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Posts tagged as “#editorial”

पीएम को सुरक्षा मानको से खिलवाड़ की अनुमति नहीं होनी चाहिए

मोदी की सुरक्षा में चूक सिस्टम का फेल्योर है ।
सुप्रीम कोर्ट को कठोर एक्शन लेनी चाहिए ।
पीएम को सुरक्षा मानको से खिलवाड़ की अनुमति नहीं होनी चाहिए ।

लोकतंत्र में जनता द्वारा चुनी गयी सरकार बहुमत के दंभ पर मनमर्जी ना करे उसी को नियंत्रित करने के लिए न्यायपालिका और कार्यपालिका का गठन किया है, भारतीय लोकतंत्र का सार तत्व यही है लेकिन भारत में धीरे धीरे विधायिका के सामने कार्यपालिका और न्यायपालिका कमजोर पड़ती जा रही है ऐसे में लोकतंत्र खतरे में है यह कहने में कोई गुरेज नहीं है।
एक कहानी अमेरिका में काफी प्रचलित है एक बार अमेरिकी राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन व्हाइट हाउस के बाहर सुबह सुबह टहल रहे थे कोहरा की वजह से एक राहगीर राष्ट्रपति से टकरा गया । वह व्यक्ति शायद जल्दी में था झुँझलाकर पूछा कौन है भाई राष्ट्रपति का जवाब था यही जानने के लिए तो मैं टहल रहा हूं।

ये नहीं चलेगा एसपीजी को सख्त होना होगा


राहगीर को लगा कि यह व्यक्ति सनकी है फिर राहगीर ने व्हाइट हाउस की ओर इशारा करते हुए पूछा इसमें कौन रहता है राष्ट्रपति ने कहा मित्र इसमें कोई नहीं रहता है लोग आते और चले जाते हैं कहने का मतलब पीएम की कुर्सी पर लोग आते हैं और चले जाते हैं लेकिन संस्थान से जुड़े लोग हमेशा बने रहते हैं ऐसे में संस्थानों की विशेष जिम्मेवारी है कि ये जो आने और जाने वाले लोग है जिन्हें जनता चुनती है उनकी मनमर्जी को नियंत्रित रखे तभी इस देश में लोकतंत्र आगे बढ़ पायेगा
पंजाब में पीएम का रास्ता रोके जाने के मामले में जो सियासी तमाशा चल रहा है इसमें संस्थानों की जिम्मेवारी बढ़ गयी है सवाल मोदी का नहीं है

ये व्यक्ति कैसे पीएम के गाँड़ी के पास पहुँच गया क्या ये चूक नहीं है

सवाल देश का है ऐसे में मोदी की सुरक्षा को लेकर राजनीति नहीं होनी चाहिए सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है अच्छा है पीएम की सुरक्षा को लेकर विस्तृत बहस हो और उसके बाद ऐसा फुलप्रूफ व्यवस्था बने कि फिर से पीएम की सुरक्षा को लेकर सियासत ना हो सके क्यों कि पंजाब की घटना के बाद कई ऐसे तथ्य सामने आयी है जहां मोदी सुरक्षा मानकों का खुल्लम खुल्ला उल्लंघन करते दिख रहे हैं ये अनुमति किसी भी पीएम को नहीं मिलनी चाहिए और इसके लिए एसपीजी को सुरक्षा मानको को लेकर और सख्त होने कि जरूरत है ।

पंजाब से जो खबरें आ रही है कि पीएम का काफिला रोकने के मामले में पीएम के पास कोई भी किसान नहीं था जबकि बीजेपी के नेता ही मौजूद थे पीएम इस रास्ते से जा रहे हैं ये बीजेपी के नेता को कैसे पता चला जिस बीजेपी के नेता का वीडियो वायरल हो रहा है उसका नाम शिवम है और मीडिया से बातचीत में स्वीकार किया है कि पीएम के पास मोदी जिंदाबाद का नारा में हूं लहरा रहा था वीडियो में साफ दिख रहा है कि झंडा लिए यह शख्स पीएम के गाड़ी के काफी करीब पहुंच गया है और एसपीजी मूकदर्शक बना हुआ है क्या बीजेपी का झंडा और मोदी जिंदाबाद का नारा लगाने वाले आतंकी नहीं हो सकता है यह वीडियो कही ना कही एसपीजी के प्रोफेशनल पुलिस होने पर सवाल खड़े कर रही है इतना ही नहीं एक वीडियो काशी का भी सामने आया है इस वीडियो को देखने के बाद तो लगता ही नहीं है कि पीएम की सुरक्षा में एसपीजी लगा हुआ है यह वीडियो तो बर्दाश्त योग्य नहीं इसी तरह की गलती की वजह से देश दो प्रधानमंत्री को खो चुका है।

