्य में जातियों की गणना एवं आर्थिक सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 3 जुलाई,2023 के पूर्व ही सुनवाई करने के दायर याचिका को खारिज कर दिया

पटना हाइकोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा राज्य में जातियों की गणना एवं आर्थिक सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 3 जुलाई,2023 के पूर्व ही कोर्ट द्वारा सुनवाई करने के लिए दायर याचिका को खारिज कर दिया। चीफ जस्टिस के वी चन्द्रन की खंडपीठ ने इन मामलों पर सुनवाई की तिथि 3 जुलाई,2023 ही रखा।पूर्व में हाईकोर्ट ने इन मामलों पर सुनवाई की तिथि 3 जुलाई,2023 ही रखा था।

गौरतलब कि पहले 4मई,2023 को कोर्ट ने अंतरिम आदेश देते हुए जातीय जनगणना पर रोक लगा दी थी।

चीफ जस्टिस के वी चन्द्रन की खंडपीठ ने अंतरिम आदेश पारित करते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि राज्य सरकार इस दौरान इक्कठी की गई आंकड़ों को शेयर व उपयोग फिलहाल नहीं करेगी।

राज्य सरकार द्वारा दायर याचिका में ये कहा गया है कि क्योंकि पटना हाइकोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि राज्य सरकार के पास जातीय जनगणना कराने का वैधानिक अधिकार नहीं है,इसीलिए इन याचिकाओं पर 3 जुलाई,2023 को सुनवाई करने का कोई कारण नहीं है।

कार्यपालिका के पास जातीय जनगणना कराने का क्षेत्राधिकार नहीं है।इसे कोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में स्पष्ट कर दिया है।

कोर्ट ने ये भी कहा कि जातीय जनगणना से जनता की निजता का उल्लंघन होता है।इस सम्बन्ध में विधायिका द्वारा कोई कानून भी नहीं बनाया गया है।

कोर्ट ने अपने 4 मई, 2023 के अंतरिम आदेश में जो निर्णय दिया है,उसमें सभी मुद्दों पर अंतिम निर्णय दिया गया।कोर्ट ने इन याचिकाओं में उठाए गए मुद्दों पर अंतिम रूप से निर्णय दे दिया है।

राज्य सरकार ने अपनी याचिका में कहा था कि इन जनहित याचिकाओं में उठाए गए मुद्दों पर कोर्ट ने अपना निर्णय अंतिम रूप से दे दिया है।इस कारण इन याचिकाओं की सुनवाई 3 जुलाई,2023 के पूर्व ही करके इनका निष्पादन कर दिया जाए।लेकिन कोर्ट ने राज्य सरकार की इस याचिका को रद्द करते हुए सुनवाई की तिथि 3मई, 2023 ही निश्चित किया है।

याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता दीनू कुमार, रितिका रानी, अभिनव श्रीवास्तव और राज्य सरकार की ओर से एडवोकेट जनरल पी के शाही ने पक्षों को कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किया

बिहार में जातियों की गणना एवं आर्थिक सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर पटना हाइकोर्ट में 9 मई, 2023 को सुनवाई होगी

पटना हाइकोर्ट में राज्य सरकार द्वारा राज्य में जातियों की गणना एवं आर्थिक सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 3 जुलाई,2023 के पूर्व ही कोर्ट द्वारा सुनवाई करने के लिए याचिका दायर की गई थी। पटना हाईकोर्ट इन मामलों कल 9 मई, 2023 को सुनवाई करेगी। गौरतलब कि पहले कोर्ट ने अंतरिम आदेश देते हुए जातीय जनगणना पर रोक लगा दी थी।

चीफ जस्टिस के वी चन्द्रन की खंडपीठ ने अंतरिम आदेश पारित करते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि राज्य सरकार इस दौरान इक्कठी की गई आंकड़ों को शेयर व उपयोग फिलहाल नहीं करेगी।

राज्य सरकार द्वारा दायर याचिका में ये कहा गया है कि क्योंकि पटना हाइकोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि राज्य सरकार के पास जातीय जनगणना कराने का वैधानिक अधिकार नहीं है,इसीलिए इन याचिकाओं पर 3 जुलाई,2023 को सुनवाई करने का कोई कारण नहीं है।

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कार्यपालिका के पास जातीय जनगणना कराने का क्षेत्राधिकार नहीं है।इसे कोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में स्पष्ट कर दिया है।

कोर्ट ने ये भी कहा कि जातीय जनगणना से जनता की निजता का उल्लंघन होता है।इस सम्बन्ध में विधायिका द्वारा कोई कानून भी नहीं बनाया गया है।

