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बिहार में अब नालंदा कुर्मी नहीं चलेगा गड़बड़ी किये तो कारवाई के लिए तैयार रहे

“तमाशबीन हूँ मैं “
2020 के बिहार विधानसभा चुनाव के जो नतीजे सामने आये उसमें सबसे ज्यादा नुकसान जदयू को हुआ है जबकि चुनाव नीतीश कुमार के चेहरे पर ही लड़ा गया था ।

चुनाव परिणाम के बाद एक बात जो साफ दिख रही थी कि राज्य की जनता का भरोसा नीतीश कुमार के सुशासन के दावे से उठ चुकी है और इसकी वजह पंचायत स्तर तक व्याप्त अफसरशाही और भ्रष्टाचार था ।

सरकार गठन के बाद नीतीश कुमार अफसरशाही और राज्य में व्याप्त भ्रष्टाचार पर कैसे अंकुश लगाये इस पर काम करना शुरु किये और इसके लिए एक बार फिर जनता के दरबार में सीएम कार्यक्रम की शुरुआत हुई ।
वही सीएम ने कई वर्षो से सुस्त पड़े भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने वाले विभाग निगरानी ,विशेष निगरानी और आर्थिक अपराध इकाई के प्रमुख को भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ कठोर कारवाई करने का निर्देश दिया ।

निर्देश के बाद यू कहे तो बिहार में पहली बार भ्रष्टाचार मामले में बड़ी मछलियों पर कारवाई हुई है इस कारवाई से प्रशासनिक अधिकारियों के बीच एक चर्चा जो आम हुआ करता था कि नालंदा और उस आप कुर्मी हैं तो आप कुछ भी कर सकते हैं कोई कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता है या फिर आप एक खास दरबार से जुड़े हैं तोआपका बाल बांका नहीं होने वाला है लेकिन इस बार जो कारवाई हुई है उससे यह मिथ टूटा है ।

बालू माफिया से सांठगांठ मामले में जो कारवाई हुई है उसमें ऐसे अधिकारी भी हैं जो नालंदा और कुर्मी होने के के साथ साथ पूर्व मंत्री के दमाद होने के बावजूद कारवाई हुई है। इतना ही नहीं खास दरबार तक सीधे सूटकेस पहुंचाने वाले अधिकारी भी नपे हैं।

मंत्री के रिश्तेदार भी नपे हैं और साथ ही सत्ता समीकरण के साथ जातीगत राजनीति के सहारे पोस्टिंग कराने वाले अधिकारी भी नपे हैं ।

इस तरह की कारवाई से भले ही अभी ब्यूरोक्रेसी में हड़कंप मचा है लेकिन पोस्टिंग और तबादले को लेकर जो सरकार की नीति है उस नीति में जब तक बुनियादी बदलाव नहीं किये जायेंगे तब तक भ्रष्टाचार पर इस तरह की कारवाई फोरी ही साबित होगी ।

1–मुजफ्फरपुर डीटीओ पर कारवाई
सरकार गठन के बाद भ्रष्टाचार के खिलाफ पहली बड़ी कारवाई मुजफ्फरपुर के डीटीओ रजनीश लाल पर हुई थी । निगरानी ने उसके आवास से इतने नगदी पैसे बरामद किये थे कि नोट गिनने वाला मशीन लाना पड़ा था ।रजनीश सिर्फ मुजफ्फरपुर के ही डीटीओ नहीं थे वो सारण (छपरा) के भी डीटीओ थे ।समझ सकते हैं कि मुजफ्फरपुर अपने आप में कितना बड़ा जिला है और उसके साथ छपरा जहां बालू कारोबार चरम पर है ऐसे में दो जिलों का प्रभार बिना मंत्री और विभागीय हेड के सहमति के बगैर सम्भव है क्या ,जबकि मुख्यालय अधिकारी भरे पड़े हैं फिर रजनीश लाल में इतनी मेहरबानी क्यों वैसे इनका एक और परिचय है कि ये बिहार सरकार के एक मंत्री के रिश्तेदार हैं ।

2–बालू माफिया से सांठगांठ मामले में दो एसपी चार डीएसपी सहित 41 अधिकारियों पर हुई कारवाई
नयी सरकार के गठन के बाद से ही ये खबर आ रही थी कि बालू माफिया सरकार को अस्थिर करने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है इस सूचना के बाद सरकार बालू के अवैध कारोबार पर लगाम लगाने के लिए लगातार अधिकारियों को निर्देश दे रहा था, लेकिन पदाधिकारी और बालू माफिया के बीच इस तरह का गठजोड़ बन गया था कि सरकार के निर्देश के बावजूद भी अवैध कारोबार चरम पर था, सरकार ने तय किया कि अब कठोर कारवाई के बिना लगाम लगने वाला नहीं है और फिर सरकार आर्थिक अपराध इकाई को मिशन बालू माफिया का जिम्मा दिया गया पूरी छूट के साथ ।

