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तालिबान: दोराहे पर अफ़ग़ानिस्तान और भारत की दुविधा

अफ़ग़ानिस्तान में घड़ी की सुई रिवर्स डायरेक्शन में मुड़ चुकी है। अफ़ग़ानी समाज का उदारवादी प्रगतिशील तबका, जो धार्मिक रूप से सहिष्णु है, नागरिक अधिकारों का हिमायती है, लोकतांत्रिक मूल्यों में आस्था रखता है और महिलाओं एवं उनके अधिकारों को लेकर प्रगतिशील सोच रखता है, अपने अस्तित्व को लेकर सशंकित है। और, तालिबान को लेकर सशंकित केवल अफ़ग़ानी समाज ही नहीं है, वरन् पूरी-की-पूरी दुनिया डरी और सहमी हुई है। कारण यह कि तालिबान कोई संस्था नहीं है, वरन् सोच और मानसिकता है, ऐसी सोच और मानसिकता, जो आधुनिक काल की तमाम प्रगतियों को नकारती हुई आधुनिकता पर मध्ययुगीनता की जीत सुनिश्चित रहना चाहती है। अफ़ग़ानिस्तान में उदारवादी लोकतांत्रिक शासन-व्यवस्था और उसके मूल्यों को नकारता हुआ तालिबान उसे इस्लामिक धर्म और धर्मतंत्र की गिरफ़्त में लाना चाहता है।

तालिबान के नेतृत्व में अफ़ग़ानिस्तान का ‘इस्लामिक एमिरेट ऑफ अफ़ग़ानिस्तान’ में तब्दील होना इसी को पुष्ट करता है। यह प्रतीक है अफ़ग़ानिस्तान में उदारवादी लोकतांत्रिक मूल्यों के अन्त का, महिला अधिकारों एवं मानवाधिकारों की त्रासदी का, अल्पसंख्यक जनजातियों की पहचान के साथ-साथ व्यवस्था में उनके समुचित एवं पर्याप्त प्रतिनिधित्व एवं भागीदारी की शुरू हो चुकी प्रक्रिया के अवरुद्ध होने का और समावेशी अफ़ग़ानिस्तान के सपनों के धूल-धूसरित होने का।

स्पष्ट है कि तालिबान अफ़ग़ानिस्तान का सच है, ऐसा सच जो अफ़ग़ानिस्तान ही नहीं, वरन् भारत सहित शेष दुनिया के लिए ख़ौफ़नाक और भयावह साबित हो सकता है। तालिबान को लेकर मुसलमानों के एक तबके में उत्साह है, जो और भी भयावह और ख़तरनाक है क्योंकि उन्हें यह लगता है कि तालिबान इस्लामीकरण की प्रक्रिया के ज़रिए मुसलमानों के धार्मिक वर्चस्व को सुनिश्चित करेगा और पूरी दुनिया में शरीयत को लागू करेगा। उनकी आँखें तब भी नहीं खुल रही हैं जब वे देख रहे हैं कि राजधानी काबुल पर क़ब्ज़े के बाद वहाँ से भागने वाले लोगों में ग़ैर-मुस्लिमों की तुलना में मुसलमान कहीं अधिक हैं। और, ऐसा नहीं कि यह सब अनपेक्षित है। फ़रवरी,2020 में अफ़ग़ानिस्तान सरकार को दरकिनार करते हुए जिन शर्तों पर अमेरिका और तालिबान के बीच शान्ति समझौता सम्पन्न हुआ, उसके बाद ऐसा ही होना था। बस, प्रतीक्षा थी अमेरिका के नेतृत्व वाले नाटो सैनिकों की वापसी की। फिर, यह सब महज़ समय की बात रह गयी, लेकिन, यह सब इतनी जल्दी होगा, इसकी भी उम्मीद शायद किसी को नहीं रही होगी।

