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जनता बिहार की राजनीति में बड़ा बदलाव चाहती है

बिहार विधानसभा चुनाव 2020 और 2021 के उपचुनाव के परिणाम का संकेत साफ है कि जनता बदलाव चाहती है और इसके लिए बिहार के राजनीतिक दलों को वो लगातार संदेश भी दे रही है की नयी सोच के साथ जनता के बीच आये लेकिन बिहार की राजनीतिक दल उस संदेश को या तो समझ नहीं रही हैं या समझने को तैयार नहीं है, चाहे वो भाजपा हो ,जदयू हो या फिर राजद हो ।2010 में बिहार की जनता ने एनडीए गठबंधन को दो तिहाई बहुमत दिया था और 2015 में एक नया गठबंधन बना उसको भी जनता ने दो तिहाई बहुमत के करीब पहुंचा दिया था लेकिन दोनों चुनाव में जनता ने जिस गठबंधन पर भरोसा दिलाया था वो गठबंधन बीच में ही टूट गया इस वजह से जनता छला हुआ महसूस करने लगा । 

 2020 के विधानसभा चुनाव में जनता अपना हिसाब चुकता कर लिया और एक ऐसी पार्टी को वोट किया जिसके बारे में पता था कि वो जदयू को चुनाव हराने के लिए खड़ा है। चिराग जिस तरीके से जदयू के खिलाफ उम्मीदवार खड़ा किया था उसी तरीके से बीजेपी के खिलाफ भी उम्मीदवार खड़ा करता तो आज बिहार की राजनीति ही कुछ और हो गयी रहती क्यों कि दोनों पार्टियां 2005 से 2020 के बीच जितने भी चुनाव हुए उन चुनावों पर गौर करेंगे तो एक बात साफ है सोशल इंजीनियरिंग के नाम पर बहुत सारे ऐसे निर्णय लिये गये जिससे मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग नाराज हो गया उसी तरह 2005 से 2020 के बीच जिस अंदाज में सरकार चलायी गयी उससे भी लोगों में खासा आक्रोश था फिर भी बिहार की जनता राजद को गले नहीं लगाया।

1—राजद की 2020 की सफलता के पीछे चिराग फैक्टर महत्वपूर्ण था  2020 के बिहार विधानसभा चुनाव के परिणाम पर गौर करेंगे तो प्रथम और दूसरे चरण के चुनाव में राजद की सफलता के पीछे बड़ी वजह चिराग की पार्टी रही दिनारा ,सासाराम सहित 40 के करीब ऐसी सीटें हैं जहां चिराग फैक्टर ना होता तो राजद के लिए जीत आसान नहीं होता।    एक और बात चिराग को जो लोग वोट कर रहे थे उनको पता था कि चिराग को वोट देने का मतलब है कि जदयू चुनाव हार जाएगा और हो सकता है राजद गठबंधन की सरकार भी बन जाये यह समझते हुए भी प्रथम और दूसरे चरण के मतदान के दौरान जनता चिराग को वोट दिया। मतलब नीतीश कुमार की राजनीति और सरकार चलाने की शैली से जनता इतना आक्रोशित था कि वो इस तरह का निर्णय लेने को मजबूर हो गया ।दूसरी वजह ये भी रही कि राजद एमवाई समीकरण में कुछ नये वोट को जोड़ने में कामयाब रहा था उससे भी राजद को फायदा हुआ लेकिन संदेश क्या था बिहार वर्तमान राजनीति से ऊब चुकी और बदलाव चाह रही है ।

2–सीधी लड़ाई में राजद को अभी भी नुकसान हो रहा है 2020 के विधानसभा चुनाव के तीसरे चरण और 2021 के उप चुनाव में जो परिणाम आया है वह संकेत है कि सीधी लड़ाई में अभी भी लोग राजद के खिलाफ गोलबंद हो जा रहे हैं और राजद अंतिम दौर में फिसल जा रहा है मतलब बिहार की जनता अभी भी राजद के जंगलराज से अपने आपको बाहर नहीं निकाल पा रही है जबकि राजद लगातार नये वोटर को जोड़ने की कोशिश में लगा हुआ है फिर भी उन्हें सफलता नहीं मिल रही है ।

3–राजद में अभी भी बड़े बदलाव की जरूरत है 2015 के विधानसभा चुनाव के परिणाम पर गौर करिए महागठबंधन बीजेपी गठबंधन को पूरी तरह जमींदोज करने में इसलिए कामयाब रहा कि जनता को यह भरोसा था कि नीतीश के रहते हुए लालू का जंगलराज लौट नहीं सकता है और इसी भरोसा ने बीजेपी की सारी तैयारी की हवा निकाल दी। 

जिस दिन कांग्रेस,चिराग और वामपंथी बिहार की जनता को यह भरोसा दिलाने में कामयाब हो जायेगा कि राजद के नेतृत्व में सरकार भी बनेगी तो यादव और मुसलमानों की  गुंडागर्दी  नहीं चलेगा उसी दिन बिहार में एनडीए गठबंधन का खेला खत्म हो जायेगा और इसके लिए तेजस्वी को कड़े फैसले लेने पड़ेगे तेज प्रताप से रिश्ता खत्म करना होगा । 