आर्थिक अपराध इकाई के एडीजी नैयर हसनैन खान अपने खास पदाधिकारियों के साथ एक माह तक ऑपरेशन बालू माफिया पर काम करते रहे और उसके बाद सरकार से हरी झंडी मिलते ही कारवाई शुरु हो गयी और भोजपुर के एसपी राकेश कुमार दुबे और औरंगाबाद के एसपी सुधीर कुमार पोरिका पालीगंज के अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी तनवीर अहमद, भोजपुर के अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी पंकज रावत, डिहरी के अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी संजय कुमार और औरंगाबाद सदर के अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी अनूप कुमार सहित एक दर्जन से अधिक पुलिस पदाधिकारियोंं को निलंबित कर दिया गया।
साथ ही एसडीओ ,सीओ ,वीडिओ और डीटीओ स्तर के कई अधिकारियों पर भी कारवाई हुई अब जरा गौर करिए जिन अधिकारियों पर कारवाई हुई है उसका बैकग्राउंड कैसा रहा है ।

3–भोजपुर एसपी राकेश कुमार दूबे –इस अधिकारी को कौन नहीं जानता है लालू राज में इसकी तूती बोलती थी नीतीश कुमार आये तो कुछ दिन फिल्ड से बाहर रहे लेकिन जैसे ही राजद से जुड़े एक कद्दावर नेता नीतीश के करीब आये राकेश दूबे को प्राइम पोस्टिंग

मिलनी शुरु हो गयी भोजपुर एसपी रहते हुए बालू माफिया से इनका कैसा रिश्ता था कहना मुश्किल है लेकिन उस सिडिकेंट से इनका जुड़ाव रहा है ये किसी से छुपी हुई भी नहीं है ।

4–औरंगाबाद के एसपी सुधीर कुमार पोरिका–इस अधिकारी के बारे में खासबात यह है कि ये दरबार के खासम खास थे पटना सिटी एसपी के रुप में ही इन पर मुकदमों में पैसे लेने का आरोप लगने लगा था लेकिन दरबार के करीबी थे इसलिए इनकी बेहतर पोस्टिंग होती रही। हद तो तब हो गयी ये जनाब दरबार के सहारे नालंदा के एसपी बन गये वहां भी इनका प्रैक्टिस वैसे ही चलता रहा जैसा ये दूसरे जिले में चलाते थे ।
हलाकि सीएम तक इसके कारनामे की खबर जब तक पहुंचती ये पूरा नाम कमा चुके थे फिर कुछ दिनों के लिए इन्हें जिले से बाहर कर दिया गया लेकिन जैसी ही दरबार की सक्रियता बढ़ी जनाव औरंगाबाद पहुंच गये जहां थाना प्रभारी की पोस्टिंग में सारे हदे इन्होंने पार कर दिया ।

5–भोजपुर के अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी पंकज रावत –बालू माफिया से सांठगांठ मामले में चार अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी पर भी कारवाई हुई है उसमें एक हैं पालीगंज के अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी तनवीर अहमद जो 2009 –20010 बैच के अधिकारी हैं ये जनाब समस्तीपुर सदर के अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी भी रह चुके है विभाग में इनकी पहचान 20-20 खेलने वाले अधिकारी के रुप में है इनकी पोस्टिंग की सूची देख कर ही समझ में आ जायेगा कि जनाव कितने बड़े भीआईपी थे। डिहरी के अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी संजय कुमार 2004 बैच के अधिकारी है हलाकि ये दरबारी होने के बावजूद मध्यममार्गी रहे हैं ।औरंगाबाद सदर के अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी अनूप कुमार प्रमोसन के डीएसपी बने हैं पूराने डीजीपी के दरबारी थे इसलिए उन्हें प्राइम पोस्टिंग दी गयी थी ।

और बात अगर भोजपुर के अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी पंकज रावत की करे तो ये सारी अहर्ता पूरी करते हैं नालंदा के हैं कुर्मी भी हैं कांग्रेस के एक बड़े नेता के दमाद भी हैं टैक्स वाले दरबार के खासम खास भी है 2004 बैच के ये भी अधिकारी है इनकी पोस्टिग की बात करे तो ये हाजीपुर,मोतिहारी ,बेतिया,गया आरा जैसे अनुमंडल के अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी रह चुके हैं सीबीआई जांच भी झेल रहे हैं, मोतिहारी में भी इन पर गम्भीर आरोप लगे थे फिर इनकी पोस्टिंग में कभी फिल्ड से बाहर नहीं रही इन पर कारवाई का बड़ा असर है ब्यूरोक्रेसी पर ।