जहाँ तक भारत के संदर्भ में इन बदलावों के निहितार्थों का प्रश्न है, तो भारत गहरे संकट में है और भारतीय कूटनीति की असफलता से उपजे इस संकट के मूल में मौजूद है भारत की विदेश-नीति की त्रासदी। ऐसा नहीं है कि पिछले तीन दशकों के दौराजहाँ तक भारत के संदर्भ में इन बदलावों के निहितार्थों का प्रश्न है, तो भारत गहरे संकट में है और भारतीय कूटनीति की असफलता से उपजे इस संकट के मूल में मौजूद है भारत की विदेश-नीति की त्रासदी। ऐसा नहीं है कि पिछले तीन दशकों के दौरान भारत की अफ़ग़ानिस्तान नीति और तालिबान को लेकर उसका नज़रिया कभी आश्वस्त करने वाला रहा हो, पर पिछले क़रीब सवा सात वर्षों के दौरान भारत की विदेश-नीति ने चेक एंड बैलेंसेज की उपेक्षा करते हुए अमेरिकोन्मुखी नज़रिया अपनाया। इसी नज़रिए के कारण इसने क्षेत्रीय समीकरणों और अफ़ग़ान समस्या के समाधान के लिए क्षेत्रीय स्तरों पर चल रहे प्रयासों को अपेक्षित महत्व नहीं दिया और आज उसे इसकी क़ीमत चुकानी पड़ रही है।

अब दिक़्क़त यह है कि काबुल और अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता पर क़ब्ज़े के बाद आज भी भारत में अफ़ग़ानिस्तान संकट को हिन्दू-मुसलमान की बाइनरी में रखकर देखा जा रहा है जो दु:खद एवं त्रासद है। भारतीय समाज का एक हिस्सा अपनी राजनीतिक सुविधा के हिसाब से इसे मुस्लिम समाज के साथ-साथ भारतीय समाज और राजनीति के उदारवादी, धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी और वामपंथी तबके को बदनाम करने के अवसर के रूप में देख रहा है और इस अवसर को भुनाने की हरसंभव कोशिश कर रहा है। और, इसका एक त्रासद पहलू यह भी है कि मुस्लिम समाज का एक हिस्सा अफ़ग़ानिस्तान के मोर्चे पर होने वाले इन बदलावों से उत्साहित है। उसे न तो अपनी त्रासद स्थिति चिन्तित करती है, और न ही अफ़ग़ानियों का दु:ख, उनकी पीड़ा एवं उनकी बेचैनियाँ ही विचलित करती हैं। वह तो इस्लामी सत्ता की पुनर्स्थापना और इस्लामी वर्चस्व की संभावना मात्र से उत्साहित एवं पुलकित है।

अब सवाल यह उठता है कि जब वर्तमान में तालिबान अफ़ग़ानिस्तान के सच के रूप में सामने आ चुका है और उसे पाकिस्तान एवं चीन सहित तमाम भारत-विरोधी शक्तियों का समर्थन मिल रहा है, अमेरिका सहित दुनिया की तमाम बड़ी शक्तियाँ अपनी ज़िम्मेदारियों का निर्वाह से परहेज़ कर रही हैं, ऐसे में भारत को क्या करना चाहिए? दरअसल, अब भारत बैकफ़ुट पर है, वह रिसीविंग इंड पर है और उसके सामने सीमित विकल्प हैं, ऐसी स्थिति में आवश्यकता इस बात की है कि भारत वेट एंड वाच की रणनीति अपनाते हुए अफ़ग़ानिस्तान में फँसे भारतीयों को सुरक्षित रूप से बाहर निकालने की कोशिश करे, बैक चैनल से तालिबान के साथ डील करते हुए उसके भारत-विरोधी रवैये को कम करने की कोशिश करें और अफगानिस्तान में अपने अब सवाल यह उठता है कि जब वर्तमान में तालिबान अफ़ग़ानिस्तान के सच के रूप में सामने आ चुका है और उसे पाकिस्तान एवं चीन सहित तमाम भारत-विरोधी शक्तियों का समर्थन मिल रहा है, अमेरिका सहित दुनिया की तमाम बड़ी शक्तियाँ अपनी ज़िम्मेदारियों का निर्वाह से परहेज़ कर रही हैं, ऐसे में भारत को क्या करना चाहिए? दरअसल, अब भारत बैकफ़ुट पर है, वह रिसीविंग इंड पर है और उसके सामने सीमित विकल्प हैं, ऐसी स्थिति में आवश्यकता इस बात की है कि भारत वेट एंड वाच की रणनीति अपनाते हुए अफ़ग़ानिस्तान में फँसे भारतीयों को सुरक्षित रूप से बाहर निकालने की कोशिश करे, बैक चैनल से तालिबान के साथ डील करते हुए उसके भारत-विरोधी रवैये को कम करने की कोशिश करें और अफगानिस्तान में अपने सामरिक हितों को साधने के साथ-साथ अपने निवेश को सुरक्षित करने की यथासंभव कोशिश करे। साथ ही, जल्दबाज़ी में प्रतिक्रिया देने की बजाय अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के अगले कदम की प्रतीक्षा करे और उनके साथ मिलकर तालिबान पर अंतर्रा्ष्ट्रीय दबाव निर्मित करने की कोशिश करे। उपयुक्त अवसर और अपने लिए अनुकूल माहौल की प्रतीक्षा करने के अलावा उसके पास कोई विकल्प नहीं है। और, हाँ, तालिबान के बहाने मुस्लिम समुदाय और भारतीय समाज के लिबरल-सेक्यूलर तबके को बदनाम करने की कोशिश तथा अफ़ग़ान संकट का राजनीतिकरण भारत के लिए आत्मघाती साबित होगा, और निकट भविष्य में भारत को इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है। भारत को यह समझना होगा कि अफ़ग़ानियों को भी अपनी लड़ाई ख़ुद लड़नी होगी और उसे भी अपने सामरिक हित खुद सुनिश्चित करने होंगे। इसके लिए न तो अमेरिका सहित अन्य वैश्विक शक्तियाँ सामने आयेंगी और न ही अंतर्राष्ट्रीय समुदाय। भारत अगर संयम एवं धैर्य से काम लेता है, तो वह गृहयुद्ध की ओर बढ़ते अफ़ग़ानिस्तान में ताजिक, उज़्बेक और हज़ारा जनजातियों के साथ-साथ अफ़ग़ानी पश्तून समाज के उदारवादी, लिबरल, डेमोक्रेटिक एवं सेक्यूलर तबके बीच अपने गुडविल की बदौलत इस क्षति की कुछ हद तक भरपायी कर सकता है। इसके लिए आवश्यकता है खुद के प्रति भरोसे की और सटीक रणनीति की। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि भारत सरकार इसी रणनीति पर विचार कर रही है, पर समस्या है हिन्दू-मुस्लिम बाइनरी की।