यादव और मुसलमानों में जो अपराधी छवि के लोग हैं उससे साफ दूरी बढ़ानी पड़ेगी तभी राजद के साथ नये लोग जुड़ पायेंगे ।कांग्रेस का जनाधार हो या ना हो कांग्रेस को सम्मान जनक सीट देनी पड़ेगी और इसके लिए कांग्रेस आलाकमान को भी बिहार में कांग्रेस किस तरह की राजनीति करे इसको लेकर नये सिरे से विचार करनी होगी क्यों कि कांग्रेस का जो परंपरागत वोटर रहा है वो बीजेपी और जदयू दोनों में असहज महसूस कर रहा है और ऐसे में जैसे ही लगेगा कि कांग्रेस बदलाव के मूड में है बहुत कुछ बदल सकता है और इसके लिए कांग्रेस को चिराग से नजदीकी बढ़ानी चाहिए साथ ही कांग्रेस ऐसे लोगों को शामिल करे जो मजबूती के साथ सुशासन बनी रही इसके लिए तेजस्वी के सामने वो झुके नहीं । 

वैसे भी राजद की अब वो हैसियत नहीं है कि पुराने अंदाज में राजनीति और सरकार चला ले उन्हें सत्ता में गैर यादव और गैर मुस्लिम को मजबूत भागीदारी देनी पड़ेगी तभी कुछ बदलाव की बात सोची जा सकती है और इसके लिए दिल्ली नहीं बिहार के गांव में रात गुजारनी होगी साथ ही चुनाव के समय नहीं उससे पहले से नये वोटर कैसे जुड़े इस पर काम करने कि जरूरत है कागज पर जोड़ घटाव से काम नहीं चलने वाला है ।

4—-बीजेपी के लिए भी संदेश सही नहीं है जनता के मूड को बीजेपी भी समझने को तैयार नहीं है बीजेपी को मंथन करना चाहिए कि बिहार में यादव को लेकर जो प्रयोग 20 वर्षो से कर रहा है उस प्रयोग का प्रतिफल क्या सामने आया है बिहार में  बीजेपी 2005 से लगभग सत्ता पर काबिज है इस दौरान बीजेपी किसी एक नये वोटर को अपने साथ जोड़ने में कामयाब नहीं रहा है उलटे बनिया और सवर्ण जो इसका कोड़ वोटर रहा है वो साथ छोड़ता जा रहा है,बिहार में भी बीजेपी वही काम कर रही है जो काम राजद और जदयू कर रहा है नये नेतृत्व को उभरने नहीं देना है और हमेशा वैशाखी के सहारे सरकार में बने रहना है कभी नीतीश ,कभी उपेन्द्र कुशवाहा तो कभी रामविलास पासवान के सहारे ।जबकि 1995 से लेकर 2021 का समय काफी था अति पिछड़ा और महादलित की राजनीति में सेंधमारी करने के लिए लेकिन इस दौरान ये प्रयोग क्या करते रहे यादव को तोड़ो यादव को तोड़ो हश्र क्या हुआ 2015 के विधानसभा चुनाव में मतलब बिहार बीजेपी ने यथा स्थितिवादी को स्वीकार कर लिया ऐसे में बिहार बीजेपी आने वाले समय में इसकी ताकत और छिन होगी ये साफ दिख रही है ।

5–नीतीश कुमार की लव कुश के सहारे वापसी संभव नहीं है आज नीतीश कुमार जदयू को वही समता पार्टी वाली राजनीति के दौर में पहुंचा दिया है जहां पार्टी लव कुश से आगे बढ़ नहीं पायी थी, हाल के दिनों में नीतीश कुमार के तमाम राजनीतिक फैसले इसी और संकेत दे रहा है कि वो लवकुश समीकरण को मजबूत करना चाहता है ताकि आने वाले समय में कम से कम इन वोट के सहारे बिहार की राजनीति में बारगेनिंग करने कि स्थिति में बने रहे वैसे बिहार विधानसभा उप चुनाव के जो परिणाम आये हैं उससे नीतीश सीख लेते हुए अपनी राजनीति और सरकार चलाने के तरीके में बदलाव लाते हैं तो  तो थोड़ी स्थिति बदल सकती है  ।

राजनीति में अक्सर दो दुना चार नहीं होता है

राजनीति में अक्सर दो दुना चार नहीं होता है ,वही कागज पर जो गणित दिखता है वही जमीन पर भी दिखाई दे ये कोई जरूरी नहीं है बिहार विधानसभा के उपचुनाव में कुछ ऐसा ही देखने को मिल रहा है जिस कुशेश्वर स्थान विधानसभा क्षेत्र को लेकर कांग्रेस और राजद में विवाद हुआ उस विधानसभा को लेकर राजद का मानना है कि वहां सबसे अधिक वोटर मुसहर जाति का है उसके साथ यादव और मुसलमान आ जाएगा तो फिर राजद प्रत्याशी को जीत से कोई रोक नहीं सकता है ये राजनीतिक गणित सौ फीसदी सही भी है ये तीनों एक साथ आ जाये तो फिर बहुत मुश्किल है नहीं है राजद का चुनाव जीतना ।

