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जहरीली शराब से अब तक 300 गरीब मरे, इस्तीफा दें नीतीश: सुशील मोदी

पटना। पूर्व उपमुख्यमंत्री एवं राज्यसभा सदस्य सुशील कुमार मोदी ने कहा कि 2016 में शराबबंदी लागू होने के बाद से जहरीली शराब पीने की घटनाओं में 300 से ज्यादा लोगों की मौत हुई। यह हादसा नहीं, दलितों-गरीबों की हत्या का मामला है और इसकी जिम्मेदारी लेकर नीतीश कुमार को इस्तीफा देना चाहिए।

  • चम्पारण में मरने वालों के आश्रितों को भी मिले 4-4 लाख का मुआवजा
  • जहरीली शराब से मौत हादसा नहीं, दलित नरसंहार
  • जिन्हें जहरीली शराब से मौत पर हमदर्दी नहीं, वे माफिया की हत्या पर आँसू बहा रहे

श्री मोदी ने कहा कि जहरीली शराब से मरने वालों और उनके आश्रितों के प्रति नीतीश कुमार की कोई सहानुभूति नहीं है।

उन्होंने कहा कि पूर्वी चम्पारण में जहरीली शराब से जिनकी मृत्यु हुई, उनके आश्रितों को भी उत्पाद कानून के अनुसार 4-4 लाख रुपये की अनुग्रह राशि मिलनी चाहिए। खजूरबन्ना (गोपालगंज) में जहरीली शराब से मरने वाले 30 लोगों को मुआवजा दिया गया गया था।

Poisonous_liquor_Death_Bihar

श्री मोदी ने कहा कि जदयू-राजद सहित जिन सात दलों के राज में दो दिन के भीतर जहरीली शराब से दलित-आदिवासी समुदाय के 30 से ज्यादा लोगों की जान गई, वे यूपी के एक माफिया के गैंगवार में मारे जाने पर आँसू बहा रहे हैं।

श्री मोदी ने कहा कि माफिया अतीक और उसके गुर्गों के मारे जाने से उत्तर प्रदेश की जनता खुश है, लेकिन जिन्होंने बिहार में शहाबुद्दीन को माफिया बनाया, वे पड़ोसी राज्य के एक दुर्दांत माफिया का मजहब देख कर उसकी मौत पर छाती पीट रहे हैं।

उन्होंने कहा कि लालू-राबड़ी राज में मंत्री वृजबिहारी प्रसाद को पुलिस सुरक्षा में रहते हुए अस्पताल परिसर में गोलियों से भून दिया गया था। अजित सरकार, अशोक सिंह सहित आधा दर्जन विधायकों की हत्या भी उसी दौर में हुई, लेकिन राजद से मिल कर सत्ता पाने वाले लोग यह सब भूल गए।

श्री मोदी ने कहा कि राजद शासन में दलित-पिछड़े हत्या-नरसंहार का शिकार होते थे, आज चाचा-भतीजा राज में जहरीली शराब के जरिये दलित-आदिवासी नरसंहार हो रहा है।

ये शराब बहुत जालीम है नीतीश जी

ये शराब बड़ी जालिम चीज है,चले थे गांधी बनने और आज वही शराब नीति नीतीश कुमार के गले का फास बन गया है। जी हां, 2020 में सरकार बनने के बाद से अभी तक किसी एक विभाग की सबसे अधिक समीक्षा नीतीश कुमार द्वारा किया गया है तो वह है उत्पाद विभाग और उसी का नतीजा था कि नीतीश कुमार ने शराबबंदी कानून में संशोधन करते हुए शराब पीकर पकड़े जाने पर 2-5 हजार रुपये के बीच जुर्माना लेकर छोड़ने की बात सामने आयी और जुर्माना नहीं देने पर एक महीने की जेल हो सकती है।

संशोधन के बावजूद पुलिस जुर्माना लेने के बजाय कोर्ट में भेज देती है इस दौरान शराब पीने वाले को भी परेशानी झेलनी पड़ती है ।आंकड़ा बता रहा है कि शराब पीकर पकड़े गये अभियुक्तों में 80 प्रतिशत से अधिक गरीब और कमजोर वर्ग के लोग हैं, पैसे वाले पकड़े भी जाते हैं तो वही के वही पुलिस पैसा वसूल कर छोड़ देता है ।इस वजह से गरीब लोगों में शराब कानून को लेकर एक अलग तरह का गुस्सा पैदा होता जा रहा है ।

