‘ भुला दिया गया है’ भारत की राजनीति का अभिन्न थीम बन चुका है। इसके जवाब में ‘ याद किया जा रहा है’ का थीम हर जगह लाँच है। राजनीतिक दल को जनता भले न याद आए लेकिन ‘ भुला दिया गया है’ के भय से वे हर दिन किसी न किसी महापुरुष को याद करते रहते हैं। हर दूसरा फ़ालतू मंत्री सुबह सुबह किसी महापुरुष को याद करता है और फिर अगली सुबह किसी और को। उसका काम सारा उल्टा होता है। राजनीतिक कार्यकर्ताओं के पेज पर जाइये तो हर दिन हाथ जोड़े हुए किसी की जयंती मना रहे होते हैं। हुआ यह है कि राजनीति में इतने महापुरुषों की प्रेरणाएं मिक्स हो चुकी है कि इनसे प्रेरित राजनेता और कार्यकर्ता जनता से दूर हो चुका है। याद करना एक नया उद्योग बन गया है। तारीख़ याद कर लेना ही याद करना हो चुका है।
आज महान कवि सुब्रमण्य भारती की सौवीं वर्षगाँठ है। यहाँ दो दलों के पोस्टर एक दूसरे से होड़ कर रहे हैं। तमिल कोटे से कवि को याद किया जा रहा है। हर जाति हर धर्म और हर भाषा में राजनीतिक दल के लोग हैं और ये लोग इसी काम आते हैं। बाक़ी पोस्टर पर कवि की रचना तो होनी नहीं थी। रचना की दो पंक्तियों को भी जगह मिल सकती थी। कवि की आत्मा को भी लगता होगा कि कौन लोग आ गए हैं।
आपको नेतागीरी करनी है और ट्रोल करने के लिए गिरोह बनाना है तो मूर्ति स्मारक और जयंती पुण्यतिथि याद करना शुरू कर दें।
लेखक –रवीश कुमार पत्रकार