नीतीश के गुगली में एक बार फिर फंसा बीजेपी

नीतीश बिहार की राजनीति के चाणक्य हैं ये कई मौके पर साबित कर चुके हैं और एक बार फिर जातीय जनगणना पर बयान देकर बीजेपी सहित सारे विपंक्ष को बैकफुट पर खड़ा कर दिया है।

बिहार की राजनीति में इस वक्त राजनीतिक समझ और उस समझ के सहारे सौदेबाजी में नीतीश कुमार के सामने दूर दूर तक कोई नहीं है ।सुशील मोदी में वो समझ था लेकिन नीतीश कुमार के प्रभामंडल से वो कभी बाहर नहीं निकल सके और इस वजह से बीजेपी बिहार में स्वतंत्र निर्णय लेने कि स्थिति में अभी भी नहीं है।

लालू प्रसाद नीतीश से बेहतर खिलाड़ी हैं लेकिन सत्ता लोलुपता में इस तरह फंसे हुए हैं कि नीतीश की राजनीति को कैसे पराजित करें इस और सोचना ही छोड़ दिया है।

जगतानंद सिंह बेहतर प्रशासक हैं लेकिन राजनीति की वो समझदारी नहीं है, शिवानंद तिवारी में वो आग है लेकिन पार्टी में वो स्थिति नहीं है। बात मनोज झा की करे तो उनकी समझ प्रशांत किशोर वाली है डाटा बेस । और बात बिहार बीजेपी कि करे तो राजनीति की समझ मामले में ऐसी बैंक क्रप्सी पहले कभी नहीं रही है बीजेपी का राज्य और केंद्रीय नेतृत्व इस डर से अभी भी बाहर निकल पा रही है कि कही नीतीश साथ ना छोड़ दे ।

नीतीश कुमार इसी का लाभ उठा रहे हैं और जब बीजेपी से कुछ शर्त मनमानी रहती है तो चलते चलते ऐसा बयान दे देते हैं कि राजद उसमें फंस जाता है और बीजेपी सहम जाता है । याद करिए राज्यपाल कोटे से विधान परिषद सदस्यों के मनोनयन का समय था उस वक्त नीतीश कुमार ने इसी तरह का पिटारा खोल दिया क्या हुआ बीजेपी को मनोनयन में नीतीश के 50 प्रतिशत वाली शर्त माननी पड़ी।

अगले माह बिहार विधान परिषद के 24 सीटों का चुनाव होना है 2015 की बात करे तो उस चुनाव में भाजपा को 11, जदयू को 5, लोजपा को 1, कांग्रेस को 1, राजद को 4 सीटों पर जीत मिली थी बाद में भोजपुर के राधा चरण साह, मुंगेर के संजय प्रसाद और सीतामढ़ी के दिलीप राय राजद छोड़कर जदयू में आ गये वही पूर्वी चंपारण से कांग्रेस के टिकट पर जीते राजेश राम भी जदयू का दामन थाम लिया।


कटिहार से निर्दलीय जीते अशोक अग्रवाल और सहरसा से लोजपा के टिकट पर जीतीं नूतन सिंह भाजपा का दामन थाम ली इस तरह.बदलाव के बाद भाजपा में 13 और जदयू में 9 सदस्य है। नीतीश यहां भी 50–50 का फॉर्मूला चाहते हैं और इसी को ध्यान में रखते हुए नीतीश कुमार ने जातीय जनगणना के जीन को पिटारा से बाहर निकाल दिया है और कहा बिहार बीजेपी में जातीय जनगणना को लेकर अभी तक सहमति नहीं बनी है जिस दिन सहमति बन जायेंगी सर्वदलीय बैठक की तिथि तय हो जायेंगी ।

