पत्रकार अविनाश झा हत्याकांड मामले में पुलिस प्रशासन क्या कर रही है इस पर मेरी भी नजर है और अविनाश को न्याय कैसे मिले इसको लेकर राज्य के सीनियर अधिकारियों से भी लगातार संपर्क में है आईजी दरभंगा को देखने का निर्देश पुलिस मुख्यालय की और से दिया गया है।
जो जानकारी मिल रही है अविनाश मधुबनी जिले में चल रहे अवैध नर्सिंग होम के खिलाफ अभियान चला रखा था और उसी वजह से उसकी हत्या हुई है ऐसा परिवार के लोगों का कहना है ।
वजह जो भी रहा हो लेकिन इस तरह के सार्वजनिक हितों से जुड़े मामले में झूठे मुकदमे में फंसाने से लेकर हत्या तक की घटनाए आम होती जा रही है वही इस तरह के व्हिसल ब्लोअर के संरक्षण के लिए जो कानून बनाये गये वो अब निष्प्रभावी होते जा रहा है। वजह भ्रष्टाचार और अन्याय के खिलाफ लड़ने वालों को सरकार ,न्यायपालिका और मीडिया से जो पहले संरक्षण मिलता था वो अब नहीं मिल रहा है मीडिया का हाल क्या कहना है शहाबुद्दीन की बेटी की शादी में व्यस्त है, रहे भी क्यों नहीं सबसे अधिक इसी तरह के खबर को लोग पढ़ते हैं ।
वही पुलिस और प्रशासन का हाल यह है कि सिस्टम में व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाता है तो आवाज उठाने वालो पर ही पुलिस कार्रवाई करनी शुरु कर देती है, पहले ये सब थाना स्तर पर होता था लेकिन अब यह सब डीएम और एसपी के स्तर पर होने लगा है ऐसे में आप किससे न्याय की उम्मीद करते हैं ।
कोर्ट का हाल आप देख ही रहे हैं याद है या भुल गये पटना हाईकोर्ट ने मुजफ्फरपुर बालिका गृह मामले में रिपोर्ट करने पर रोक लगा दिया था ।ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि इस भ्रष्ट व्यवस्था से कैसे लड़ा जाये ,मैं अपने अनुभव के आधार पर कुछ बाते कहना चाहता हूं भारत में लोकतंत्र के अंदर जो व्यवस्था है आप उन्ही के सहारे लड़ाई लड़ सकते हैं ।
1970 के दशक में हमारे कुछ उत्साही नौजवान बंदूक के सहारे व्यवस्था बदलने की सोच को लेकर नक्सल आंदोलन की शुरुआत किये भले ही आज यह आंदोलन एक अपराधी गैंग के हाथों सिमट कर रह गया है लेकिन इस आंदोलन ने सिस्टम को अपनी कार्यशैली में बदलाव लाने के लिए जरुर मजबूर किया लेकिन हिंसा आधारित आन्दोलन का जो हश्र होता है वही हश्र नक्सल आंदोलन का भी हुआ ।
दूसरा विकल्प गांधीवाद है उसके लिए आपके अंदर नैतिक बल होना चाहिए साथ ही जेल जाने के डर से बाहर निकलना पड़ेगा आज ना तो इसके लिए समाज तैयार है ना ही हमारी युवा पीढ़ी ।सोशल मीडिया के आने से थोड़ी उम्मीद जगी थी लेकिन भाई साहब लोग इसको भी गर्त में पहुंचा दिये आज हर गांव में एक सोशल मीडिया से जुड़े लोग मिल जायेंगे जो सुबह से शाम तक मिड डे मील की जांच करने स्कूल स्कूल में घूमता रहता है , बात नहीं बनी तो फिर जनवितरण प्रणाली के दुकान पर चला जाता है, इससे भी बात नहीं बनी तो अस्पताल पहुंच जाता है और दिन भर में सौ दो सौ करते करते एक हजार रुपया तक उगाही कर लेता है ।