कोर्ट ने अपने 4 मई, 2023 के अंतरिम आदेश में जो निर्णय दिया है,उसमें सभी मुद्दों पर अंतिम निर्णय दिया गया।कोर्ट ने इन याचिकाओं में उठाए गए मुद्दों पर अंतिम रूप से निर्णय दे दिया है।

राज्य सरकार ने अपनी याचिका में कहा है कि इन जनहित याचिकाओं में उठाए गए मुद्दों पर कोर्ट ने अपना निर्णय अंतिम रूप से दे दिया है।इस कारण इन याचिकाओं की सुनवाई 3 जुलाई,2023 के पूर्व ही करके इनका निष्पादन कर दिया जाए।

गुजरातियों को ठग कहने के मामले में तेजस्वी यादव को समन, 20 मई को अहमदाबाद कोर्ट में पेश होने का आदेश

अहमदाबाद/पटना। गुजरातियों को ठग कहने के मामले में बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के खिलाफ अहमदाबाद में दाखिल किए मानहानि के केस पर सुनवाई हुई। कोर्ट ने संक्षिप्त सुनवाई के बाद 202 के तहत जांच का आदेश दिया। अगली सुनवाई की तारीख 20 मई तय की है।

तेजस्वी यादव के खिलाफ सोमवार को अहमदाबाद की मेट्रो कोर्ट में सुनवाई हुई। अदालत ने मामले के परिवादी को सबूत पेश करने का आदेश दिया है। मामले में गवाहों को हाजिर करने का आदेश भी कोर्ट में दिया गया है। साथ ही कोर्ट ने कहा कि इस सुनवाई के दौरान तेजस्वी यादवको सशरीर हाजिर होना होगा।

अहमदाबाद की मेट्रोपॉलिटन कोर्ट में एडीशिनल चीफ मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट डी जे परमार ने सुनवाई की और फिर इंक्वायरी का आदेश जारी किया। पिछले महीने की 26 तारीख को अहमदाबाद में रहने वाले पेशे से व्यापारी हरेश मेहता ने तेजस्वी यादव के खिलाफ मानहानि का केस दाखिल किया था।

इसमें मेहता ने आरोप लगाया है कि तेजस्वी यादव ने मार्च महीने के आखिर में विधानसभा परिसर में एक बयान दिया था। इसमें उन्होंने कहा था देश की वर्तमान परिस्थिति में सिर्फ गुजराती ठग हो सकते हैं और उन्हें माफ भी कर दिया जाएगा। मेहता की मांग है कि इससे गुजरात के लोगों की मानहानि हुई है। इसलिए तेजस्वी यादव पर मानहानि का केस चलाया जाए। कोर्ट ने सोमवार को इसमामले में सुनवाई करते हुए तेजस्वी यादव को धारा 202 के तहत समन जारी किया है।

पूर्व सांसद आनंद मोहन की जेल से रिहाई पर बिहार सरकार और अन्य को SC का नोटिस

आनंद मोहन की जेल से रिहाई के खिलाफ जी. कृष्णैया की पत्नी की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने जारी किया नोटिस, बिहार सरकार और आनंद मोहन को सर्वोच्च अदालत ने जारी किया नोटिस।

दिवंगत IAS अधिकारी जी कृष्णैया की पत्नी उमा कृष्णैया, बिहार के जेल नियमों में संशोधन के बाद आनंद मोहन की समय से पहले रिहाई को चुनौती देते हुए SC का रुख किया था।

इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल को भी नोटिस जारी किया है और दो सप्ताह में जवाब तलब किया है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने नियमों में बदलाव से संबंधित सभी रिकॉर्ड भी बिहार सरकार से मांगे हैं।

AnandMohan in SC

पूर्व आईएएस अधिकारी जी कृष्णय्या की पत्नी उमा देवी ने कहा- “हमें खुशी है कि सुप्रीम कोर्ट ने सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है और बिहार सरकार और इसमें शामिल अन्य लोगों को नोटिस जारी किया है। उन्हें 2 सप्ताह के भीतर जवाब देना है। हमें SC में न्याय मिलेगा।”

बिहार सरकार ने आनंद मोहन सिंह की रिहाई के लिए जेल मैन्यूअल में बदलाव किया था और लोकसेवक की हत्या को अपवाद से हटाकर सामान्य कर दिया था जिसके बाद आनंद मोहन सिंह की जेल से रिहाई हुई है। आनंद मोहन सिंह के साथ 26 और कैदियों की रिहाई हुई थी।