नीतीश का यह बयान सही निशाने पर लगा है और राजद आगे आकर समर्थन देने तक की बात कह दी हालांकि बीजेपी का अधिकारिक बयान अभी तक नहीं आया है लेकिन मंत्री नीरज सिंह का बयान पहली बार ऐसा लगा कि बीजेपी नीतीश से अलग स्टैंड लेने पर विचार कर रही है लेकिन मंत्री नीरज सिंह का बयान उतना महत्व नहीं रखता जब तक पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष या फिर बिहार बीजेपी के प्रभारी का बयान नहीं आता है लेकिन राजद के बयान से इतना तो जरुर हो गया है कि नीतीश एक बार फिर बीजेपी के साथ सौदेबाजी कर सकता है और तय मानिए कि बिहार विधान परिषद का 50-50 का फॉर्मूला का दांव एक बार फिर नीतीश के पक्ष में होगा ।

भ्रष्टाचार का भेट चढ़ गया गाँधी का सपना ।

चार माह तक चलने वाली बिहार राज्य पंचायत चुनाव का महापर्व जिला परिषद के अध्यक्ष के चुनाव के साथ ही सम्पन्न हो गया । लेकिन इस बार का पंचायत चुनाव एक बड़ा सवाल छोड़ गया है क्या गांधी, लोहिया और जेपी इसी पंचायत की परिकल्पना कर रहे थे क्यों कि चुनाव में जिस तरीके से धनबल का इस्तेमाल हुआ है कभी सोचा भी नहीं जा सकता है । वार्ड सदस्य से लेकर जिला परिषद के सदस्य बनने तक और फिर उप मुखिया से लेकर प्रखंड प्रमुख और जिला परिषद के अध्यक्ष बनने में एक अनुमान के अनुसार कम से कम तीन सौ करोड़ रुपया का निवेश वोटर और चुनाव जीत कर आये प्रतिनिधियों पर हुआ है । अब सवाल यह उठता है कि चुनाव जीतने के लिए इस स्तर पर पैसे का जो निवेश हुआ है उसका उदेश्य क्या है एक तो विधायक और सांसद के टिकट मिलने की सम्भावना बढ़ जाती है दूसरा ग्रामीण विकास से जुड़ी योजनाओं से पैसा कमाना यह कैसे सम्भव है इसके लिए यह समझना जरूरी है कि ये जो पंचायत प्रतिनिधि चुन कर आये हैं ये पांच वर्षों तक करेंगे ।

  • वार्ड सदस्य –वार्ड के विकास की योजनाओं का चयन करेंगे।
  • मुखिया —पंचायत स्तर पर विकास की योजनाओं का चयन करेंगे ।
  • पंचायत समिति सदस्य–इनके क्षेत्र में जितना भी पंचायत आयेगा उससे जुड़ी विकास योजनाओं का चयन करेंगे ।
  • जिला परिषद सदस्य–इनके निर्वाचन क्षेत्र में जो भी पंचायत आयेगा उसके विकास की योजनाओं का ये चयण करेंगे ।

अब जरा ये भी जान लीजिए कि पंचायती राज व्यवस्था के तहत ग्रामीण विकास का काम करने के लिए पैसे का कैसे बंटवारा होता है भारत सरकार ग्रामीण विकास को लेकर जो राशि देती है उसमें 70 प्रतिशत राशी पंचायत को , 20 प्रतिशत राशी पंचायत समिति को और 10 प्रतिशत राशि जिला परिषद को विकास के कार्यों में खर्च करने के लिए दिया जाता है। बात वार्षिक खर्च कि करे तो एक जिले में वर्ष में कम से कम पंचायती राज व्यवस्था के द्वारा ग्रामीण विकास के लिए भारत सरकार की और से 40 से 50 करोड़ रुपया आता है मतलब हर प्रखंड को दो से तीन करोड़ रुपया का हिस्सा मिलता है और उस राशि को लेकर ये सारा खेल खेला गया है ।ऐसी स्थिति में पंचायती राज व्यवस्था से क्या उम्मीद की जा सकती है । चलते चलते पंचायती राज व्यवस्था का राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ेगा इस भी चर्चा कर ही लेते हैं पंचायती राज व्यवस्था के तहत पहली बार ऐसा देखा गया है कि मुस्लिमों का प्रतिनिधित्व लगातार पंचायत में कम होता जा रहा है इस बार किशनगंज और पूर्णिया जिला परिषद का अध्यक्ष मुसलमान बना है प्रखंड प्रमुख और मुखिया में भी यही स्थिति है।