-लेखक कुमार सर्वेस

(लेखक अंतर्राष्ट्रीय मामलों के जानकार हैं और सिविल सेवा परीक्षा हेतु तैयारी कर रहे छात्रों के मेंटरिंग कर रहे हैं।)

#अफगानिस्तानसंकट #तालिबान

लालू प्रसाद के पुत्र मोह में पार्टी और परिवार में मचा घमासन जगदानंद सिंह इस्तीफा पर अड़े तेजस्वी ने पार्टी नेताओं की बुलाई बैठक

बिहार में लालू-राबड़ी परिवार (Lalu-Rabri Family) से जगदानंद सिंह (Jagdanand Singh) का रिश्ता लगभग टूट चुका है लालू प्रसाद के लगातार बातचीत के बावजूद जगदानंद सिंह राजद कार्यालय जाने को तैयार नहीं है।
हलाकि तेजस्वी का कहना है कि ऐसी कोई बात नहीं है यह सब मीडिया का खेल है जगदानंद सिंह कही किसी से कहे हैं कि मैं नराज हूं फिर मीडिया ये सवाल कहां से उठा रही है वैसे तेजस्वी जो कुछ भी कह रहे हैं लेकिन बगैर आग के धुआं नहीं उठाता है जिस दिन तेज प्रताप जगदानंद सिंह को हिटलर कहां था उसी दिन से जगदानंद सिंह पार्टी दफ्तर नही जा रहे हैं 15 अगस्त जैसे मौके पर जब पार्टी अध्यक्ष राष्ट्र ध्वज फहराते थे उस दिन भी वो नहीं गये और इसको लेकर जब जब तेजस्वी से सवाल किया गया वो सवालो को टालते रहे ।


लालू प्रसाद के करीबियों में जगदानंद सिंह पहले व्यक्ति नहीं हैं, जिन्हें उनके बेटे तेज प्रताप यादव (Tej Pratap Yadav) के बयानों से धक्का लगा है। इसके पहले पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह (Raghuvansh Prasad Singh) और आरजेडी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रामचंद्र पूर्वे (Ramchandra Purvey) पर भी तेज प्रताप के बयानों की गाज गिर चुकी है। रघुवंश तो इतने व्यथित हुए कि अपने आखिरी क्षणों में अस्पताल से ही लालू का साथ छोड़ने का एलान कर दिया था। फिर भी तेज प्रताप की बदजुबान जारी है । नतीजतन पुत्र के प्रति मोह से लालू के अपने लगातार बिछुड़ते जा रहे हैं।