सुप्रीम कोर्ट ने YouTuber मनीष कश्यप की NSA लगाने के खिलाफ याचिका पर विचार करने से किया इनकार

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने YouTube मनीष कश्यप की उस याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया है, जिसमें दक्षिणी राज्य में बिहार के प्रवासियों पर हमलों पर फर्जी खबरें फैलाने में उनकी भूमिका को लेकर बिहार और तमिलनाडु में उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी दर्ज की गई थी।

मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा और जे बी पारदीवाला की पीठ ने, हालांकि, कश्यप को एक उपयुक्त न्यायिक मंच पर एनएसए के आह्वान को चुनौती देने की स्वतंत्रता दी। इसने उनके खिलाफ सभी 19 प्राथमिकी और उनके बिहार स्थानांतरित करने की याचिका को भी खारिज कर दिया।

इस समय तमिलनाडु की मदुरै जेल में बंद कश्यप की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मनिंदर सिंह की जोरदार दलीलों को खारिज करते हुए पीठ ने कहा, ”हम याचिका पर विचार करने के इच्छुक नहीं हैं।”

गिरफ्तार यूट्यूबर पर कई प्राथमिकी दर्ज हैं और उनमें से तीन बिहार में दर्ज हैं। प्राथमिकी के अलावा, कश्यप पर तमिलनाडु पुलिस द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत भी आरोप लगाए गए थे।

SC on ManishKashyap

सुप्रीम कोर्ट की बेंच के पास कश्यप के लिए कड़े शब्द थे…

“आपके पास एक स्थिर राज्य है, तमिलनाडु राज्य। आप बेचैनी पैदा करने के लिए कुछ भी प्रसारित करते हैं, ”पीठ ने मौखिक रूप से कहा।

बाद में, इसने पूछा, “क्या किया जाना है? आप ये फर्जी वीडियो बनाते हैं… ”

पीठ ने कश्यप को अपनी याचिका के साथ उच्च न्यायालय जाने की अनुमति दी।

कश्यप के वकील सीनियर एडवोकेट मनिंदर सिंह ने कहा कि क्योंकि उन्होंने अपने वीडियो दैनिक भास्कर जैसे मुख्यधारा के अखबारों की मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित किए थे, अगर उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत गिरफ्तार किया जाना है तो अन्य अखबारों के पत्रकारों को भी इसी तरह हिरासत में लेने की जरूरत है। उन्होंने एनएसए के तहत आरोपित मणिपुर के पत्रकार किशोरचंद्र वांगखेमचा का उदाहरण भी दिया।

Breaking News of Bihar Live Updates: सुप्रीम कोर्ट ने एनएसए लगाने के खिलाफ जेल में बंद बिहार YouTuber मनीष कश्यप की याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया

Latest News of Bihar – बिहार की इस समय की बड़ी खबरें

  • Bihar News: पूर्व सांसद आनंद मोहन की जेल से रिहाई पर बिहार सरकार और अन्य को SC का नोटिस।
  • ‘गुजराती ठग’ मामले में तेजस्वी यादव को समन, 20 मई को अहमदाबाद कोर्ट में पेश होने का आदेश।
  • पटना हाइकोर्ट में राज्य सरकार द्वारा राज्य में जातियों की गणना एवं आर्थिक सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 3 जुलाई, 2023 के पूर्व ही कोर्ट द्वारा सुनवाई करने के लिए याचिका दायर की गई है।
  • तेलंगाना हाईकोर्ट के जस्टिस अन्नीरेड्डी अभिषेक रेड्डी का स्थानांतरण पटना हाईकोर्ट हुआ।
  • Corona in Bihar: बिहार में फिर तेजी से बढ़ा कोरोना, बीते 24 घंटे में 92 नए मामले आये सामने, एक्टिव मरीजों की संख्या बढ़कर 825 हो गई हैं। राजधानी पटना में 378 संक्रमित हैं।
  • पंचायत उपचुनाव 2023: राज्य निर्वाचन आयोग ने बिहार में पंचायत उपचुनाव का किया ऐलान। बिहार में 25 मई को कुल 3,522 पदों के लिए पंचायत उपचुनाव होंगे। 27 मई को नतीजे सामने आ जाएंगे।
  • NGT ने बिहार पर 4,000 करोड़ रुपये का पर्यावरणीय जुरमाना लगाया । नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने प्रदूषक भुगतान सिद्धांत के अनुसार वैज्ञानिक रूप से ठोस और तरल कचरे का प्रबंधन करने में विफल रहने के लिए बिहार पर 4,000 करोड़ रुपये का पर्यावरणीय मुआवजा लगाया है।
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पटना हाइकोर्ट ने एससी/ एसटी छात्रवृत्ति घोटाले के आरोपी आईएएस एस . एम. राजू की नियमित जमानत याचिका पर सुनवाई पूरी कर आदेश सुरक्षित रखा