महिला अब शराबबंदी पर बात करना नहीं चाहती है
मोकामा और गोपालगंज विधानसभा उप चुनाव के दौरान मोकामा में कुछ ज्यादा तो समझ में नहीं आया लेकिन गोपालगंज में महिलाओं में नीतीश कुमार को लेकर वह उत्साह देखने को नहीं मिला जो पहले देखने को मिलता था। बातचीत में पता चला कि शराबबंदी कानून को लेकर महिला नीतीश से निराश है और वो अब हार मान गयी है ।

इसका असर यह देखने को मिला कि वोट देने को लेकर महिलाओं में जो उत्साह पहले रहता था उसमें कमी आयी है । चुनाव के बाद मैंने इसके लिए अलग अलग जिलों में एक हजार महिलाओं से बात किये सभी के सभी शराबबंदी के पक्ष है लेकिन समस्या यह आ रही है कि गांव गांव में डोर टू डोर शराब पहुंचाने वालों का जो सिंडिकेट खड़ा हो गया है उस सिंडिकेट में कोई उसका देवर है तो कोई जाउत है तो कोई भैसुर है मतलब पीने वाला भी और शराब पहुंचाने वाला भी एक दूसरे का रिश्तेदार ही है ।

इस वजह से महिला अब उस अंदाज में विरोध नहीं कर पाती है क्यों कि विरोध करती है तो डोर तू डोर शराब पहुंचाने वालों का परिवार ही उसके लिए आगे आकर लड़ने लगती है इस वजह से महिलाओं में शराबबंदी को लेकर जो एकजुटता देखने को मिलता था वो पूरी तौर पर हर गांव में टूट गया है।

हालात यह है कि जीविका दीदी भी अब शराब पर चर्चा करने से डरती है क्यों कि चौकीदार से लेकर थानाध्यक्ष तक शराब कारोबारी और डोर टू डोर शराब पहुंचाने वालों के साथ खड़ी रहती है । वही जो शराब पहले सौ रुपया में मिलता था वो आज तीन सौ रुपया में मिल रहा है इस वजह से महिलाओं को घर चलाने में काफी परेशानी हो रही है इससे महिला खासा निराश है और इसका असर नीतीश कुमार के छवि पर पड़ रहा है।

Nitish Kumar and Liquor Ban

वही आकड़ा पर गौर करे तो अभी तक शराबबंदी के बाद जितनी भी गिरफ्तारी हुई है उसमें सबसे अधिक संख्या पिछड़े और दलित जाति के लोगों का है। वही इस काम में गांव स्तर पर काम करने वाला भी पिछड़ा और दलित वर्ग से ही आता है इस वजह से गांव आर्थिक व्यवस्था पूरी तौर पर बदल गया है।

डोर टू डोर शराब पहुंचाने वाले के घर कि स्थिति में बड़ा बदलाव आ रहा है इसको देखते हुए रोज नये नये लोग इस धंधे में शामिल हो रहे हैं। अब हालात यह है कि डोर टू डोर शराब पहुंचाने वालो की संख्या इतनी बढ़ गयी है कि शराब कारोबारी डोर टू डोर शराब पहुंचाने का काम देने से पहले 25 से 50 हजार रुपया लेता है उसके बाद उन्हें यह काम देता है और यह पैसा वापस नहीं मिलता है ।

एक तरह से डोर टू डोर शराब पहुंचाने का लाइसेंस निर्गत करता है जिसकी जानकारी गांव के चौकीदार से लेकर थानेदार तक को रहता है अब तो मुखिया भी इस खेल में हिस्सेदार बन गया है। इस तरह गांव स्तर पर शराबबंदी कानून पूरी तरह से फेल हो गया है । वही पुलिस को दिखाने के लिए जो कार्यवाही कर रही है उसके शिकार अधिकांश गरीब ,दलित और पिछड़ा हो रहा है इस वजह से एक नयी तरह की समस्या खड़ी होने लगी है जिसका राजनीतिक नुकसान कही ना कही नीतीश को हो रहा है और यही वजह है कि इन दिनों जदयू के नेता भी शराबबंदी कानून को लेकर बोलने लगे हैंं।