2019 में प्रदेश अध्‍यक्ष पद से बेदखल किए गए थे रामचंद्र पूर्वे जगदानंद के अनुशासन का अक्सर मजाक उड़ाने वाले तेज प्रताप ने चार बार से लगातार आरजेडी के प्रदेश अध्यक्ष बनते आ रहे रामचंद्र पूर्वे को 2019 में पद से बेदखल कराया था। उनपर चुगली करने और फोन नहीं उठाने का आरोप लगाया था। तेज प्रताप की सिफारिश पर आरजेडी में एक पदाधिकारी बनाने में देरी का खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा था। यह वही पूर्वे हैं, जिन्होंने 1997 में जनता दल से अलग होकर लालू की नई बनी पार्टी का संविधान तैयार किया था। चारा घोटाले (Fodder Scam) में लालू जब जेल गए तो राबड़ी देवी (Rabri Devi) के साथ मंत्री के रूप में सबसे पहले शपथ लेने वाले पूर्वे ही थे। बाकी मंत्रीमंडल का गठन बाद में हुआ था। पूर्वे अपनी ही बनाई पार्टी से अब अलग-थलग हैं।

तेज प्रताप के कारण टूटा दरोगा प्रसाद राय परिवार से रिश्‍ता बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री दरोगा प्रसाद राय (Daroga Prasad Rai) के घराने से लालू परिवार का बहुत ही धनिष्ट रिश्ता रहा था उस रिश्ते को रिश्तेदारी में बदलने के लिए लालू प्रसाद ने बड़ी धूमधाम से रिश्ता जोड़ा था और तेज प्रताप की शादी दरोगा प्रसाद की पौत्री ऐश्वर्या राय (Aishwarya Rai) के साथ हुई थी। लेकिन छह महीने के भीतर ही मामला तलाक तक पहुंच गया। 2019 के लोकसभा चुनाव में भी तेज प्रताप ने आरजेडी के शिवहर सहित अधिकृत दो प्रत्याशियों के खिलाफ लालू-राबड़ी मोर्चा बनाकर प्रत्याशी उतार दिए थे और उस प्रत्याशी के पक्ष में प्रचार भी किया था ।


तेज प्रताप से इस तरह के आचरण को लेकर पार्टी में ही नहीं परिवार में भी जबरदस्त शीत युद्ध जारी है राबड़ी और मिसा को छोड़ दे तो परिवार के अधिकांश सदस्य तेज प्रताप के व्यवहार से नराज है तेजस्वी तो कई बार तेज प्रताप के हरकत के कारण शर्मिदा होना पड़ा है ।


वैसे इस बार स्थिति बदली हुई है जगतानंद नहीं माने तो फिर लालू प्रसाद को पार्टी को सम्भाले रखना बड़ी मुश्किल होगी क्यों कि जगतानंद सिंह के प्रदेश अध्यक्ष रहने से तेजस्वी को बिहार की राजनीति समझने में काफी मदद मिलती है साथ ही आज भी जगतानंद सिंह को बिहार की राजनीति में काफी साफ सुथरी छवि है और इसका लाभ राजद को मिलता रहता है ।
तेजस्वी इसको लेकर पार्टी दफ्तर में एक बैठक बुलाया जिसमें श्याम रजक और आलोक मेहता मौजूद थे ।बैठक में जगतानंद सिंह को लेकर चर्चा हुई और इस बात पर जोड़ दिया गया कि इससे पार्टी की छवि खराब हो रही है ऐसे में पार्टी को कठोर निर्णय लेने कि आवश्कता है ।

50 लाख मोदी की तस्वीर वाली झोला के सहारे सियासत साधने मैंदान में उतरी बीजेपी सांसद और विधायक को दी गयी जिम्मेवारी