1—यादव और मुसहर के बीच दो दशक से हिंसक संघर्ष चल रहा है कुशेश्वर स्थान में
कुशेश्वर स्थान बिहार का सबसे पिछड़ा प्रखंड है जहां अभी भी अधिकांश गांव में सड़क नहीं पहुंचा है वजह बाढ़ है , दरभंगा से कुशेश्वर स्थान पहुंचने के बाद आज भी अधिकांश गांव में जाने के लिए बस नाव ही एक सहारा है। कुशेश्वर स्थान विधानसभा क्षेत्र समस्तीपुर ,खगड़िया और सहरसा बॉर्डर से जुड़ा हुआ यह स्थान कोसी,कमला और अधवारा समूह के नदियों का कीड़ा स्थल है और यह इलाका कभी अपराधियों का गढ़ माना जाता था एक दौर था जब कारी पासवान और अशोक यादव गैंग के बीच वर्चस्व को लेकर खूनी संघर्ष चलता था कारी पासवान के पुलिस एनकाउंटर में मारे जाने के बाद यह पूरा दियरा इलाका अशोक यादव और रामानंद यादव के कब्जे में आ गया लेकिन 2005 में जब नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार में सरकार बनी तो मुहसर जाति के लोग यादव के आतंक के खिलाफ गोलबंद होने लगे और इसी दौरान 2008 में गई जोड़ी गांव में दो मुसहर की हत्या कर दी गयी और इस घटना में कई मुसहर घायल हो गये थे इस घटना के बाद इस इलाके में यादव के खिलाफ नक्सली संगठन तैयार होने लगा और उसके बाद हत्या को सिलसिला दोनों और से शुरू हुआ वो अभी तक जारी है दो दर्जन से अधिक हत्याएं इन इलाकों में हो चुकी है और एक वर्ष पहले ही कुख्यात रामानंद यादव की हत्या मुसहर जाति के लोगों ने कर दिया था।

कुशेश्वर स्थान विधानसभा क्षेत्र में तिलकेश्वर थाना क्षेत्र स्थित गईजोड़ी ,रक्डी ,झाझा सहित एक दर्जन से अधिक गांव है जहां हर वर्ष कास की खेती पर कब्जा करने को लेकर यादव और मुसहर के बीच हथियार निकलता है जानकार बताते हैं कि 2005 के बाद से मुसहर पिछले विधानसभा चुनाव तक एनडीए के साथ यानी यादव जिसके साथ रहता था उसके खिलाफ वोट करता था जीतनराम मांझी के मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद मांझी का पार्टी के द्वारा माहौल बनाने की कोशिश हुई लेकिन मुसहर जदयू के साथ रहा और 2015 के चुनाव में जदयू ने एलजेपी के प्रत्याशी को 18 हजार वोट से चुनाव हार दिया।

यहां मुसहर जाति का वोट 35 हजार के करीब वोट है 2008 से जब से नये परिसीमन में इस विधानसभा सीट का गठन हुआ है तब से लेकर 2020 के विधानसभा चुनाव तक हुए वोटिंग ट्रेंड पर गौर करेंगे तो सबसे कम वोटिंग प्रतिशत मुसहर जाति का ही रहा है हालांकि पहली बार किसी दल ने मुसहर को टिकट दिया है और उसको लेकर मुसहर जाति में उत्साह भी है लेकिन दो बड़ी समस्या है जो राजद के गणित को प्रभावित कर रहा है ।

पहला है जिस गांव में मुसहर और यादव की आबादी है वहां मुसहर यादव के साथ वोट नहीं कर रहा है ऐसा साफ दिख रहा है उसकी वजह आये दिन फसल पर कब्जा करने को लेकर चला आ रहा है विवाद है हालांकि जिस गांव में मुसहर यादव के साथ नहीं रह रहा है वहां के मुसहर का वोट शत प्रतिशत राजद उम्मीदवार के साथ है वैसे 27 को जीतन राम मांझी तिलकेश्वर में आ रहे हैं उनकी सभा में मुसहर की उप स्थिति कैसी रहती है उस पर साफ हो जाएगा क्यों कि यहां अभी भी ट्रेंड है जिसको वोट करेगा उसी के सभा में जायेंगा सभा में मौजूद भीड के उत्साह से समझ में आ जाता है ।

दूसरी सबसे बड़ी समस्या पंचायत चुनाव है यहां 12 दिसंबर को वोट पड़ना है इस वजह से मुसहर और यादव दोनों खुलकर राजनीति करने से परहेज कर रहे हैं क्यों कि कई पंचायच ऐसा है जहां यादव को अतिपिछड़ा के वोट का जरुरत है इसी तरह कई आरक्षित सीट ऐसा है जहां मुसहर उम्मीदवार को कुर्मी वोटर के मदद की जरूरत है इस विधानसभा में 20 से 25 हजार कुर्मी (धानुक) का भी वोट है इसलिए इस विधानसभा में कई ऐसे फेक्टर है जो कागज पर खींची लकीर से मेल नहीं खा रहा है ।