यही चल रहा है बिहार में हाल ही छपरा से एक सीनियर पुलिस अधिकारी का फोन आया संतोष जी सामने एक लड़का बैठा है कह रहा है कि मैं पटना के एक पोर्टल का संपादक हूं देखिए कैसे ये जनाब एक गरीब का फसा दिया है। हुआ ऐसा कि संपादक महोदय कुछ दिन पहले छपरा गये थे और एक चप्पल बनाने वाले कारोबारी को ऑर्डर दिया कि इस नाम से एक हजार हवाई चप्पल बना दो और इसके लिए एडभान्स के रूप में 5 हजार रुपया भी दे दिया, जिस दिन चप्पल लेने के लिए वो कारोबारी फोन किया उस दिन संपादक महोदय उस कंपनी के बिहार हेड को लेकर छपरा पहुंचे और थाने में बड़े ब्रांड का नकली समान बनाने का आरोप लगाते हुए केस करवा दिया ।
पुलिस उस कारोबारी के घर छापा मारा तो ब्रांडेड कंपनी का नकली चप्पल उसके घर से बरामद हुआ पुलिस वहां काम करने वाला जो भी कारीगर था सबको पकड़ कर थाने ले आया पुलिस के लिए ये बड़ी उपलब्धि थी इसलिए पूछताछ के लिए सीनियर अधिकारी भी थाने पहुंच गये इस बीच संपादक महोदय पुलिस की कार्रवाई का लाइव रिपोर्टिंग करते रहे।
सीनियर अधिकारी जब थाना पहुंचा तो पूछताछ में पता चला कि चप्पल कारोबारी कानपुर के चप्पल बनाने वाली कंपनी में काम करता था लॉकडाउन में कंपनी बंद हो गया तो छपरा लौट आये और यहां आकर चप्पल बनाना जानते थे ही ,यही घर पर छोटा सा फैक्ट्री बैठा कर चप्पल बनाते हैं और गांव गांव घूम कर बेचते हैं ये मेरा भतीजा है जो साथ कानपुर में काम करता था।
ये जो मोबाइल चला रहे हैं वहीं आये हुए थे एक माह पहले मुझे एक नाम दिये और पांच हजार एडभान्स दिये और बोले जो एक हजार पीस चप्पल इस नाम से बना दो मैंने बना करके फोन कर दिये फिर ये घटना घटी है ।
पुलिस जब कंपनी वाले से पूछा तो पता चला ब्रांडेड कंपनी इस तरह जो नकली सामान बेचता है उसको पकड़ने पर कंपनी पकड़वाने वाले व्यक्ति को अच्छा खासा पैसा देता है, संपादक महोदय मीडिया के आर में यही धंधा चला रहा है ।
कभी सूने हैं पत्रकार को भी जिला बदर किया जाता है नहीं ना सूने हैं तो सुन लीजिए यह घटना दरभंगा का है जहां एक राष्ट्रीय चैनल के पत्रकार को डीएम जिला बदर कर दिया इसलिए कि वो रोज एफसीआई गोदाम पहुंच कर उगाही करना चाह रहे थे।
यही हाल सूचना का अधिकार की लड़ाई लड़ने वाले अधिकांश आरटीआई कार्यकर्ता का हर पंचायत में आपको दो चार मिल जाएगा जिसका दिन भर काम यही है सूचना मांगना और पैसा लेना और यही वजह है कि यह कानून ही निष्प्रभावी हो गया ।ऐसे में समाज भी तय नहीं पा रही है कि असली कौन है और नकली कौन है और इसी का फायदा सिस्टम उठा रहा है ।
ऐसे में भ्रष्टाचार और जुल्म के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए संगठित होने कि जरूरत है आज हो क्या रहा है भ्रष्टाचार और गलत काम करने वालो को बचाने के लिए सारा चोर एक साथ खड़ा हो जा रहा है लेकिन सही के लिए लड़ाई लड़ने वाले अक्सर अकेले पड़ जाता है ।