‘तमाशबीन हूं मैं ”
बिहार की शिक्षा व्यवस्था में कितनी गिरावट आई है इसको महसूस करना हो तो आप बिहार के मेडिकल कांलेज से जुड़े प्रोफेसर और छात्र से बात करिए।ये कोई 2005 का वाकिया है उस समय मैं दरभंगा से ईटीवी के लिए काम करता था एक दिन सुबह सुबह एक फोन आया ईटीवी से बोल रहे हैं मैं डीएमसीएच(दरभंगा मेडिकल कांलेज)से बोल रहा हूं।
आपके लिए एक बड़ी खबर है डीएमसीएच परिसर में जो परीक्षा भवन है ना उसमें परीक्षा हो रही है और उस परीक्षा में जमकर चोरी चल रहा है ।
दस बजे से परीक्षा शुरु हो रही है ।फोन रखते ही मैंने दरभंगा के एसपी सुनील कुमार झा जो अभी एडीजी निगरानी है उनको फोन किये सर ऐसी सूचना है लेकिन डीएमसीएच का छात्र बड़ा कमीना है सोच लीजिए ।एसपी साहब तुरंत डीएसपी के नेतृत्व में एक टीम गठित कर दिये और डीएसपी को कह दिए कि संतोष जी को भी साथ ले लीजिएगा ।
पुलिस की पूरी टीम 10.30 में डीएमसीएच के परीक्षा हांल में प्रवेश कर गया तलाशी शुरु हुआ कही कुछ नहीं मिला डीएसपी मेरी और देख रहे थे और मैं नजर चुरा रहा था।
हम लोग जैसे ही बाहर निकले तभी मेरे मोबाइल की घंटी बजा उठाते ही बोला नहीं पकड़ाया सबके सब मोबाइल कान में लगाये हुए है ठीक से चेक करवाईए मुझे गुस्सा आ गया छोड़िए कुछ नहीं है ।तभी वो बोला एक मिनट सुनिए कैसे चोरी करवा रहा है मोबाइल पर साफ आवाज आ रहा था कोई उत्तर लिखा रहा है ।
मैं भागते हुए डीएसपी के पास गये सर देखिए कैसे चोरी हो रहा है सुनने के बाद फिर पुलिस की पूरी टीम परीक्षा भवन में प्रवेश किया एक के सर्ट का काँलर चेक किया सबके सब हैरान कर गये उस हांल में 40 छात्र चोरी करते पकड़े गये जो मोबाइल के सहारे कान में वाइफाइ वाला ईपी लगाकर चोरी कर रहा था ।
हलाकि बाद में बड़ी हंगामा हुआ और सभी गिरफ्तार छात्रों को डीएमसीएच के छात्र जबरन थाने से उठा कर ले गये ।कई पत्रकार को बूरी तरह से पीटा फिर भी खबर इस तरीके से चला कि विश्वविधालय प्रशासन को कारवाई करनी पड़ी साथ ही डीएमसीएच में जो सेंटर होता था उसको समाप्त कर दिया ।पता नहीं अभी क्या स्थिति है लेकिन यह सर्वविदित है कि हर परीक्षा में प्रश्न पत्र बिकता है अब तो हाल यह है कि बच्चे कांलेज जाते भी नहीं है बस गुगल के सहारे डिग्री ले रहे हैं ।
आज भी कोई भी ऐसा बैच नहीं आता है जिसमें सॉल्वर गैंग के द्वारा पास कराये गये छात्र नहीं होते हैं ।अभी जो हंगामा चल रहा है वो क्या है अब राज्य के सभी मेडिकल कांलेज आर्यभट्ट ज्ञान विश्वविधालय पटना के अधीन आ गया है अभी यहां उस तरह का खेल शुरु नहीं हुआ है जैसा खेल स्थानीय विश्वविधालय के साथ मिल कर खेला जाता था ।
इस बार बिहार के मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस प्रथम वर्ष की परीक्षा में 37.1% छात्र फेल हो गए हैं। इससे विद्यार्थियों में आक्रोश है। आर्यभट्ट ज्ञान विश्वविद्यालय ने सत्र 2019 के प्रथम वर्ष की परीक्षा मार्च में ली थी। रिजल्ट 30 अगस्त को जारी किया गया।
राज्यभर के मेडिकल कॉलेजों से प्रथम वर्ष की परीक्षा में 1140 छात्र शामिल हुए थे। इनमें कुछ छात्र प्रीवियस ईयर के भी शामिल हैं। इनमें 423 छात्र फेल हो गए हैं। सफलता प्राप्त करने वाले छात्रों की संख्या 717 यानी लगभग 63%है। एमबीबीएस के अगर पूरे रिजल्ट को देखा जाए तो सबसे खराब रिजल्ट मधुबनी मेडिकल कॉलेज का रहा है।
इस कॉलेज से 150 छात्र शामिल हुए थे, जिसमें 97 फेल हो गए हैं वही बिहार के सबसे पूराने मेडिकल कांलेज में सुमार होने वाले PMCH के 25 तो DMCH के 50 छात्र और जवाहरलाल नेहरू चिकित्सा महाविद्यालय भागलपुर के 39 छात्र फेल हो गए हैं ।
हलाकि इसके लिए सिर्फ छात्र ही जिम्मेवार नहीं है जिस तरीके से हाल के दिनों में राज्य सरकार ने मेडिकल कांलेज खोला है उसमें ना शिक्षक है ना ही प्रयोगशाला है सिर्फ छात्र है उसी व्यवस्था का शिकार मधुबनी मेडिकल कांलेज का छात्र हुआ है ।
फिर भी मेडिकल की पढ़ाई में बिहार का जो गौरवशाली इतिहास रहा है उस इतिहास को गर्त में पहुंचाने में राज्य के राजनीतिज्ञों की बड़ी भूमिका रही है।
मेरे जाति का मेडिकल कांलेज का प्रिंसिपल कैसे बने, मेडिकल कांलेज का सुपरिटेन्डेन्ट कैसे बने 40 वर्ष से यही खेला मेडिकल कांलेज में चला आ रहा है और इस खेल का इतना व्यापक असर मेडिकल कांलेज की व्यवस्था पर पड़ा कि आज सिर्फ नाम है और भवन है प्रोफसर का वो सम्मान है और ना ही प्रोफेसर में पढ़ाई को लेकर वो जजवा है ।