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गाँधी जयंती पर खास रिपोर्ट

गाँधी जी ने कहा था निकम्मे अख़बार फेंक दो
“मैं कहूँगा कि ऐसे निकम्मे अख़बारों को आप फेंक दें। कुछ ख़बर सुननी हो तो दूसरों से जान-पूछ लें। अख़बार न पढ़ेंगे तो आपका कोई नुक़सान होनेवाला नहीं है। अगर पढ़ना ही चाहें तो सोच-समझकर ऐसे अख़बार चुन लें जो हिन्दुस्तान की सेवा के लिए चलाए जा रहे हों, जो हिन्दू-मुसलमानों को मिल-जुलकर रहना सिखाते हों। फिर ऐसे अख़बारवालों को भी इतनी धांधली में पड़ने की ज़रूरत नहीं रहेगी कि उन्हें रातभर जागते रहना पड़े और दिन में भी चैन न ले सकें। और ऐसी बेबुनियाद ख़बरें छापने की दौड़ भी नहीं लगानी पड़ेगी। “

महात्मा गाँधी, 12 अप्रैल 1947, ( प्रार्थना-प्रवचन, राजकुल प्रकाशन)
मैं हमेशा मानता हूँ कि आज न कल, भारत की जनता को ग़ुलाम मीडिया के ख़िलाफ़ उठना ही होगा। संघर्ष का रास्ता गांधी का ही होगा। राजनीतिक दल संघर्ष करने का जितना भी अभ्यास कर लें, सारे अभ्यास आभासी साबित होंगे। लोकतंत्र के पुनर्जीवन की सच्ची लड़ाई गोदी मीडिया के ख़िलाफ़ होने वाली लड़ाई से ही शुरू होगी।

गाँधी जयंती पर खास रिपोर्ट

महात्मा गाँधी अमेरिका कभी नहीं गए लेकिन भारत के बाद उनकी सबसे ज्यादा मूर्तियां, स्मारक और संस्थायें अमेरिका में ही हैं। उपलब्ध जानकारी के मुताबिक, अमेरिका में गांधी जी की दो दर्जन से ज्यादा से प्रतिमाएं और एक दर्जन से ज्यादा सोसाइटी और संगठन हैं।

महात्मा गाँधी भारत के अकेले ऐसे नेता रहे हैं, जिनकी भारत सहित 84 देशों में मूर्तियां लगी हैं। पाकिस्तान, कम्युनिस्ट देश चीन से लेकर छोटे-मोटे और बड़े-बड़े देशों तक में बापू की मूर्तियां स्थापित हैं।

उनके जन्मदिवस पर पूरी दुनिया अहिंसा दिवस मनाती है।

महात्मा गाँधी की हत्या के 21 साल बाद ब्रिटेन ने उनके नाम से डाक टिकट जारी किया। इसी ब्रिटेन से भारत ने गाँधी की अगुआई में आज़ादी हासिल की थी।

अलग-अलग देशों में कुल 48 सड़कों के नाम महात्मा गाँधी के नाम पर हैं। भारत में 53 मुख्य मार्ग गाँधी जी के नाम पर हैं।

गाँधी जी द्वारा शुरु किया गया सिविल राइट्स आंदोलन कुल 4 महाद्वीपों और 12 देशों तक पहुंचा था।

अपने वक़्त के महान वैज्ञानिक आइंस्टीन ने कहा था कि “कुछ सालों बाद लोग इस बात पर यकीन नहीं करेंगे कि महात्मा गाँधी जैसे सख्श कभी भी इस धरती पर हाड़ मांस का शरीर लेकर चलता था।”

अपने पूरे जीवन में महात्मा गाँधी ने कोई राजनीति पद नहीं लिया। इसीलिए आज़ादी की लड़ाई में उनके नेतृत्व पर कभी कोई सवाल नहीं उठा पाया, क्योंकि उनको न 8000 करोड़ का विमान चाहिए था, न ही 20000 करोड़ का बंगला।

नेल्सन मंडेला से लेकर मार्टिन लूथर किंग तक गाँधी के मुरीद थे, बराक ओबामा जैसे तमाम वर्ल्ड लीडर आज भी गाँधी के मुरीद हैं।