प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के प्रचार प्रसार के लिए भाजपा ने आज से झोला बांटने के अभियान की शुरूआत कर दी है। प्रदेश कार्यालय में केन्द्रीय गृहमंत्री नित्यानंद राय ने इस शुभारंभ किया। प्रदेश कार्यालय से शुरू हुए इस अभियान के पहले चरण में पार्टी के विधायक और सांसद पूरे प्रदेश में 50 लाख झोला बांटेगे। पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत हर महीने पांच किलो मुफ्त अनाज देने की योजना केन्द्र सरकार चला रही है।
अब भाजपा बिहार के लोगों को झोला बांटकर ये बतायेगी की उनके घरों तक जो अनाज पहुंच रहा है, वो असल में मोदी सरकार की देन है। भाजपा के कार्यकर्ता बूथ लेवल तक कार्यक्रम आयोजित कर झोला वितरित करेंगे। झोला पर पीएम मोदी की तस्वीर, भाजपा का कमल निशान, पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना छपा है।पीएम के साथ ही क्षेत्रवार सांसद व विधायक की तस्वीर भी इसपर छपी होगी। भाजपा कार्यकर्ता49 हजार 780 जनवितरण दुकानों पर PM मोदी का बैनर लगा कर लाभुकों के बीच यह झोला वितरित करेगा।
विधायक 20 हजार तो सांसदों को बनवाना होगा 1 लाख झोला
सांसद ,विधायक और विधानपरिषद सदस्यों को विशेष जिम्मेवारी दी गयी है जिसके तहत प्रत्येक सांसद को 1 लाख झोला, 1 हजार फ्लैक्स तो विधायक को 20 हजार झोला, 200 फ्लैक्स बांटने की जिम्मेवारी दी गयी है। प्रधानमंत्री अन्न योजना के तहत राज्य के गरीबी रेखा से नीचे बसर करने वाले परिवार को 5 किलो अनाज और 1 किलो दाल नबंबर तक मुफ्त में मिलेगा
नीतीश कुमार को इस योजना से रखा गया है दूर

भाजपा के इस झोला अभियान का असल मकसद, आमलोगों तक ये बात पहुंचाना है कि गरीबों को जो अनाज मिल रहा है वो असल में मोदी सरकार का दिया है।और यही वजह है कि यूपी में इस योजना के शुभआरम्भ के दौरान जो झोला बाटा गया था उसमें योगी की तस्वीर थी लेकिन बिहार में नीतीश कुमार की तस्वीर झोला पर नहीं है ।
यहां संसदीय क्षेत्रों के लिहाज से भाजपा के सांसदों का चेहरा होगा। जहां विधायक हैं वहां विधायक का। कुल मिलाकर केन्द्र सरकार के काम का क्रेडिट नीतीश कुमार ना ले पाएं, इसकी पूरी कोशिश की गई है।राजद ने इस झोला राजनीति पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री अन्न योजना मोदी की योजना नहीं है जो सिर्फ बीजेपी के विधायक और सांसद का फोटो झोला पर रहेगा तत्तकाल पीएम मोदी इस प्रवृति पर रोक लगाये नहीं तो राजद इसको लेकर जनता के बीच जायेंगी ।

बिहार इस बार भी वीरता पदक से चूका

हर वर्ष की भाती स्वतंत्रता दिवस के मौके पर देश के जांबाज पुलिस पदाधिकारियों को दी जाने वाली विरता पुरस्कार( गैलेंट्री पुलिस पदक)में इस बार भी बिहार का नाम नहीं है जबकि विराता पुरस्कार के इतिहास की बात करे तो बिहार हमेशा दो तीन पदक लेता रहा है।

 गृह मंत्रालय हर साल स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर देश के सभी राज्यों व केंद्रशासित प्रदेश की पुलिस सेवा से जुड़े पदाधिकारियों व कर्मियों के लिए पदक की घोषणा करती है। यह पदक चार श्रेणी में दिए जाते हैं। राष्ट्रपति का गैलेंट्री पुलिस पदक, गैलेंट्री पुलिस पदक, राष्ट्रपति का विशिष्ट सेवा पदक व सराहनीय सेवा पदक।

स्वतंत्रता दिवस पर इस वर्ष बिहार के 23 पुलिस पदाधिकारियों व कर्मियों को गृह मंत्रालय की ओर से सेवा पदक के लिए चुना गया है। दो पुलिस पदाधिकारियों को विशिष्ट सेवा के लिए राष्ट्रपति पुलिस पदक जबकि डीएसपी सुबोध कुमार समेत 21 को सराहनीय पुलिस सेवा पदक दिया जाएगा। आर्थिक अपराध इकाई, पटना में पुलिस निरीक्षक विपिन कुमार सिंह और पटना जिला बल में पुलिस अवर निरीक्षक राम कुमार सिंह को विशिष्ट सेवा पदक के लिए चुना गया है। बिहार के डीजीपी एसके सिंघल ने विशिष्ट व सराहनीय सेवा पदक पाने वाले पुलिस पदाधिकारियों व कर्मियों को बधाई एवं उज्ज्वल भविष्य