6–कार्यपालक पदाधिकारी अनुभूति श्रीवास्तव
2013 बैच के नगर विभाग विभाग के अधिकारी है पहली पोस्टिंग इनकी भभुआ नगर परिषद के कार्यपालक पदाधिकारी के पद पर हुआ था पहले पोस्टिंग में ही जनाव अपनी योग्यता दिखा दिये करोड़ो के घोटाले का आरोप हंगामा होने पर कैमूर के तत्कालीन जिलाधिकारी ने इस पूरे मामले की जांच की जिसमें ये दोषी पाये गये लेकिन नाम के अनुसार इन्होंने काम किया नगर विभाग विभाग के अधिकारियों से मिल कर कारवाई वाली फाइल दबवा दिये शुक्र कहिए मामला सीएम के जनता दरबार में आ गया और उसके बाद कारवाई शुरु विशेष निगरानी की टीम ने आय से अधिक मामले को लेकर एक प्राथमिकी दर्ज किया है छापेमारी हुई तो करोड़ो को अवैध सम्पत्ति बरामद हुआ हुई है ।

7–मुजफ्फरपुर में ग्रामीण कार्य विभाग दरभंगा में कार्यरत एग्जीक्यूटिव इंजीनियर अनिल कुमार (Engineer Anil kumar) के ठिकाने से 49 लाख रुपये और बरामद हुए हैं. इससे पूर्व उसके स्कार्पियो से 18 लाख रुपये मिले थे. इस तरह सरकारी अधिकारी की गाड़ी से कुल बरामद राशि 67 लाख रुपया बरामद हुआ।
ये साहब मंत्री के स्वजातीय हैं और करीबी भी हैं इसलिए इन्हें दो जिले की जिम्मेवारी मिली हुई है जब कि मुख्यालय में इंनजीनिर बिना काम के बैठे हुए हैं ।
मतलब कारवाई से भ्रष्टाचार पर अंकुश लगना सम्भव नहीं है क्यों कि जिस तरीके से पोस्टिंग की प्रक्रिया सरकार चला रही है ऐसे में काम करने वाले ईमानदार अधिकारियों के पोस्टिंग की गुंजाइश
कम है हलाकि इस मामले में बिहार के पूर्व डीजीपी और भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ करवाई करने को लेकर चर्चित रहे अभयानंद
का कहना है कि कानून प्रयाप्त है हां पोस्टिंग में अधिकारियों के कार्यशैली को देखा जाना चाहिए साथ ही पोस्टिंग के समय राजनैतिक हस्तक्षेप कैसे कम हो इस सरकार को सोचना चाहिए क्यों कि सब खेल पोस्टिंग से ही शुरु होता है ।

संभार –संतोष सिंह के वाल से

बिहार में एक और डीएसपी निकला करोड़पति 10 वर्षो में कमाया अकूत सम्पत्ति

बालू माफिया से सांठगांठ मामले में आर्थिक अपराध इकाई के द्वारा आरा के तत्कालीन डीएसपी पंकज कुमार रावत द्वारा आय से अधिक संपत्ति मामले में 3 सितंबर को EOU ने पटना में आय से अधिक संपत्ति की FIR नंबर 15/2021 दर्ज की। साथ में कोर्ट से सर्च वारंट लिया। इसी आधार पर आज पंकज कुमार रावत के पटना में बोरिंग रोड वाले फ्लैट, दानापुर के नासरीगंज वाले घर और नालंदा के हिलसा में पुश्तैनी घर पर अलग-अलग टीमों ने छापेमारी की।

छापेमारी के दौरान पंकज कुमार रावत के पास करोड़ो के सम्पत्ति का खुलसा हुआ है पटना के दीघा बगीचा इलाके में जमीन, एसके पुरी थाना के तहत बोरिंग रोड में फ्लैट, दानापुर के शताब्दी मॉल में दो दुकान और हरियाणा के फरीदाबाद में एक फ्लैट खरीद रखा है। इसके अलावा LIC, बजाज एलियांज में बड़े इंवेस्टमेंट और खरीदी गई प्रॉपर्टी के डॉक्यूमेंट्स टीम के हाथ लगे हैं। काली कमाई के जरिए खरीदी गई सारी प्रॉपर्टी और दूसरे इंवेस्टमेंट, डीएसपी, उनकी पत्नी व परिवार के दूसरे सदस्यों के नाम पर है।

बिहार का एक और अधिकारी आय से अधिक संपत्ति मामले में पकड़ा गया

बिहार में भ्रष्टाचार किस कदर व्याप्त है उसकी बानगी आज राज्य सरकार के स्पेशल विजिलेंस के छापा के दौरान सामने आयी है ।