पटना हाइकोर्ट ने एससी/ एसटी छात्रवृत्ति घोटाले के आरोपी आईएएस एस . एम. राजू की नियमित जमानत याचिका पर सुनवाई पूरी कर आदेश सुरक्षित कर लिया है। राजेश कुमार वर्मा ने राजू की जमानत याचिका पर सभी पक्षों को सुनने के बाद निर्णय सुरक्षित रखा।

गौरतलब है कि 2017 में निगरानी ब्यूरो द्वारा दर्ज हुए इस घोटाले के मुकदमे में राजू 20 जनवरी 2023 से जेल में बंद है।राजू के वकील आशीष गिरी ने कोर्ट को बताया कि इस मामले के मुख्य आरोपी एवं पूर्व आईएएस परशुराम कड़ा रमैया को जमानत मिल चुकी है। याचिकाकर्ता भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी है और उन्होंने अपने समय में इस छात्रवृत्ति घोटाले का उजागर भी किया।

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वही निगरानी ब्यूरो की तरफ से एडवोकेट अरविंद कुमार ने जमानत याचिका का विरोध करते हुए कोर्ट को बताया कि जब राजू एससी/ एसटी कल्याण विभाग में थे, तो उनके ही समय में कई ऐसे छात्र छात्राओं का विवरण केस डायरी में मिला है ,जो दाखिला तो लिए लेकिन एक भी दिन बिना क्लास किए परीक्षा दी है।
फिर भी उन्हे छात्रवृत्ति की राशि का भुगतान हुआ है।उनके विरुद्ध घोटाले में शामिल होने के ठोस के सबूत है।

पटना हाइकोर्ट ने बिहार कारागार नियमावली में की गई संशोधन को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को 12 मई, 2023 तक जबाब दायर करने का निर्देश दिया है

पटना हाइकोर्ट ने बिहार कारागार नियमावली में की गई संशोधन को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को 12 मई, 2023 तक जबाब दायर करने का निर्देश दिया हैं। अनुपम कुमार सुमन ओर से दायर याचिका पर चीफ जस्टिस के वी चन्द्रन विनोद चन्द्रन की खंडपीठ ने सुनवाई की।

कोर्ट को बताया गया कि
राज्य सरकार ने गत 10 अप्रैल,2023 को बिहार कारागार नियमावली, 2012 के नियम 481(i)(क) में संशोधन करते हुए “ड्यूटी पर तैनात लोक सेवक की हत्या” शब्द को हटाने के लिए संशोधन कर दिया।इस कारण गोपालगंज डीएम हत्या कांड के दोषी पूर्व सांसद आनंद मोहन सहित 26 सजायाफ्ता बंदियों को जेल से छोड़ दिया गया।

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उन्होंने बिहार कारागार नियमावली के नियम 481(i)(क) में किए गए संशोधन को गैरकानूनी करार देने और संशोधन अधिसूचना को निरस्त करने की मांग कोर्ट से की।कोर्ट ने इस मामले में राज्य सरकार को जबाब दायर करने का निर्देश दिया।इस मामलें पर अगली सुनवाई 12 मई, 2023 को होगी।

जातीय जनगणना से पिछड़ी जाति का सच आ जाता सामने; रोक से बिहार के राजनीतिक बदलाव पर फिर लगा ब्रेक

पूर्व मंत्री नरेन्द्र बाबू अब इस दुनिया में नहीं रहे लेकिन जब भी मुलाकात होती थी तो मांझी के मुख्यमंत्री बनने के बाद नीतीश के खिलाफ मोर्चा खोलने को लेकर बहस हो ही जाती थी ।

मैं कहता था आप लोग सही नहीं किए बिहार की राजनीति का एक चक्र पूरा हो रहा था उसको आप लोगों ने बीच रास्ते में ही ब्रेक लगा दिया। जिस वजह से बिहार की राजनीति फिर उसी चक्र में वापस आ गया जिससे नीतीश कुमार थोड़ा बाहर निकाले थे। मतलब सत्ता की मलाई खाते खाते समाज में जो नये सामंती वर्ग पैदा लिये हैं उसके शोषण और अत्याचार के खिलाफ जैसे जैसे आक्रोश बढ़ा अन्य पिछड़ी जातियों उनके खिलाफ गोलबंद होने लगे इसी का लाभ नीतीश उठा रहे थे वही मांझी मुख्यमंत्री बने रह जाते तो बिहार की राजनीति से हमेशा हमेशा के लिए दबंग पिछड़ी जातियां राजनीति से बाहर हो जाती लेकिन आप लोग इस चक्र को पूरा नहीं होने दिए हालांकि नरेंद्र बाबू का कुछ और तर्क था लेकिन अंत में वो कहते थे संतोष जो बात गयी वो बीत गयी आगे फिर मौका आयेगा मिल बैठ कर बात करेंगे।