इन्हें मिला सराहनीय सेवा पदक
– सुबोध कुमार, डीएसपी मद्यनिषेध,
– आनंद कुमार सिंह एसआइ सहरसा,
– राज नारायण यादव एएसआइ पटना,
– सुधाकर सिंह, एसआइ पूर्णिया,
– अर्जुन बेसरा एसआइ, रेल कटिहार,
– शत्रुघ्न पटेल, एसआइ कैमूर,
– अरुण कुमार झा, एसआइ दरभंगा,
– कुमार अजीत सिंह, एएसआइ सीआइडी,
– संजय कुमार यादव, एएसआइ सीआइडी,
– उमेश पासवान, एएसआइ एसटीएफ,
– अजय कुमार द्विवेदी, एएसआइ पुलिस मुख्यालय,
– अमेंद्र कुमार गुप्ता, एएसआइ मद्यनिषेध इकाई,
– अनिल कुमार सिंह, हवलदार एटीएस,
– अरुण कुमार सिंह, चालक हवलदार एटीएस,
– मो. रिजवान अहमद, हवलदार बीएसएपी-10,
– विनय कुमार सिंह, हवलदार सिवान,
– लालबाबू सिंह हवलदार बीएसएपी-14,
– बलराम सिंह, चालक सिपाही बीएसएपी-10,
– हरेंद्र कुमार चौधरी, सिपाही नालंदा,
– रामकुमार शर्मा, सिपाही सीआइडी,
– संजय कुमार सिपाही गोपालगंज।

गैलेंट्री पुलिस पदक नहीं मिलने को लेकर जब राज्य के डीजीपी से सवाल किया गया तो कहां कि हमारे राज्य में जांबाज पुलिस अधिकारियों की कोई कमी है कभी कभी ऐसा होता है वैसे विरता पदक का एक अलग ही महत्व है ।

भारत का 75वां स्वतंत्रता दिवस खास होगा , करेंगे दो हेलिकॉप्टर्स पुष्पवर्षा लाल किले पर

रक्षा मंत्रालय ने शनिवार को जानकारी दी है कि जैसे ही स्वतंत्रता दिवस समारोह में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा राष्ट्रीय ध्वज फहराया जाएगा, भारतीय वायु सेना (IAF) के दो Mi-17 1V हेलिकॉप्टर कार्यक्रम स्थल पर फूलों की पंखुड़ियों की वर्षा करेंगे

रक्षा मंत्रालय ने शनिवार को जानकारी दी है कि जैसे ही स्वतंत्रता दिवस समारोह में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा राष्ट्रीय ध्वज फहराया जाएगा, भारतीय वायु सेना (IAF) के दो Mi-17 1V हेलिकॉप्टर कार्यक्रम स्थल पर फूलों की पंखुड़ियों की वर्षा करेंगे. स्वतंत्रता दिवस पर पहली बार ऐसा होगा. रक्षा मंत्रालय के मुताबिक, पहले हेलिकॉप्टर के कैप्टन विंग कमांडर बलदेव सिंह बिष्ट होंगे, जबकि दूसरे हेलिकॉप्टर की कमान विंग कमांडर निखिल मेहरोत्रा के हाथ में होगी.

स्कूल जाने से पहले सबसे जरूरी पाठ:बच्चों! मास्क पहने रहना, किसी से न कुछ लेना न देना, तबीयत जरा भी बिगड़े तो घर पर ही रहना; पेरेंट्स-टीचर्स के लिए भी जरूरी सलाह

देश में कोरोना की दूसरी लहर अब लगभग थम गई है। स्थिति सामान्य होती देख कई राज्यों ने स्कूलों को खोलने का फैसला कर लिया है। कोविड की मौजूदा स्थिति की बात करें तो फिलहाल रोजाना के मामले 40 हजार के आसपास बने हुए हैं। पंजाब और छत्तीसगढ़ ने स्कूल खोल दिए हैं, वहीं उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश 16 अगस्त से स्कूलों को फिर से खोलने की तैयारी में हैं। कोरोना की तीसरी लहर की आशंका के बीच यह फैसला कितना सही और चुनौतीपूर्ण हो सकता है, इसे लेकर चर्चा जारी है। इन सबके बीच पेरेंट्स के लिए बच्चों की सुरक्षा और शिक्षा दोनों ही चिंता का विषय बनी हुई है।