जी है नगर विकास विभाग के 2013 बैच के पदाधिकारी जो हाजीपुर नगर परिषद के मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी के पद से हाल ही सस्पेंड हुए हैं अनुभूति श्रीवास्तव के फ्लैट पर बुधवार को छापेमारी हुई। एक DSP की अगुवाई में स्पेशल विजिलेंस के 10 लोगों की टीम ने सुबह 7 बजे से ही दबिश दे रही है। पूरा मामला आय से अधिक की संपत्ति का है।

आरोप है कि अनुभूति श्रीवास्तव ने सरकारी पद पर रहते हुए भ्रष्टाचार से जुड़े कई कांडों को अंजाम दिया है। अब तक वह अवैध रूप से करोड़ों रुपए की चल-अचल संपत्ति के मालिक बन चुके हैं। इनके खिलाफ काफी शिकायतें सरकार को भेजी जा रही थी, जिसके बाद इंटरनल जांच हुई। 18 अगस्त को ही इन्हें हाजीपुर नगर परिषद के मुख्य कार्यपाल पदाधिकारी के पद से सस्पेंड कर दिया गया था। फिर पटना के वीरचंद पटेल पथ स्थित स्पेशल विजिलेंस ने इनके खिलाफ FIR दर्ज की।

इसके बाद आज टीम ने राजधानी के रूकनपुरा इलाके के तिलक नगर में स्थित अर्पणा मेंशन में छापेमारी की।अभी तक जांच के दौरान सात वर्ष के नौकरी में अकूत सम्पर्ति अर्जित करने के प्रमाण मिले हैं जिसमें पटना में दो फ्लैट एक इंदौर में फ्लैट के साथ साथ एक करोड़ से अधिक निवेश और लगभग 75 लाख रुपया विभिन्न बैक खाते में जमा मिला है फिलहाल सारे कागजात और बैक खाते को विशेष निगरानी की टीम ने जप्त कर लिया है और इनके खिलाफ आय़ से अधिक सम्पत्ति मामले में प्राथमिकी दर्ज किया गया है ।

मुजफ्फरपुर पुलिस के कार्यशैली पर खड़े हुए सवाल भ्रष्ट इंजीनियर को थाने से ही मिला बेल

बिहार में भ्रष्टाचार को लेकर एक कहावत बहुत प्रचलित है खीरा चोर को जेल और हीरा चोर को बेल मुजफ्फरपुर पुलिस कुछ ऐसा ही कर दिखाया है जिस इंजीनियर के पास से 67 लाख रुपया केस बरामद हुआ है उसको थाने पर से ही बेल दे दिया गया है ,जबकि खुद थाना अध्यक्ष लिखित में स्वीकार किया है कि इंजीनियर अनुसंधान में सहयोग नहीं कर रहे हैं कोर्ट में पुलिस आवेदन दिया है कि लैपटांप और मोबाइल खोलने में इंजीनियर सहयोग नहीं कर रहे हैं इस वजह से इसमें क्या साक्ष्य है पता नहीं चल पा रहा है ऐसे में लैपटांप और मोबाइल की जांच के लिए एक्सपर्ट के पास भेजने की अनुमति दी जाये ,इंजीनियर पर अब जो मामला दर्ज हुआ है उसके तहत आईपीसी की धारा 424 और भ्रष्टाचार निवारण की धारा 13 (1बी) लगाया है हलाकि इसमें सात वर्ष के सजा का प्रावधान है ऐसे में आप थाना से जमानत दे सकते हैं लेकिन जो अपराधी आपको अनुसंधान में सहयोग नहीं कर रहा है उसको आप थाने से बेल कैसे दे दिए ये एक बड़ा सवाल मुजफ्फरपुर पुलिस से हैं क्यों कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद अधिकांश मामले में पुलिस सात वर्ष से कम सजा वाले मामलों में थाने पर से बेल नहीं देता है फिर इस इंजीनियर से किस बात का मोहब्बत मुजफ्फरपुर पुलिस को सामने आकर कहना चाहिए वही पांच दिन बाद भी इस मामले को लेकर राज्य में भ्रष्टाचार को लेकर गठित कोई भी एजेंसी अभी तक इस मामले को टेक ओभर नहीं किया है ऐसे कई सवाल है जिसको लेकर पुलिस मुख्यालय से लेकर मुजफ्फरपुर पुलिस तक चुप्पी साधे हुए हैं ऐसे में संदेश और सवाल स्वभाविक है कौन है इंजीनियर का रहनुमा जिसके सामने पूरी सरकार मूक दर्शक बनी हुई है और इंजीनियर कह रहा है कि बिहार में वर्क कल्चर ऐसा है कि पैसा लेना पड़ता है इसलिए ज्यादा सवाल मत करिए मुंह खोल दूं तो पटना तक में भूचाल आ जाएगा ।