हलांकि आरक्षण के बावजूद जातीय वर्चस्व में अभी भी कोई खास कमी नहीं आयी है वही बात राजनीतिक दल की करे तो पूरे चुनाव के दौरान राजनीतिक दल के चाहने के बावजूद भी एनडीए और महागठबंधन जैसी बात कहीं नहीं दिखी ,मोतिहारी और समस्तीपुर में तो भाजपा और राजद जिला परिषद के चुनाव में एक साथ आ गये इसी तरह बेगूसराय में रतन सिंह भले ही चुनाव हार गये लेकिन जिला परिषद का उनका कब्जा बरकरार रहा इसलिए इस चुनाव का कोई खास राजनीतिक यर्थाथ निकलता हुआ नहीं दिख रहा है बस पैसे का खेल सर्वोपरि रहा ।

हिन्दू धर्म व्यक्ति में चरित्र ,ईमानदारी और कर्तव्य के प्रति जिम्मेवार बना ही नहीं सकता

आज भी मनहूस खबरों के साथ सुबह की शुरुआत हुई जी है नए साल पर जम्मू-कश्मीर में कटरा स्थित वैष्णो देवी मंदिर बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचे थे। माता का दर्शन करने के लिए श्रद्धालुओं की लंबी कतारें लगी थीं। इसी दौरान देर रात करीब 2:45 बजे भगदड़ मच गई। इसमें 12 लोगों की मौत हो गई। 14 लोग जख्मी हैं जिनमें से 3 की हालत गंभीर है।

जहां तक मुझे याद है एक जनवरी को इस तरह की घटनाएं घटती रहती है और शाम होते होते इस तरह की और भी मनहूस खबरें आएंगी ही आयेंगी फिर भी हम लोग सीख लेने को तैयार नहीं है । अक्सर मेरे दिल में ख्याल आता है मैं मंदिर क्यों जाता हूं क्या सोच कर जाते हैं बहुत सारे ऐसे मंदिर हैं जहां पहुंचने के लिए काफी शारीरिक कष्ट भी उठना पड़ता है लेकिन याद करिए उस दौरान भी हम लोग अपने ईश्वर को किस तरीके से याद करते हैं 2019 का वाकिया आज भी मुझे याद है सुल्तानगंज से देवघर पैदल जा रहे थे इसी दौरान रास्ते में एक उर्म दराज महिला एक बच्ची को लेकर चल रही थी और रो रही थी अचानक मेरी नजर उस पर पड़ गयी मैं रुक कर बात किया तो पता चला वो अपने परिवार वालों से कल से ही बिछड़ी हुई है मेरा पास जो पैसा था वो भी खत्म हो गया सुबह से पोती कुछ खाई नहीं है मैं तुरंत पांच सौ रुपया निकाल कर दे दिया कुछ देर बाद मुझे महसूस हुआ कि वो झूठ बोल रही थी खैर हिन्दू धर्म स्थल पर कमोबेश हर जगह ऐसी ही स्थिति है ।

वैष्णव देवी यात्रा के दौरान कही भी वास रुम सही नहीं मिला आप जा ही नहीं सकते हैं चले गये तो बिमार पड़ना तय है आप समझ सकते हैं 14 किलोमीटर आपको पहाड़ पर चढ़ना है फिर भी सामान्य सुविधा भी उपलब्ध नहीं है । वही सिख धर्म से जुड़े धर्मस्थल पर जाये तो साफ सफाई के साथ साथ सेवा भाव क्या कहना है, हां छठ पर्व के दौरान इस तरह की बाते देखने को मिलती है आज देश की सियासत धर्म पर आधारित नैरेटिव पर चल रहा है बहुत ही माकूल समय है हिन्दू धर्म में व्याप्त पाखंड को खत्म करने का मेरे जैसे लोगों को इस तरह कहना सही नहीं है लेकिन हिन्दू धर्म और मंदिर को लेकर जो बातें देखने को मिलता है या फिर मेरा जो व्यक्तिगत अनुभव रहा है ये धर्म व्यक्ति में चरित्र , ईमानदारी और कर्तव्य के प्रति जिम्मेवार बना ही नहीं सकता सोचिए 2022 में हम लोग प्रवेश कर गये हैं कब तक सच से मुंह मोड़ते रहेंगे ।