शायद आज वो जिंदा होते तो जातीय जनगणना को लेकर मेरे विचार से सहमत होते, बिहार में प्रभावशाली दबंग पिछड़ी जाति और दबंग दलित की कितनी संख्या है और उसका व्यापार ,संसाधन,नौकरी और जमीन पर उसका कितना कब्जा है यह डाटा जिस दिन सामने आ जाता बिहार की राजनीति दस वर्षो में पूरी तरह से बदल जाता। क्यों कि समाज में सवर्णो को लेकर जो घृणा था आक्रोश था वह अब दबंग पिछड़ी और दलित जाति में शिफ्ट कर गया है । वही पंचायत चुनाव इस प्रक्रिया को और तेज कर दिया जिस वजह से गांव का राजनीतिक परिदृश्य पूरी तौर पर बदल गया है ।

जातीय जनगणना जैसे ही प्रकाशित होता तीन चार पिछड़ी जाति और एक दो दलित जाति जिसका 90 प्रतिशत हिस्सेदारी व्यापार,नौकरी .जमीन और राजनीति में है वो सामने आ जाता । और जैसे ही सामने आता उसके खिलाफ एक अलग तरह का माहौल तैयार होने लगता जैसे किसी दौर में सवर्ण को लेकर था जिसके पास व्यापार नौकरी,जमीन और सत्ता सब कुछ था । उसी को दिखा दिखा कर लोहिया जैसे नेता पिछड़ा पावे सौ में साठ जैसे नारे का ईजाद किये थे ।

आज साठ क्या 90 प्रतिशत हिस्सेदारी जो सवर्ण से ट्रांसफर हुआ है उस पर चार पाच पिछड़ी और एक दो दलित जाति का आज कब्जा है। ये डाटा जैसे ही सामने आता वैसे ही पूरे बिहार का नैरेटिव ही बदल जाता ।सच यही है जातीय जनगणना के पक्ष में ना नीतीश हैं ना लालू हैं ना बीजेपी है। क्यों कि उन्हें पता है जैसे ही जाति जनगणना प्रकाशित होता बिहार की राजनीति से दबंग पिछड़ी जाति की पकड़ उसी दिन से कमजोर होनी शुरु हो जायेंगी । ये लोग सिर्फ नैरेटिव बनाये रखना चाहते हैं जैसे बीजेपी को हिन्दू के उत्थान से कोई लेना देना नहीं है बस हिन्दू मुस्लिम नैरेटिव कैसे बना रहे इसके जुगत में लगा रहता है ।

पटना हाइकोर्ट ने बिहारशरीफ में इस वर्ष रामनवमी की शोभायात्रा के दौरान हुई हिंसा की निष्पक्ष जांच कराने के लिए दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की

पटना हाइकोर्ट ने बिहारशरीफ में इस वर्ष रामनवमी की शोभायात्रा के दौरान हुई हिंसा की निष्पक्ष जांच कराने के लिए दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की। चीफ जस्टिस के वी चन्द्रन की खंडपीठ ने अमरेन्द्र कुमार सिन्हा की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को इस सम्बन्ध में की गई कार्रवाई का ब्यौरा अगली सुनवाई में प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।

याचिकाकर्ता की ओर से कोर्ट के समक्ष पक्ष प्रस्तुत करते हुए वरीय अधिवक्ता एस डी संजय ने कहा कि बिहारशरीफ में रामनवमी शोभायात्रा के दौरान बड़े पैमाने पर हिंसा हुई।उन्होंने कहा कि इससे बड़े पैमाने पर जान माल की हानि और व्यवसाई वर्ग को नुकसान झेलना पड़ा।

उन्होंने कोर्ट के समक्ष पक्षों को रखते हुए कहा कि इस मामलें की जांच हाईकोर्ट के अवकाशप्राप्त जज कराई जाए या सीबीआई या एनआईए से कराई जाए।इस जांच से निष्पक्ष और वास्तविक परिस्थिति सामने आ सकेगी।

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इस जनहित याचिका में ये भी अनुरोध किया गया है कि जिनके जान माल की क्षति और व्यावासायिक हानि हुई हो,उन्हें राज्य सरकार की ओर से क्षतिपूर्ति दिलाई जाए।