अफ्रीका जैसे कई देशों ने गांधी के आदर्शों और रास्तों से आंदोलन चलाया और आज़ादी हासिल की।

यहां तक कि दुनिया के कई हरामी देश भी गाँधी की इज्जत करते हैं। कई निकृष्ट नेता भी गाँधी का अपमान करने की हिम्मत नहीं जुटा पाते।

इस पूरे ब्रम्हांड में एक भक्ताणु ही ऐसे वायरस हैं जिनको गाँधी से बड़ी समस्या है। समस्या भी ऐसी-ऐसी कि आप हैरान रह जाएंगे। भक्त की समस्या ये भी है कि अगर वह गांधी को महान मान ले तो।उसके लात खाने की संभावनाएं खत्म हो जाती हैं जो उसे बर्दाश्त नहीं है।

संघियों और संघ के समर्थक चमनबहारों की कुंठा क्या है, ये समझ से परे है। जिस दिन मनुष्य के अंदर नफरत का इलाज हो जाएगा, उस दिन संघियों की कुंठा का भी इलाज संभव हो सकेगा। तब तक ये मनुष्यरूपी ये नफरती जंतु गांधी के प्रति नफरत लिए जीते रहेंगे।

गाँधी जयंती पर खास रिपोर्ट

2 अक्तूबर 1947 को गाँधी ने अपने जन्मदिन पर कहा था-
“आज तो मेरी जन्मतिथि है। मैं तो कोई अपनी जन्मतिथि इस तरह से मनाता नहीं हूँ। मैं तो कहता हूँ कि फाका करो, चरख़ा चलाओ, ईश्वर का भजन करो, यही जन्मतिथि मनाने का मेरे ख़्याल में सच्चा तरीक़ा है। मेरे लिए तो आज यह मातम मनाने का दिन है। मैं आजतक ज़िंदा पड़ा हूँ। इस पर मुझकों ख़ुद आश्चर्य होता है, शर्म लगती है, मैं वही शख़्स हूँ कि जिसकी ज़बान से एक चीज़ निकलती थी कि ऐसा करो तो करोड़ों उसको मानते थे। पर आज तो मेरी कोई सुनता ही नहीं है। मैं कहूँ कि तुम ऐसा करो ” नहीं, ऐसा नहीं करेंगे”- ऐसा कहते हैं। ” हम तो बस हिन्दुस्तान में हिन्दू ही रहने देंगे और बाक़ी किसी को पीछे रहने की ज़रूरत नहीं है।” आज तो ठीक है कि मुसलमानों को मार डालेंगे, कल पीछे क्या करोगे? पारसी का क्या होगा और क्रिस्टी का क्या होगा और पीछे कहो अंग्रेज़ों का क्या होगा? क्योंकि वह भी तो क्रिस्टी है? आख़िर वह भी क्राइस्ट को मानते हैं, वह हिन्दू थोड़े हैं? आज तो हमारे पास ऐसे मुसलमान पड़े हैं जो हमारे ही हैं, आज उनको भी मारने के लिए हम तैयार हो जाते हैं तो मैं यह कहूँगा कि मैं तो ऐसे बना नहीं हूँ। जबसे हिन्दुस्तान आया हूँ मैंने तो वही पेशा किया कि जिससे हिन्दू, मुसलमान सब एक बन जाएँ। धर्म से एक नहीं लेकिन सब मिलकर भाई-भाई होकर रहने लगें। लेकिन आज तो हम एक-दूसरे को दुश्मन की नज़र से देखते हैं। कोई मुसलमान कैसा भी शरीफ़ हो तो हम ऐसा समझते हैं कि कोई मुसलमान शरीफ़ हो ही नहीं सकता। वह तो हमेशा नालायक ही रहता है। ऐसी हालत में हिन्दुस्तान में मेरे लिए जगह कहां है और मैं उसमें ज़िंदा रहकर क्या करूँगा? आज मेरे से 125 वर्ष की बात छूट गई है। 100 वर्ष की भी छूट गई है और 90 वर्ष की भीख, आज मैं 79 वर्ष में तो पहुँच जाता हूँ लेकिन वह भी मुझको चुभता है। मैं तो आप लोगों को जो मुझको समझते हैं और मुझको समझनेवाले काफ़ी पड़े है, कहूँगा कि हम यह हैवानियत छोड़ दें। “