प्रधानमंत्री मोदी के जन्मदिन के मौके पर आयोजित कार्यक्रम के दौरान नीतीश कुमार ब्लैक बोर्ड पर जिस अंदाज में लिख कर मोदी को बधाई दिये उसको लेकर राजनीतिक गलियारे में अपने अपने तरीके से मूल्यांकन शुरु हो गया है,
हलाकि नीतीश कुमार की यह शैली रही है कि वो अपने अंदाज में राजनीतिक संदेश छोड़ जाते हैं और इसके लिए नीतीश कुमार खुद होमवर्क करते हैं और फिर सब कुछ स्क्रिप्ट के अनुसार होता है ।
याद करिए 5 फरवरी 2017 मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पटना के गांधी मैदान में आयोजित पुस्तक मेले के उद्घाटन के बाद पद्मश्री बौआ देवी के द्वारा बनाए कमल के फूल में रंग भरने लगे थे और उसके बाद बिहार की राजनीति में बड़ा भूचाल आ गया था ।इसकी मुझे पक्की जानकारी है कि यह सब पहले से तय था बौआ देवी को कमल का फूल बनाने के लिए कहा गया था और नीतीश कुमार आकर उस पर रंग भरेंगे ये पहले से तय था ।
इसी तरह पीएम मोदी के जन्मदिन के मौके पर ब्लैक बोर्ड को लगाया जाना और उस ब्लैक बोर्ड पर सीएम कुछ संदेश लिखेंगे ये सब स्क्रिप्ट पहले से तय था । 2017 में कमल के फूल पर रंग भर के जो संदेश देना चाह रहे थे इसकी वजह थी लालू प्रसाद तबादले और पोस्टिंग मामले में लगातार हस्तक्षेप कर रहे थे नीतीश इसको लेकर हमेशा असहज रहते थे इतना ही नहीं इस तरह का दबाव लगातार बढ़ता जा रहा था पैसा वसूली का खेल का केन्द्र बदलने लगा था।
हलाकि इस बार भी 2017 की तरह ही नीतीश कुमार सरकार चलाने को लेकर सहज नहीं है आज उनके साथ सुशील मोदी जैसा कोई वफादार साथी सरकार में नहीं है हर कोई एक दूसरे को संदेह की दृष्टि से देखता है। तबादले और पोस्टिंग को लेकर भी पहले की तुलना में नीतीश पर ज्यादा दबाव है और उससे भी बड़ी बात यह है कि नीतीश संख्या बल में बीजेपी से काफी नीचे हैं ।
तो मोदी के जन्मदिन पर दिये गये संदेश को क्या माना जाये नीतीश बीजेपी के संग हो गये ,तो फिर उपेन्द्र कुशवाहा का बिहार दौरा, जदयू के राष्ट्रीय कार्यकारणी में पीएम मटेरियल वाला प्रस्ताव को पास करना और फिर अंतिम क्षण में देवीलाल को लेकर आयोजित कार्यक्रम में के0सी0त्यागी के शामिल होने कि घोषणा दिल्ली में करना जहां तीरसे मोर्चें के गठन का संदेश दिया जाना तय है ।
उसी तरह यूपी में चुनाव लड़ने की जिद ,सीमाचल मुद्दे पर बीजेपी के मंत्री से त्यागपत्र मानना ये सब तो नीतीश कुमार के संदेश के ठीक विपरित चल रहा है बिहार की राजनीति पर विशेष नजर रखने वाले फूलेन्द्र कुमार सिंह आंसू का कहना है कि नीतीश और बीजेपी दोनों के सामने फिलहाल कोई विकल्प नहीं है बीजेपी को लेकर राजद अभी भी तैयार नहीं है ।
ऐसे में बीजेपी बिहार में अलग होने कि बात सोच भी नहीं सकता क्यों कि बिहार बीजेपी के पास नीतीश या लालू जैसा कोई लीडर नहीं है जो चुनाव जीता सके 2015 में मोदी की लोकप्रियता चरम पर थी फिर भी बिहार में औंधे मुंह गिर गये थे ऐसे में नीतीश के अलावे उसके पास कोई विकल्प ही नहीं है ।
वही नीतीश के साथ परेशानी यह है कि उनके पास संख्या बल नहीं है फिर भी उनका जो राजनैतिक संकल्प है उसके साथ पार्टी खड़ी रहे ये भी दिखना चाहिए। इसलिए आरसीपी सिंह को वो हटाये जबकि आरसीपी सिंह ललन सिंह से कही ज्यादा नीतीश कुमार के वफादार है ।
उपेन्द्र कुशवाहा का लाना और उनके सहारे अपने राजनैतिक संकल्प को बचाये रखने कि कोशिश करना, इसी तरह के0सी0त्यागी का देवीलाल को लेकर आयोजित कार्यक्रम में भेजना यह सब उसी संकल्प का हिस्सा है क्यों कि नीतीश ये समझ रहे हैं कि उनका राजनीति को लेकर जो संकल्प रहा है उसको जिंदा रखना जरुरी है क्यों कि उसी संकल्प के सहारे स्थिति जैसे ही अनुकुल होगी पाला बदल सकते हैं ।
लेकिन अभी वो स्थिति नहीं है राष्ट्रीय स्तर पर मोदी के खिलाफ उस तरह की गोलबंदी नहीं हो पायी है जैसे ही इस तरह की गोलबंदी शुरु होगी लालू दबाव में आयेंगे ही और नीतीश कुमार इसी पल का इन्तजार कर रहे हैं क्यों कि उस समय नीतीश कुमार राष्ट्रीय स्तर पर अपने राजनैतिक संकल्प के सहारे पीएम उम्मीदवार का चेहरा बन सकते हैं और लालू को बिहार की गद्दी का लालसा देकर उनका समर्थन प्राप्त कर सकते हैं ।