सभी सम्बंधित पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह इस मामलें में उठाए गए क़दमों और प्रशासन द्वारा की गई कार्रवाई का पूरा ब्यौरा कोर्ट के समक्ष अगली सुनवाई में प्रस्तुत करें।

याचिकाकर्ता की ओर से वरीय अधिवक्ता एस डी संजय और राज्य सरकार की ओर एडवोकेट जनरल पी के शाही ने कोर्ट के समक्ष पक्षों को रखा।इस मामलें पर अगली सुनवाई गर्मी की छुट्टी के बाद की जाएगी।

पटना हाइकोर्ट में राज्य सरकार द्वारा राज्य में जातियों की गणना एवं आर्थिक सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 3 जुलाई,2023 के पूर्व ही कोर्ट द्वारा सुनवाई करने के लिए याचिका दायर की गई है

पटना हाइकोर्ट में राज्य सरकार द्वारा राज्य में जातियों की गणना एवं आर्थिक सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 3 जुलाई,2023 के पूर्व ही कोर्ट द्वारा सुनवाई करने के लिए याचिका दायर की गई है। गौरतलब कि कल कोर्ट ने अंतरिम आदेश देते हुए जातीय जनगणना पर रोक लगा दी थी।

चीफ जस्टिस के वी चन्द्रन की खंडपीठ ने अंतरिम आदेश पारित करते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि राज्य सरकार इस दौरान इक्कठी की गई आंकड़ों को शेयर व उपयोग फिलहाल नहीं करेगी।

राज्य सरकार द्वारा दायर याचिका में ये कहा गया है कि क्योंकि पटना हाइकोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि राज्य सरकार के पास जातीय जनगणना कराने का वैधानिक अधिकार नहीं है,इसीलिए इन याचिकाओं पर 3 जुलाई,2023 को सुनवाई करने का कोई कारण नहीं है।

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कार्यपालिका के पास जातीय जनगणना कराने का क्षेत्राधिकार नहीं है।इसे कोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में स्पष्ट कर दिया है।

कोर्ट ने ये भी कहा कि जातीय जनगणना से जनता की निजता का उल्लंघन होता है।इस सम्बन्ध में विधायिका द्वारा कोई कानून भी नहीं बनाया गया है।

कोर्ट ने अपने 4 मई, 2023 के अंतरिम आदेश में जो निर्णय दिया है,उसमें सभी मुद्दों पर अंतिम निर्णय दिया गया।कोर्ट ने इन याचिकाओं में उठाए गए मुद्दों पर अंतिम रूप से निर्णय दे दिया है।

राज्य सरकार ने अपनी याचिका में कहा है कि इन जनहित याचिकाओं में उठाए गए मुद्दों पर कोर्ट ने अपना निर्णय अंतिम रूप से दे दिया है।इस कारण इन याचिकाओं की सुनवाई 3 जुलाई,2023 के पूर्व ही करके इनका निष्पादन कर दिया जाए।

तेलंगाना हाईकोर्ट के जस्टिस अन्नीरेड्डी अभिषेक रेड्डी का स्थानांतरण पटना हाईकोर्ट हुआ

केंद्र सरकार ने आज एक अधिसूचना जारी कर तेलंगाना हाईकोर्ट के जस्टिस अन्नीरेड्डी अभिषेक रेड्डी का स्थानांतरण पटना हाईकोर्ट कर दिया है । भारत के संविधान के अनुच्छेद 222 में प्रदत्त शक्तियों का उपयोग कर चीफ जस्टिस ऑफ़ इंडिया ने उनका स्थानांतरण किया है ।

judge A reddy

श्री रेड्डी जल्द पटना हाईकोर्ट के जज के रूप में अपना योगदान कर सकते हैं ।

पटना हाइकोर्ट ने बिहार सरकार द्वारा जातियों की गणना एवं आर्थिक सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अंतरिम आदेश देते हुए फिलहाल रोक लगा दी

पटना हाइकोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा राज्य में जातियों की गणना एवं आर्थिक सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अंतरिम आदेश देते हुए फिलहाल रोक लगा दी। चीफ जस्टिस के वी चन्द्रन की खंडपीठ ने कल सुनवाई पूरी निर्णय सुरक्षित रखा था। कोर्ट ने निर्देश दिया किया कि राज्य सरकार इस दौरान इक्कठी की गई आंकड़ों को शेयर व उपयोग नहीं फिलहाल नहीं करेगी।

कल कोर्ट ने ये जानना चाहा था कि जातियों के आधार पर गणना व आर्थिक सर्वेक्षण कराना क्या कानूनी बाध्यता है।कोर्ट ने ये भी पूछा है कि ये अधिकार राज्य सरकार के क्षेत्राधिकार में है या नहीं।साथ ही ये भी जानना कि इससे निजता का उल्लंघन होगा क्या।

पिछली सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के अधिवक्ता दीनू कुमार ने कोर्ट को बताया कि राज्य सरकार ने जातियों और आर्थिक सर्वेक्षण करा रही है।उन्होंने बताया कि सर्वेक्षण कराने का ये अधिकार राज्य सरकार के अधिकारक्षेत्र के बाहर है।

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अधिवक्ता दीनू कुमार ने कोर्ट को बताया था कि राज्य सरकार जातियों की गणना व आर्थिक सर्वेक्षण करा रही है।उन्होनें ने बताया कि ये संवैधानिक प्रावधानों के विपरीत है।

उन्होंने कहा कि प्रावधानों के तहत इस तरह का सर्वेक्षण केंद्र सरकार करा सकती है।ये केंद्र सरकार के क्षेत्राधिकार के अंतर्गत आता है।उन्होंने बताया कि इस सर्वेक्षण के लिए राज्य सरकार पाँच सौ करोड़ रुपए खर्च कर रही है।

दूसरी तरफ राज्य सरकार राज्य सरकार का कहना कि जन कल्याण की योजनाएं बनाने और सामाजिक स्तर सुधारने के लिए ये सर्वेक्षण किया कराया जा रहा है।

इस याचिकाकर्ताओं की ओर से दीनू कुमार व ऋतु राज, अभिनव श्रीवास्तव ने और राज्य सरकार की ओर से एडवोकेट जनरल पी के शाही व केंद्र सरकार की ओर से अधिवक्ता नरेश दीक्षित ने कोर्ट के समक्ष पक्षों को प्रस्तुत किया।

नीतीश सरकार जातीय जनगणना पर हाईकोर्ट में पिटी, सही ढंग से पक्ष नहीं रख पायी सरकार: सुशील कुमार मोदी

पटना । पूर्व उपमुख्यमंत्री एवं राज्यसभा सदस्य सुशील कुमार मोदी ने कहा कि जातीय जनगणना कराने के विरुद्ध एक भी कानूनी सवाल का जवाब दमदार ढंग से नहीं दे पाने के कारण हाईकोर्ट में फिर नीतीश सरकार की भद पिटी। जनगणना कराने का फैसला उस एनडीए सरकार था, जिसमें भाजपा शामिल थी।

भाजपा के सरकार में रहते हुआ था जातीय जनगणना का फैसला

श्री मोदी ने कहा कि अदालत की अंतरिम रोक के बाद जातीय जनगणना लंबे समय तक टल सकती है और इसके लिए मुख्यमंत्री जिम्मेदार हैं।

उन्होंने कहा कि जिस मुद्दे पर विरोध पक्ष से मुकुल रहोतगी जैसे बड़े वकील बहस कर चुके थे, उस पर जवाब देने के लिए वैसे ही कद्दावर वकीलों को क्यों नहीं खड़ा किया गया ?

sushil modi vs nitish kumar

श्री मोदी ने कहा कि जनगणना के संबंध में तीन बड़े न्यायिक प्रश्न थे-

  • क्या इससे निजता के अधिकार का हनन होता है?
  • क्या यह कवायद सर्वे की आड़ में जनगणना है?
  • इसके लिए कानून क्यों नहीं बनाया गया?

उन्होंने कहा कि सरकार के वकील इन तीनों सवालों पर अपनी दलील से न्यायालय को संतुष्ट नहीं कर पाये। इससे लगता है कि सरकार यह मुकदमा जीतना ही नहीं चाहती थी ।

श्री मोदी ने कहा कि स्थानीय निकायों में अतिपिछड़ों को आरक्षण देने के लिए विशेष आयोग बनाने के मुद्दे पर भी सरकार को झुकना पड़ा था। आयोग की रिपोर्ट अब तक जारी नहीं हुई।

उन्होंने कहा कि जनगणना हो या आरक्षण, राजद को अतिपिछड़ा वर्ग पर नहीं, केवल एम-वाइ समीकरण पर भरोसा है। वे केवल दिखावे के लिए पिछड़ों की बात करते हैं।

पटना हाइकोर्ट में बिहार सरकार द्वारा जातियों की गणना एवं आर्थिक सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई पूरी; कल 4 मई को अंतरिम आदेश होगा पारित

पटना हाइकोर्ट में राज्य सरकार द्वारा राज्य में जातियों की गणना एवं आर्थिक सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई पूरी। हाइकोर्ट कल 4 मई, 2023 को अंतरिम आदेश पारित करेगा।

अखिलेश कुमार व अन्य की याचिकाओं पर चीफ जस्टिस के वी चन्द्रन की खंडपीठ सुनवाई कर रही है।कोर्ट ने ये जानना चाहा कि जातियों के आधार पर गणना व आर्थिक सर्वेक्षण कराना क्या कानूनी बाध्यता है।

कोर्ट ने ये भी पूछा है कि ये अधिकार राज्य सरकार के क्षेत्राधिकार में है या नहीं।साथ ही ये भी जानना कि इससे निजता का उल्लंघन होगा क्या।

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के अधिवक्ता दीनू कुमार ने कोर्ट को बताया कि राज्य सरकार ने जातियों और आर्थिक सर्वेक्षण करा रही है।उन्होंने बताया कि सर्वेक्षण कराने का ये अधिकार राज्य सरकार के अधिकारक्षेत्र के बाहर है।

उन्होंने कोर्ट को बताया कि राज्य सरकार जातियों की गणना व आर्थिक सर्वेक्षण करा रही है। उन्होनें ने बताया कि ये संवैधानिक प्रावधानों के विपरीत है।

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उन्होंने कहा कि प्रावधानों के तहत इस तरह का सर्वेक्षण केंद्र सरकार करा सकती है।ये केंद्र सरकार की शक्ति के अंतर्गत आता है।उन्होंने बताया कि इस सर्वेक्षण के लिए राज्य सरकार पाँच सौ करोड़ रुपए खर्च कर रही है।

दूसरी तरफ राज्य सरकार राज्य सरकार का कहना कि जन कल्याण की योजनाएं बनाने और सामाजिक स्तर सुधारने के लिए ये सर्वेक्षण किया कराया जा रहा है।

कोर्ट इस मामलें पर कल 4 मई,2023 को अंतरिम आदेश पारित करेगा।

इस याचिकाकर्ताओं की ओर से दीनू कुमार व ऋतु राज, अभिनव श्रीवास्तव ने और राज्य सरकार की ओर से एडवोकेट जनरल पी के शाही कोर्ट के समक्ष पक्षों को प्रस्तुत किया।

आनंद मोहन की रिहाई के खिलाफ याचिका पर सुप्रीम कोर्ट 8 मई को करेगा सुनवाई, मारे गए IAS अधिकारी की पत्नी ने रिहाई के खिलाफ SC में दी थी याचिका

बिहार के बाहुबली नेता आनंद मोहन की रिहाई के खिलाफ याचिका पर सुप्रीम कोर्ट 8 मई को सुनवाई करेगा। बिहार के दबंग नेता/पूर्व सांसद आनंद मोहन की रिहाई के बाद, मारे गए आईएएस अधिकारी जी कृष्णैया की पत्नी ने आनंद मोहन की रिहाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दी थी याचिका।

जी कृष्णैया की पत्नी उमा कृष्णय्या ने बिहार सरकार के नियमों के बदलाव के नोटिफिकेशन को भी रद्द करने की मांग की है। उन्होंने तर्क दिया है कि गैंगस्टर से राजनेता बने आजीवन कारावास की सजा का मतलब उसके पूरे प्राकृतिक जीवन के लिए कारावास है और इसे केवल 14 साल तक यांत्रिक रूप से व्याख्यायित नहीं किया जा सकता है।

उन्होंने शीर्ष अदालत के समक्ष अपनी याचिका में कहा, “आजीवन कारावास, जब मृत्युदंड के विकल्प के रूप में दिया जाता है, तो अदालत द्वारा निर्देशित सख्ती से लागू किया जाना चाहिए और छूट के आवेदन से परे होगा।”

AnandMohan in SC

जी कृष्णैया की पत्नी उमा कृष्णय्या ने कहा सीएम नितीश कुमार को इस तरह की चीजों को बढ़ावा नहीं देना चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर वह (आनंद मोहन) भविष्य में चुनाव लड़ेंगे तो जनता को उनका बहिष्कार करना चाहिए। मैं उन्हें वापस जेल भेजने की अपील करती हूं।

आनंद मोहन का नाम उन 20 से अधिक कैदियों की सूची में था, जिन्हें इस सप्ताह के शुरू में राज्य के कानून विभाग द्वारा जारी एक अधिसूचना द्वारा मुक्त करने का आदेश दिया गया था, क्योंकि उन्होंने 14 साल से अधिक समय सलाखों के पीछे बिताया था।